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चल पड़ा मोदी का विजय रथ
आशुतोष चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने सीटों का तिहरा शतक लगा दिया है. सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने अकेले 312 सीटों पर अपना परचम लहरा कर ऐतिहासिक जीत हासिल की है. उत्तर प्रदेश में इससे पहले 1977 में जनता पार्टी को 352 सीटें मिली थीं, लेकिन तब उत्तराखंड अलग […]
आशुतोष चतुर्वेदी
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने सीटों का तिहरा शतक लगा दिया है. सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने अकेले 312 सीटों पर अपना परचम लहरा कर ऐतिहासिक जीत हासिल की है. उत्तर प्रदेश में इससे पहले 1977 में जनता पार्टी को 352 सीटें मिली थीं, लेकिन तब उत्तराखंड अलग नहीं था. 1951 के प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस ने 388 सीटें हासिल की थीं. लेकिन, तब कई सीटों से दो-दो विधायक चुने जाते थे. इससे पहले 1991 की राम लहर पर सवार होकर भी भाजपा इतनी सीटें हासिल नहीं कर पायी थी, जो उसे इस बार मिली हैं.
जब 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन चला था, तब भाजपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत हासिल किया था. कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़े गये वर्ष 1991 के चुनाव में भाजपा को 419 (तब यूपी में इतनी सीटें थीं) में से 221 सीटें मिली थीं. इसके बाद से भाजपा कभी इस आंकड़े के आसपास तक नहीं पहुंच सकी. लेकिन, इस चुनाव में आंकड़े को पार करने में सफलता हासिल कर ली है. ऐसा भी कह सकते हैं कि बिहार में मोदी का जो विजय रथ थमा था, वह फिर चल पड़ा है.
बिहार में जाति और विकास का जो मॉडल, भाजपा ने पेश किया था, उसे जनता ने ठुकरा दिया था. यूपी में यह कोशिश सफल होती रही. हालांकि, किसी भी चुनावी जीत में किसी एक मुद्दे का नहीं, बल्कि कई मुद्दों का योगदान होता है. यूपी की जीत में भाजपा ने जातियों को जोड़ने के साथ-साथ विकास का सम्मिश्रण पेश किया. साथ ही श्मशान-कब्रिस्तान और कसाब के जरिये भाजपा ने उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में ध्रुवीकरण की बयार बहाने की कोशिश भी की. नतीजे बताते हैं कि भाजपा अपनी कोशिशों में कामयाब हुई.
उत्तर प्रदेश का यह चुनाव व्यक्ति केंद्रित था. इसके केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे, तो दूसरी ओर उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती से था. इस चुनाव में पार्टियां सहायक की भूमिका निभा रही थीं. व्यक्ति केंद्रित इस चुनाव में नरेंद्र मोदी सब पर भारी पड़े और उनकी बातों और वादों को जनता ने ज्यादा प्रामाणिक माना और अखिलेश व मायावती की बातों को नकार दिया.
नोटबंदी को लेकर बड़ा संशय था कि इसे लोग स्वीकार करते हैं कि नहीं. विपक्षी दल इसे बड़ा मुद्दा बना रहे थे.उनका दावा था कि नोटबंदी के बाद लोगों में पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ भारी गुस्सा है. जनता इस गुस्से का इजहार चुनावों में करेगी. लेकिन, इन चुनावों से यह बात साफ हो गयी कि जनता का प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा कायम है. वे मानते हैं कि मोदी व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार हैं, लोगों के हित में कदम उठाते हैं, हो सकता है कि उसका फायदा अभी नहीं मिल रहा हो.
लेकिन, आगे आनेवाले समय में इसका लाभ मिलेगा.
पंजाब में कांग्रेस की जीत, आप को झटका: कांग्रेस उत्तराखंड में तो हार गयी, लेकिन पंजाब की जीत से वह जरूर कुछ संतोष कर सकती है. दूसरी ओर केजरीवाल की पार्टी आप को पंजाब में झटका लगा है. आप नेता पंजाब में जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने दिल्ली में जीत के उत्सव की पूरी तैयारी कर ली थी. पंजाब में बहुमत हासिल न कर पाने से आप नेताओं के चेहरे उतर गये हैं.
पंजाब में सभी मान रहे थे कि अकाली दल-भाजपा गंठबंधन की करारी हार होगी. विश्लेषक उन्हें दहाई के आंकड़े तक पहुंचने पर भी संशय जता रहे थे. अकाली दल-भाजपा की शिकस्त तो हुई, लेकिन उनका सूपड़ा साफ नहीं हुआ है.
उत्तराखंड के नतीजे लगभग जगजाहिर थे. कमोबेश सभी सर्वेक्षणों में यह बात कही जा रही थी कि उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है, कांग्रेस हार रही है और भाजपा की सत्ता में वापसी होने जा रही है. इसलिए उत्तराखंड के नतीजे चौंकाते नहीं हैं. मणिपुर में भाजपा की जीत यह संदेश जरूर देती है कि पूर्वोत्तर राज्यों में भी पार्टी अपने पांव पसार रही है.
कुल मिला कर, संदेश साफ है कि जनता में पीएम मोदी की लोकप्रियता आज भी कायम है. लोकसभा चुनावों में करीब अब दो साल बचे हैं. इसमें कोई शक नहीं कि यह जीत आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के लिए एक मजबूत आधार बनेगी और इसी बुनियाद पर भाजपा 2014 को दोहराने की कोशिश करेगी.
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