महिला सशक्तीकरण : आत्मनिर्भर बनाता कैफी का गांव मेजवां

सिर्फ सरकार के भरोसे विकास से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता मेजवां से लौट कर अंजनी कुमार सिंह आजमगढ़ जिले के फूलपुर तहसील के मेजवां गांव में एक सोसाएटी के जरिये गांव की लड़कियां आत्मनिर्भर बन रही हैं. अपनी हुनर के जरिये परिवार और समाज को सशक्त कर रही हैं. महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 10, 2017 6:16 AM
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सिर्फ सरकार के भरोसे विकास से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता
मेजवां से लौट कर अंजनी कुमार सिंह
आजमगढ़ जिले के फूलपुर तहसील के मेजवां गांव में एक सोसाएटी के जरिये गांव की लड़कियां आत्मनिर्भर बन रही हैं. अपनी हुनर के जरिये परिवार और समाज को सशक्त कर रही हैं. महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में यह अनूठा प्रयोग है. यहां 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी नहीं होती है. शिक्षा जैसे सभी के लिए अनिवार्य हो. मेरवां मशहूर शायर व लेखक कैफी आजमी का गांव है. कैफी साहब को यह आभास हो गया था कि लडकियों का सशक्तीकरण जरूरी है और यह काम सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. इसीलिए उन्होंने एक सोसाएटी की स्थापना कर उसके जरिये गांव के विकास कीरूपरेखा बनायी.
फूलपुर तहसील के खोरासन रेलवे स्टेशन से मेजवां पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होती है. रिक्शा वालों से लेकर पान दुकान वाले तक को कैफी साहब के घर का पता उसी तरह से याद है जैसे फारबिसगंज में फणिश्वर नाथ रेणु के घर का पता. पांच भाइयों में कैफी साहब हिंदुस्तान मे ही रहें. मुंबई में मन न लगने पर वह मेजवां आ गये. यह इलाका आज भी काफी पिछड़ा है. 70 के दशक में इस गांव में आने के लिए कोई रास्ता नहीं था. कैफी साहब भी जब पहली बार गांव आये थे, तो पालकी में बैठकर आये थे. यहां आने के बाद उन्होंने गांव की सड़क को ठीक कराया. रेलवे लाइन को ब्राॅड गेज में परिवर्तित करने के लिए लड़ाई लड़ी. दिल्ली से आजमगढ़ के बीच चलने वाली कैफियत एक्सप्रेस उन्हीं के नाम पर चलाया जी रही है.
लड़कियों के सशक्तीकरण के हिमायती : कैफी आजमी का मानना था कि देश की 80 फीसदी जनता गांवों में रहती है, वहां के वास्तविक विकास के लिए लड़कियों का सशक्तीकरण बहुत ही महत्वपूर्ण है.
इसीलिए उन्होंने इसकी शुरुआत अपने गांव से की और 1992 में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मेजवां वेलफेयर सोसाइटी की स्थापना की, जो गांव के लोगों के लिए स्वरोजगार का साधन बना. वर्ष 2004 में मशहूर फैशन डिजायनर अनिता डोगरे ने मेजवां को गोद लिया और 2009 में एक फैशन शो आयोजित किया. इस सोसाइटी के माध्यम से गांव की महिलाओं को चिकनकारी जैसी कलात्मक विद्या से जोड़ा गया.
अब मेजवां के चिकनकारी की धूम देश-दुनिया में फैल गयी है. देश के मशहूर डिजायनर अनिता डोगरे, मनीष मल्होत्रा, शाह नारायण दास आदि भी इससे जुड़े हैं. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में शुरू की गयी पहल को उनकी पुत्री शबाना आजमी आगे बढ़ा रही हैं. मेजवां यूथ वेलफेयर सोसाइटी की प्रेसिडेंट नम्रता गोयल भी इस काम में बराबर का सहयोग कर रही है. लड़कियों के आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई इनिशिएटिव लिये गये हैं, जिसमें लड़कियों के लिए कैफी आजमी इंटर कॉलेज, कैफी आजमी कंप्यूटर सेंटर, कैफी आजमी बुनकरी एवं इंब्रायडरी सेंटर है. यहां की वूमेन व्यूटी पार्लर चलाती है, अभिनेता-अभिनेत्रियों के ड्रेस को डिजाइन करती हैं एवं फैशन शो भी आर्गेनाइज कराती है.
तालीम को देते थे प्राथमिकता : गांव के लोग बताते हैं कि कैफी साहब प्रगतिशील थे. वह बदलाव के हिमायती थे. तालीम को प्राथमिकता देने के कारण ही आज 300 लड़कियां सामान्य फीस पर यहां अध्ययन और स्वरोजगार के गुर सीख रही हैं.
सेंटर में जो महिलाएं काम करती है, उन्हें उसका मेहनताना दिया जाता है, लेकिन जो महिला स्वरोजगार करना चाहती है, तो वह यहां से सीख कर अपना व्यवसाय शुरू कर देती हैं. कैफी साहब की देखभाल करने वाले सीताराम 1981 से ही उनके साथ रहे हैं. आज भी घर के केयर टेकर वही हैं. बताते हैं, साहब दुश्मनों से भी मित्र की तरह मिलते थे. काम के प्रति उनकी निष्ठा और समाज के लोगों का उनके प्रति विश्वास अगाध था.
सेंटर के उप प्रबंधक आशुतोष त्रिपाठी बताते हैं कि यहां पर इंटर तक पढाई के अलावा, कढाई, बुनाई, ब्यूटिशयन, कंप्यूटर सहित कई कोर्स चलाये जाते हैं. बिल्कुल नॉमिनल फीस पर.
इससे हर साल सैकड़ों लड़कियां निकलती है और खुद का रोजगार भी स्थापित करती हैं. ब्यूटिशयन की शिक्षा के लिए अत्याधुनिक मशीन लगाये गये हैं. कोर्स इंचार्ज गायत्री सिंह बताती है कि इन कामों से लड़कियों के अंदर एक आत्मविश्वास आता है. सेंटर इंचार्ज संयोगिता बताती है कि हमलोगों की कोशिश है कि गांव के आसपास की महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन सके. यहां के इंब्रायडरी के काम की तारीफ काफी होती है.
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