सत्ता में योगी : हिंदुओं की हिमायत का अर्थ मुसलिम विरोध नहीं

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसे विवादित व्यक्तित्व को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं दी जा रही हैं. कुछ लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री बनने से पहले के बयानों को पीछे छोड़ते हुए नयी भूमिका में उनके काम-काज को देख कर ही टिप्पणी की जानी चाहिए, वहीं दूसरे पक्ष का मानना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2017 6:16 AM
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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसे विवादित व्यक्तित्व को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं दी जा रही हैं. कुछ लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री बनने से पहले के बयानों को पीछे छोड़ते हुए नयी भूमिका में उनके काम-काज को देख कर ही टिप्पणी की जानी चाहिए, वहीं दूसरे पक्ष का मानना है कि योगी आदित्यनाथ के उग्र हिंदूवादी तेवर नहीं बदलेंगे और उनकी ताजपोशी पूरे देश के लिए एक राजनीतिक संदेश है. बहस के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज की विशेष प्रस्तुति…
हिंदुओं की हिमायत का अर्थ मुसलिम विरोध नहीं
बल्देव भाई शर्मा
चेयरमैन, नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया
उत्तर प्रदेश में पिछली दो सरकारों के कार्यकाल में जिस तरह से प्रशासन और कानून व्यवस्था की दशा लचर बनी रही व भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा, उससे प्रदेश की दशा बिगड़ती गयी. पिछली दोनों सरकारों का नेतृत्व गलत दशा-दिशा में रहा था. उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार जाति आधारित राजनीति का बोलबाला रहा है, उससे विकास की दौड़ में प्रदेश पिछडता गया. ऐसे वक्त में जब प्रदेश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को भरपूर जनादेश दिया है, तो पार्टी का यह कर्तव्य बनता है कि लोगों की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वह किसी ऐसे नेता को मुख्यमंत्री चुने, जो उन्हें पूरा कर सके.
योगी आदित्यनाथ की पहचान राजनीति में ऐसे व्यक्ति या नेता के रूप में रही है, जो दृढ़तापूर्वक निर्णय लेते हैं. बतौर मुख्यमंत्री उनकी नियुक्ति को इस तरह से नहीं लिया जाना चाहिए कि चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने क्या भाषण दिये. भारत में राज्य सरकारें अपना कामकाज संविधान के दिशा-निर्देशों के मुताबिक करती हैं. इसलिए मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. केंद्र में जिस प्रकार नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपनी उपलब्धियों के तौर पर ‘सबका साथ सबका विकास’ के रूप में लकीरें खींची हैं, भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध अभियान चलाया है, कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने का अभियान चलाया है, उसी क्रम में पिछले तीन-चार दिनों में योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से रुख दिखाया है व अपनी कार्यशैली से जो दर्शाया है, उससे लगता है कि उनके लिए भी प्राथमिकता में यही मसले होंगे. अपराध मुक्त प्रदेश, भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश और विकास की ओर दौडता हुआ प्रदेश- आदित्यनाथ की प्राथमिकता में ये चीजें रहेंगी.
इस बात को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए कि भाजपा ने किस व्यक्ति के हाथ में नेतृत्व की बागडोर सौंप दी है. हर पार्टी अपनी नीतियों के अनुसार व्यक्ति का चयन करती है. भारतीय जनता पार्टी पर यह आरोप लगाना कि उसने ऐसे इनसान को मुख्यमंत्री क्यों चुना, बिलकुल गलत है. क्या मुख्यमंत्री का चयन कांग्रेस, वाम दलों या समाजवादी पार्टी में से किया जाना चाहिए था.
योगी आदित्यनाथ पिछले पांच बार से लगातार गोरखपुर से सांसद चुने जा रहे हैं. पहली बार वर्ष 1998 के लोकसभा चुनावों में वे महज 26 वर्ष की उम्र में सांसद चुने गये थे. आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता का इससे बडा उदाहरण क्या हो सकता है. युवाओं की उनसे काफी अपेक्षा है. उत्तर प्रदेश भाजपा में उनका व्यापक योगदान रहा है. इस बात में कोई संदेह नहीं कि उनकी साफ-सुथरी छवि और संत व्यक्तित्व का लाभ सरकार को मिलेगा.
प्रदेश में पुलिस-प्रशासन में भर्तियों में व्यापक तौर पर जातिवाद हावी रहा है. निजी स्वार्थ के आधार पर भर्तियों में उम्मीदवारों को तरजीह दी जाती रही है. योगी जी के आने से इन सब पर लगाम लग सकता है. अब लोगों को साफ-सुथरा प्रशासन मिलने की उम्मीद जगी है.
हालांकि, योगी आदित्यनाथ के शपथ लेने के बाद से अनेक चैनल पूर्व में उनके द्वारा दिये गये भडकाऊ भाषणों का फुटेज चला रहे हैं, लेकिन मैं यहां बताना चाहूंगा कि चुनावी राजनीति और सरकार चलाना, दोनों ही अलग-अलग चीजें हैं. इन दोनों को एकसाथ जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. मोदीजी को ‘मौत का सौदागर’ तक कहा जाता था, लेकिन आज जिस तरह से वे शासन चला रहे हैं, वह कहीं से भी किसी जाति या मजहब के लिए पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं है. मोदीजी ने सबको साथ लेकर चलने वाला सुशासन दिया है. इसलिए चुनावी राजनीति के दौरान योगी आदित्यनाथ ने किस तरह के बयान दिये, उन्हें बार-बार याद करने का कोई अर्थ नहीं है. मौजूदा समय में वे मुख्यमंत्री हैं और संवैधानिक दायरे में बंधे हुए हैं. याद करिये उन्होंने स्वयं कहा है कि हमारी सरकार सबके लिए सम भाव से कार्य करेगी और किसी के साथ किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं बरता जायेगा.
जहां तक बयानों की बात है, तो बयान ओवैसी, मायावती और मुलायम सिंह तो खुल कर यह कहते रहे हैं कि वे मुसलिमों के हिमायती हैं. इस देश में यदि आप अल्पसंख्यकवाद के नाम पर किसी एक मजहब की पैरोकारी करते रहेंगे, तो बहुसंख्यक समाज का क्या होगा? अल्पसंख्यक समाज की हिमायत करनेवाले को जब आप गलत नहीं ठहरा रहे, तो बहुसंख्यक समाज की हिमायत करनेवाले को गलत कैसे ठहरा सकते हैं.
डॉक्टर मनमाेहन सिंह ने खुल कर कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है. जब इतने बडे पद पर बैठा व्यक्ति इस तरह कह रहा है, तो इससे बडा गैर-संवैधानिक वक्तव्य क्या हो सकता है? कांग्रेसी, वामपंथियों और तथाकथित धर्मनिरपेक्षों ने मुसलिमों के नाम पर अल्पसंख्यकवाद की राजनीति की है. तथाकथित धर्मनिरपेक्षों ने लोकतंत्र का यह दोहरा पैमाना तय किया है, जिसमें अब बदलाव किया जायेगा. हिंदुओं की हिमायत करना मुसलिम विरोध नहीं है. लोगों काे यह समझना चाहिए कि चुनावी राजनीति में दिये गये बयानों का सत्ता संचालन में कोई मतलब नहीं होता. सरकार बिना भेदभाव के सभी के लिए काम करेगी.
उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने जिस तरह से इतना बड़ा जनादेश दिया है, वह अपने आप में इस बात का जवाब है कि इस देश में जाति, धर्म और सेकुलरिज्म के नाम पर अब तक जो राजनीति चलती रही है, जनता अब उसे स्वीकार्य करने को तैयार नहीं है.
हिंदुत्व की राजनीति को धार देने की तैयारी
अरविंद मोहन
वरिष्ठ पत्रकार
नेपथ्य से देखने में ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की गद्दी काफी जोड़-तोड़ और गुणा-गणित करने के बाद दी गयी है, क्योंकि शुरू में मनोज सिन्हा समेत कई अन्य लोगों का नाम चला था. प्रचारित किया जा रहा है कि मनोज सिन्हा के नाम पर संघ राजी नहीं था, इसलिए योगी आदित्यनाथ को चुना गया. कायदे से योगी आदित्यनाथ कभी भी संघ के हिसाब से काम नहीं करते आये हैं. उनका अपना ब्रांड है, अपना एजेंडा है, अपनी कार्यशैली है. गोरखनाथ पीठ में पिछली तीन पीढ़ियों (दिग्विजय नाथ, महंथ अवैद्यनाथ और उसके बाद आदित्यनाथ) से यह चल रहा है. कायदे से ‘नाथ’ परंपरा काफी हद तक सेकुलर है और मुसलिमों समेत समाज की निम्न जातियों व विविध समुदायों के बीच ‘नाथ’ पंथ लोकप्रिय रहा है. इनका काम मूल रूप से तंत्र साधना और योग का था. ये लोग पारंपरिक पूजा-पद्धति और शैव को मानने वाले हैं.
एक लंबे अरसे से गोरखनाथ मंदिर में कोई मूर्ति नहीं थी. दिग्विजय नाथ ने वहां मूर्ति लगवायी, भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और उसके बाद से पूजा-पाठ की परंपरा शुरू हुई. दिग्विजय नाथ ठाकुर थे और उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बतौर ठाकुर अवैद्यनाथ को चुना. अवैद्यनाथ ने भी आदित्यनाथ के रूप में एक ठाकुर को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया. लिहाजा गोरखनाथ का न केवल हिंदूकरण हुआ, बल्कि ठाकुरकरण भी हुआ है. उनके ब्रांड हिंदुत्व में जो चीजें हैं, वह संघ से मेल नहीं खाते हैं. तब भी संघ, भाजपा और नरेंद्र मोदी ने अगर आदित्यनाथ को आगे किया, तो यह सब कोई अचानक नहीं हुआ. जिन-जिन नामों पर अटकलें लगायी जा रही थीं, उन सब पर चर्चा हुई होगी. यह पूरी योजना बड़ी सोची-समझी हुई लगती है. क्योंकि जिस तरह से उत्तर प्रदेश में एक बड़ा जनादेश भाजपा को मिला और वह भी बिना किसी नेता के नाम पर, यानी मोदी की छवि के अलावा अन्य किसी नाम पर चुनाव नहीं लड़ा गया, तो ऐसे में मोदी जो भी फैसला लेते, वह मान्य होता.
सरकार बनने के बाद ऐसा दिखाई देता है कि यह जोड़-तोड़ से बनायी गयी सरकार है. इसमें यह तय किया गया है कि एक उप-मुख्यमंत्री अगड़ी जाति का होगा और एक पिछड़ी जाति का भी होगा. इस तरह का हिसाब-किताब पहले ही दिन लगाना पडा, जो यह इंगित करता है कि सरकार या नरेंद्र मोदी और अमित शाह जो फैसला कर रहे थे, उन्हें अपने फैसले पर भी संशय था. इसीलिए फिलहाल वे ‘चेक एंड बैलेंस’ करके चल रहे हैं. क्योंकि उन्हें भी यह पता नहीं है कि योगी उनकी ‘लाइन’ को कितना मानेंगे, कितना नहीं मानेंगे. हालांकि, योगी और संघ की ‘लाइन’ कहीं-न-कहीं मिलती है, लेकिन दोनों का उद्देश्य नहीं मिल रहा है. क्योंकि संघ परिवार और नरेंद्र मोदी उत्तर भारत से शुरू करके समूचे देश का भगवाकरण करना चाहते हैं. देश में हिंदुत्ववादी राजनीति लाना चाहते हैं.
गुजरात में मोदी मुसलिम विरोध और कट्टर हिंदूवाद चलाते रहे, लेकिन उसका दायरा गुजरात से बाहर नहीं निकल पाया. हालांकि, कर्नाटक में बहुत कोशिश की गयी, पर कामयाबी नहीं मिली. इसीलिए अब हिंदी पट्टी के एक प्रदेश के तौर पर देश के सबसे बड़े सूबे को चुना गया है. उत्तर प्रदेश की राजनीति का यदि गुजरात की तरह हिंदुकरण करने में भाजपा को कामयाबी मिलती है, तो पूरी हिंदी पट्टी उस रंग में रंगेगी. यह सब सोच-समझ कर ही ऐसा किया गया है.
कहने को तो वे कह रहे हैं कि कानून-व्यवस्था बनाये रखने और विकास को प्राथमिकता दी जायेगी व सबको एक नजर से देखेंगे, लेकिन बतौर सांसद पिछले करीब 20 सालों से उन्होंने गोरखपुर या पूर्वांचल के विकास के लिए क्या किया है, यह भी रिकॉर्ड सबके सामने है. पूर्वांचल अब भी देश के बेहद पिछड़े इलाकों में शामिल है. जापानी इनसेफिलाइटिस जैसी भयावह बीमारियाें से प्रत्येक वर्ष व्यापक तादाद में बच्चों की मृत्यु होती है. हिंदू वाहिनी जैसे संगठन बनाने और दंगा कराने में इनका योगदान रहा है. ऐसे में लोग इस बात को समझते हैं कि योगी जी की प्राथमिकता क्या है. हालांकि, यह उम्मीद की जा सकती है कि वे अब उसमें बदलाव लायेंगे, लेकिन उम्मीद सिर्फ सपने जैसा मामला नहीं है. उम्मीद आगे-पीछे की चीजों को देख कर की जाती है. उस हिसाब से मुझे नहीं लगता कि आदित्यनाथ अपनी पुरानी राजनीति को भुला देंगे. वे अपने हिंदुत्व को लाना चाहेंगे और पूरे देश में लागू करना चाहेंगे व उनके माध्यम से संघ अपने हिंदुत्व को लाने की कोशिश करेगा. क्योंकि ठीक बगल के प्रदेश बिहार के लोगों ने हिंदुत्व को बेहद साफगोई से नकार दिया है.
इस प्रयोग के लिए उत्तर प्रदेश को चुनने का कारण है कि यहां मुसलिमों की आबादी करीब 20 फीसदी है. गुजरात से अगर हिंदूकरण बाहर नहीं जा सका, तो इसका कारण है कि मुसलिम वहां कम थे और बेहद हाशिये पर थे. वे चुनाव को प्रभावित करने की हालत में नहीं थे.
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व झारखंड के मुकाबले बिहार में मुसलिमों की संख्या ज्यादा है और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा है. जहां तक हिंदुओं को मुसलिमों का भय दिखाने की बात है, तो अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश में इसे ज्यादा प्रासंगिक बनाने के मौके हो सकते हैं. इसलिए योगी को लाने के पीछे यही योजना है कि मुल्क में भगवाराज कायम करने के लिए शुरुआत यूपी से ही करनी होगी. यह केवल 2019 के लिए नहीं, बल्कि बड़ी योजना है. सभी चीजों का भगवाकरण होने का अंदेशा है और लोगों की जरूरतों को अपने एजेंडे के अनुरूप बदले जाने की आशंका है. विकास का पैमाना बदला जा रहा है.
जिस तरीके से आज झूठ और भ्रम को फैलाया जा रहा है और उसे बेहद चतुराई से पेश किया जा रहा है और इससे भी अाश्चर्यजनक यह कि पढ़े-लिखे लोग भी इसे सच मानने लगे हैं, इसे अपनेआप में बड़ा चमत्कार कहा जा सकता है. एंटी रोमियो स्क्वाड की झलक उसी एजेंडा का हिस्सा है.
इनसान को प्रेम करने से रोकना क्या दर्शाता है? यह मानव स्वभाव के प्रतिकूल व्यवहार है. इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि हम सचेत रहें और इनकी कारगुजारियों पर नजर रखें व किसी भी तरह की गड़बड़ी दिखने पर शोर मचायें. हमारा लोकतंत्र अभी कमजोर नहीं हुआ है, लिहाजा हमें अपनी बात जोर-शोर से रखनी चाहिए.
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