तकनीकी इनोवेशन से लागत कम करने की तैयारी़, ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा ‘पवन’

पवन ऊर्जा की उत्पादन लागत कम हो रही है़ ग्रिड कनेक्टिविटी और अन्य बुनियादी ढांचों समेत अन्य तकनीकी मोरचे पर काम करते हुए उत्पादन लागत में लगातार कमी लाने के प्रयास किये जा रहे हैं इससे कार्बन मुक्त स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने की दिशा में बड़ी कामयाबी मिलेगी़ साथ ही अक्षय ऊर्जा के अन्य माध्यमों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 28, 2017 6:29 AM
पवन ऊर्जा की उत्पादन लागत कम हो रही है़ ग्रिड कनेक्टिविटी और अन्य बुनियादी ढांचों समेत अन्य तकनीकी मोरचे पर काम करते हुए उत्पादन लागत में लगातार कमी लाने के प्रयास किये जा रहे हैं इससे कार्बन मुक्त स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने की दिशा में बड़ी कामयाबी मिलेगी़ साथ ही अक्षय ऊर्जा के अन्य माध्यमों को बढ़ावा मिलेगा़ भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 60,000 मेगावाट पवन ऊर्जा क्षमता को विकसित करने का लक्ष्य रखा है. आज के साइंस टेक्नोलॉजी पेज में जानते हैं भारत में पवन ऊर्जा की प्रचुर संभावनाओं और इससे संबंधित अनेक अन्य तथ्यों के बारे में …
विंड टरबाइन और फोटोवोल्टिक सेल्स का आविष्कार हुए एक सदी से ज्यादा हो चुका है, लेकिन इनके जरिये बिजली उत्पादन दुनियाभर में महज सात फीसदी तक ही पहुंच पाया है. विंड टरबाइन और फोटोवोल्टिक सेल्स के इस्तेमाल से स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है. अब इसमें तेजी आ रही है. पिछले एक दशक के दौरान इन चीजों में उल्लेखनीय बदलाव आया है और सबसे ज्यादा तेजी से ऊर्जा इन्हीं दोनों तरीके से हासिल करने पर जोर दिया गया है.
उम्मीद की जा रही है कि आनेवाले एक दशक में इस दिशा में व्यापक बदलाव आयेगा. तकनीकी दक्षता की बदौलत उत्पादन लागत में कमी आने से यह उम्मीद ज्यादा बढ गयी है. ऑयल फर्म ‘बीपी’ के हवाले से ‘द इकोनॉमिस्ट’ की एक रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया है कि आनेवाले दो दशकों के दौरान वैश्विक ऊर्जा सप्लाई में आधी हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा की होगी. इसकी एक अन्य बडी खासियत यह है कि अन्य स्रोतों से हासिल ऊर्जा के मुकाबले यह ज्यादा सस्ती व स्वच्छ होगी. साथ ही जितना अधिक इसका विस्तार होगा, उतनी लागत कम होती जायेगी.
बेहद कम संचालन लागत
पवन और सौर ऊर्जा की संचालन लागत बहुत कम है, क्योंकि सूर्य की रोशनी और तेज बहती हवा के लिए कोई भुगतान नहीं करना होता है और न ही इन्हें पैदा करने के लिए कोई युक्ति लगानी होती है. ये दोनों ही प्राकृतिक रूप से धरती पर उपलब्ध हैं. जरूरत है, तो केवल इनके बेहतर इस्तेमाल की. लिहाजा इनकी उत्पादन लागत दिन-ब-दिन कम हो सकती है.
हालांकि, इस दिशा में अब तक एक बडी चुनौती है- ऊर्जा भंडारण. दरअसल, पवन ऊर्जा का उत्पादन उन इलाकों में ही किया जा सकता है, जहां हवाएं तेज चलती हों. साथ ही इसके लिए यह जरूरी है कि हवाएं सालोंभर तेज चलती हों. ऐसे में ज्यादा उत्पादन के दिनों में अत्यधिक ऊर्जा उत्पादन को स्टोरेज करना होता है, ताकि कम उत्पादन के दिनों में उसका इस्तेमाल किया जा सके.
नयी तकनीकों से होगा निदान
नयी तकनीकों की मदद से स्टोरेज क्षमता का विस्तार होगा. डिजिटलाइजेशन, स्मार्ट मीटर और बैटरियों के जरिये इस चुनौती को कम किया जा सकेगा. इससे 24 घंटे निर्बाध रूप से बिजली मुहैया कराने में कामयाबी मिलेगी. छोटे और मॉड्यूलर पावर प्लांट इसमें ज्यादा भूमिका निभायेंगे, जो हाइ-वोल्टेज ग्रिड के जरिये आपस में संबद्ध होंगे और जरूरत के मुताबिक अत्यधिक ऊर्जा को साझा कर पायेंगे.
गुजरात में विकसित किये जा रहे विंड एनर्जी के हाइब्रिड प्रोजेक्ट
विंड और सोलर एनर्जी के जरिये ऊर्जा उत्पादन के लिए गुजरात एनर्जी रिसर्च एंड मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट (जीइआरएमआइ) हाइब्रिड टेक्नोलॉजी का विकास कर रही है. यह संस्थान ऐसे हाइब्रिड सोलर-विंड टावरों के निर्माण में जुटा है, जिन्हें घरेलू स्तर पर छतों पर और अन्य स्थानों पर न्यूनतम जगह के इस्तेमाल से इंस्टॉल किया जा सके और कम-से-कम खर्च में ऊर्जा का उत्पादन किया जा सके.
जीइआरएमआइ के हवाले से ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इससे न केवल जमीन की उपयोगिता बढेगी, बल्कि बुनियादी ढांचे के निर्माण की लागत भी कम होगी. इस संस्थान के डायरेक्टर जनरल टी हरीनारायण का कहना है कि संस्थान इस वर्ष एक प्रोजेक्ट को लॉन्च करेगा, जिसमें इसका परीक्षण किया जायेगा.
ग्रिड कनेक्टिविटी और अन्य बुनियादी ढांचे
इसके अलावा, एक अन्य तकनीक का विकास किया जा रहा है, जो ग्रिड कनेक्टिविटी और संबंधित बुनियादी ढांचे से जुडी चुनौतियों से निपटने में मददगार साबित होगा व इसकी लागत को कम करेगा. हरीनारायण कहते हैं, ‘हमें भरोसा है कि नयी टेक्नोलाॅजी अनेक मसलों का समाधान करने में सक्षम होगी और चीजों को आसान बनायेगी. मौजूदा समय में सोलर व विंड पावर के उत्पादन से संबंधित ग्रिड कनेक्टिविटी और अन्य बुनियादी ढांचे स्वतंत्र हैं, लेकिन नयी तकनीक के इस्तेमाल से हम इस कोशिश में जुटे हैं कि इन्हें सिंगल नेटवर्क के दायरे में लाया जा सके, जो समग्र प्रोजेक्ट की लागत को कम कर सकता है.’
भारतीय विंड एनर्जी क्षमता का 10 गीगावॉट तक नियंत्रित करेगी सुजलॉन एनर्जी
विंड एनर्जी उत्पादन में अगुआ एक भारतीय कंपनी को बडी कामयाबी हाथ लगी है. सुजलॉन एनर्जी ने हाल ही में एक एंटेग्रेटेड विंड एनर्जी सोलुशन मुहैया कराया है, जिसके जरिये भारत में विंड एनर्जी की 10 गीगावॉट तक की संचालन क्षमता को नियंत्रित किया जायेगा.
‘क्लीनटेकनिका’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह क्षमता हासिल करने के बाद भारत में पवन ऊर्जा की कुल क्षमता में करीब 35 फीसदी हिस्सेदारी सुजलॉन की होगी, जबकि भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता में उसकी यह हिस्सेदारी 22 फीसदी तक पहुंच जायेगी. इस कंपनी का कहना है कि देशभर में 7,500 विंड टरबाइन को इंस्टॉल करते हुए 10,000 मेगावॉट तक बिजली उत्पादन की क्षमता प्राप्त की जा सकती है.
कंपनी का दावा है कि इतनी ऊर्जा से 50 लाख घरों को बिजली मुहैया करायी जा सकती है. साथ ही इसका एक अन्य फायदा यह है कि इससे प्रत्येक वर्ष 2.15 करोड टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आयेगी. हालांकि, इस दिशा में एक बडी चुनौती है कि भारत में विंड टरबाइन और बिजली उत्पादन करनेवाली संबंधित ज्यादा उपकरणों को विदेशों से आयात करना होता है, लेकिन उम्मीद जतायी गयी है कि अब ज्यादा-से-ज्यादा ऐसे उपकरणों का निर्माण भारत में किया जा सकेगा.
भारत में पवन ऊर्जा की
राज्यवार स्थापित क्षमता
राज्य कुल क्षमता (मेगावॉट में)
आंध्र प्रदेश 1,038. 15
गुजरात 3,642.53
कर्नाटक 2,639.45
केरल 35.1
मध्य प्रदेश 876.7
महाराष्ट्र 4,437.9
राजस्थान 3,308.15
तमिलनाडु 7,456.98
अन्य 4.3
कुल 23,439.26

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