वेंचर कैपिटल से सहयोग के बावजूद क्यों असफल हो रहे स्टार्टअप
सिलिकॉन वैली से अनुभव की दरकार पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में वेंचर कैपिटल के सहयोग से अनेक स्टार्टअप्स आगे बढे़ हैं. लेकिन, अब तक इन्हें कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लग पायी है. हालांकि, 2000 के दशक की मध्यावधि के दौरान भारत और चीन में डॉट कॉम से संबंधित कारोबार काफी फले-फूले, लेकिन […]
सिलिकॉन वैली से अनुभव की दरकार
पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में वेंचर कैपिटल के सहयोग से अनेक स्टार्टअप्स आगे बढे़ हैं. लेकिन, अब तक इन्हें कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लग पायी है. हालांकि, 2000 के दशक की मध्यावधि के दौरान भारत और चीन में डॉट कॉम से संबंधित कारोबार काफी फले-फूले, लेकिन इनका बुलबुला फूट जाने के बाद इनकी दशा खराब हो गयी है. भारत में स्टार्टअप्स ज्यादा तेजी से उड़ान क्यों नहीं भर पा रहे हैं, इस संबंध में अनेक विशेषज्ञों का अलग-अलग नजरिया है. आज के स्टार्टअप आलेख में जानते हैं एक संबंधित विशेषज्ञ का क्या है नजरिया …
– परिवार की ज्यादा दखलंदाजी : एक बार एक स्टार्टअप के फाउंडिंग सीइओ ने डिनर पर अपने घर दो वेंचर कैपिटलिस्ट को आमंत्रित किया. उनमें से एक छरहरा और गोरा था, जबकि दूसरा काला और ठिगना था. सीइओ के पिता रिटायर्ड आइएएस अधिकारी थे. वे सभी चीजों को अपने एक अलग नजरिये से देखते थे. डिनर के दौरान उन्होंने गोरे व्यक्ति को काफी सम्मान दिया, जबकि दूसरे को एक तरह से अपमानित किया.
सीइओ ने एक बार अपनी फाउंडिंग टीम को भी डिनर पर अपने घर आमंत्रित किया. इस बार भी उनके पिता ने कुछ-कुछ ऐसा ही किया. रंग के आधार पर उनका भेद-भाव जारी रहा. शुरू में वह सीइओ अपनी टीम के सदस्यों के साथ बिलकुल ऑब्जेक्टिव रहा, लेकिन अपने पिताजी के मुंह यह बार-बार वह सुनता रहा कि फलां ऐसा है और फलां वैसा है, तो उसका नजरिया अपने सदस्यों के प्रति बदलने लगा. सीइओ अपने सदस्यों के साथ भेद-भाव करने लगा. दरअसल, परिवार को चलाना और स्टार्टअप को चलाना, दोनों अलग-अलग चीजें हैं.
आपको यह समझना चाहिए कि अमेरिका की सिलिकॉन वेली में स्टार्टअप्स कैसे तैयार होते हैं. यहां तक कि यदि कोई कंपनी गैरेज से भी शुरू हुई है, तो परिवार के सदस्य कर्मचारियों के कार्यों में दखलंदाजी नहीं देते हैं. घर का कोई आदमी यदि वहां जाता भी है, तो उसका इंटरेक्शन केवल हाय-हैलो तक ही सीमित रहता है. भारत में इस तरह का पेशेवर रवैया कम ही देखा जाता है.
– हाइरार्की की समस्या : हाइरार्की यानी पद के अनुकूल बर्ताव करने की समस्या तकरीबन सभी भारतीय इनसान के जीवन में देखी जा सकती है. लेकिन, वेंचर कैपिटलिस्ट फर्म के साथ आपको ऐसा रवैया नहीं रखना होगा. भारत में इस संबंध में भेदभाव बरता जाता है, जबकि सिलिकॉन वैली में ज्यादातर वीसी फर्म्स के साथ क्लाइंट खुल कर बातचीत करते हैं. यहां तक कि कई बार बातचीत के दौरान माहौल गरमाहट भरा हो जाता है, लेकिन किसी तरह का भेदभाव नहीं बरता जाता.
भारत में यह बात ज्यादा मायने रखती है कि आपके संबंध कैसे लोगों से हैं. बिना किसी जुगाड के यहां पर अच्छे संबंध बनाना भी मुश्किल होता है.
– पिछलग्गू बन जाना : भारत में जब उबर का कारोबार कामयाब हो गया, तो ओला भी उस राह पर चलने लगा. लेकिन उबर ने जब आइपीओ लॉन्च करने की तैयारी की, तो ओला के तेवर उग्र होने लगे. देखिये, केवल दूसरे की नकल करके यदि आप आगे बढना चाहेंगे, तो आप मुश्किल में फंस सकते हैं. और देखा जाये तो आपको इस बारे में ईमानदार क्यों नहीं रह सकते?
एक प्रसिद्ध भारतीय वीसी को उसके बॉस ने हटा दिया. मीडिया ने इसे इस तरह से पेश किया कि उसे इसलिए हटाया गया, क्योंकि उसका बॉस अपने सीइओ के पद से हटना नहीं चाहता था. बाद में गुस्साये हुए वीसी ने अनेक स्टार्टअप्स में निवेश किया और एक साक्षात्कार के दौरान उसने कहा कि भारत में स्टार्टअप का परिदृश्य बहुत खराब है.
– जुगाड़ की समस्या : भारत में जुगाड़ का गुणगान किया जाता है और स्टार्टअप्स के शुरुआत से ही यह दिखना शुरू हो जाता है. इ-कॉमर्स कंपनियों के फाउंडर्स निरंतर इस बात को लेकर संपर्क में रहते हैं कि अपने पहले ग्राहक तक वे कैसे सामान पहुंचाएं. स्टार्टअप के डीएनए को शुरुआती दौर में ही सेट कर दिया जाता है. और वह स्टार्टअप उस सिस्टम को अपना लेता है. यही कारण है कि उबर, अमेजन और अन्य ऐसी कंपनियां आगे बढ रही हैं, जबकि उनके भारतीय प्रतिस्पर्धियों को संघर्ष करना पड रहा है. इसलिए सिस्टम को समझना होगा और मौलिकता कायम करनी होगी.
– कारोबार का पहला नियम : प्रसिद्ध अमेरिकी उद्योगपति वारेन बफेट का कहना है कि कभी भी धन खोना नहीं चाहिए. मुनाफा कमाने के लिए आपको सभी तरह की चीजों को अपनाना चाहिए. बफेट के मुताबिक, कारोबार का दूसरा नियम यह है कि कारोबारी को पहला नियम कभी नहीं भूलना चाहिए.
(साभार : ब्लॉग डॉट टाइम्स ऑफ इंडिया डॉट इंडिया टाइम्स पर प्रकाशित सुनील शरण के लेख का अनुवादित और संपादित अंश)
छोटे कारोबार के असफल होने के प्रमुख कारण
छोटे कारोबार के असफल होने के कई कारण सामने आये हैं. इनमें से सभी कारणों को कुछ प्रमुख शीर्षकों के तहत रख कर यह जानने की कोशिश की गयी कि मुख्य कारण क्या हैं. प्राप्त नतीजों के आधार पर उन्हें फीसदी के मुताबिक तय किया गया, जो इस प्रकार हैं :
46 फीसदी कारण रही अक्षमता.
30 फीसदी का योगदान रहा असंतुलित अनुभव या प्रबंधकीय अनुभव की कमी.
13 फीसदी कारण लापरवाही बरतने, फ्रॉड और आपदा आदि से भी जुडे रहे.
11 फीसदी कारण वस्तुओं या सेवाओं के क्षेत्र में अनुभव की कमी को पाया गया.
(स्रोत : स्मॉल बिजनेस ट्रेंड्स डॉट कॉम)
कामयाबी की राह
स्टार्टअप का उद्देश्य निर्धारित होना चाहिए
स्टार्टअप को शुरू करने से लेकर उसके कामयाब होने तक की यात्रा बडी कठिन होती है. इसमें कठिन परिश्रम और समर्पण की जरूरत होती है. स्पष्ट विजन और लगनशीलता के साथ आपको अपने स्टार्टअप के साथ आगे बढना होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि ईमानदारी, ग्रहणीयता और लगनशीलता, ये सभी ऐसी चीजें हैं, जिनका स्टार्टअप की कामयाबी में अहम योगदान है. साथ ही ये सभी चीजें उद्यमी की मानसिक दशा को निखारने का काम भी करती हैं. स्टार्टअप की कामयाबी की राह में कुछ जरूरी चीजें, जिन्हें अपना कर आगे बढा जा सकता है :
– कर्मचारियों और ग्राहकों को महत्व देना : बतौर उद्यमी आपको अपने कर्मचारियों और ग्राहकों को ज्यादा तवज्जो देना चाहिए. साथ ही इन दोनों के बीच योजनाबद्ध तरीके से चीजों को समायोजित करना चाहिए. विभिन्न हालातों में पैदा होनेवाली चुनौतियों और उनसे निपटने की समझ अपने भीतर विकसित करनी चाहिए.
– बिजनेस प्लान विकसित करना : बिजनेस प्लास किसी कारोबार को एक ऐसा डॉक्यूमेंट होता है, जो आपके कारोबार, उसके विजन, मिशन और उद्देश्य को हाइलाइट करता है. इसके अलावा, यह आपके कारोबार की वित्तीय मजबूती, कुछ दशाओं में उसकी कमजाेरियों, अवसरों और चुनौतियों को दस्तावेजीकृत करता है. कुल मिला कर एक बिजनेस प्लान किसी स्टार्टअप के रीढ की हड्डी कही जाती है.
एक अच्छे बिजनेस प्लान के माध्यम से आप अपने स्टार्टअप को गंभीरता से लोगों के मानसपटल पर उकेरने में कामयाब हो सकते हैं. एक अच्छा कारोबारी अपने निवेशकों के बीच अच्छी साख रखता है और आसन्न चुनौतियों को समझते हुए उनसे निपटने के लिए पहले से ही तैयार रहता है.
– उद्देश्य निर्धारित होना : शुरू से ही आपके स्टार्टअप का उद्देश्य निर्धारित होना चाहिए और आपके सभी कार्यकलाप उसी के अनुरूप होने चाहिए. यह सही है कि बाजार में होनेवाले बदलावों के अनुरूप आपको भी बदलाव लाना चाहिए, लेकिन शुरुआती दौर में आपको पूर्व-निर्धारित योजना के अनुसार ही आगे बढना चाहिए. उद्देश्य निर्धारित करने से बडा फायदा यह होता है कि आप बाजार में भटकते नहीं हैं, क्योंकि कई बार मुनाफे में कमी आने पर उद्यमी घबरा जाता है और उद्देश्य से भटक जाता है. आपको पहले से निर्धारित की गयी चीजों पर ही फोकस करना चाहिए. इससे हालात अापके नियंत्रण में रह सकते हैं और आप चुनौतियों को समझ सकते हैं. यदि आप भटकेंगे, तो फिर हालात आपके नियंत्रण से दूर हो सकते हैं और आपकी असफलता की आशंका बढ जायेगी.
स्टार्टअप क्लास
प्रोडक्ट और मार्केटिंग के जरिये पूजा सामग्री का अच्छा आइडिया है रिटेल
दिव्येंदु शेखर
स्टार्टअप, इ-कॉमर्स एवं फाइनेंशियल प्लानिंग के विशेषज्ञ
– मेरे पास पूजा सामग्री का एक अच्छा रिटेल आइडिया है. मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि इसकी मार्केटिंग कैसे कर सकता हूं? – सुनील चौबे
पूजा सामग्री किट एक अच्छा व्यवसाय है. चूंकि शहरों और कस्बों में हर तरह की पूजा होती है, इसलिए आपको कुछ चीजों का ध्यान रखना होगा. जानते हैं कि आपको क्या-क्या करना होगा अच्छे मार्केट के लिए :
(क) प्रोडक्ट : हर पूजा की अलग विधि होती है. जैसे दिवाली के समय लक्ष्मी पूजन की अलग सामग्री होती है और सत्यनारायण पूजा की अलग सामग्री. हर पूजा किट एक अलग समय पर काम में आती है, जैसे लक्ष्मी पूजन किट दिवाली के समय बिकेगी, लेकिन शिव पूजन सामग्री सालभर. इससे आपको यह पता चल जायेगा कि किस किट को किस मात्रा में बनाना है.
इसीलिए आपको हर पूजा की अलग सामग्री बनानी चाहिए.
(ख) रिटेल किट और बिजनेस किट : रिटेल किट आप अपने ब्रांड के नाम से बनायें, जो आप सीधे-सीधे ग्राहक को बेच सकते हैं. लेकिन, बिजनेस किट वह होगी, जो आप बड़े व्यापारियों को देंगे. आप किसी कार निर्माता के साथ समझौता कर सकते हैं, जो अपनी हर नयी कार के साथ एक पूजा किट साथ में दे सकता है. लेकिन इस तरीके के समझौतों में वह आपके ब्रांड की जगह अपना ब्रांड प्रचारित करना चाहेगा. इसलिए आपको उसको एक दूसरे ब्रांड का माल बना कर देना पड़ेगा.
(ग) मार्केटिंग : रिटेल में मार्केटिंग ज्यादातर बिक्री के केंद्र पर होती है. आपको एक अच्छा डिस्ट्रिब्यूटर पकड़ना होगा, जो आपके माल को बाजार में उतारेगा. मार्केटिंग में आपको अच्छे पोस्टर और स्टीकर बनाने होंगे, जिसे आप दुकानों में लगा सकते हैं. लोकल मार्केटिंग आप छह महीने के बाद चालू करें तो अच्छा रहेगा, क्योंकि तब तक आपको बाजार की ठीक-ठाक समझ हो जायेगी.
सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए मौके
– मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं और पिछले तीन-चार वर्षों से एक इ-कॉमर्स कंपनी में काम कर रहा हूं. मेरी कंपनी बुरे समय से गुजर रही है और मुझे तीन महीने की तनख्वाह देकर जाने को कह दिया है. मैं क्या कर सकता हूं? – प्रकाश कुमार
यह बात सच है कि इ-कॉमर्स में बड़ी कंपनियों की हालत भी खस्ता है. मुनाफा है नहीं और नोटबंदी ने नुकसान और बढ़ा दिया है. इसलिए उनको भी मजबूरी में कड़े कदम उठाने पड़े हैं और काफी लोगों को निकालना पड़ा है. लेकिन, इसमें आपकी कोई गलती नहीं है और आपको निराश होने की जरूरत नहीं है. भारत में अच्छे सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए नौकरी की कोई कमी नहीं है. जानते हैं आपके पास क्या-क्या उपाय हैं :
(क) दूसरी नौकरी : आप किसी भी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी में आसानी से जा सकते हैं. आप नौकरी डॉट कॉम जैसी किसी भी साइट पर अपनी प्रोफाइल बना कर नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. बाजार के हालात को देखते हुए मैं आपको सलाह दूंगा कि इनफोसिस या टाटा कंसल्टेंसी जैसी कंपनियों में आवेदन दें. हो सकता है कि आपको अपनी अभी की तनख्वाह से थोड़े कम पैसे मिलें, लेकिन आपको नौकरी जरूर मिल जायेगी.
(ख) मास्टर्स डिग्री : यह आपके लिए आगे की पढ़ाई करने का अच्छा समय है. आप आसानी से एमबीए या एमटेक कर सकते हैं. ऐसा करने से आपको बेहतर संभावनाएं तलाशने का मौका मिलेगा. साथ ही आपकी प्रोफाइल भी बेहतर होगी.
(ग) नये तकनीकी ट्रेनिंग : आप ‘सी-डैक’ जैसे किसी संस्थान से जुड़ कर एक छोटा तकनीकी कोर्स भी कर सकते हैं. साथ ही आप उनके ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल द्वारा नयी नौकरी भी पा सकते हैं.
आप भी बन सकते हैं एंजेल इनवेस्टर
– मेरा अपना कपड़ों का बड़ा व्यापार है और साथ ही दो ऑफिस बिल्डिंग भी है. काफी दिनों से सोच रहा हूं कि मैं स्टार्टअप में निवेश करूं. एंजेल इनवेस्टर बनने के लिए मुझे क्या करना होगा और मेरा लक्ष्य क्या होना चाहिए?
– चंदन कुमार, मुजफ्फरपुर
देखिये, हर निवेशक अपने निवेश की सफलता चाहता है. बाजार में निवेश कर आप 15-20 प्रतिशत का मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन, अगर आप एंजेल निवेशक बन स्टार्टअप में निवेश करें, तो आपको 100 से 200 प्रतिशत तक का मुनाफा हो सकता है. हालांकि, इसमें जोखिम भी ज्यादा है. जानते हैं कि आपको इसके लिए क्या-क्या करना होगा :
(क) पहुंच : शुरुआती दौर में आपको स्टार्टअप के पास जाना पड़ेगा़ इसके लिए आप इंडियन एंजेल नेटवर्क जैसी संस्था से जुड़ सकते हैं या फिर स्टार्टअप सम्मेलन में भाग ले कर और जानकारी जुटा सकते हैं. एक बार आपकी जान पहचान एक निवेशक के तौर पर बन गयी, तो लोग खुद आपके पास आयेंगे़
(ख) निवेश की राशि : देखिये आप शुरुआत छोटे स्टार्टअप में थोड़ी-थोड़ी रकम डाल कर करें. उसमें भी ध्यान रखें कि उनकी सफलता के हिसाब से धीरे-धीरे रकम दें. आप पहले साल में 10 कंपनियों में 10-10 लाख रुपये तक का निवेश करें. इनमें से एक-दो ही सफल हो पायेंगी. लेकिन, जो भी सफल होंगी, वो आपको 20 से 30 गुना तक लाभ दे सकती हैं. साथ ही आप उनको यह कहें कि आप पांच लाख रुपये शुरू में डालेंगे और पांच लाख प्रोडक्ट या सर्विस एक हद तक बन जाने के बाद. साथ ही आप उनको अपने ऑफिस में किराये में रियायत दे कर रख सकते हैं.
(ग) शेयर : आप शुरू में पांच से 10 प्रतिशत तक की ही उम्मीद रखें. लेकिन सारी कानूनी प्रक्रिया जरूर पूरी करें, तभी आप पैसे डालें. साथ ही बोर्ड पर मेंबर भी बनें.