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योगी के सहारे विकास के एजेंडा को आगे बढ़ाने की पहल

।। रामेश्वर पांडेय ।। (वरिष्ठ पत्रकार) देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ का चयन पार्टी ने काफी सोच-समझ कर लिया है. कई दावेदारों को दरिकनार कर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे पार्टी का मकसद शासन पर किसी प्रकार के परिवारवाद के आरोपों को एक झटके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2017 9:17 AM
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।। रामेश्वर पांडेय ।।

(वरिष्ठ पत्रकार)
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ का चयन पार्टी ने काफी सोच-समझ कर लिया है. कई दावेदारों को दरिकनार कर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे पार्टी का मकसद शासन पर किसी प्रकार के परिवारवाद के आरोपों को एक झटके में खारिज करना है.
भारतीय जनता पार्टी 2014 से ही तीन प्रमुख एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है. पहला है ब्रांड मोदी और दूसरा है आक्रामक हिंदुत्व और तीसरा है सबका साथ सबका विकास करने का नारा. इसके साथ ही पार्टी स्वच्छ प्रशासन और भाई-भतीजावाद को राजनीति से दूर करने की अक्सर बात करती रही है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के तमाम नेता परिवारवाद को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की आलोचना करते रहे हैं. योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना कर पार्टी ने यह संदेश दिया है कि अब उत्तर प्रदेश परिवारवाद से मुक्त होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश है कि 2019 में होनेवाले आम चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों का दिल जीता जाये. जिस प्रकार नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पहले हिंदुत्व को उभारा और फिर विकास के जरिये अल्पसंख्यकों का दिल जीता, वही काम प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के जरिये करना चाहते हैं.
योगी आदित्यनाथ की छवि भी एक उग्र हिंदुवादी नेता की है और भाजपा उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में बिना भेदभाव के विकास करके 2019 से पहले सबका साथ सबका विकास के जरिये अल्पसंख्यकों और बाकी तबकों का दिल जीतने की कोशिश करेगी. योगी की कट्टर छवि से यह मिथक टूटेगा कि भाजपा के शासनकाल में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया गया.
इसका संदेश अन्य प्रदेशों के मुसलमानों में भी जायेगा कि भाजपा सभी समाज के समान विकास पर जोर देती है. भाजपा अल्पसंख्यकों को यह संदेश देना चाहती है कि उनका विकास वही कर सकती है और दूसरे दलों के लिए अल्पसंख्यक सिर्फ वोटबैंक की तरह हैं. उतर प्रदेश के अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के जरिये पिछड़े वर्ग को और दिनेश शर्मा के जरिये ब्राह्मणों को साधने के लिए ही उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. भाजपा की ऐतिहासिक जीत में पिछड़े वर्ग और अगड़े वर्ग की बड़ी भूमिका रही है. इसीलिए पार्टी ने सामाजिक संतुलन को साधने के साथ ही स्वच्छ प्रशासन के लिए परिवारवाद से दूर योगी को उत्तर प्रदेश की अहम जिम्मेवारी सौंपी है.
साल 2019 में चुनाव जीतने के लिए भाजपा अगले दो साल तक विकास के मसले पर गंभीरता से काम करेगी और लोगों को एक स्वच्छ प्रशासन देकर यह साबित करने का प्रयास करेगी कि उत्तर प्रदेश का विकास सिर्फ भाजपा ही कर सकती है. आनेवाले समय में उत्तर प्रदेश में पार्टी ब्रांड मोदी, स्वच्छ प्रशासन और सबका साथ, सबका विकास के एजेंडे के साथ ही काम करेगी. योगी परिवारवाद से ही दूर नहीं है, बल्कि वे ईमानदार माने जाते हैं. पूर्वांचल में उनकी अच्छी पैठ है. कुछ इन्हीं रणनीतियों के साथ ही भारतीय जनता पार्टी अपने मुख्यमंत्री योगी के जरिये 2017 के जनादेश को 2019 में दोहराने का पूरा प्रयास करेगी.
* भाजपा की विकास और हिंदुत्व की समन्वयवादी सियासत
।। अनंत विजय ।।
(वरिष्‍ठ पत्रकार)
भारत माता की जय के नारों के बीच लखनऊ के लोकभवन के सभागार में योगी आदित्यनाथ के नाम को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर जब विधायकों ने सर्वसम्मति से चुना, तो वहां से एक साथ कई संदेश निकले़ योगी आदित्यनाथ प्रखर और कट्टर हिंदूवादी छवि के नेता हैं.
योगी पांच बार के सांसद हैं और पूर्वांचल में उनकी छवि बेहद दबंग नेता की है़. कहा जाता है कि योगी अपनी दबंगई की वजह से प्रशासन को भी अपने इलाके में सही से काम करने के लिए मजबूर करते रहे हैं. इसके अलावा योगी गोरखपुर से हिंदू वाहिनी नाम की एक संस्था भी चलाते हैं. उनको देश के सबसे बड़े सूबे की कमान सौंप कर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश के हिदुओं को विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत का रिटर्न गिफ्ट दे दिया है.
जिस तरह से जातियों के बंधन को तोड़ कर उत्तर प्रदेश की हिंदू आबादी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भरोसा जताया था, उस भरोसे को योगी का राजतिलक और गाढ़ा करेगा़ योगी ने चुनाव पूर्व अपने भाषणों में साफ-साफ कहा था कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में संतुलन कायम कर दिया गया है और यही संतुलन पूरे प्रदेश में लाना है. उनका इशारा बहुत साफ था. कैराना से पलायन और लव जेहाद जैसे मुद्दों को योगी प्रमुखता से उठाते रहे हैं.
दरअसल योगी के राजतिलक पर विचार करें, तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वहां अब भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व और विकास की समन्यवादी राजीनीति के रास्ते पर चलेगी़ हिंदुत्व और विकास की इस समन्वयवादी राजनीति का मानचित्र 2014 में लोकसभा चुनाव के वक्त तय किया गया था जब नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को छोड़ कर बनारस को अपना लोकसभा क्षेत्र चुना था़.
बनारस का सनातन परंपरा में अपना एक अलग स्थान है और नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी मात्र ने उस वक्त वहां बीजेपी के लिए कम-से-कम तीन दर्जन लोकसभा सीट पर जीत तय कर दी थी़. उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसी मुसलमान को अपना प्रत्याशी नहीं बना कर अपने कोर वोटरों को एक संदेश भी दिया़. इस बात की लाख आलोचना हुई, लेकिन उन आलोचनाओं पर ध्यान ही नहीं दिया गया, बल्कि उस पार्टी के नेताओं से जब इस बारे में सवाल पूछा जाता था, तब वो कहते थे कि उनकी पार्टी ‘सबका साथ सबका विकास’ में यकीन रखती है और तुष्टीकरण को किसी भी कीमत पर तरजीह नहीं देगी़.
विधायक दल के नेता के चुनाव में केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने पत्रकारों से बात करते हुए साफ कहा कि विकास के अलावा जाति और मजहब की राजनीति के पैरोकारों को जनता ने जिस तरह से सबक सिखाया है, उसका बीजेपी ध्यान रखेगी़. यह सब करके पार्टी बहुत सधे हुए तरीके से अपने हिंदू वोटरों को संदेश दे रही थी और चुनावी नतीजों ने यह साबित किया कि बीजेपी के लक्षित वोटरों ने इन संदेशों को ग्रहण भी किया़.
अब योगी के हाथ में यूपी की कमान देकर बीजेपी नेतृत्व ने वोटों के इस समूह को और मजबूत करने का प्रयास किया है़. इस प्रयास को 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले अन्य राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनावों की तैयारी से भी जोड़ कर देखा जा सकता है़.
योगी को उत्तर प्रदेश की कमान सौंप कर एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राजनीतिक विश्लेषकों के आंकलन को गलत साबित कर दिया है़. जो लोग पारंपरिक तरीके से राजनीति का विश्लेषण करते हैं, उनको यह बात गले ही नहीं उतर रही थी कि उत्तराखंड में भी राजपूत जाति का मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश में राजपूत सीएम़.
परंपरागत राजनीति विश्लेषक तो यहां तक कह रहे थे कि पूर्वी उत्तर प्रदेश से पीएम और सीएम दोनों नहीं हो सकते़ पत्रकारों की टोली लगातार अलग-अलग नामों पर कयास लगा रही थी़ न्यूज चैनलों पर तो हर पांच मिनट में यूपी का नया सीएम घोषित हो रहा था़. शनिवार सुबह तो मनोज सिन्हा का नाम तय माना जा रहा था, पर योगी की ताजपोशी ने इन सब अटकलों को गलत साबित कर दिया़.
नरेंद्र मोदी ने बिल्कुल नयी तरह की राजनीति शुरू की है, जिसमें जातिगत समीकरणों का ध्यान तो रखा जाता है, लेकिन उसको परोक्ष तरीके से अपनी राजनीति का हिस्सा बनाते हैं. जैसे योगी के साथ केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बना कर सोशल इंजीनियरिंग को भी साधने की कोशिश की गयी है़ केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ी जाति से आते हैं और दिनेश शर्मा ब्राह्मण हैं.
अब इस समीकरण पर नजर डालें, तो साफ है कि गैर यादव पिछड़ा, ब्राह्मणों को संदेश दे दिया गया़. इसके बाद मंत्रियों के चयन में भी अन्य जातियों और क्षेत्रीय संतुलन का ख्याल रखा जाना तय है़. योगी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाये जाने पर कुछ लोगों को लग रहा है कि विकास से ज्यादा विवाद होगा़. योगी के अब तक के बयानों और उनकी छवि के मद्देनजर यह आशंका व्यक्त की जा रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश एक ऐसा प्रदेश है, जिस पर पीएमओ की सीधी नजर रहेगी़.
योगी के नाम के ऐलान के दो दिन पहले ही पीएमओ के आला अफसरों की टीम लखनऊ पहुंच कर सुशासन का खाका खींचने के काम में जुटी है़. ऐसे में विवाद की आशंका से एकदम इनकार तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री बनने और उसके पहले के नेताओं के आचार व्यवहार में फर्क इस देश ने पहले भी देखा है़.
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