योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने से कानून व्यवस्था की समस्या बढ़ेगी, घटेगी नहीं

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी पर बहसों का सिलसिला जारी है. गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के महंत से देश के सबसे बड़े प्रांत के मुखिया बनने की यात्रा में उनकी उग्र हिंदुवादी नेता की छवि ने बड़ी भूमिका निभायी है. उन्होंने कहा है कि शासन के संचालन में वे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 22, 2017 6:22 AM
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी पर बहसों का सिलसिला जारी है. गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के महंत से देश के सबसे बड़े प्रांत के मुखिया बनने की यात्रा में उनकी उग्र हिंदुवादी नेता की छवि ने बड़ी भूमिका निभायी है. उन्होंने कहा है कि शासन के संचालन में वे ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत का पालन करेंगे. उनकी छवि और वादे पर जानकारों की टिप्पणियों के साथ प्रस्तुत है आज का विशेष…
ओम थानवी
वरिष्ठ पत्रकार
मामला सिर्फ उत्तर प्रदेश का ही नहीं है. योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाये जाने का मतलब आनेवाले दिनों में पूरे भारत पर एक काली छाया का मंडराना है. चूंकि, भारतीय जनता पार्टी और उसकी पीठ पर सवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीति हम वर्षों से देखते आये हैं, लेकिन अब तक उनकी राजनीति दबी-छुपी रही है.
उनके कुकृत्यों पर एक परदा पड़ा रहता है, योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी से वह परदा अब उठ गया है. भाजपा के चेहरे से उदारता का नकाब हट गया है. ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे नारे गढ़ना, देश के सामने आर्थिक विकास की झूठी तसवीर पेश करना, योजना आयोग का नाम बदल कर नीति आयोग करने जैसी तमाम बातों से भाजपा यह संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि हमारी छवि भले सांप्रदायिकता की हो, लेकिन हम विकास का पैगाम लेकर आये हैं. ढाई वर्षों से यह लोगों के साथ एक प्रकार का धोखा था. योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा की 2019 के चुनाव की तैयारी का हिस्सा है.
लोकसभा चुनाव के लिए अनुकूल माहौल बनाने की तैयारी
मोदी भाजपा को अगला चुनाव कैसे जिता सकते हैं, इसको लेकर लोगों के मन में दो आशंकाएं थीं. पहली संभावना यह थी कि पाकिस्तान के साथ कोई तकरार या लड़ाई हो, जोकि आज के दौर में लगभग असंभव है. छोटी-मोटी तकरार करगिल जैसी हो सकती है, हालांकि वह भी बार-बार संभव नहीं है.
एक संभावना थी कि राष्ट्रप्रेम, देशप्रेम या दुश्मन देश के हमले के नाम पर भावावेश तैयार किया जाये. उसकी संभावना थी, क्योंकि राष्ट्रवाद और देशप्रेम पिछले ढाई साल से काफी भुनाया जा चुका है. ऐसे में संभावना कम थी कि इस तरह का कोई प्रयोग सफल होगा. दूसरा विकल्प बचता था- सांप्रदायिकता का. अब भाजपा ने उस उपाय को आजमाने का निश्चय कर लिया है. योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय से यह स्पष्ट है. योगी पर कई संगीन अपराधों के मुकदमे चल रहे हैं.
वे सीधे-सीधे समाज को बांटने की बात करते रहे हैं. लोगों को धमकियां देनेवाले और हिंसक मामलों में शरीक रहनेवाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना चिंताजनक है. जिस प्रदेश की 20 प्रतिशत आबादी मुसलिम हो, ऐसे फैसले से वह समाज या तो वहां डर कर रह सकता है या घुटन में रह सकता है या वहां पर दंगे भड़क सकते हैं. उत्तर प्रदेश दूसरा गुजरात बन सकताहै. इस तरह की आशंका योगी की ताजपोशी के साथ होना स्वाभाविक है.
‘सबका साथ-सबका विकास’ एक जुमला है, जिसका चुनाव में इस्तेमाल हुआ था. ऐसे जुमलों के बारे में पार्टी के नेता खुद स्वीकार कर चुके हैं. वे कह चुके हैं कि चुनाव में कही गयी बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. उसके बाद भी वे लोग जुमलों का इस्तेमाल करते हैं, उसका थोड़ा-बहुत लाभ मिलता है और थोड़ी छवि बनी रहती है. केंद्र का दायरा व्यापक होता है, ऐसे में मोदी एक प्रकार का संदेश देने में कामयाब रहे कि उनकी कोशिश विकासोन्मुख है. चाहे ‘मेक इन इंडिया’ का नारा हो, गंगा सफाई आदि की बातें रही हों, सच्चाई ये भी है कि इनमें से किसी में केंद्र सरकार को सफलता नहीं मिली है.
फिर भी उन्होंने एक किस्म की कोशिश की है. लेकिन, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के लिए इस प्रकार की कोशिश संभव नहीं है. न केवल इसलिए कि उनकी योग्यता पर संदेह खड़ा होता है, बल्कि इसलिए भी कि उनकी कट्टरता सबको साथ लेकर चलने नहीं देगी. कूटनीतिक तौर पर मोदी ऐसा करते आये हैं, लेकिन योगी के लिए यह संभव नहीं है. जहां तक बूचड़खानों को बंद करने जैसी बातें हैं, इससे एक बड़ा तबका बेरोजगार हो जायेगा. बड़े हिंदू समाज को संतुष्ट करने के लिए वे ऐसे काम जरूर करेंगे. जाहिर है कि इस तरह की चीजों को लागू करने से समाज में दीवार खड़ी होगी. ऐसा करने से सबका साथ-सबका विकास कैसे संभव होगा.
कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती
यदि कानून-व्यवस्था पटरी पर आ सकी, हालांकि शत-प्रतिशत कहीं भी संभव नहीं होता है, लेकिन जितनी भी काबू में आ सकी, वह उपलब्धि होगी. इसे उनकी उपलब्धि माना जायेगा. लेकिन, यह संभव कैसे होगा, जब आप खुद अपने आचरण में और आपके समर्थक अपने आचरण में हिंसा का सहारा लें या हिंसक मनोवृत्ति रखते हों, उसकी छाया आपके कृत्यों पर जरूर पड़ेगी. अभी उनके समर्थक जिस प्रकार की भाषा बोलने लगे हैं, जिस प्रकार से आलोचकों को डराने लगे हैं, अगर इस प्रकार का सिलसिला जारी रहा, तो कानून व्यवस्था की समस्या घटेगी नहीं, बल्कि और बढ़ेगी. दूसरी बात यह कि कानून व्यवस्था को अर्जित किया जा सकता है, इसे थोपा नहीं जा सकता है. कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए जो इच्छा शक्ति चाहिए, वह तभी आ सकती है, जब विचार में कट्टरता व हिंसा न हो.
अब तक खुद योगी कहते रहे हैं कि अगर एक हिंदू को मारा गया, तो हम सौ को मारेंगे. अगर एक हिंदू बालिका को उठाया गया, तो हम 100 बालिकाओं को उठायेंगे. आप जब खुद इस तरह की विचारधारा सार्वजनिक तौर पर जाहिर करते आये हैं, तो आपके अनुयायी मौका पड़ने पर इस प्रकार के आचरण से बाज आयेंगे, इसकी गारंटी वे कैसे देंगे. ये बात समझ से बाहर है.
(बातचीत : ब्रह्मानंद मिश्र)
योगी आदित्यनाथ के पीछे क्यों पड़ा है मीडिया
मधु किश्वर
लेखिका
योगी आदित्यनाथ के बारे में मीडिया वालों ने पूछ-पूछ कर मुझे उनके बारे में जानने के लिए मजबूर कर दिया है, जबकि मैं उनसे न तो मिली हूं और न ही उनके भाषणों को सुनी हूं और न ही उनके बारे में ज्यादा-कुछ जानती ही हूं. अंगरेजी मीडिया एक सवाल लेकर घूम रहा है कि हिंदुत्व और विकास एक साथ कैसे चलेगा? और यही सवाल हिंदी मीडिया के लोग अपने मुंह में डाल कर पूछे जा रहे हैं. यह एक बेवकूफी से भरा सवाल है.
आखिर यह कैसी बात है कि हिंदुत्व या हिंदू शब्द के साथ विकास नहीं चल सकता. तो क्या विकास के लिए हमें क्रिश्चियन बनना पड़ेगा, या मुसलमान बनना पड़ेगा? कितनी अजीब सी बात है कि लोग योगी की सख्त छवि से परेशान हैं. अगर उनकी सख्त छवि है, तो यह प्रशासन के लिए अच्छा है. इस देश में और खासकर उत्तर प्रदेश में जितने टेरर ग्रुप बैठे हैं, उनके लिए सख्त प्रशासन चाहिए और अगर योगी का सख्त होना राज्य के लिए और भी बेहतर है. उन्होंने साफ कहा है कि वे माफिया डॉन के प्रति सख्त हैं, आतंकवादियों के लिए सख्त हैं.
इसके पहले तक तो मैं योगी आदित्यनाथ को जानती भी नहीं थी, लेकिन मीडिया ने मुझे मजबूर किया कि मैं उनके बारे में जानूं. और जितना मैंने जाना, उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि इस देश में मुसलमान नहीं रह सकते. यह तो सिर्फ उन्हें बदनाम करनेवाली बात है.
उनके खुद के मठ में हजारों मुसलमान आते हैं और बहुत से मुसलमान मठ की सेवा में लगे हुए हैं. इससे बड़ा खुले दिल वाला कौन व्यक्ति है वहां? इससे ज्यादा खुला दिल क्या हो सकता है कि जिसके दरबार में हिंदू-मुसलिम या जात-पात का भेदभाव नहीं रखा जाता है. मैंने जो रिपोर्ट पढ़ी है उनके मठ के बारे में, उसके जैसा हिंदुस्तान में क्या एक भी कोई चर्च या मसजिद है? अपने मेनिफेस्टो में उन्होंने जितने भी वादे किये हैं, उन सभी के पूरा होने की उम्मीद करती हूं और उन्हें उनको पूरा करना चाहिए. आखिर मधु किश्वर इससे ज्यादा की उम्मीद क्यों करे? मुझसे पूछ कर उन्होंने मेनीफेस्टो नहीं बनाया है. मेरा न तो भाजपा से कोई वास्ता है और न ही योगी जी के मठ में कभी गयी हूं. लेकिन, एक इंसान को बदनाम करने की हद हो गयी है, जो मीडिया वाले किये जा रहे हैं.
सारे लोग हाथ धोकर उनके पीछे ही पड़ गये हैं. जिस किसी भी चीज के साथ हिंदू शब्द जुड़ जाता है, उसे हिंदुत्व का जामा पहना कर उसकी बुराई शुरू कर देते हैं. जबकि मैं योगी को जानती भी नहीं, तब मुझे इतना दुख हो रहा है. लेकिन, जो मीडिया उनके बारे में इतनी बदनाम करनेवाली चीजें छाप-दिखा रहा है, उससे उस आदमी को कितना दुख हो रहा होगा. क्या किसी ने यह सोचा है? यह तो हद है कि किसी को बेवजह जलील करने की कसम खा रखी है आप लोगों ने. हिंदी पत्रकारिता से हम इतनी उम्मीद करते हैं कि वह जमीन से जुड़ी हुई पत्रकारिता करेगी. लेकिन, वह भी अंगरेजी पत्रकारिता की तरह हवा-हवाई चीजों पर यकीन करने लगी है. आप लोगों को गोरखनाथ मठ के आसपास रहनेवाले लोगाें से जाकर पूछना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ में वहां के लोगों की क्यों इतनी आस्था है. फिर सवाल खड़े करने चाहिए उनके हिंदुत्व पर और उनकी छवि पर कि वे उत्तर प्रदेश के लिए या किसी शासन-प्रशासन के लिए क्यों जरूरी हैं.
धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिये 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर
चंद्रभान प्रसाद
संस्थापक, दलित फूड्स
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणामों के दूसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी जी दिल्ली के भाजपा कार्यालय आये और एक छोटी सी पद-यात्रा की उन्होंने. उसके बाद वहां अपने भाषण में उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम के बारे में उन्होंने कहा- ‘उत्तर प्रदेश का जनादेश एक ‘न्यू इंडिया’ (नया भारत) का जनादेश है. उत्तर प्रदेश एक न्यू इंडिया की मांग कर रहा है.’ इस वाक्य से दो सवाल खड़े होते हैं. पहला यह कि मोदी जी को अभी ‘करेंट इंडिया’ यानी वर्तमान भारत से क्या समस्या है?
यह सवाल इसलिए, क्योंकि पिछले बीस सालों में इस वर्तमान भारत में दलितों के जीवन में जो फर्क आया है, उनका शहरों में पलायन हुआ, हलवाही प्रथा खत्म हुई, जमींदारों के दरवाजों से दलितों को मुक्ति मिल गयी, दलित अब मिडिल क्लास गढ़ने लगा है यानी सब कुछ बहुत अच्छा और तेजी से बदला है, तो इस भारत को छोड़ कर एक नये भारत की कल्पना करने का क्या मतलब है? दूसरा सवाल यह है कि अगर उत्तर प्रदेश का जनादेश न्यू इंडिया की मांग करता है, तो उसमें योगी आदित्यनाथ कहां फिट बैठते हैं? यह सवाल इसलिए, क्योंकि योगी आदित्यनाथ से विकास का कोई रिश्ता नहीं है, वही विकास, जो न्यू इंडिया की नींव है. उनका न तो अर्थशास्त्र से रिश्ता है, न ही शासन-प्रशासन का कोई बड़ा अनुभव ही है. यह तो हर कोई जानता है कि योगी जी का किस चीज से रिश्ता है. तो फिर ऐसे में न्यू इंडिया की ब्रांडिंग करनेवाले या उसके नेता के तौर पर योगीजी को क्याें रख लिया?
यहां एक तीसरी बात यह है कि योगीजी कट्टर हिंदुत्व के अगुआ माने जाते हैं, जिनकी पहचान गोरखपुर (और उसके आसपास के कुछ जिलों को छोड़ कर) से बाहर नहीं रही है. आरक्षण के बारे में योगीजी की राय बहुत ही अपमानजनक है कि आरक्षण लोगों को निकम्मा बना देता है. कुल मिला कर एक धार्मिक व्यक्ति को, इस धार्मिक में भी कुंद विचारधारा वाले आदमी को सबसे बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का मतलब सिर्फ और सिर्फ इतना है कि विकास के सवाल पर नहीं, बल्कि धार्मिक ध्रुवीकरण के सवाल पर भाजपा साल 2019 का आम चुनाव लड़ेगी. और इसीलिए एक कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा वाले व्यक्ति को उत्तर प्रदेश की सत्ता देकर इसकी शुरुआत की गयी है.
जो लोग यह कह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ ने अपने संसदीय क्षेत्र में काम किया है, तो मैं उनसे सवाल करता हूं कि वे उनका काम बतायें कि योगीजी ने क्या किया है. सवाल समझ में न आये, तो मैं उनसे यह भी कहता हूं कि पहले जाकर योगीजी के संसदीय क्षेत्र को देख आयें कि वहां क्या काम हुआ है. दूसरी बात यह है कि चलो मान लिया कि योगीजी बहुत काम करनेवाले व्यक्ति हैं, तो फिर इसी आधार पर साल 2014 की जीत के बाद मोदी सरकार में उन्हें मंत्री का पद क्यों नहीं दिया गया? अगर योगीजी इतने ही योग्य हैं और उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकते हैं, तो फिर केंद्र सरकार में एक जूनियर मंत्री क्यों नहीं बन सकते थे? दरअसल, यह सब बेकार की बातें हैं.
असली मामला यह है कि जब भाजपा ने देखा कि अखिलेश यादव खूब काम करने के बाद भी हार गये, तो जिस तरह से धार्मिक ध्रुवीकरण से अभी चुनाव जीता गया है, ठीक इसी तरह से साल 2019 का आम चुनाव भी धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिये ही जीतना है, बस. इसके अलावा भाजपा का फिलहाल कोई संदेश नहीं है कि उत्तर प्रदेश में योगी को मुख्यमंत्री बना कर वह क्या करनेवाली है.

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