आम तौर पर सर्जरी के दौरान टांका लगाने की प्रक्रिया में जीवित ऊतकों को अनेक तरह से नुकसान पहुंचता है. इन्हें बचाने के लिए शोधकर्ता लंबे समय से कोशिशों में जुटे हैं. स्मार्ट टिस्सू ऑटोनोमस रोबोट के जरिय

आम तौर पर सर्जरी के दौरान टांका लगाने की प्रक्रिया में जीवित ऊतकों को अनेक तरह से नुकसान पहुंचता है. इन्हें बचाने के लिए शोधकर्ता लंबे समय से कोशिशों में जुटे हैं. स्मार्ट टिस्सू ऑटोनोमस रोबोट के जरिये इस प्रक्रिया को अंजाम देते हुए इसमें कुछ हद तक कामयाबी मिली है. दूसरी ओर, बच्चों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 23, 2017 6:35 AM
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आम तौर पर सर्जरी के दौरान टांका लगाने की प्रक्रिया में जीवित ऊतकों को अनेक तरह से नुकसान पहुंचता है. इन्हें बचाने के लिए शोधकर्ता लंबे समय से कोशिशों में जुटे हैं. स्मार्ट टिस्सू ऑटोनोमस रोबोट के जरिये इस प्रक्रिया को अंजाम देते हुए इसमें कुछ हद तक कामयाबी मिली है.
दूसरी ओर, बच्चों में एपेंडिक्स की दशा में अब तक सर्जरी ही उसका एकमात्र इलाज है. लेकिन, शोधकर्ता इसके लिए एंटीबायोटिक्स को विकसित करने में जुटे हैं, ताकि बिना सर्जरी के बच्चों को बचाया जा सके. ऊतकों को बचाते हुए स्मार्ट टिस्सू ऑटोनोमस रोबोट कैसे देता है सर्जरी को अंजाम और एपेंडिक्स की दशा में सर्जरी के बिना कैसे बचाया जायेगा बच्चों को, जानते हैं आज के मेडिकल हेल्थ आलेख में …
बच्चों में एपेंडिक्स होने की दशा में समय रहते जल्द-से-जल्द सर्जरी करनी होती है, ताकि उसे शरीर के भीतर फटने से बचाया जा सके. इसे रोकने के लिए अब तक कोई कारगर दवा नहीं बन पायी है, लिहाजा इसके लिए सर्जरी पर ही निर्भरता है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथेम्पटन के शोधकर्ताओं ने इस दिशा में एक उम्मीद जगायी है. मूल रूप से ‘पीडियाट्रिक्स’ में प्रकाशित एक लेख के हवाले से ‘साइंस डेली’ की एक रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने बच्चों में एपेंडिक्स को एंटीबोटिक्स से प्रभावी तरीके से निपटने में कामयाबी पायी है. इसमें ब्लॉकेज आने या संक्रमण होने पर इसे हटाने के लिए सर्जरी करनी होती है. बच्चों में आपातकालीन सर्जरी का यह सबसे बडा कारण पाया गया है.
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथेम्पटन में पीडियाट्रिक्स सर्जरी के एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध रिपोर्ट के प्रमुख लेखक नाइजेल हॉल का कहना है कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों के दौरान शोध किया है.
इसके लिए उन्होंने इस इलाज के दायरे में रखे गये 413 बच्चों पर पिछले एक दशक तक अध्ययन किया है. इस दौरान यह दर्शाया गया कि नॉन-सर्जिकल ट्रीटमेंट में किसी खास तरह की विपरीत स्थिति नहीं रही. नाइजेल हॉल का कहना है, ‘गंभीर एपेंडिक्स को दुनियाभर में होनेवाली सामान्य सर्जिकल इमरजेंसी का सर्वाधिक सामान्य कारण देखा गया है और लंबे समय से इसे ही इलाज का कारगर तरीका माना जा रहा है. लेकिन यह जोखिमभरा और महंगा है. हमारा परीक्षण यह दर्शाता है कि बच्चों में की जानेवाली इस सर्जरी के विकल्प के तौर पर एंटीबायोटिक्स को विकसित किया जा सकता है. हमारे अब तक के अध्ययन से यह बात सामने आयी है कि कम-से-कम बच्चों के लिए तो एंटीबायोटिक्स कारगर साबित होगा. इसे ज्यादा व्यापक बनाने की जरूरत है.’
विशेषज्ञों ने इसकी समीक्षा करते हुए कहा है कि फिलहाल दीर्घावधि में इसके क्लिनीकल नतीजों और लागत को समझना होगा. इसके लिए अभी और कुछ समय तक परीक्षण करना होगा, तब जाकर किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है और इस प्रक्रिया में बदलाव लाने का फैसला किया जा सकता है. फिलहाल साउथेम्पटन में हॉल और उनकी टीम टूटींग के सेंट जॉर्ज हाॅस्पीटल के सहयोगियों के साथ शोध में जुडे हुए हैं, जिसमें लिवरपूल स्थित एल्डर हे चिल्ड्रेन्स हॉस्पीटल और ग्रेट ऑर्मंड स्ट्रीट हॉस्पीटल समेत अनेक संगठन हिस्सेदारी निभा रहे हैं. यह टीम अगले एक वर्ष तक अनेक बच्चों पर संबंधित परीक्षण को अंजाम देगी. इस दौरान यह जानने की कोशिश की जायेगी कि एपेंडिक्स की दशा में कितने बच्चों को सर्जरी के बिना बचाया जा सका और इसमें एंटीबायोटिक की कितनी भूमिका रही.
क्या है एपेंडिक्स
एपेंडिक्स शरीर के भीतर आंत का एक हिस्सा है, जिसका शारीरिक कार्यकलापों में किसी तरह का योगदान नहीं के बराबर है. चिकित्सा की भाषा में इसे एपेंडिसाइटिस कहा जाता है.
मरीजों के लिए तो यह समस्या है ही, मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए भी यह अब तक बडी समस्या बना हुआ है, क्योंकि इसका इलाज बहुत मुश्किल है. डॉक्टर के लिए यह तय कर पाना कि मरीज के पेट में होनेवाला दर्द एपेंडिक्स के कारण ही है, बहुत मुश्किल होता है. दूसरी मुश्किल यह होती है कि इनसान के पेट में बहुत अंग होते हैं. इन अंगों की अनेक बीमारियों में पेटदर्द, बुखार, वोमेटिंग आदि के लक्षण तकरीबन मिलते-जुलते होते हैं. इसलिए यह सुनिश्चित कर पाना कि पेटदर्द एपेंडिक्स के कारण ही हो रहा है, बेहद मुश्किल होता है.
क्या है इसका जोखिम
आंत के इस अवशिष्ट हिस्से का एक सिरा खुला हाेता है, जबकि दूसरा सिरा पूरी तरह से बंद होता है. किसी कारण यदि इसमें खाद्य पदार्थ घुस जाते हैं और दूसरा सिरा बंद होने से वह दूसरी ओर से निकल नहीं पाता है, तो ऐसी दशा में एपेंडिक्स संक्रमित हो जाता है.
क्या है इसका कारण
– ज्यादा दिनों तक पेट कब्ज रहना.
– पेट में पलनेवाला परजीवी और आंत के टीबी आदि से अपेंडिक्स की नली में बाधा पैदा हो जाना.
– कम रेशेदार वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना.
– किसी कारण से इसमें ज्यादा दिनों तक अवरोध पैदा होने से एपेंडिक्स संक्रमित होकर फटने की दशा में आ जाता है.
सर्जरी के दौरान सटीक टांका लगायेगा
स्मार्ट टिस्सू ऑटोनोमस रोबोट
इन्फ्रारेड थ्रीडी ट्रैकिंग सिस्टम के इस्तेमाल से अत्याधुनिक बायोकंपेटिबल (सर्जिकल इंप्लांट में खास तौर से इस्तेमाल में लाया जानेवाला मैटेरियल, जिनसे जीवित ऊतकों को किसी तरह को नुकसान नहीं होता) के जरिये पहले स्मार्ट टिस्सू ऑटोनोमस रोबोट (स्टार) सर्जरी के सफल परीक्षण को अंजाम दिया गया है. इस सर्जरी के दौरान स्मार्ट टिस्सू ऑटोनोमस रोबोट में घावों में बेहद सटीक तरीके से टांके लगाने की क्षमता पायी गयी है. साथ ही यह पाया गया है कि मैनुअल और रोबोट-असिस्टेड सर्जरी व निर्बाध रूप से थ्रीडी विजिबिलिटी के साथ इसकी सटीकता में भी वृद्धि हुई है.
‘आइइइइ ट्रांजेक्शन ऑन बायोमेडिकल इंजीनियरिंग’ में मूल रूप से प्रकाशित इस अध्ययन रिपोर्ट के हवाले से ‘साइंस डेली’ में बताया गया है कि में ऊतकों की थ्रीडी ट्रैकिंग और सर्जिकल टूल्स के साथ किये गये अनेक परीक्षण मिलीमीटर के स्तर तक सटीक पाये गये. इस परीक्षण में पाया गया कि इसके अनुप्रयोग से स्टिच में नियमित रूप से होनेवाली लीकेज में भी कमी आती है, जिससे घावों को नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा सर्जिकल प्रक्रिया के बाद हासिल किये जानेवाले नतीजों में भी बेहद सुधारदेखा गया है.
स्टैंडर्ड ऑप्टिकल ट्रैकिंग मैथॉड से की गयी तुलना
शेख जायेद इंस्टिट्यूट फॉर पीडियाट्रिक्स सर्जिकल इनोवेशन के चिल्ड्रेन्स नेशनल हेल्थ सिस्टम की डेवलपमेंट टीम द्वारा इस शोध अध्ययन को अंजाम दिया गया है. अध्ययन में यह व्याख्या की गयी है कि नियर-इन्फ्रारेड फ्लूरोसेंट (एनआइआरएफ) मार्कर्स के साथ थ्रीडी ट्रैकिंग सिस्टम के डिजाइन और रोबोटिक परीक्षणों के इस्तेमाल से हासिल किये गये नतीजों की सटीकता की तुलना स्टैंडर्ड ऑप्टिकल ट्रैकिंग मैथॉड से की गयी. एक मिमी प्रति सेकेंड की स्पीड से इस टीम ने इसका परीक्षण किया. इस दौरान देखा गया कि 1.61 मिमी प्रति सेकेंड की स्पीड से आगे बढने पर रक्त और ऊतकों में मार्कर्स कवर्ड किये गये थे.
विकृत ऊतकों को टारगेट करना ज्यादा चुनौतिपूर्ण
शेख जायेद इंस्टिट्यूट में स्मार्ट टूल्स के प्रोग्राम लीडर और इस अध्ययन रिपोर्ट के प्रमुख लेखक एक्सेल क्रेगर का कहना है, ‘सॉफ्ट-टिस्सू सर्जरी के दौरान मूलभूत चुनौती उन ऊतकों को टारगेट करना होता है, जो मूव करते हैं और आसपास के ऊतकों को विकृत करते हैं. ये ब्लड या अन्य ऊतकों द्वारा रोक दिये जाते हैं, जिस कारण आसपास के ऊतकों में से इनकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है.’
क्रेगर आगे कहते हैं,’ टूल्स को सटीक तरीके से ट्रैकिंग करने की प्रक्रिया को स्थापित करते हुए और सर्जिकल माहौल में ऊतकों के द्वारा इस इनाेवेटिव सिस्टम में यह क्षमता है साबित हो चुकी है कि मैनुअल और रोबोट-असिस्टेड सर्जरी के लिए इस्तेमाल में लायी जानेवाली ज्यादातर युक्तियों की क्षमता को बढा सकता है.’
सक्षम पाया गया एनआइआर इमेजिंग को
इस सिस्टम को छोटे बायोकंपीटेबल एनआइआरएफ मार्कर्स से बनाया गया है, जिसमें नोवेल फ्यूज्ड प्लेनोप्टिक और नियर-इन्फ्रारेड कैमरा ट्रैकिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है. इसमें चीजों को नियंत्रित करने के लिए थ्रीडी ट्रैकिंग सिस्टम लगाया गया है, जो रक्त और ऊतकों की सामान्य प्रक्रिया पर नजर रखते हैं.
क्रेगर इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि इस दौरान पैदा होनेवाली मुश्किलों से निपटने में एनआइआर इमेजिंग को सक्षम पाया गया है, क्योंकि एनआइआर लाइट की व्यापकता विजुअल लाइट के मुकाबले ज्यादा सघन होती है.
मुलायम और संवेदनशील ऊतकों की महीनतम सर्जरी को बनाया मुमकिन
शेख जायेद इंस्टिट्यूट के एमडी, वाइस प्रेसिडेंट और एसोसिएट सर्जन इन चीफ पीटर सी किम कहते हैं, ‘इसकी कार्यप्रणाली को सुपर ह्यूमैन आइज यानी चमत्कारी मानवीय आंखों और हमारे स्टार रोबोटिक सिस्टम के कुछ हद तक इंटेलिजेंस के रूप में की जा सकती है.
इसने जीवित अंगों के मुलायम और संवेदनशील ऊतकों की महीनतम सर्जरी को मुमकिन बनाया है.’ विशेषज्ञों ने उम्मीद जतायी है कि भविष्य में इसे ज्यादा एकीकृत बनाते हुए उपयोगी बनाया जा सकता है और रोबोटिक सर्जरी जैसे इमेज-गाइडेड मेडिकल संबंधी कार्यों में ट्रैकिंग सिस्टम का सटीक मूल्यांकन किया जा सकेगा.
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