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भाजपा की रणनीति से माया-अखिलेश चित

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को अब तक की सबसे बड़ी सफलता मिली है. उसने सहयोगियों के साथ 325 सीटें जीत ली हैं. इस सफलता से भाजपा का राज्य में करीब डेढ़ दशक पुराना बनवास खत्म हो गया. चुनाव में सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को हुआ. 27 साल से सूबे की सत्ता से बाहर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 12, 2017 6:29 AM
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को अब तक की सबसे बड़ी सफलता मिली है. उसने सहयोगियों के साथ 325 सीटें जीत ली हैं. इस सफलता से भाजपा का राज्य में करीब डेढ़ दशक पुराना बनवास खत्म हो गया. चुनाव में सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को हुआ. 27 साल से सूबे की सत्ता से बाहर कांग्रेस को मात्र सात सीटों पर ही जीत मिली. कांग्रेस का यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. सपा के साथ समझौते के तहत 105 सीटों पर देश की इस सबसे पुरानी पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. कांग्रेस से अधिक अपना दल(एस) को सीटें मिली. अपना दल (एस) ने भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था.
इस गंठबंधन के तहत अनुप्रिया पटेल की पार्टी को 12 सीटें मिली और वह इनमें से नौ सीटें जीतने में सफल रही. भाजपा की सुनामी में भी शिवपाल यादव और आजम खान अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. वहीं मुलायम की बहू अर्पणा यादव,भतीजे अनुराग यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कर्ष मौर्य, कांग्रेस के अजय राय और मुख्तार के भाई सिबगतुल्लाह अंसारी और बेटे अब्बास अंसारी हार गये.
मुलायम और शिवपाल को किनारे लगाना महंगा पड़ा
सपा और कांग्रेस दफ्तर पर सन्नाटा
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपने पिता और सपा सुप्रीमो मुलायम िसंह यादव और अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को किनारे लगाना महंगा पड़ा.
अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा कर खुद अध्यक्ष बन गये, वहीं चाचा शिवपाल सिंह यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर उनके समर्थक मंत्रियों अंबिका चौधरी, नारद राय और शादाबा फातिमा का टिकट काट िदया. इसके साथ ही अखिलेश ने करीब 37 विधायकों और मंत्रियों का भी टिकट काट कर नये चेहरों को मौका दिया. सपा में मचा कलह और भितरघात इसे ले बीता. सपा के बागी भी बुरी तरह से सपा को हराने में लग गये. वोट कटवा की भूमिका निभाते हुए उसे हरा दिया.
सपा कुनबे के लोगों पर प्रदेश की जनता हमेशा भरोसा जताती आयी है. लेकिन इस बार वह भी हार गये. लखनऊ कैंट से मुलायम की छोटी बहू अर्पणा यादव 33 हजार के अंतर से हारीं, वहीं सरोजनी नगर से मुलायम के भतीजे अनुराग स्वाति सिंह से हार गये. अंतिम सूची जारी होने तक चुनाव में काफी समय बचा था. शिवपाल और अखिलेश समर्थकों में भी खींचतान और गुटबाजी से भी सपा को हार का सामना करना पड़ा.
आजम व बेटे अब्दुल्ला ने दर्ज की जोरदार जीत
रामपुर. चुनाव में भगवा लहर के बीच रामपुर सीट पर सपा उम्मीदवार आजम खां और पहली बार चुनाव लड़ रहे उनके बेटे अब्दुल्ला ने जोरदार जीत हासिल की. खां ने भाजपा के शिव बहादुर सक्सेना को 46842 मतों से हराकर आठवीं बार विधायक बने. आजम को 102100 वोट मिले , जबकि सक्सेना को 55258 मत मिले. बेटे अब्दुल्ला ने चुनावी राजनीति में कदम रखते हुए स्वार सीट से 53 हजार 96 मतों से जोरदार जीत हासिल की. अब्दुल्ला ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की लक्ष्मी सैनी को 53 हजार 96 मतों से हराया.
मोदी और शाह ने सोशल इंजीनियरिंग के बल पर उत्तर प्रदेश को फतह किया
बिहार की हार से भाजपा ने लिया सबक
दिल्ली, बिहार , पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में हार के बाद भाजपा ने देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बहुमत से जीत कर लोकसभा में कामयाबी को दोहराया है. वर्ष 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने 80 में से 73 सीटें जीत इतिहास रचा था. सपा और बसपा लोकसभा हारने के बाद भी नहीं चेते और यूपी की सत्ता उनके हाथ से िनकल गयी.
अंजनी कुमार सिंह
नयी दिल्ली : यूपी और उत्तराखंड में मिली भाजपा की ऐतिहासिक सफलता राम मंदिर आंदोलन के दौरान भी नहीं मिली थी. तब माना गया था कि ऐसी सफलता वोटों के ध्रुवीकरण के कारण हुआ है. लेकिन इस बार की सफलता कुछ अलग है. क्योंकि इस जीत के पीछे प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की बड़ी भूमिका रही है. उसी के तहत वर्ष 2014 के आम चुनाव में मिली सफलता को दोहराने के लिए संगठन स्तर पर काफी बदलाव किया गया.
बिहार चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए जीताऊ उम्मीदवार को तरजीह दी गयी, स्थानीय नेताओं को महत्व दिया गया साथ ही सामाजिक संरचना को पूरी तरह से साधा गया. जिस वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा था, उन वर्गों को भी पार्टी ने अपने साथ जोड़कर उन्हें सम्मान दिया. इसी का नतीजा रहा कि यूपी में पार्टी ने प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की है. पार्टी ने खास रणनीति के तहत सीएम कंडीडेट पेश नहीं किया.
पार्टी ने गैर यादव और गैर जाटव जातियों पर विशेष फोकस किया. गैर यादव 40 फीसदी अन्य पिछड़े वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए पिछड़े समाज से आनेवाले केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. चर्चा को बल मिला कि मुख्यमंत्री अगड़ा होगा. गैर यादव और गैर जाटवों को यह साथ लेने में भाजपा कामयाब रही.
बड़ी जीत
आजम खान
(समाजवादी पार्टी)
रामपुर सीट से 46842 वोट से
शिवपाल सिंह यादव
(समाजवादी पार्टी)
जसवंतनगर से 52,616 वोट से
रामअचल राजभर (बसपा )
अकबरपुर सीट से 14101 वोट से
सूर्यप्रताप शाही (भाजपा)
पत्थरदेवा सीट से 42997 वोट से
पंकज सिंह (भाजपा)
नोएडा सीट से 67710 वोट से चुनाव जीते.
सफल रही रणनीति
हमलावर रुख के साथ उपलब्धियां गिनायीं
यूपी में उज्ज्वला योजना के तहत 56 लाख, अटल पेंशन योजना के 3 लाख लाभार्थी हैं. मोदी ने अखिलेश, मायावती व राहुल पर हमलावर रुख रखा, तो नोटबंदी के फायदे बता अपनी उपलब्धियां गिनायीं.
चमके युवा चेहरे
अब्दुल्ला आजम(25)
पंकज सिंह(38)
संदीप सिंह (26)
अमनमणि त्रिपाठी (35)
अदिति सिंह (29)
स्वाति सिंह (38)
हर्षवर्धन वाजपेयी (35)
बड़ी हार
लक्ष्मीकांत वाजपेयी
(भाजपा )
मेरठ सीट से 2876091 वोट से
ओमप्रकाश सिंह
(समाजवादी पार्टी)
जमानियां सीट से 27,333 वोट से
कृष्णा पटेल
(अपना दल)
रोहनिया सीट से 9,549 वोट मिले
सिबगतुल्लाह अंसारी
(बसपा)
मोहम्मदाबाद सीट 32,703 वोटों से
अंबिका चौधरी
(बसपा)
फेफना सीट से 17,897 वोट से
जीत के फैक्टर
1. यूपी से सांसद प्रधानमंत्री अपना प्रभाव कायम रखने मंे कामयाब रहें. उन्होंने स्टार प्रचारक के तौर पर धुआंधार प्रचार किया. उन्होंने वाराणसी में तीन दिन तक रूक कर प्रचार कमान संभाला.
2. भाजपा ने इस चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूला अपनाया. पिछड़ों और अति पिछड़ों को संगठन और टिकट बंटवारे में स्थान दिया. इसके साथ ही अपना दल और भारतीय समाजपार्टी के साथ गंठबंधन भी किया.
3. समाजवादी पार्टी अपने कलह के कारण पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गयी. मुलायम सिंह यादव की उपेक्षा पुराने सपा कैडर को रास नहीं आया.
4. मायावती का वोट बैंक भी खिसका. उन्होंने दलित और ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की लेकिन वह साथ नही ंआ सके.
5. भाजपा ने प्रदेश में कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाया. मंत्री गायत्री प्रजापति पर चुनाव के समय रेप केस दर्ज होना और वारंट जारी होना भी अखिलेश की मिस्टर क्लीन की छवि को बिगाड़ा.
राहुल के गढ़ अमेठी में कांग्रेस चारों सीटें हारी
भाजपा ने तीन सीटें जीतीं, 2012 में खाता नहीं खुला था
अमेठी : नेहरू-गांधी परिवार के गढ़ अमेठी की सभी चार सीटें कांग्रेस हार गयी. जबकि भाजपा ने तीन पर जीत हासिल की है.मौजूदा विधायक राकेश प्रताप सिंह (सपा) ने गौरीगंज पर कब्जा जमाये रखा. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार मोहम्मद नईम को 26,000 से अधिक वोटों से हराया. दोनों उम्मीदवारों में फ्रेंडली फाइट था. कांग्रेस और सपा गंठबंधन करके लड़े थे. अमेठी में भाजपा उम्मीदवार गरिमा सिंह को 63,912 वोट मिले. उन्होंने दागी कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति (सपा) को हराया, जिन्हें 58,941 वोट मिले.
तिलोई में भाजपा उम्मीदवार मयंकेश्वर शरण सिंह ने बसपा उम्मीदवार मो सौद को हराया, जो मौजूदा विधायक डॉ मुसलिम के बेटे हैं.
जगदीशपुर (सुरक्षित) पर भाजपा के सुरेश पासी ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और मौजूदा कांग्रेस विधायक राधे श्याम धोबी को हराया. पिछले चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी भाजपा ने इस बार तीन सीटें जीत हासिल की. गौरतलब है कि वर्ष 2012 के चुनाव में सपा ने अमेठी और गौरीगंज सीट जबकि कांग्रेस ने तिलोई और जगदीशपुर सीट पर जीत हासिल की थी.
75% मुसलिम बहुल सीटों पर कमल
यूपी में मुसलिम बहुल करीब 100 सीटों में से 75 सीटों पर भी भाजपा को जीत हासिल हुई है. यह सर्वाधिक चौंकानेवाला है. सबसे अधिक चर्चा देवबंद सीट की हो रही है, जहां से भाजपा उम्मीदवार ब्रजेश ने तीस हजार के वोटों से चुनाव जीता. इस सीट पर दूसरे नंबर पर बसपा के माजिद अली रहे, जिन्होंने 72,844 मत हासिल किये, जबकि तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी के माविया अली रहे, जिन्होंने 55,385 मत हासिल किये. इसके अलावा मुरादाबाद सीट भी भाजपा की झोली में आयी.
यहां से सपा के मौजूदा विधायक युसूफ अंसारी को भाजपा के रीतेश गुप्ता ने 20 हजार वोटों से हराया. इस सीट पर तीसरे नंबर पर बसपा के अतीक सैफी रहे, जिन्होंने 24,650 वोट हासिल किये. मुरादाबाद की ही मुसलिम बहुल कांठ सीट पर भाजपा के राजेश कुमार चुन्नू ने 76,307 वोट लेकर सपा के अनीसुर्रहमान को 2348 मतों से हराया. इस सीट पर तीसरे नंबर पर बसपा के मोहम्मद नासिर रहे जिन्हें 43,820 मत मिले. फैजाबाद की रुदौली सीट से भाजपा के रामचंद्र यादव ने सपा के अब्बास अली जैदी को तीस हजार से हराया. बसपा के फिरोज खान ने 47 हजार से अधिक वोट हासिल किये. शामली की थाना भवन सीट से भाजपा के सुरेश कुमार ने 90,995 मत पाये.
मोदी लहर में भी बाहुबली कामयाब
कुंडा (प्रतापगढ़)
राज भैया, निर्दलीय
असर :कुंडा राजघराने के कुंवर हैं. बाहुबली की छवि. कई बार जीते. प्रदेश मंे राजपूतों के बड़े नेता माने जाते हैं
मऊ (सदर)
मुख्तार अंसारी, बसपा
खास: 10 साल से जेल में. दो चुनाव जेल से जीते. प्रचार के लिए पैरोल रद्द हुआ, मोदी भी सभा किये फिर भी जीते.
ज्ञानपुर भदोही
विजय मिश्रा, निषाद पार्टी
अखिलेश ने टिकट काटा फिर भी जीते
खास : विजय मिश्रा भदोही के बाहुबली हैं. पत्नी रामलली मिश्र सपा से एमएलसी हैं. 20 साल से विधायक
गुंसाईंगंज (फैजाबाद)
अभय सिंह, सपा
लखनऊ विवि के नेता रह चुके हैं
असर : अभय सिंह को भी बाहुबली माना जाता है. ठेके पट्टे को लेकर उन पर कई आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं.
चिल्लूपार (गोरखपुर)
विनय तिवारी, बसपा
पिता हरिशंकर तिवारी बड़े नेता थे
खास : चिल्लूपार सीट कई दशक से तिवारी परिवार के पास है. 2012 में बसपा से हार गये. इस बार बेटा जीता.
सैयदराजा (चंदौली)
सुशील सिंह
दो बार विधायक रहे, निर्दलीय बसपा
खास : सुशील के पिता पूर्व एमएलसी चाचा माफिया डॉन बृजेश िसंह और चाची अन्नपूर्णा सिंह भी एमएलसी रहे हैं.
नहीं चला मायावती का सामाजिक समीकरण
बद्री नारायण, राजनीतिक विश्लेषक
बसपा का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा. मायावती का सोशल इंजीनियरिंग काम नहीं कर सका. बसपा का दलित-मुसलिम गंठजोड़ कमोबेश असफल रहा. हालांकि, सकारात्मक पहलू यह रहा है कि सपा के मुकाबले बसपा को सीटें भले ही आधी भी नहीं आयी हैं, लेकिन वाेट प्रतिशत दोनों ही पार्टियों की तकरीबन समान (22 फीसदी) रहे हैं. पारंपरिक दलित वोटर बसपा के साथ रहे.
मायावती ने इस बार अन्य पिछड़ा वर्ग के बहुत से उम्मीदवारों को टिकट दिया था. उन्हें भरोसा होगा कि उम्मीदवार जाति का वोट भी बटाेरने में कामयाब हो सकता है, दलित वोट तो बसपा का जनाधार है ही, लिहाजा आसानी से जीत हो सकती है. लेकिन, नतीजे आने के बाद स्पष्ट हो गया कि ऐसे उम्मीदवार अपनी जाति का वोट बसपा के पक्ष में नहीं ला पाये. ये सभी वोट भाजपा में चले गये.
बसपा को उम्मीद थी कि उसके पूर्व के प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए दलित जनाधार के अलावा ओबीसी व सवर्ण वोट मिल सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ओबीसी कुर्मी, कोइरी भाजपा के साथ चले गये. नतीजों से लग रहा है छोटी दलित जातियों के वोट भी बसपा को नहीं मिले. वर्ष 2007 में बसपा को बहुमत था. पहली बार सोशल इंजीनियरिंग चर्चा में आया. नये समीकरण से मायावती की देश भर में प्रशंसा हुई. लेकिन, इस बार ऐसे सोशल इंजीनियरिंग पर जोर नहीं दिया गया, नतीजा बुरी हार के रूप में सामने आया. हालांकि, इस बार भी मायावती ने भाईचारा समितियां बनायी थीं, लेकिन काम नहीं आया. बसपा की हार का बड़ा कारण यह भी रहा मायावती ने सभी चीजें हाथ में ले लिया. कई नेताओं ने बसपा से नाता तोड़ लिया.
(बातचीत : कन्हैया झा)
अब बसपा सुप्रीमो का राज्यसभा जाना भी मुश्किल
यूपी चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक पंडितों को, तो चौंकाया ही है, सियासी पार्टियां भी हैरान हैं. सबसे बड़ा झटका बसपा सुप्रीमो मायावती को लगा. 2007 में वह चुनाव जीतनेवाली बसपा इस बार 20 से कम सीटों पर सिमट कर रह गयी. 2012 के चुनाव में बसपा ने 80 सीटें जीती थीं. माया की सोशल इंजीनियरिंग पूरी तरह से फेल हो गयी. आम तौर ऐसा होता है कि जब मायावती चुनाव हार जाती हैं तो राज्यसभा चली जाती हैं. लेकिन इस बार इतनी भी सीटें नहीं मिलेंगी कि वह राज्यसभा पहुंच सकें, या फिर किसी को पहुंचा सकें. बसपा अब तक का उनका सबसे खराब रिकॉर्ड रहा.

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