अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : सफलता की परिभाषा गढ़ती महिलाएं
आज आधी आबादी का दिन है. दुनिया में ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जो इनकी पहुंच से बाहर हो. हमारे देश में भी महिलाएं हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं. कई बड़ी संस्थाओं की प्रमुख महिलाएं ही हैं. वहां तक पहुंचने से पहले उन्होंने अपने आप को साबित किया है कि वह […]
आज आधी आबादी का दिन है. दुनिया में ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जो इनकी पहुंच से बाहर हो. हमारे देश में भी महिलाएं हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं. कई बड़ी संस्थाओं की प्रमुख महिलाएं ही हैं.
वहां तक पहुंचने से पहले उन्होंने अपने आप को साबित किया है कि वह उस पद की योग्य हैं. पुलिस और अर्धसैनिक बल से लेकर फौज तक में महिलाएं हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की बड़ी वित्तीय संस्थाओं की कमान भी उन्हीं के हाथ में हैं. आज हम आपको अपने – अपने क्षेत्र में शीर्ष पदों पर बैठी महिलाओं से रू-ब-रू करा रहे हैं, जिनकी काबिलियत को दुनिया सलाम करती है.
बैंकिंग क्षेत्र में कुशल नेतृत्व
शिखा शर्मा
सीइओ, एक्सिस बैंक
परिसंपत्तियों के लिहाज से निजी क्षेत्र में देश के सबसे बड़े बैंक एक्सिस बैंक की सीइओ और प्रबंध निदेशक शिखा शर्मा ने अपने पेशेवर जीवन में शानदार प्रदर्शन दिखाया है. वह वित्तीय उद्योग में तीन दशकों से अधिक समय से जुड़ी रही हैं तथा आइसीआइसीआइ और जेपी मॉर्गन एंड कंपनी जैसे बड़े संस्थानों में काम किया है. वे 2009 में एक्सिस बैंक से जुड़ीं. तब से इस बैंक ने ऊंची छलांग लगायी है. जीवन में सफलता के लिए उनका कहना है- ‘आपको वही चीजें करनी चाहिए, जिनमें आपका भरोसा है. लोगों की बातें सुनने और निर्णय लेने के बीच सही संतुलन होना चाहिए.’
काकु नखाटे
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच, कंट्री हेड
काकु नखाटे बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के भारतीय इकाई की मुखिया हैं. उनके नेतृत्व में यह बैंक देश में कॉरपोरेट फाइनेंस में मुख्य खिलाड़ी बन कर उभरा है. मुंबई के एक संस्थान से प्रबंधन की शिक्षा प्राप्त नखाटे बतौर उपाध्यक्ष जेपी मॉरगन चेज एंड कंपनी के भारत में कामकाज को देख चुकी हैं. वह अक्सर कहती हैं कि किस तरह से ‘लड़कियों को व्यवसाय नहीं करना चाहिए’ से लेकर ‘कोई लड़का मुझसे शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा’ तक वह सब कुछ सुन चुकी हैं.
शांति एकाबरम
कोटक महिंद्रा बैंक के कंज्यूमर बैंकिंग की अध्यक्ष एकाबरम का कॉरपोरेट और इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में जोरदार रिकॉर्ड रहा है. भारतीय व्यावसायिक जगत की सबसे शक्तिशाली महिलाओं में उनका शुमार होता है. उनका मानना है कि अवसरों को गंवाना नहीं चाहिए.
कल्पना मोरपरिया
जेपी मॉरगन, भारतीय इकाई की सीइओ
कुल परिसंपत्तियों के हिसाब से अमेरिका के सबसे बड़े बैंक जेपी मॉरगन की भारतीय इकाई की सीइओ कल्पना मोरपरिया करीब चार दशकों से बैंकिग सेक्टर में कार्यरत हैं. जेपी मॉरगन से जुड़ने से पहले वह तीस सालों से अधिक समय से आइसीआइसीआइ बैंक में थीं. इस बैंक की शुरुआती सफलताओं और 1999 में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में इसे सूचीबद्ध कराने में मोरपरिया की बड़ी भूमिका थी.
उषा अनंतसुब्रमण्यम
पंजाब नेशनल बैंक, सीइओ व एमडी
अनंतसुब्रमण्यम देश के चार सबसे बड़े बैंकों में एक, पंजाब नेशनल बैंक, की सीइओ और प्रबंध निदेशक हैं. महिलाओं के लिए बने बैंक भारतीय महिला बैंक की स्थापना में उनके भूमिका के लिए सम्मानित किया जा चुका है. तीस साल से अधिक के अपने पेशेवर जीवन में वह एलआइसी, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक और भारतीय महिला बैंक में महत्वपूर्ण जिम्मेवारियां निभा चुकी हैं.
अरुंधति भट्टाचार्य
कुछ कर गुजरने की चाह, चुनौतियों से पार पाने का हौसला अौर परिवार का साथ, ऐसा संयोग जब होता है तब महिलाएं इतिहास रच डालती हैं. अरुंधति भट्टाचार्य के मामले में यह बात एकदम सटीक बैठती है. अरुंधति भारत के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक की सबसे युवा और पहली महिला अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं. उनका जन्म 18 मार्च, 1956 को कलकत्ता में हुआ था. उनके पिता प्रोद्युत कुमार मुखर्जी भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत थे और माता कल्याणी मुखर्जी बोकारो में होम्योपैथिक चिकित्सक थीं.
बोकारो स्टील सिटी से स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद अरुंधति ने कलकत्ता के लेडी बारबॉर्न कॉलेज से अंगरेजी साहित्य में ग्रेजुएशन किया और फिर जाधवपुर विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई पूरी की. पत्रकारिता में कैरियर बनाने की इच्छा रखने वाली अरुंधति बैंकिंग में आने को जरा भी उत्सुक नहीं थीं.
दोस्तों के कहने पर उन्होंने बैंक पीओ की परीक्षा दी और 1977 में महज 22 वर्ष की उम्र में एसबीआइ में प्रोबेशनरी ऑफिसर चुन ली गयीं. तब बैंक में महिला अधिकारियों की संख्या 20 प्रतिशत से भी कम थी. अपने चार दशक के बैंकिंग कैरियर में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ह्यूमन रिसोर्सेज से लेकर, रिटेल ऑपरेशंस, फॉरेन एक्सचेंज, इन्वेस्टमेंट बैंकिंग आदि सभी क्षेत्रों में पूरी दक्षता के साथ काम किया. चीफ एग्जिक्यूटिव, एसबीआई कैपिटल मार्केट्स, चीफ जनरल मैनेजर इन-चार्ज ऑफ न्यू प्रोजेक्ट्स आदि पदों पर काम करते हुए नवंबर, 2010 में वे एसबीआइ की उप प्रबंध निदेशक बनीं और उसके दो वर्ष बाद एसबीआइ कैपिटल मार्केट्स की प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्यकारी अधिकारी.
अगस्त, 2013 में उन्हें बैंक का मुख्य वित्तीय अधिकारी व प्रबंध निदेशक बनाया गया. इसके ठीक दो महीने बाद यानी अक्तूबर, 2013 को एसबीआइ की अध्यक्ष नियुक्त होकर उन्होंने इतिहास रच डाला. उनकी इस कामयाबी को देखते हुए ही वर्ष 2016 में फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें विश्व की शक्तिशाली महिलाओं की सूची में 25वें स्थान पर रखा था. इसी वर्ष फॉरेन पॉलिसी मैगजीन ने उन्हें टॉप 100 ग्लोबल थिंकर्स की सूची में शामिल किया.
अरुंधति के परिवार में उनके पति प्रीतिमोय भट्टाचार्य व बेटी सुक्रिता हैं. पति-पत्नी दोनों के काम में व्यस्त रहने की वजह से जब बेटी को पालने में दिक्कत अाने लगी तो प्रीतिमोय ने आइआइटी, खड़गपुर में प्रोफेसरशिप की अपनी नौकरी छोड़ दी. यही वजह है कि अरुंधति ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनकी सफलता का श्रेय उनके परिवार, खासकर उनके पति और बेटी को जाता है.
चंदा कोचर
अक्सर यह सुनने में आता है कि आंकड़ों का खेल लड़कियों के बस की बात नहीं, गणित उनके लिए नहीं बना है. लेकिन चंदा कोचर की कामयाबी ने हमारे समाज की इस सोच को गलत करार दिया.
अपनी प्रतिभा की बदौलत ही उन्होंने पुरुषों के प्रभुत्व वाले बैंकिंग क्षेत्र में सफलता के कई कीर्तिमान स्थापित किये और भारत के सबसे बड़े निजी वित्तीय संस्थान आइसीआइसीआइ बैंक की प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनीं. चंदा का जन्म 7 नवंबर, 1961 को राजस्थान के जोधपुर शहर में हुआ था. जब वे महज 13 वर्ष की थीं, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी. अकेली मां को घर-बाहर संभालते देख ही चंदा के अंदर परिस्थितियों से लड़ने का जज्बा उत्पन्न हुआ. जयपुर से स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई के जयहिंद कॉलेज से बीए किया और फिर कॉस्ट अकाउंटेंसी की पढ़ाई पूरी की.
इसके बाद प्रतिष्ठित बिजनेस स्कूल जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की. चंदा इतनी जहीन थीं की उन्हें मैनेजमेंट में उत्कृष्टता के लिए वखार्ड गोल्ड मेडल प्रदान किया गया. उसी साल कॉस्ट अकाउंटेंसी के लिए भी उन्हें जेसी बोस गोल्ड मेडल दिया गया.
वर्ष 1984 में बतौर मैनेजमेंट ट्रेनी आइसीआइसीआइ बैंक से कैरियर की शुरुआत करनेे वाली चंदा साल-दर-साल सफलता की सीढ़ियां चढ़ती चली गयीं. साल 1994 में उन्हें बैंक का असिसटेंट जनरल मैनेजर बनाया गया. इसके दो वर्ष बाद ही 1996 में वे डिप्टी जनरल मैनेजर और 1999 में जनरल मैनेजर बनीं. वर्ष 2000 में उनके नेतृत्व में ही आइसीआइसीआइ ने रीटेल बिजनेस की शुरुआत की. मई, 2009 में उन्हें पांच वर्षों के लिए बैंक की प्रबंध निदेशक व मुख्य संचालक अधिकारी बनाया गया. उनकी अद्वितीय कार्य क्षमता को देखते हुए ही 2004 में एशियन बैंकर ने उन्हें रिटेल बैंकर ऑफ द इयर का अवाॅर्ड दिया.
वह लगातार आठ वर्षों तक मोस्ट पावरफुल विमेन लीडर के तौर पर बिजनेस की सूची में शामिल रही हैं. वर्ष 2015 में फोर्ब्स ने उन्हें मोस्ट पावरफुल विमेन की सूची में 35वां स्थान दिया था. वर्ष 2011 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. इतनी सारी उपलब्धियां हासिल करने वाली चंदा अपने घर और पेशेवर जिंदगी को बखूबी संभालती हैं. हालांकि वह मानती हैं कि अपने परिवार के सहयोग की वजह से ही आज वह यहां तक पहुंची हैं. उनके परिवार में पति दीपक कोचर, बेटी आरती और बेटा अर्जुन है. दीपक विंड एनर्जी एंट्रेप्रेन्योर हैं.
उद्यम में भी
सक्षम अगुवाई
नैना लाल किदवई
एचएसबीसी की कंट्री हेड
हार्वर्ड से ग्रेजुएट पहली भारतीय महिला का जिक्र हो, तो लोगों की जुबान पर नैना लाल किदवई का नाम होता है. आज सबसे सफल और प्रसिद्ध भारतीय महिला कारोबारियों में शुमार नैना 1982 से 1994 के बीच एएनजेड ग्रिंडलेज में इन्वेस्टमेंट बैंकिंग की प्रमुख और कुछ समय के लिए जेपी मॉर्गन की वाइस प्रेसिडेंट के तौर पर काम कर चुकी हैं. वर्तमान में वह एचएसबीसी ग्रुप इंडिया की कंट्री हेड एवं ग्रुप जनरल मैनेजर हैं.
किरण मजूमदार शॉ
बायोकॉन की संस्थापक
किरण मजूमदार शॉ जैव-प्रौद्योगिकी कंपनी बायोकॉन लिमिटेड की संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं. इसकी शुरुआत शॉ ने 1978 में बेंगलुरू के पास कोरमांगला में एक छोटे से शेड में मात्र 10 हजार रुपये की पूंजी से ‘लिकर फरमेंटेशन’ के लिए ‘एंजाइम’ बनाने के साथ की थी. बेंगलुरू में जन्मी शॉ के नेतृत्व में बायोकॉन बायोमेडिसिन रिसर्च के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. वह पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित हो चुकी हैं.
इंदिरा नूई
पेप्सिको की मुखिया
भारतीय महिला उद्यमियों में सबसे प्रसिद्ध चेहरा हैं इंदिरा नूई. वह पेप्सिको की मुखिया हैं. इस मंजिल तक पहुंचनेवाली नूई का सफर चेन्नई शहर से शुरू हुआ. एक तमिल परिवार में जन्मी नूई ने 1974 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से साइंस में बैचलर डिग्री प्राप्त की, आइआइएम कोलकाता से फाइनेंस एवं मार्केटिंग तथा अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से पब्लिक मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद नूई ने मोटोरोला और एशिया ब्राउन बोवेरी जैसी कंपनियों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.
एकता कपूर
बालाजी टेलीिफल्म्स की िक्रएटिव हेड
भारत में टेलीविजन धारावाहिकों का स्वरूप बदलने का सर्वाधिक श्रेय एकता कपूर को है. बालाजी टेलीफिल्म्स द्वारा एकता कपूर का काम और उनका नाम घर-घर पहुंच चुका है. एकता कपूर आज बालाजी टेलीफिल्म्स की क्रिएटिव हेड हैं. उन्हें देश के 10 शीर्ष महिला उद्यमियों में गिना जाता है. भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री में योगदान के लिए उन्हें छठें इंडियन टेली अवाॅर्ड 2006 के दौरान हाल ऑफ फेम अवाॅर्ड के लिए चुना गया.
सुची मुखर्जी
लाइमरोड की संस्थापक सदस्य
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पोस्टग्रेजुएट और सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से स्नातक करनेवाली सुची मुखर्जी अपनी उद्यमिता कौशल के लिए विख्यात हैं. सुची ने वर्ष 2012 में मनीष सक्सेना, अंकुश मेहरा और प्रशांत मलिक के साथ मिलकर लाइमरोड की शुरुआत की थी. कंपनी को लाइटस्पीड वेंचर पार्टनर्स, मैट्रिक्स पार्टनर्स और टाइगर ग्लोबल से 20 मिलियन डॉलर का निवेश मिला.