मुंबई की नौकरी छोड़ अपने गांव में बागवानी से िमसाल पेश कर रहे दो भाई
आकाश कुमार
बेगूसराय : आम तौर पर युवा पढ़ाई के बाद बड़े शहरों में नौकरी के लिए भागते हैं. लेकिन, बेगूसराय के दो भाइयों मदन व बंटी ने मुंबई में जमी-जमायी नौकरी छोड़ कर गांव में बागवानी शुरू की है. उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है. पढ़िए उनकी कहानी.
मुंबई में एक निजी कंपनी की अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर दो भाई बागवानी और उद्यान में नये मापदंड गढ़ रहे हैं. गांव लौटने के बाद पुश्तैनी जमीन पर परंपरागत खेती को छोड़ बंटी-मदन की जोड़ी ने नयी तकनीक से बागवानी शुरू की है. बेगूसराय के बलिया अनुमंडल के बड़ी बलिया गांव निवासी बंटी रस्तोगी और मदन रस्तोगी ने एमबीए करने के बाद मुंबई में इंडियन इंफोलाइन में ज्वाइन किया. दोनों भाइयों को 48-48 हजार रुपये मासिक सैलरी मिलती थी.
लगभग पांच साल की नौकरी में भाग-दौड़ भरी जिंदगी और महंगाई की मार ने दोनों का मुंबई से मोह भंग कर दिया. वर्ष 2013 में नौकरी छोड़ कर दोनों अपने गांव लौट आये. युवा किसान बंधुओं ने बताया कि उसके पास लगभग आठ एकड़ पुश्तैनी जमीन है. यहां हमेशा से गेहूं, मक्का, दलहन, तेलहन आदि की खेती होती थी. उनके पिता ने थोड़ी सी जमीन में सब्जी के पौधों की नर्सरी लगायी थी इसके लिए दोनों भाइयों ने क्षेत्र में सर्वे करना शुरू किया तो उन्हें लगा कि यहां पर बागवानी और उद्यान के क्षेत्र में अवसर है.
पूसा विश्वविद्यालय से ली ट्रेनिंग : बंटी और मदन ने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर से बागवानी और उद्यान की ट्रेनिंग प्राप्त की. दोनों ने कृषि वैज्ञानिक डॉ आरके झा से जानकारी हासिल कर दो एकड़ खेत में बागवानी और उद्यान की नर्सरी लगायी. शुरू में उन्हें परेशानी भी उठानी पड़ी. सबसे बड़ी समस्या बाजार की थी, क्योंकि क्षेत्र में लोग बागवानी के प्रति उत्सुक नहीं थे. दोनों भाइयों ने अपने मार्केटिंग स्किल का इस्तेमाल किया और गांव-गांव जाकर किसानों को इसके लिए जागरूक किया.
तैयार करते हैं मदर प्लांट : दोनों युवा बताते हैं कि दो एकड़ बागवानी और उद्यान को लगाने में लगभग दो लाख रुपये खर्च हुआ. इसके लिए वे खुद ही मदर प्लांट तैयार करते हैं.
बेगूसराय सहित अन्य जिलों के किसान यहां से पौधे ले जाते हैं. आम, लीची, अमरूद, बेर आदि फलदार पौधे का निर्माण उन्होंने स्वयं ग्राफ्ट एवं गुटी से शुरू किया. इनका कहना है कि दो एकड़ नर्सरी के निर्माण में दो लाख रुपये की लागत आयी है और सालाना आठ लाख रुपये की आमदनी हो जाती है.
खुद करते थे नौकरी और अब दे रहे काम : बंटी और मदन बताते हैं कि नौकरी के दौरान कंपनी का टारगेट पूरा करना दबाव भरा होता था लेकिन यहां कोई प्रेशर नहीं. इनके यहां 40 लोग काम करते हैं, जिनकी सैलरी तीन हजार से आठ हजार रुपये प्रतिमाह देते हैं. नर्सरी का नाम उन्होंने किसान पौधशाला रखा है. दोनों भाइयों का कहना है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास के साथ थोड़ा सा रिस्क लिया जाये तो नयी तकनीकों से खेती में बेहतर आमदनी हो सकती है.
दो सौ एकड़ में करवा रहे हैं बागवानी : बंटी और मदन की जोड़ी किसानों को प्रशिक्षण देकर जिले में लगभग दो सौ एकड़ जमीन पर बागवानी और उद्यान का काम करवा रही है. वे बेहतर तकनीक और आइडिया की जानकारी देते हुए किसानों को मोटिवेट करते हैं. इनका कहना है कि पौधों में जब फल लगेंगे तो उसकी मार्केटिंग की व्यवस्था भी कर देंगे, ताकि किसानों को आसानी से अच्छी कीमत मिल जाये .