खेती समेत अनेक कार्यों के लिए इस्तेमाल होगा़ हाइड्रोजेल फैब्रिक

दो मुलायम और सामान्य पदार्थों को मिला कर एक तीसरा व उपयोगी पदार्थ बनाने की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है. इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजेल नामक एक ऐसे पदार्थ का निर्माण किया है, जिसका इस्तेमाल अनेक तरीकों से किया जा सकता है. बेहद उपयोगी बताये जा रहे इस पदार्थ से मौजूदा समय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 7, 2017 6:37 AM
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दो मुलायम और सामान्य पदार्थों को मिला कर एक तीसरा व उपयोगी पदार्थ बनाने की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है. इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजेल नामक एक ऐसे पदार्थ का निर्माण किया है, जिसका इस्तेमाल अनेक तरीकों से किया जा सकता है. बेहद उपयोगी बताये जा रहे इस पदार्थ से मौजूदा समय में अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.

खेती के लिए इसे वरदान बताया जा रहा है. भारत में इसे ज्यादा उपयोगी माना जा रहा है, क्योंकि यहां दुनिया का महज चार फीसदी जल संसाधन और 2.45 फीसदी जमीनी इलाका मौजूद है, जबकि यहां की धरती पर दुनिया की करीब 16 फीसदी आबादी का पेट भरने की जिम्मेवारी है. ऐसे में इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है. आज के साइंस टेक में जानते हैं हाइड्रोजेल और इसके उपयोग समेत इससे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में …

वैज्ञानिकों ने एक नये हाइड्रोजेल मैटेरियल की रचना की है, जो फाइबर के साथ जुड कर कार्बन स्टील के मुकाबले उसे चार से पांच गुना ज्यादा मजबूती प्रदान करता है, ताकि उसे आसानी से तोडा नहीं जा सके. लेकिन, इसे विविध तरीके से उपयोगी बनाने के लिए ऐसे बनाया गया है, ताकि आसानी से मोडा जा सके. गुणों के इस संयोजन का मतलब यह है कि नये फैब्रिक का इस्तेमाल चीजों को कृत्रिम रूप से बांधा जा सकेगा और शरीर में घावों को भरने के लिए पट्टी को नये तरीके से डिजाइन किया जा सकेगा. साथ ही इसका इस्तेमाल मैन्यूफैक्चरिंग व फैशन सेक्टर में उन चीजों को बनाने में किया जा सकता है, जिनके लिए बेहद सख्त लेकिन लचीले मैटेरियल की जरूरत होती है.

मूल रूप से ‘एडवांस्ड फंक्शनल मैटेरियल्स’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के हवाले से ‘साइंस एलर्ट’ में बताया गया है कि जापान के होकैडो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस फैब्रिक काे विकसित किया है. जल के उच्च स्तर और ग्लास फाइबर फैब्रिक के साथ हाइड्रोजेल मिला कर बनाये गये इस मैटेरियल को फाइबर-रीइनफोर्स्ड सॉफ्ट कम्पोजिट (एफआरएससी) नाम दिया गया है.

भरोसेमंद, टिकाऊ और फ्लेक्सिबल

शोधकर्ताओं में शामिल विशेषज्ञ जिआन पिंग गोंग का कहना है कि यह मैटेरियल व्यापक रूप से अनेक कार्यों में इस्तेमाल लाये जाने में सक्षम है, क्योंकि यह भरोसेमंद होने के साथ टिकाऊ और फ्लेक्सिबल है. हालांकि, दो प्राकृतिक मैटेरियल को आपस में मिलाते हुए उनके मिश्रित गुणों से एक नयी चीज बनाने का ट्रिक बेहद पुराना है. इनसान ने सभ्यता के शुरुआती दौर से ही कई चीजों में इनका प्रयोग किया, जैसे- गीली मिट्टी बेहद नाजुक होती है, लेकिन उसमें पुआल या लुगदी जैसी चीजों को मिला कर उससे सख्त ईंट बना दी. ऐसे और भी बहुत से उदाहरण हो सकते हैं. कुल मिला कर यह आइडिया एक नये सुपर-मैटेरियल के रूप में परिवर्तित होता है, जिसे संसाधनों का बेहतर प्रयोग कहा जा सकता है.

इसके इस्तेमाल से वैज्ञानिक ऐसे पदार्थ के निर्माण में जुटे हैं, जो ज्यादा भार ढोने में सक्षम हो और उसे आसानी से विखंडित नहीं किया जा सके. ऐसा पदार्थ हाइड्रोजेल की बेहतरीन खासियतों से युक्त होगा, लेकिन ग्लास फाइबर फैब्रिक के जरिये इसे ज्यादा टिकाऊ और सख्त बनायेगा.

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस कंपोजिट मैटेरियल को अद्भुत क्षमता डायनामिक आयोनिक बॉन्ड से हासिल होती है. इसमें इलेक्ट्रॉन की तरह अणु एकदूसरे से संबद्ध होते हैं, जो फाइबर और हाइड्रोजेल के बीच सक्रियता से काम करते हैं.

हाइड्रोजेल को और ज्यादा सख्त बनाने के लिए वैज्ञानिक निरंतर प्रयोगशाला में इसके परीक्षणों को अंजाम दे रहे हैं और इस दिशा में काफी कामयाबी भी मिली है. होकैडो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि पूर्व में हाइड्रोजेल पर किये गये अध्ययन में भी ठीक इसी तरह के सिद्धांत को अपनाया गया होगा.

अब तक के नतीजों के मुताबिक हासिल किया गया मैटेरियल ग्लास फाइबर फैब्रिक के मुकाबले 25 गुना ज्यादा सख्त, हाइड्रोजेल से 100 गुना ज्यादा सख्त और कार्बन स्टील से पांच गुना ज्यादा मजबूत पाया गया है. शोधकर्ताओं ने उम्मीद जतायी है कि नये विकसित किये गये हाइड्रोजेल का इस्तेमाल घावों को भरने और साॅफ्ट रोबोट्स बनाने में किया जा सकता है.

कम पानी में भी फसलों की उपज

बढ़ाने में सक्षम होगा हाइड्रोजेल

खेती में जल की अहम भूमिका है. दुनिया के 181 देशों में से भारत का 41वां रैंक है, जहां खेती के लिए पर्याप्त जल का अभाव है. भारत में 60 फीसदी से ज्यादा खेतीलायक जमीन सूखे इलाके के रूप में है. साथ ही 30 फीसदी से ज्यादा हिस्से में पर्याप्त बारिश नहीं होती है.

ऐसे इलाकों में हाइड्रोजेल कृषि उत्पादकता को बढाने के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में व्यावहारिक और आर्थिक रूप से उपयोगी साबित हो सकता है. ‘करेंट साइंस डॉट एसी डॉट इन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नर्सरी प्लांटेशन के समय पौधों को ज्यादा-से-ज्यादा नमी मुहैया कराने के लिए इसे सीधे तौर पर मिट्टी के साथ आसानी से अप्लाइ किया जा सकता है. हाइड्रोजेल के इस्तेमाल से भारत में फसलों को मिट्टी से ज्यादा पानी सोखने में मदद मिल सकती है. देश के कई इलाकों में वैज्ञानिक तरीके से खेती करनेवाले किसानों ने इस तकनीक को अपनाना शुरू कर दिया है.

एग्रीकल्चरल हाइड्रोजेल का इस्तेमाल न केवल सिंचाई के पानी को बचाने के लिए किया जा सकता हे, बल्कि यह मिट्टी की फिजियो-केमिकल और बायोलॉजिकल गुणों को उन्नत बनाने में भी सक्षम है. इसे कई तरीके से इस्तेमाल में लाया जा सकता है. एग्रीकल्चरल हाइड्रोजेल इको-फ्रेंडली है, क्योंकि एक निश्चित समयावधि के बाद स्वाभाविक रूप से इसका क्षरण होने की प्रक्रिया में किसी तरह का टॉक्सिक अवशेष नहीं पैदा होता है और न ही यह फसलीय उत्पाद को प्रभावित करता है. इसलिए वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सिंचित जलाभाव वाले इलाकों में खेती का उत्पादन बढाने में यह बेहद कारगर साबित हो सकते हैं.

भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता

वर्ष आबादी प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता

2001 102.9 1,916

2011 121.0 1,545

2025 1,394 1,340

2050 1,640 1,140

नोट : आबादी करोड़ में और प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता क्यूबिक मीटर में है. वर्ष 2025 और 2050 के आंकडे़ अनुमानित हैं.

(स्रोत : यूनिसेफ)

क्या है हाइड्रोजेल

हाइड्रोजेल्स एक हाइड्रोफिलिक ग्रुप के साथ क्रॉस-लिंक्ड पॉलिमर्स है, जिसमें व्यापक पैमाने पर पानी को सोखने की क्षमता होती है. वह भी पानी में बिना घुले हुए. जल को सोखने की यह क्षमता पॉलिमर बैकबोन से संबद्ध हाइड्रोफिलिक फंक्शनल ग्रुप के साथ उस समय पैदा होती है, जब नेटवर्क चेन के क्रॉस-लिंक्स के बीच घुलनशीलता के खिलाफ प्रतिरोध पैदा होता है.

सिंथेटिक हाइड्रोजेल को बनाने में पॉलिएक्रीलेमाइड का व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसे एक्रीलेमाइड सबयूनिट से हासिल किया जाता है. इसे सामान्य लिनियर चेन स्ट्रक्चर या क्रॉस-लिंक के रूप में सिंथेसाइज किया जा सकता है. पॉलिएक्रीलेमाइड के क्रॉस-लिंक्ड वेरिएंट्स ने क्षरण के प्रति व्यापक प्रतिरोध दर्शाया है. लिहाजा, ये दो से पांच वर्षों तक के लंबे समय के दौरान टिके रह सकते हैं.

किस मैकेनिज्म से सोखा जाता है जल

पॉलिमर चेन के हाइड्रोफिलिक ग्रुप, जिसमें एक्रीलेमाइड, एक्रीलिक एसिड, एक्रीलेट, कार्बोक्सिलिक एसिड आदि शामिल हैं, हाइड्रोजेल में पानी को सोखने के लिए जिम्मेवार होते हैं. एसिड ग्रुप पॉलिमर के मुख्य चेन से संबद्ध होते हैं. जब इन पॉलिमर्स को पानी में डाला जाता है, तो बाद में वे ओस्मोसिस द्वारा हाइड्रोजेल सिस्टम में दाखिल होते हैं और हाइड्रोजन अणु प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे पॉजिटिव आयन्स प्राप्त होते हैं. यह निगेटिव आयन्स को त्याग देता है. ये निगेटिव चार्ज आपस में अलग-थलग रहते हैं.

इस मॉड में हाइड्रोजेल अपने भार के मुकाबले 400 गुना से भी ज्यादा पानी को सोख सकते हैं. धीरे-धीरे जब इसके आसपास शुष्कता बढ़ने लगती है, तो हाइड्रोजेल तेजी से पानी छोडना शुरू करता है.

यह सोखे गये जल का 95 फीसदी तक वापस छोड़ता है. पानी को छोड़ने की प्रक्रिया के दौरान यह रीहाइड्रेट होगा और इसे स्टोर करने के लिए इस प्रक्रिया को फिर से दोहराया जा सकता है. इस प्रकार यह प्रक्रिया दो से पांच सालों तक जारी रह सकती है, जिस दौरान बायोडिग्रेडेबल हाइड्रोजेल डिकंपोज होता रहेगा. यानी फसलों के लिए पानी की जरूरतों को पूरा करता रहेगा.

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