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शहरों में धऩ सबसे अमीर शहर मुंबई

वैश्वीकरण और आर्थिक वृद्धि के कारण शहरों में धन की मात्रा और धनिकों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. केपजेमिनी कंसलटेंसी द्वारा जारी ताजा वर्ल्ड हेल्थ रिपोर्ट में करोड़पतियों की तादाद का विवरण दिया गया है. जाहिर है, शहरी केंद्रों में समृद्धि बढ़ रही है, पर शहरों के जीवन-स्तर, बुनियादी सुविधाओं और […]

वैश्वीकरण और आर्थिक वृद्धि के कारण शहरों में धन की मात्रा और धनिकों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. केपजेमिनी कंसलटेंसी द्वारा जारी ताजा वर्ल्ड हेल्थ रिपोर्ट में करोड़पतियों की तादाद का विवरण दिया गया है. जाहिर है, शहरी केंद्रों में समृद्धि बढ़ रही है, पर शहरों के जीवन-स्तर, बुनियादी सुविधाओं और नागरिक सुरक्षा की बदहाली विकास की विसंगतियों तथा विषमताओं के मद्देनजर यह बहुत संतोष की बात नहीं है. इस रिपोर्ट की मुख्य बातों और शहरों की समस्याओं और संभावित समाधान पर टिप्पणी के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
अरबपतियों की बढ़ती संख्या
न्यू वर्ल्ड वेल्थ द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल 6.2 ट्रिलियन डॉलर (दिसंबर, 2016 तक) की संपति और यहां 2,64,000 करोड़पति और 95 अरबपति हैं.
बेंगलुरु
इस सूची में 320 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपति के साथ बेंगलुरु तीसरे स्थान पर है. यहां 7,700 करोड़पति और आठ अरबपति हैं.
हैदराबाद
हैदराबाद भारत का चौथा सबसे धनी शहर है. इस शहर में 9,000 करोड़पति और छह अरबपति हैं. यहां की कुल संपति का मूल्य 310 मिलियन अमेरिकी डॉलर है.
कोलकाता
इस सूची में हैदराबाद के बाद कोलकाता का स्थान आता है, जहां 9,600 करोड़पति और चार अरबपति हैं. इस शहर में कुल 290 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपति है.
पुणे
धनी शहरों की इस सूची में पुणे भी शामिल है, जहां 4,500 करोड़पति और पांच अरबपति हैं. पुण में कुल 180 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपति है. इस प्रकार पुणे को भारत का छठा सबसे धनी शहर माना गया है.
चेन्नई
इस सूची में चेन्नई को सातवां स्थान दिया गया है. इस शहर में कुल 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपति है और यहां 6,600 करोड़पति और चार अरबपति हैं.
मुंबई
भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई को देश का सबसे धनी शहर माना गया है. यहां 46,000 करोड़पति और 28 अरबपति हैं. इस शहर में कुल 820 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपति है.
िदल्ली
1947 धनी शहरों में मुंबई के बाद दिल्ली का स्थान है. देश की राजधानी की कुल संपति 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और यहां 23,000 करोड़पति और 18 अरबपति हैं.
धनी शहरों की इस सूची में सूरत, अहमदाबाद, विशाखापट्टनम, गोवा, चंडीगढ़, जयपुर और वड़ोदरा को भी शामिल किया गया है. इसमें भारत के कुछ समृद्ध उपनगर और इलाकों का भी जिक्र है, जिनमें मुंबई के उपनगर बांद्रा, जुहू, गोरेगांव, परली, वर्ली, पाम बीच रोड के अतिरिक्त दिल्ली के वेस्टेंड ग्रीन्स, डेरा मंडी, ग्रेटर कैलाश, लुटियंस, कोलकाता के बैलिगुंजे, अलीपुर, चेन्नई का बोट क्लब रोड और पोएस गार्डन जैसे इलाके भी शामिल हैं.
गुड़गांव
इस सूची में गुड़गांव भी शामिल है. इस शहर की संपति का मूल्य 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गयी है. यहां 4,000 करोड़पति और दो अरबपति हैं.
दुनू रॉय,
निदेशक, हेजार्ड
सेंटर, दिल्ली
शहर अब सिर्फ पैसा बनाने की मशीन हैं
एक रिपोर्ट आयी है कि मुंबई भारत का सबसे धनी शहर है और दूसरे, तीसरे और चौथे धनी शहर क्रमश: दिल्ली, बेंगलुरु और हैदराबाद हैं. यहां सबसे पहले हमें इसके पीछे के कारणों को जानना पड़ेगा कि आखिर यह धनार्जन होता कैसे है और शहर धनी कैसे बनते हैं. तभी मुमकिन है कि शहर के धनी होने के बावजूद वहां बुनियादी जरूरतों के मद्देनजर उसकी बदहाली की सूरत भी सामने आ पायेगी. जब तक शहर के धनी होने का कारण का नहीं पता चलेगा, तब तक हम यह नहीं जान पायेंगे कि शहर की मूलभूत सुविधाएं क्यों नहीं बेहतर हो पा रही हैं.
तकरीबन 20-25 साल पहले शहर एक काम करने या रहने की जगह हुआ करता था. मुंबई में देश के कई हिस्सों से मजदूर आते थे कि उन्हें टेक्सटाइल में काम मिलेगा. लेकिन, पिछले 15-20 सालों में नीति-निर्धारकों की भाषा ही बदल गयी है और वे कहने लगे हैं कि शहर एक इंजन है. यानी अगर शहर विकास का इंजन है, तो वह धनार्जन को बढ़ाता ही जायेगा.
और धनार्जन का एक ही तरीका है, किसी न किसी रूप में साधनों-संसाधनाें का दोहन. शहर का हर साधन बाहर से आता है, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से आता है. मजदूरों का भी दोहन होता है, क्योंकि मजदूरों के दोहन के बिना कोई भी शहर विकास का इंजन नहीं बनेगा, विकसित नहीं बन पायेगा. हमारे देश में पहले योजना आयोग हुआ करता था, उस आयोग के एक अध्ययन से यह पता चलता है कि अगर एक मजदूर को गांव से शहर ले आया जाता है, तो उस मजदूर की उत्पादकता चार गुना बढ़ जाती है.
इसे ऐसे समझें- अगर एक मजदूर गांव में 120 रुपये पैदा कर रहा है, तो वही मजदूर शहर में आकर 480 रुपये पैदा करने लगता है. लेकिन, विडंबना यह है कि उसको चार गुना मजदूरी नहीं मिल पा रही है. यानी अगर वह गांव में 120 रुपये पैदा करता है, तो उसे 100 रुपये मिल जाते हैं, लेकिन वहीं जब शहर में वह 480 रुपये पैदा करता है, तो भी उसे महज 120 रुपये ही मिल पाते हैं. शोषण की यह प्रक्रिया ही मजदूर का दोहन कहलाती है, जिस पर शहरों के विकास का इंजन टिका हुआ है. शहर में एक मजदूर का दोहन गांव के मुकाबले चार गुना है, लेकिन मजदूरी दोगुनी भी नहीं है.
इस दोहन वाली व्यवस्था में समानता नगण्य हो जाती है और मनुष्य का जीवन-स्तर बदतर होता जाता है.अमीर और अमीर होता है, गरीबी और गरीब. मूलभूत सुविधाएं अमीरों की देहरी तक तो पहुंच जाती हैं, लेकिन गरीबों तक जाने का रास्ता ही भूल जाती हैं. इस तरह शहर मनुष्य में ऊंच-नीच की खाई को बढ़ाता जाता है. यही वजह है कि शहरों में एक अमीर परिवार के लिए 10 मंजिल, 20 मंजिल या 30 मंजिल का आलीशान मकान बन सकता है, लेकिन हजारों-लाखों गरीब परिवार के लिए एक कमरे का घर भी नहीं बन सकता है.
ऐसी स्थिति में अगर मुंबई सबसे धनी है, तो यह एक प्रकार से अमीरी के प्रदर्शन से धनी है, न कि सबको मूलभूत सुविधाएं देने के मामले में.
विकास के इंजन का काम पैसा बटोरने का होता है, जिससे शहर धनाढ्य होते हैं. लेकिन, शहरों के धनाढ्य होने का यह कतई अर्थ नहीं कि वह बेहतर भी हो गया हो. अब शहरों का प्रदर्शन देखते हैं- चौबीस घंटे बिजली आती है. मुंबई के बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स या फिर मरीन ड्राइव पर खड़े होकर आपको लगेगा ही नहीं कि आप हिंदुस्तान में हैं. पानी भी आता है और अमीर आदमी हाथ में पानी का पाइप लिये अपने लॉन में खड़ा होकर घंटों तक पानी बहाता रहता है. सड़कें भी बन रही हैं और मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल भी बन रहे हैं. लेकिन, यह सब कुछ ही जगहों पर दिखता है, बाकी जगहें वैसी की वैसी ही सुविधाविहीन बनी रहती हैं. यानी जिन इलाकों में धन का अर्जन हो रहा है, सिर्फ उन्हीं इलाकों में ही धन का वितरण भी हो रहा है. बाकी क्षेत्रों में प्रशासन और सरकारें अपनी कल्याणकारी उद्देश्यों को भूल जाती हैं. इसी प्रदर्शन को हमारे नीति-निर्धारक विकास का इंजन कहते हैं.
ये आज के शहर की परिभाषा है. जबकि 20-25 साल पहले यह माना जाता था कि नगरपालिका का यह काम है कि वह शहर को प्रत्येक व्यक्ति के लिए रहनेयोग्य बनाये, सुविधासंपन्न बनाये, ताकि निचले से निचले या गरीब से गरीब आदमी को भी उसकी मूलभूत सुविधाएं मिल सकें. पहले नगरपालिका के अंदर सामाजिक कल्याण की भावना थी, अब सिर्फ अमीरों के कल्याण की भावना है. यह विडंबना है कि लोककल्याण की मूल भावना की परिभाषा वाली हमारी सरकारें अब यह कहने लगी हैं कि जिसकी जितनी औकात है, उसको उस मुताबिक हम सुविधा देंगे. यह बाजार का मूल्य है और सरकारों ने ही बाजारीकरण को बढ़ावा दिया है.
यही वजह है कि बाकी क्षेत्रों की तरह शहरीकरण भी बाजारीकरण से अछूता नहीं रहा है. बाजारीकरण एक ऐसी अवधारणा है, जिसमें सिर्फ पैसे की कीमत होती है, इंसान की कोई कीमत ही नहीं होती. जब तक स्पर्धा और बाजारीकरण की भावना हमारे अंदर रहेगी, जिसे पिछले दो दशकों में घोंट-घोंट कर पिलायी गयी है, तब तक यह मुमकिन नहीं है कि शहरों या कहीं भी इंसान के जीवन-स्तर में कोई बदलाव आयेगा. जब तक सत्ता और सरकारें लोककल्याण के लिए काम नहीं करेंगी, तब तक इंसान को इंसान नहीं माना जायेगा, भले ही वह दुनिया का कोई कितना ही बड़ा लोकतंत्र क्यों न हो.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
पिछले वर्ष सर्वाधिक रहा करोड़पतियों का पलायन
जो हानसबर्ग स्थित ग्लोबल मार्केट रिसर्च ग्रुप न्यू वर्ल्ड वेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016 में भारत से सर्वाधिक संख्या में समृद्ध लाेगों (करोड़पति) ने दूसरे देश का रुख कर लिया. यह संख्या वर्ष 2015 में भारत छोड़ कर जानेवाले करोड़पतियों की संख्या से 50 प्रतिशत अधिक है.
इस प्रकार भारत उन पांच अग्रणी देशों में शामिल हो गया, जहां से पिछले वर्ष लगभग 6,000 समृद्ध लोग (अल्ट्रा-रिच पीपल) अपने देश को छोड़ कर दूसरे देशों में जा बसे. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2016 में करीब 6,000 संभ्रांत परिवारों से जुड़े (उबर-रिच पीपल) भारतीय यहां से पलायन कर दूसरे देशों में चले गये. यह संख्या वर्ष 2015 से ज्यादा है. वर्ष 2015 में तकरीबन 4,000 करोड़पति भारत को छोड़ कर दूसरे देश में जा बसे थे.
यह पलायन सिर्फ भारत में हुआ हो, ऐसा नहीं है. पिछले वर्ष वैश्विक स्तर पर पलायन में तेजी देखी गयी है. वर्ष 2016 में वैश्विक स्तर पर करीब 82,000 संपन्न लोगों ने (अल्ट्रा रिच पीपल) ने अपने देश से पलायन किया, जबकि 2015 में ऐसा करनेवाले संपन्न लोगों की संख्या 64,000 थी.
वहीं, पिछले वर्ष फ्रांस से पलायन करनेवाले करोड़पतियों की संख्या सर्वाधिक रही. इतना ही नहीं, फ्रांस से दूसरे देशों का रुख करनेवालेे इन धनवानों में 12,000 अत्यधिक धनवान (सुपर रिच पीपल) भी शामिल हैं. इस रिपोर्ट की मानें, तो फ्रांस के इन समृद्ध लोगों का अपने देश को छोड़ कर दूसरे देश जाने का कारण यहां क्रिश्चियनों और मुसलमानों के बीच बढ़ता धार्मिक तनाव है. इस तनाव से फ्रांस के शहरी इलाके ज्यादा प्रभावित हैं. अपने देश को छोड़ कर दूसरे देश जानेवाले करोड़पतियों में फ्रांस के साथ जो दूसरे देश शामिल हैं, उनमें चीन (9,000), ब्राजील (8,000) और तुर्की (6,000) हैं.
रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार, फ्रांस में क्रिश्चियनों और मुसलमानों के बीच बढ़ते धार्मिक तनाव के कारण आनेवाले दशक में यहां से पलायन करनेवाले करोड़पतियों की संख्या में और तेजी आयेगी. यह रिपोर्ट आगे कहती है कि बेल्जियम, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, यूके, हॉलैंड और स्वीडन जैसे यूरोपीय देशाें में, जहां अाज धार्मिक तनाव के बढ़ने की शुरुआत हो रही है, भविष्य में इस तनाव के नकारात्मक प्रभाव देखे जा सकेंगे. यूरोप के कुछ देशों और भारत से भले ही करोड़पतियों का पलायन हो रहा है, लेकिन वहीं कुछ ऐसे देश भी हैं, जो पलायन करनेवाले इन समृद्ध व्यक्तियों को पसंद आ रहे हैं और उन्हें वे अपना निवास-स्थान बना रहे हैं.
ऐसे देश में ऑस्ट्रेलिया पहले स्थान पर है. इस देश को पिछले वर्ष तकरीबन 11,000 करोड़पतियों (उबर रिच पीपल) ने रहने के लिए चुना. ऑस्ट्रेलिया के बाद अमेरिका का स्थान है, जहां दूसरे देश से यहां आकर बसनेवाले करोड़पतियों की संख्या 10,000 रही, तो 8,000 करोड़पतियों के अागमन के साथ कनाडा तीसरे स्थान पर रहा. इस तीनों देशों के अलावा यूएइ, न्यूजीलैंड और इजरायल ऐसे देश हैं, जिसे वर्ष 2016 में धनवानों ने अपना ठिकाना बनाया है.
अमेरिका और यूके के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया काे वरीयता देने के पीछे यहां विश्व की सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य सेवाओं का उपलब्ध होना है, साथ ही व्यापार के लिए भी यह देश उपयुक्त माना जाता है. चीन, हांगकांग, कोरिया, सिंगापुर, वियतनाम व भारत जैसे उभरते एशियाई देशों के साथ व्यापार करने के लिए यह देश एक सही ठिकाना है. इतना ही नहीं, मध्य-पूर्व के देशाें में आज जिस तरह की अराजकता है, उसके मुकाबले यहां काफी शांति है. यह देश यूरोपीय देशों की तरह शरणार्थी संकट से भी त्रस्त नहीं है. इसके अतिरिक्त, यहां यूएस और यूके के मुकाबले विरासत कर (इनहेरिटेंस टैक्स) भी कम है.
आने वाले दशक में भारत की स्थानीय वित्तीय सेवाएं, आइटी, रियल इस्टेट, स्वास्थ्य सेवाएं और मीडिया क्षेत्र के मजबूती से विकास करने और भारत के इससे लाभान्वित होने का अनुमान भी इस रिपोर्ट में जताया गया है.
मिलियनैयर या हाइ नेट वर्थ इंडिविजुअल्स (एनएचडब्ल्यूआइ) का इस्तेमाल वैसे व्यक्ति के संदर्भ में किया जाता है, जिसकी कुल संपति का मूल्य एक मिलयन डॉलर या उससे अधिक होता है.

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