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रोबोट के जरिये जिंदगी बेहतर बनाने की कोशिश

रोबोटिक्स : हर भारतीय के घर में एक रोबोट का सपना अरविंद यादव एक ऐसा रोबोट, जो घर के सभी काम कर सकने में सक्षम हो यानी घर की सफाई करे, बच्चों का ख्याल रखे, इनसान की जिंदगी बेहतर और आरामदेह बनाने में मदद करे, तो ऐसा रोबोट सबको चाहिए होगा. और यह अगर कम […]

रोबोटिक्स : हर भारतीय के घर में एक रोबोट का सपना
अरविंद यादव
एक ऐसा रोबोट, जो घर के सभी काम कर सकने में सक्षम हो यानी घर की सफाई करे, बच्चों का ख्याल रखे, इनसान की जिंदगी बेहतर और आरामदेह बनाने में मदद करे, तो ऐसा रोबोट सबको चाहिए होगा. और यह अगर कम कीमत में बाजार में आसानी से उपलब्ध हो तो क्या कहने. भारत में ऐसे ही रोबोट बनाने वाले हैं दिल्ली के दिवाकर वैश्य. पढ़िए एक रिपोर्ट.
बचपन में ही दिवाकर ने इतना कुछ सीख लिया था कि वे कई सारे खराब हो चुके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ठीक करने के काबिल बन गये थे. आठवीं तक पहुंचते-पहुंचते दिवाकर ने कंप्यूटर सिस्टम और लैपटॉप की बारीकियां भी समझ ली थीं. इतना ही नहीं वे अलग-अलग उपकरणों के अलग-अलग पुर्जों को जोड़ कर कुछ नयी वस्तुएं भी बनाने लगे थे. अपने बनाये अनोखे और दिलचस्प वस्तुओं को लेकर दिवाकर ने स्कूल और कॉलेज स्तर की कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और कई पुरस्कार जीते. इंटर की पढ़ाई के दौरान दिवाकर के मन में एक नया ख्याल आया-नियमित काम से हट कर कुछ करना, कुछ नया करना और बहुत ही बड़ा करना.
उन दिनों स्कूलों में बच्चे अक्सर रोबोट की बातें किया करते थे. उन्होंने टीवी पर देखा था कि जापान में ऐसे रोबोट भी बनाये गये थे जो फुटबॉल भी खेलते हैं, नाचते भी हैं और आपस में लड़ाई भी करते हैं. कुछ नया और बड़ा करने का मन बना चुके दिवाकर को लगा कि उन्हें भी रोबोट पर ही काम करना चाहिए. उन्होंने लाइब्रेरी से किताबें लाकर और इंटरनेट पर रोबोट के बारे में जानकारियां हासिल करनी शुरू की. उन्होंने अपने दम पर रोबोट बनाने का काम शुरू कर दिया.
कड़ी मेहनत और लगन के बल पर दिवाकर ने अकेले अपना रोबोट बना लिया. दिवाकर को रोबोट ‘नाचने वाला रोबोट’ था. इस आविष्कार ने उन्हें ‘हीरो’ बना दिया था. न्यूज चैनल पर लाइव शो हुए, अखबारों में उनकी तसवीरें छपी. उन दिनों दिवाकर बारहवीं में थे. बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद दिवाकर विदेश जाकर रोबोटिक साइंस की पढ़ाई करना चाहते थे. चूंकि वे लाड़ले थे, माता-पिता उन्हें अपनी नजरों से दूर भेजने के इच्छुक नहीं थे. बारहवीं पास करने के तुरंत बाद उन्हें अपने ही स्कूल में बच्चों को रोबोट बनाना सिखाने के लिए बतौर ‘मास्टर’ रख लिया गया. अलग-अलग स्कूलों से उन्हें ‘मास्टर’ बनने के ऑफर मिलने लगे. इन प्रस्तावों से उत्साहित दिवाकर ने अलग-अलग स्कूलों में बच्चों को रोबोट के बारे में बताना और रोबोट बनाना सिखाना शुरू कर दिया. बारहवीं पूरी करते ही दिवाकर को नौकरी मिल गयी थी, नौकरी से उनकी कमाई भी तगड़ी थी. छोटी-उम्र में ही दिवाकर ‘मास्टर’ यानी ‘टीचर’ बन गये थे.
दिवाकर ए-सेट ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट से जुड़ गये और वहां रोबोटिक साइंस की इकाई शुरू करवायी. इस इकाई में काम करते हुए रोबोट पर प्रयोग करने शुरू किये और इंसानों की मदद करने वाले रोबोट बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया. खेल-खेल में ही फुटबॉल खेल वाले रोबोट भी बना डाले. उन्हें एक ऐसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था जहां पर फुटबॉल खेलने वाले रोबोट की दरकार थी. उन्होंने ऐसे रोबोट बनाये, जो गेम शुरू होते ही फुटबॉल खेलने लग जाते थे. ये रोबोट ऑटोमेटेड थे. इनमें ऐसी प्रोग्रामिंग की गयी थी कि ये फुटबॉल के पीछे भागते और अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ गोल करने की कोशिश करते.
आगे चलकर दिवाकर ने भारत का पहला ‘थ्री डायमेंशनल ह्यूमनॉयड रोबोट’ यानी मानव रूपी रोबोट भी बनाया. यह एक बड़ी कामयाबी थी. चूंकि ये रोबोट मानव रूपी थे, इसका नाम रखा गया- ‘मानव’. यह 3-डी प्रिंटर की मदद से भारतीय प्रयोगशाला में बनाया गया है. इसके पुर्जे किसी फैक्टरी में नहीं, बल्कि कंप्यूटर में फीड डिजाइन से बनाया गया है.
दिवाकर ने अपने साथियों की मदद से एक ऐसा व्हीलचेयर बनाया है, जिसकी मदद से लकवे का शिकार लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने में मदद मिलती है. यह ‘माइंड कंट्रोल्ड व्हील चेयर’ है. मरीज सिर्फ अपनी पलकों से इस व्हीलचेयर को चला सकते हैं. गौरतलब है कि विश्वविख्यात वैज्ञानिक और विचारक स्टीफन हॉकिंग अपनी व्हील चेयर को उंगलियों की मदद से चलाते हैं जबकि दिवाकर की बनायी व्हील चेयर को सिर्फ पलकों की मदद से चलाया जा सकता है. यह दिव्यांग जनों के लिए भी काफी मददगार साबित हो सकती है.
दिवाकर ने ‘ह्यूमन सेंस रीडिंग’ रोबोट भी बनाया है, यानी वो रोबोट जो इनसान की रुचि को जान लेता है. अगर आप एक बार इस रोबोट में ये जानकारी फीड कर दें कि आपको क्या पसंद है और क्या नापसंद तो ये हमेशा वो जानकारी अपने पास रख लेता है. मान लीजिए कि अगर किसी इनसान को प्यास लगी है और प्यास लगने का संकेत रोबोट की प्रोग्रामिंग में फीड है तब वो इनसान की बुद्धि और उसके सेंस को समझकर पानी लेकर आता है. उन्होंने भारतीय सेना की मदद के लिए भी एक विशेष रोबोट बनाया है. इसका नाम ‘वर्सटाइल’ है. यह एक मानवरहित वाहन है, जो जमीन की स्थिति के हिसाब से अपना आकार बदल लेता है और सामानों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में सेना की मदद करता है. इस रोबोट से दुश्मनों के मंसूबों कर पानी फेरने में मदद मिलती है.
गौरतलब है कि दिवाकर ने अब तक जितने भी रोबोट बनाये है वे सभी स्वदेशी हैं. सभी रोबोट की परिकल्पना और प्रोग्रामिंग भारत में हुई. इतना ही नहीं उन्हें भारत की प्रयोगशालाओं में भारतीयों द्वारा ही तैयार किया गया.
(साभार: योरस्टोरी डॉट कॉम)

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