योगी से एक पारदर्शी सरकार की उम्मीद
टिप्पणी : सीएम को व्यवहार में बदलाव लाने होंगे अद्वैता काला लेखक एवं कॉलमनिस्ट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने बड़ी चुनौती एक पारदर्शी शासन गढ़ने की है. साथ ही उन्हें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा, क्योंकि वे पूरे राज्य के नेता हैं. बहस की कड़ी में आज पढ़िए योगी से उत्तर […]
टिप्पणी : सीएम को व्यवहार में बदलाव लाने होंगे
अद्वैता काला
लेखक एवं कॉलमनिस्ट
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने बड़ी चुनौती एक पारदर्शी शासन गढ़ने की है. साथ ही उन्हें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा, क्योंकि वे पूरे राज्य के नेता हैं. बहस की कड़ी में आज पढ़िए योगी से उत्तर प्रदेश को क्या हैं उम्मीदें.
प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बात साबित कर दी है कि वे चौंकानेवाले फैसले लेते हैं. पहले डिमोनेटाइजेशन का फैसला और अब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को सत्ता की कमान, ये जनता की नजर में अप्रत्याशित फैसले हैं. फिलहाल मोदी जैसा एक भी मास लीडर भारत में नहीं है.
मोदी के नेतृत्व ने पार्टी पर एक प्रकार से नियंत्रण बनाया हुआ है, जहां से अप्रत्याशित फैसले आ रहे हैं. ऐसा लगता है योगी को उत्तर प्रदेश की कमान देना उन्हीं फैसलों में से एक है. योगी पांच बार सांसद रह चुके हैं और उनकी लोकप्रियता उत्तर प्रदेश में पहले से ही है. योगी खुद में स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं, पार्टी का उन पर कोई दबाव काम नहीं कर पाता है. वे अपने मन मुताबिक काम करना पसंद करते हैं. शायद इसीलिए साल 2007 और 2012 के चुनावों में कुछ बागी प्रत्याशी योगी के साथ खड़े हो गये थे.
यही वजह है कि इस बार के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले से ही यह चर्चा थी कि मुख्यमंत्री पद के लिए योगी का नाम आयेगा. चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए चली कई नेताओं के नाम पर खींचतान के बाद अंतत: योगी पर मुहर लगना ‘केंद्र में मोदी और यूपी में योगी’ के स्लोगन को चरितार्थ करता है.
योगी के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर से जिस तरह की कहानियां आ रही हैं कि उन्होंने वहां अच्छा काम किया है और उनसे मुसलिम भी खुश रहते हैं. हालांकि, यह बात एक संसदीय क्षेत्र के लिए क्षेत्रीय तौर पर है, लेकिन अब उन्हें पूरे राज्य को संभालना है, इसलिए हिंदुत्व को लेकर उन्हें अपने तीखे तेवर को छोड़ना पड़ेगा. हालांकि, यह वास्तविकता है कि उत्तर प्रदेश में सपा सरकार ने काफी भेदभाव किया, जिसके चलते योगी को तीखे तेवर अपनाने पड़े थे. जाहिर है, अपने क्षेत्र विशेष को लेकर एक सांसद का आग्रह भी होता है कि कुछ भेदभाव हो रहा हो, तो उस पर वह खुल कर बोले. लेकिन, अब जब खुद योगी ही सत्ता में हैं, तो उन्हें ऐसा करने की जरूरत ही नहीं होगी और न ही उनका तीखापन अब उन्हें शोभा ही देगा. अब वे पूरे उत्तर प्रदेश के नेता हैं किसी एक संसदीय क्षेत्र के नहीं, इसलिए योगी को अपने व्यवहार में कुछ बदलाव लाने ही पड़ेंगे. आगामी दिनों में हर कदम उन्हें नापतौल के रखने होंगे.
एक योगी की छवि और दूसरी एक मुख्यमंत्री की छवि के बीच अब अगले पांच साल तक शासन के स्तर पर योगी आदित्यनाथ से यही उम्मीदें हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही जिस विकास का संकल्प लिया है, उसे वे पूरा करेंगे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बड़ी बेबाकी से कुछ बातें कहीं- जैसे सबका विकास, भ्रष्टाचार बरदाश्त नहीं, कानून-व्यवस्था, महिलाओं की सुरक्षा, रोजगार सृजन पर जोर, ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान और भेदभाव रहित समाज बनाना आदि. इन बातों पर खरा उतरना उनके लिए चुनौती तो होगी, लेकिन चूंकि वे काम करने में यकीन रखते हैं, इसलिए उम्मीद है कि वे अच्छा काम करेंगे.
एक और बात बहुत अच्छी लगी योगी की, वह यह कि उन्होंने अपने दो मंत्रियों श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थ नाथ सिंह को अपनी सरकार का प्रवक्ता बनाया है, ताकि ये दोनों जनता और सरकार के बीच संवाद स्थापित करते रहें. यह अच्छी बात है, क्योंकि योगी की इतनी नकारात्मक छवि बनायी गयी है, जिससे उन्हें संवाद के रास्तों को खुला रखना होगा, ताकि वे अपने हर काम के बारे में लोगों को बता सकें कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं.
इस फैसले से मुझे लगता है कि योगी को यह बात समझ में आ गयी है कि उन्हें एक पारदर्शी शासन की छवि गढ़नी होगी. अगर इन सारी चीजों पर योगी अमल करते हैं, तो यह उनकी सरकार के लिए ठीक होगा, नहीं तो उनकी नकारात्मक छवि ही हमेशा लोगों के सामने आती रहेगी. कुल मिला कर उत्तर प्रदेश को एक पारदर्शी सरकार की सख्त जरूरत है, जो जनता के विश्वास को जीत सके.