फुटबॉल खेलना सिखाते हैं टूटू सर

कई लड़कियों की जिंदगी से दूर हुई है गरीबी, मायूसी और बेबसी अरविंद यादव टूटू सर के नाम से मशहूर नंदकिशोर पटनायक कामयाबी की एक ऐसी कहानी के नायक हैं, जिसमें हार न मानने की जिद है, नि:स्वार्थ प्रेम और रोमांच है. टूटू सर ने कभी खो-खो खेलने वाली लड़कियों से ओड़िशा की पहली महिला […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 23, 2017 8:22 AM
कई लड़कियों की जिंदगी से दूर हुई है गरीबी, मायूसी और बेबसी
अरविंद यादव
टूटू सर के नाम से मशहूर नंदकिशोर पटनायक कामयाबी की एक ऐसी कहानी के नायक हैं, जिसमें हार न मानने की जिद है, नि:स्वार्थ प्रेम और रोमांच है. टूटू सर ने कभी खो-खो खेलने वाली लड़कियों से ओड़िशा की पहली महिला फुटबॉल टीम बनायी और फिर उसे ट्रेनिंग देते हुए देश की सिरमौर फुटबॉल टीम बना दिया. पढ़िए एक दिलचस्प दास्तान.
बात 1993 की है. बीजू पटनायक उन दिनों ओड़िशा के मुख्यमंत्री थे. एक सरकारी दौरे पर वे असम गये हुए थे. उन्हें अपने असम प्रवास के दौरान पता चला कि कुछ ही दिनों बाद असम में राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टूर्नामेंट होने वाला है. असम के अधिकारियों को बीजू पटनायक ने बता दिया कि ओड़िशा की टीम भी इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेगी. लेकिन, मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को ये नहीं मालूम था कि ओड़िशा की महिला फुटबॉल टीम ही नहीं है. वह ओड़िशा की टीम को राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टूर्नामेंट में भेजने का आश्वासन देकर भुवनेश्वर लौट आये. मुख्यमंत्री ने खेल विभाग के अधिकारियों को महिला फुटबॉल टीम असम भेजने का आदेश दिया.
सारे खेल अधिकारी जानते थे कि ओड़िशा में महिला फुटबॉल टीम है ही नहीं. चूंकि मुख्यमंत्री का आदेश था, सो सभी फुटबॉल टीम बनाने की तैयारी में जुट गये. जिन-जिन से संपर्क किया गया, सबने हाथ खड़े कर दिये. हर जगह से निराश होकर खेल विभाग के अधिकारियों से टूटू से संपर्क किया, तब उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया.
जिस स्कूल के मैदान में टूटू प्रैक्टिस करते थे, वहां उन्होंने देखा कि एक कोने में कुछ लड़कियां खो-खो खेल रही हैं. टूटू को लगा कि इन लड़कियों से फुटबॉल टीम बनायी जा सकती है क्योंकि इन लड़कियों में काफी फुर्ती है और ये सभी तेज दौड़ भी रही हैं. टूटू उनके पास गये और उनसे पूछा कि क्या वे फुटबॉल खेलना चाहेंगी. उन्होंने साफ मना कर दिया. टूटू ने हार नहीं मानी और अलग-अलग तरह से कोशिशें कर उन्हें मनाने की कोशिश की. लेकिन, एक भी राजी नहीं हुई.
इसी बीच जब मुख्यमंत्री ने खेल अधिकारियों से महिला टीम की तैयारी के बारे में पूछा, तब अधिकारियों ने कहा कि अभी टीम तैयार नहीं है. इस जवाब से नाखुश बीजू पटनायक ने कहा कि वे टीम को हवाई जहाज से भी भेजने के लिए तैयार हैं. टूटू को जब मालूम हुआ कि मुख्यमंत्री ने हवाई जहाज से खिलाड़ियों को भेजने की बात कही है तब वे फिर उन खो-खो वाली लड़कियों के पास पहुंचे. लड़कियों को टूटू ने बताया कि अगर वे फुटबॉल खेलने के लिए तैयार हो गयीं तो उन्हें हवाई जहाज में सफर करने का मौका मिलेगा. उन दिनों लोग हवाई जहाज में सफर के सपने को भी बहुत बड़ा सपना मानते थे. हवाई जहाज में सफर की बात सुन उन लड़कियों का दिल भी मचल गया. कई लड़कियां फुटबॉल के लिए तैयार हो गयीं. टूटू ने इन लड़कियों को फुटबॉल खेलना सिखाना शुरू किया.
किसी तरह से टीम बनकर तैयार हुई और मुख्यमंत्री के आदेश अनुसार टीम को फ्लाइट से असम भेजा गया. सभी लड़कियों बहुत खुश हुई जब वे पहली बार हवाई जहाज में बैठीं.
फ्लाइट से असम पहुंचे के बाद लड़कियां फुटबॉल के मैदान पर आयीं. सभी लड़कियों के लिए फुटबॉल नया खेल था. राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टूर्नामेंट के पहले मैच में ही ओड़िशा की टीम 26 गोल से हार गयी. लगातार हारने के बाद उड़ीसा की टीम टूर्नामेंट से बाहर हो गयी और खाली हाथ वापस भुवनेश्वर लौटी. टूटू सर लड़कियों के घर गये और उन्हें मैदान पर वापस लेकर आये. लड़कियों ने फिर से प्रैक्टिस शुरू की. इस बार कई लड़कियों से मन लगा कर अभ्यास किया.
रोजाना 6-6 घंटों की प्रैक्टिस से लड़कियों के प्रदर्शन में जल्द ही निखार आने लगा. लड़कियों का उत्साह देखर टूटू सर के मन में नयी उम्मीदें जगी. उन्हें लगा कि अगले राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टूर्नामेंट में ओड़िशा की टीम शानदार खेल खेलेगी. लेकिन, जब टूर्नामेंट के मैचों की तारीखों का ऐलान हुआ तब टूटू सर बहुत हैरान और परेशान हुए. टूर्नामेंट में ओड़िशा की टीम को जगह ही नहीं दी गयी थी. जब ये जानकारी लड़कियों को मिली तब उन्होंने साफ कह दिया कि अगर टूर्नामेंट में खेलने का मौका नहीं मिला तो वे फुटबॉल खेलना बंद कर देंगी. इन बातों से टूटू सर और भी घबरा गये. उन्होंने ओड़िशा की टीम को टूर्नामेंट में जगह न दिये जाने की वजह का पता लगाने की कोशिश शुरू की.
उन्होंने कोलकाता में अपने एक मित्र को फोन लगाया जो कि इंडियन फुटबॉल अकादमी के जॉइंट सेक्रेटरी देबू दा थे. पहले तो देबू दा ने साफ इनकार कर दिया, लेकिन टूटू सर की बार-बार की जा रही गुजारिशों के सामने पिघलकर उन्होंने एक उपाय बताया. देबू दा ने टूटू सर से ओड़िशा फुटबॉल संघ से एक सिफारिशी चिट्टी लाने को कहा. लेकिन, टूटू सर के पास भुवनेश्वर से हल्दिया को चिट्टी पहुंचाने के लिए सिर्फ एक दिन का समय था. इस सुझाव को सुनते ही टूटू सर सीधे ओड़िशा फुटबाल संघ के सचिव के घर पर पहुंचे. उनसे चिट्ठी लिखवायी और उसे लेकर हल्दिया रवाना हो गये. समय कम था भुवनेश्वर से हल्दिया की दूरी करीब 500 किलोमीटर थी. परिवहन का कोई साधन तत्काल उपलब्ध नहीं था. देरी की आशंका की वजह से टूटू सर ने अपने एक मित्र को साथ लिया और उनकी यामाहा बाइक पर सवार होकर हल्दिया के लिए रवाना हुए. सड़क-मार्ग का ये सफर आसान भी नहीं था. खड़गपुर पहुंचे तब बारिश शुरू हो गयी. तूफानी बारिश थी. हल्दिया के फुटबॉल स्टेडियम पहुंचे. रात बहुत हो चुकी थी. हर तरह अंधेरा था. बारिश की वजह से बिजली भी नहीं थी. हल्दिया के फुटबॉल स्टेडियम में चौकीदार मिला. वो उन्हें सेक्रेट्री का पता बताने को तैयार ही नहीं हो रहा था. टूटू सर ने चौकीदार की नीयत भांपकर उसके हाथ में जब 200 रुपये थमाये, तब वो उन्हें टूर्नामेंट के आयोजन सचिव के पास ले गया. देर रात गये किसी का घर आना उन्हें अच्छा नहीं लगा. सचिव ने टूटू सर को जमकर डांटा भी, लेकिन उनके जज्बे और उनकी हिम्मत की प्रशंसा भी की. सचिव ने टूटू सर से सिफारिशी चिट्टी ले ली, जोकि गीली हो चुकी थी और हरमुमकिन कोशिश के बावजूद टूटू सर उसे बारिश के पानी से नहीं बचा पाये थे. सचिव ने टूटू सर से टीम को हल्दिया लाने को कहा. नये उत्साह के साथ टूटू सर भुवनेश्वर के लिए रवाना हुए. भुवनेश्वर पहुंचने के बाद नंदकिशोर ने अपनी टीम को टूर्नामेंट में ले जाने की जरूरी तैयारियां की और टीम के साथ फिर से बस से हल्दिया के लिए रवाना हो गये.
पिछले टूर्नामेंट के मुकाबले इस बार ओड़िशा की टीम ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया. टीम क्वार्टरफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही थी. साल-दर-साल ओड़िशा टीम का प्रदर्शन बेहतर होता चला गया और 10 साल बाद वो दिन आया जब ओड़िशा की महिला फुटबॉल टीम राष्ट्रीय चैंपियन बनी.
(इनपुट: योरस्टोरी डॉट कॉम)

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