भीषण गरमी से निजात दिलायेगी पतली फिल्म
भीषण गरमी से निजात दिलाने के लिए वैज्ञानिक लगातार जुटे हैं. हालांकि, अब तक इसके लिए अनेक उपाय विकसित किये गये हैं, लेकिन इनके अनेक साइड इफेक्ट होने के साथ ये खर्चीले भी हैं, लिहाजा कम लागत में इसका उपाय तलाशा जा रहा है. वैज्ञानिकों को इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी मिली है और […]
भीषण गरमी से निजात दिलाने के लिए वैज्ञानिक लगातार जुटे हैं. हालांकि, अब तक इसके लिए अनेक उपाय विकसित किये गये हैं, लेकिन इनके अनेक साइड इफेक्ट होने के साथ ये खर्चीले भी हैं, लिहाजा कम लागत में इसका उपाय तलाशा जा रहा है. वैज्ञानिकों को इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी मिली है और उन्होंने एक ऐसे फिल्म को विकसित किया है, जिसे छत पर ढकने से वह बहुत हद तक गरमी को सोख लेगा. दूसरी आेर, वायु प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए चीन के अनेक शहरों में ऊंचे भवनों पर वन विकसित किये जायेंगे. आज के साइंस टेक आलेख में जानते हैं भीषण गरमी से निपटने के लिए वैज्ञानिकों को किस प्रकार की मिली है कामयाबी और चीन में कैसे विकसित किये जा रहे हैं वर्टिकल फोरेस्ट …
तपती हुई गरमी न केवल आपका चैन छीन लेती है, बल्कि कई बार आपको जरूरी काम के लिए भी घर से बाहर नहीं निकलने के लिए मजबूर करती है. भीषण गरमी के दिनों में कई बार घरों में भी जीना मुहाल हो जाता है. सूर्य की तपन से मकान के गरम होने के कारण सूर्यास्त के बाद उसे सामान्य होने में कई घंटे लग जाते हैं. यहां तक कि ज्यादा गरमी सहन करनेवालों को भी सूरज की किरणों की घातकता से बेहाल होते देखा गया है.
इससे इनसान की कार्यक्षमता भी बहुत हद तक प्रभावित होती है. ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गयी एक नयी तकनीक इस समस्या से कुछ राहत दिला सकती है. वैज्ञानिकों ने एक पतले प्लास्टिक की शीट को विकसित किया है, जो सूर्य की किरणों की तीक्ष्णता से पैदा होनेवाली गरमी से निजात दिलाने में कामयाब हो सकती है. इस पतले फिल्म में छोटे-छोटे शीशे इस तरीके से सेट किये गये हैं, जो सूर्य की रोशनी को एब्जॉर्ब करते हैं. साथ ही यह सतह की गरमी को भी सोखने का काम करता है. ‘इंटेरेस्टिंग इंजीनियरिंग’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्लास्टिक फिल्म ज्यादातर चीजों को 10 डिग्री सेंटीग्रेड ठंडा बनाये रखने में कामयाब हो सकती है. दरअसल, कंक्रीट, अस्फाल्ट, मेटल्स और यहां तक कि इनसान भी दिन के समय सूर्य की किरणों से निकलने वाली विजिबल यानी दृश्यमान व इंफ्रारेड को सोखते हैं. इससे धीरे-धीरे ये चीजें तपती जाती हैं और गरमी बढ़ती है.
वैसे शोधकर्ताओं ने इससे पहले भी इस तरह की पैसिव कूलिंग को कारगर बनाने का प्रयास किया है और इसके लिए इंफ्रारेड सरीखी चीजों को सोखने के लिए मैटेरियल्स का निर्माण किया है. प्रसिद्ध पत्रिका ‘साइंस’ के मुताबिक, 2014 में कैलिफोर्निया में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर शानहुई फैन ने सैंडविच की तरह के सिलिकॉन डाइऑक्साइड और हैफनियम डाइऑक्साइड की फिल्म तैयार की थी, जिसे इंफ्रारेड को सोखने के लिए कारगर बनाने का प्रयास किया गया था. हालांकि, फैन द्वारा विकसित की गयी यह तकनीक महंगी थी, लिहाजा इसे व्यापक रूप से विस्तार नहीं दिया जा सका.
छोटे ग्लास स्फेयर्स पर फोकस
हाल में विकसित की गयी तकनीक के तहत पैसिव रेडिएटिव कूलिंग का इस्तेमाल किया गया है, यानी ठीक उसी तरीके से जैसे कोई वस्तु बिना ऊर्जा को एब्जॉर्ब किये हुए प्राकृतिक रूप से इंफ्रारेड रेडिएशन के बिना हीट को सोख लेता है. दरअसल, इस टीम को एक ऐसा मैटेरियल बनाना था, जो सोलर किरणों को रिफ्लेक्ट कर सके और इंफ्रारेड किरणों से एक नये तरीके का ‘बचाव का तरीका या साधन’ मुहैया करा सके. इसी खोज के दौरान ये छोटे ग्लास स्फेयर्स पर शोधकर्ताओं ने फोकस किया और पाया कि ये ऊर्जा को सोखने का काम कर सकते हैं. इस फिल्म के रिफ्लेक्टिव गुणों को समृद्ध करने के लिए शोधकर्ताओं ने बाद में इसमें रिफ्लेक्टिव सिल्वर कोटिंग का इस्तेमाल किया.
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलाेरेडो बॉल्डर के वैज्ञानिकों ने इस शोधकार्य को अंजाम दिया है. इस इलाके में भीषण गरमी पडती है. इसे विकसित करनेवाले इंजीनियर निश्चित रूप से एक यो दो तरह के हीट के बारे में जानते हैं. इस शोधकार्य के सह-निर्देशक की भूमिका निभा चुके मैकेनिकल इंजीनियरिंग और मैटेरियल साइंस इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर जियोबो यिन का कहना है, ‘हम यह महसूस करते हैं कि कम लागत में तैयार की जानेवाली यह रेडियेटिव कूलिंग टेक्नोलॉजी वास्तविक दुनिया में इस्तेमाल में लाये जानेवाले साधनों के लिए परिवर्तनकारी साबित होगी.’
यिन ने उम्मीद जतायी है कि महज 0.25 से 0.50 प्रति वर्ग मीटर की दर से इसे बनाया जा सकता है. पॉलिमर फिल्म की इस खासियत से बडे भवनों को ठंडा रखने में मदद मिल सकती है और साथ ही सोलर पैनल को ज्यादा दिनों तक टिकाऊ बनाये रखा जा सकता है.
यिन का कहना है कि इस मैटेरियल के जरिये सोलर पैनल की सतह को ठंडा बनाये रखा जा सकता है, जिससे सोलर क्षमता में कुछ फीसदी तक बढोतरी हो सकती है. यानी यह सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में भी बदलाव लाने में सक्षम होगा. इसकी एक बड़ी खासियत यह होगी कि इनसान के लिए यह बिजली आधारित पंखों, एयर कूलर या एसी के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित होगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ योमिंग्स के सिविल एंड आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोधपत्र के सह-लेखक गैंग टेन का कहना है, करीब 10 से 20 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाले एक सामान्य मकान को इस मैटेरियल से ढकते हुए उसे ठंडा किया जा सकता है.
वायु प्रदूषण कम करने में सक्षम होंगे
चीन में बन रहे वर्टिकल वन
वा यु प्रदूषण पूरी दुनिया में एक भयावह समस्या बन चुकी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2011 केबाद से वायु प्रदूषण की समस्या वैश्विक स्तर पर आठ फीसदी की दर से बढ़ रही है. दुनियाभर के अनेक देश इस समस्या का समाधान तलाशने में जुटे हैं.
हालांकि, कृत्रिम रूप से इससे निबटने के लिए अनेक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन चीन में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके जरिये प्राकृतिक रूप से इसका समाधान किया जा सकेगा. ‘इंटेरेस्टिंग इंजीनियरिंग’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के दक्षिणी प्रांत जिआंग्सू में ‘नानजिंग वर्टिकल फोरेस्ट’ का निर्माण किया जा रहा है, जो रोजाना 60 किलो तक ऑक्सीजन पैदा करेगा. रिपोर्ट के मुताबिक, इसे अपने तरह का खास किस्म का जंगल बताया गया है, जो बडे-बडे भवनों पर वर्टिकल यानी लंबवत रूप में होगा. इस इलाके में मौजूद ऊंचे भवनों पर पेड-पौधे लगाये जायेंगे, जो देखने में अनूठे किस्म के हो सकते हैं.
चीन के न्यू नानजिंग टावर्स पर बनाये जा रहे इस वन से रोजाना 132 पाउंड ऑक्सीजन पैदा होगी, जिससेे वहां के लोगों को पहले के मुकाबले 3,000 गुना ज्यादा स्वच्छ वायु मिलेगी. ‘कलेक्टिव इवोलुशन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक हजार पेड़ों समेत 23 स्थानीय किस्मों की करीब 2,500 झाड़ियां इस वर्टिकल फोरेस्ट में लगायी जायेंगी, जो 25 टन तक कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में सक्षम होंगे. इटली के आर्किटेक्ट स्टीफेनो बोएरी इस कॉन्सेप्ट को नानजिंग लेकर आये हैं, जिन्होंने इस तकनीक को मिलान में काफी लोकप्रियता दिलायी.
एशिया का पहला अनूठा वन
रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीन टॉवर्स के तौर पर बनाया जा रहा यह अनूठे किस्म का वन न
केवल चीन, बल्कि समूचे एशिया में अपने किस्म का पहला वन होगा. इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही आर्किटेक्चर संगठन नानजिंग के अलावा शंघाई, गिझोउ, शिजियाझुंग, लिझोऊ और चोंगकिंग जैसे चीन के अन्य शहरों में भी इसका विस्तार करेगी. उम्मीद की जा रही है कि नानजिंग में बनायी जा रही ग्रीन टॉवर्स अगले वर्ष तक बन कर तैयार हो जायेगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के इंटरवेंशन फॉर हेल्दी एनवायरमेंट प्रोग्राम के कॉआर्डिनेटर डॉक्टर कार्लोस डोरा का कहना है, ‘शहरों में वायु गुणवत्ता को सेहत व विकास की प्राथमिकता में रखना स्थानीय और राष्ट्रीय सरकारों के लिए एक जटिल मसला है.’ डाॅक्टर कार्लोस कहते हैं, ‘वायु गुणवत्ता में सुधार होने पर वायु प्रदूषण से होनेवाली चुनौतियां कम होती हैं, नतीजन न केवल लोगों की उत्पादकता बढ जाती है, बल्कि जीवन प्रत्याशा में भी वृद्धि होती है.’ वायु प्रदूषण को कम करते हुए मौसम परिवर्तन के खतरों से भी निपटने में आसानी होगी, जो दुनिया के विविध देशों के बीच क्लाइटमेट संधि के तहत जतायी गयी प्रतिबद्धता के दायरे में आती है.
नानजिंग पोकुआ डिस्ट्रिक्ट में 656 फीट और 354 फीट की ऊंचाई वाले दो बिल्डिंगनुमा टॉवर्स पर यह जंगल बनाया जायेगा. इस बेहद लंबे टॉवर्स में से एक टॉवर में अनेक कार्यालय समेत एक म्यूजियम, एक ग्रीन आर्किटेक्चर स्कूल, एक रूफटॉप क्लब और दूसरे टॉवर में करीब ढाई सौ कमरों का होटल होगा, जिसमें छत पर स्विमिंग पूल भी होगा. इसके इलावा इस बिल्डिंग में शॉपिंग कॉप्लेक्स, रेस्टोरेंट और कॉन्फ्रेंस हॉल व बालकनी आदि भी होंगे. इसे विकसित करनेवाले आर्किटेक्ट स्टीफेनो बोएरी का कहना है कि पेडों और कास्केडिंग यानी प्रपात की तरह गिरते हुए पौधे निश्चित रूप से इस इलाके में बायोडायवर्सिटी को नये सिरे गढने में मददगार साबित होंगे.