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खून जांच से कैंसर की पहचान!

भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में कैंसर को जोखिम बढ़ता जा रहा है. हालांकि, समय रहते आरंभिक चरण में ही इसकी पहचान होने पर इसका इलाज मुमकिन है. अमूमन, जब तक मरीज को इसकी जानकारी मिल पाती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. दरअसल कैंसर के लक्षण और इसकी जांच, दोनों […]

भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में कैंसर को जोखिम बढ़ता जा रहा है. हालांकि, समय रहते आरंभिक चरण में ही इसकी पहचान होने पर इसका इलाज मुमकिन है. अमूमन, जब तक मरीज को इसकी जानकारी मिल पाती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

दरअसल कैंसर के लक्षण और इसकी जांच, दोनों ही जटिल प्रक्रिया है. शोधकर्ताओं ने अब एेसा सिस्टम विकसित किया है, जिससे खून की सामान्य जांच के जरिये इसकी पहचान की जा सकती है. दूसरी ओर, ब्लड प्रेशर के संबंध में भी मेडिकल विशेषज्ञों ने नयी खोज की है, जिससे अब इसका सटीक इलाज संभव होगा. कैंसर की पहचान के लिए सामान्य रक्त जांच और ब्लड प्रेशर के संबंध में क्या खोज की है वैज्ञानिकों ने,

बता रहा है आज का मेडिकल हेल्थ …

इनसान के शरीर में कैंसर का ट्यूमर किस अंग में विस्तार ले रहा है या जोखिम पैदा कर रहा है, इस बारे में अब केवल एक सामान्य ब्लड टेस्ट के जरिये जाना जा सकेगा. साथ ही इसके लिए अब किसी दर्दनाशक बायोप्सी की जरूरत भी नहीं होगी. ज्यादातर लोगों में कैंसर का ट्यूमर धीरे-धीरे पनपता है और जब तक मरीज इसे जान पाता है, तब तक उसका जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है.

ऐसे लोगों में ‘लिक्विड बायोप्सी’ से कैंसर के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है. मृत हो रही ट्यूमर कोशिकाओं द्वारा डीएनए रिलीज किये जाने की पहचान करते हुए यह तरीका काम करता है. इसके अलावा, ऐसा पहली बार होगा, जब अमेरिकी वैज्ञानिक शरीर के प्रभावित हिस्से की पहचान करने में सफल हो सकते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कैंसर से जब सामान्य कोशिकाएं मृत होती हैं, तब ये ब्लडस्ट्रीम में डीएनए रिलीज करती हैं, जिसका अन्य अंगों पर भी असर होता है.

‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डियागो के शोधकर्ताओं की टीम ने लिवर, फेफडे और किडनी समेत 10 विभिन्न प्रकार के ऊतकों के डीएनए पैटर्न की जानकारी हासिल की है. इसका मतबल हुआ कि कैंसर के मरीजों, जिनमें कैंसर के विविध प्रकार के लक्षणों (सूजन या एकाएक वजन कम होना) को साझा किया गया, उनमें भविष्य में तेजी से रोगनिदान किया जा सकेगा. साथ ही इनमें बिना बायोप्सी किये हुए प्रभावित अंग से परीक्षण के लिए संबंधित कोशिकाओं या ऊतकों को निकाला जा सकेगा.

कैंसर रिसर्च यूके के साइंस इंफोर्मेशन ऑफिसर डॉक्टर कैथेरीन पिकवर्थ का कहना है, ‘किसी भी तरह के ऑपरेशन के दौरान बायोप्सी करना कष्टप्रद होने के साथ जोखिमभरा भी हाेता है.

यदि यह प्रभावी हुआ, तो सक्षम रूप से सुरक्षित होगा और यही कारण है कि लिक्विड बायोप्सी पर जोर दिया जा रहा है. आरंभिक चरण में कैंसर की पहचान करने और उसके इलाज के नये तरीके खोजने से ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को इस बीमारी के जोखिम से बचाया जा सकता है. रक्त में कैंसर कोशिकाओं के डीएनए की तलाश करना वाकई में रोचक आइडिया है और इससे शरीर में ट्यूमर की लोकेशन को समझने के लिए नया नजरिया विकसित करने में मदद मिल सकती है.’

तैयार किया गया डीएनए डाटाबेस

शोधकर्ताओं ने उम्मीद जतायी है कि इसे वास्तविक स्वरूप प्रदान करने से पहले हमें यह देखना होगा कि कैंसर की पहचान करने में यह कितना प्रभावी हो पाता है और इसके जरिये आरंभिक चरण में डॉक्टर को इसका इलाज करने में मदद करेगा. ‘नेचर जेनेटिक्स’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के हवाले से ‘डेली मेल’ में बताया गया है कि कैंसर मरीजों से हासिल किये गये ब्लड सैंपल्स और ट्यूमर्स के सैंपल्स के विश्लेषण से ब्लड में विभिन्न ऑर्गन्स के लिए मार्कर्स खोजे गये. लिवर, इंटेस्टाइन, कोलोन, लंग, ब्रेन, किडनी, पैन्क्रियाज, स्प्लीन, स्टोमेक और ब्लड के लिए उन्होंने डीएनए डाटाबेस तैयार किया है.

बायोइंजीनियर्स अब यह जान पाये हैं कि ट्यूमर कोशिकाएं जब पोषण के लिए सामान्य कोशिकाओं से प्रतिस्पर्धा करती हैं, तो वे उन्हें मार देती हैं. साथ ही इससे डीएनए सिग्नेचर रिलीज होता है, जिसे सीपीजी मिथाइलेशन हेप्लोटाइप्स कहा जाता है.

विशेषज्ञों की मदद से कारगर बनाने की तैयारी

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के बायोइंजीनियरिंग प्रोफेसर और इस शोध रिपोर्ट के वरिष्ठ लेखक कुआन झांग का कहना है, ‘हमने अचानक ही इस चीज का आविष्कार किया.

दरअसल, हमने इसके लिए पारंपरिक तरीका ही अपनाया था और कैंसर सेल सिगनल्स पर नजर रखी व यह जानने का प्रयास किया कि वे कहां से आती हैं. लेकिन हमने अन्य कोशिकाओं से भी सिगनल्स देखे और यह महसूस किया कि यदि हम सिगनल्स के सेट को एकीकृत करेंगे, तो वास्तविक में ट्यूमर की मौजूदगी या गैर-मौजूदगी को निर्धारित किया जा सकेगा. साथ ही यह भी जाना जा सकेगा कि कहां पर ट्यूमर बढ रहा है.’

कैंसर को पूरे शरीर में फैलने से पहले एक सामान्य ब्लड टेस्ट के माध्यम से इसे जाना जा सकेगा और इलाज किया जा सकेगा. प्रोफेसर झांग कहते हैं, ‘प्रभावी इलाज के लिए ट्यूमर की लोकेशन को समय रहते जान लेना जरूरी होता है.’ शोधकर्ताओं ने व्यक्तिगत रूप से ऐसे लोगों के खून की जांच की, जिसमें कुछ लोगों में ट्यूमर मौजूद था और कुछ में नहीं था. दोनों प्रकार के सिगनल्स के मिश्रण के जरिये डुअल अथॉन्टिकेशन प्रोसेस की तरह यह टेस्ट काम करता है. रिपोर्ट कहती है कि यह प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट है. इस शोध को क्लिनीकल स्टेज तक ले जाने के लिए ओंकोलॉजिस्ट की जरूरत है, जो इसे कारगर बना सकते हैं.

जीन थेरेपी से होगा कैंसर का इलाज

जीन थेरेपी से कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सकता है. इस थेरेपी के जरिये मरीज में मौजूद कैंसर कोशिकाओं को रक्त कोशिकाओं में बदला जा सकता है. शोध के दौरान मरीजों का छह महीने तक इलाज किया गया, जिसमें तकरीबन एक-तिहाई मरीजों में लिंफोमा कैंसर के एक भी लक्षण नहीं दिखे.

जबकि 82 फीसदी ऐसे मरीज थे, जिनमें कैंसर कोशिकाएं कम देखी गयी, यानी इन मरीजों में आधे से अधिक कैंसर कोशिकाएं सिकुड गयी. कैलिफोर्निया की फार्मा काइट पहली ऐसी कंपनी है, जिसे इस इलाज की मंजूरी मिली है. येल कैंसर सेंटर के चीफ कैंसर मेडिसिन के डॉक्टर और इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता रॉय हर्बस्ट का कहना है कि इस शोध में चिंता की बात यह है कि काइट ट्रीटमेंट कब तक दिया जाए और इसके क्या साइड इफेक्ट्स हैं, इस पर शोध होना बाकी है.

इलाज की इस प्रक्रिया के दौरान मरीज के खून को छाना जाता है और इसमें से टी-सेल्स को हटा दिया जाता है. इसमें से जीन के जरिये कैंसर कोशिकाओं को टारगेट किया जाता है. इसके बाद इन कोशिकाओं को दोबारा नसों के जरिये शरीर में डाल दिया जाता है.

ब्लड प्रेशर की बारीकियों को समझने में मिली कामयाबी

ब्रि टिश वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण खोज की है, जिससे ब्लड प्रेशर की ज्यादा प्रभावी दवाओं को विकसित करने की नयी राह तैयार हो सकती है. विशेषज्ञों ने यह आविष्कार किया है कि हमारा शरीर ब्लड प्रेशर को कैसे रेगुलेट करता है. इस जानकारी से संबंधित प्रभावी दवाएं बनाने में मदद मिलेगी. उन्होंने पाया कि हालात उस समय स्वाभाविक रूप से बदल जाते हैं, जब आर्टेरीज के आसपास घूमनेवाली नर्व्स नाइट्रिक ऑक्साइड रिलीज करती है.

संबंधित वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लड प्रेशर की समीक्षा करने की दिशा में यह खोज क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में कामयाब हो सकता है. पहले, विशेषज्ञों का यह मानना था कि ये ब्लड वेसेल्स दीवारों से स्वयं रेगुलेट होता है, न कि उसके आसपास मौजूद नर्व्स के जरिये. यह सफलता विभिन्न दशाओं में पैदा होनेवाली भावनाओं और तनावों के बारे में भी कुछ नये रहस्योद्घाटन कर सकती है, क्योंकि ये नर्व्स सीधे मस्तिष्क से संबद्ध होते हैं. हाइपरटेंशन के रूप में समझे जानेवाले हाइ ब्लड प्रेशर से ब्रिटेन में प्रत्येक तीन में से एक वयस्क प्रभावित है. भारत में भी इसके मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है.

हाइपरटेंशन से धीरे-धीरे हार्ट अटैक, स्ट्रोक्स ओर वैस्कुलर डिमेंशिया का खतरा बढने लगता है, लेकिन चूंकि जब तक इसके लक्षण दिखते हैं, तब तक देरी हो चुकी होती है और प्रभावितों में से केवल आधे लोग ही जोखिम के हालात को समझ पाते हैं.

जिन लोगों का इलाज किया जाता है, उनमें से ज्यादातर लोग अपने ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने के लिए रोजाना दवाएं लेते हैं. हालांकि, मौजूदा इलाज के तरीकों से कुल मरीजों में से आधे का इलाज ही प्रभावी तरीके से हो पाता है. किंग्स कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों द्वारा की गयी खोज की मदद से डॉक्टर शरीर के ब्लड प्रेशर रेगुलेटिंग मैथॉड को आसानी से समझ सकेंगे, जिससे उन्हें मरीजों का इलाज करने में आसानी होगी. संबंधित अध्ययन की शोध रिपोर्ट जर्नल हाइपरटेंशन में प्रकाशित की गयी है. सामान्य ब्लड प्रेशर वाले सेहतमंद पुरुषों पर इसका परीक्षण किया गया, जिसमें नाइट्रिक ऑक्साइड पैदा करनेवाले नर्व्स को दवाओं के जरिये रोका गया. इस दौरान ब्लड प्रेशर के संबंध में अनेक नतीजे हासिल किये गये.

इस शोध टीम में शामिल रहे एनआइएचआर बायोमेडिकल रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर अजय शाह कहते हैं, ब्लड प्रेशर को समझने के लिए हमारी खोज मूलभूत रूप से बदलाव लायेगी. इसके लिए हमें नया नजरिया मिलेगा. ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए अब ज्यादा सटीक दवाएं विकसित की जा सकती हैं.

ब्रिटिश हर्ट फाउंडेशन के एसोसिएट मेडिकल डायरेक्टर प्रोफेसर जेरेमी पियर्सन का कहते हैं कि भले ही ब्लड प्रेशर की अनेक दवाएं मौजूद हैं, लेकिन सभी मरीजों पर ये दवाएं प्रभावी नहीं होती हैं. लिहाजा उम्मीद जतायी जा रही है कि नयी खोज से इस संबंध में नयी राह खुल सकती है.

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