वासंतिक नवरात्र पहला दिन व दूसरा दिन

शैलपुत्री दुर्गा का ध्यान : वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।। मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाली, वृष पर आरूढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं. नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना-1 इस जगत संसार में जितने भी प्रकार के व्रत एवं दान हैं, वे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 29, 2017 6:05 AM
शैलपुत्री दुर्गा का ध्यान : वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाली, वृष पर आरूढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं.
नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना-1
इस जगत संसार में जितने भी प्रकार के व्रत एवं दान हैं, वे नवरात्र के तुल्य नहीं हैं, क्योंकि यह व्रत सदा धन-धान्य प्रदान करने वाला, सुख और संतान की वृद्धि करनेवाला, आयु और आरोग्यता प्रदान करनेवाला तथा स्वर्ग और मोक्षदेनेवाला है.
इस व्रत का अनुष्ठान करने से विद्या चाहनेवाले मनुष्य को समस्त प्रकार की विद्याएं प्राप्त होती हैं और उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पूर्वजन्म में जिन लोगों ने यह उत्तम व्रत नहीं किया, वे इस जन्म में रोगग्रस्त, दरिद्र और संतानरहित होते हैं. जो स्त्री वन्ध्या, विधवा या धनहीन है, उसके विषय में यह अनुमान कर लेना चाहिए कि उसने अपने पूर्वजन्म में नवरात्र व्रत नहीं किया होगा.
एक बार गुरूदेव बृहस्पतिजी ने ब्रह्माजी से पूछा- हे भगवन्, नवरात्र व्रत करने की विधि एवं उसके फल को मैं आपके मुख से सुनना चाहता हूं. बृहस्पतिजी का प्रश्न सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते, पूर्वकाल में जिसने इस व्रत को किया था, उसका पूर्ण वृतांत मैं तुम्हें सुनाता हूं. उन्होंने कहा, मनोहर नामक नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था. वह भगवती दुर्गा का परम भक्त था. उसके सुमति नाम की एक रूपवती कन्या हुई.
वह पिता के घर में दिनों दिन बढ़ने लगी. जब वह कुछ समझदार हो गयी, तो वह भी अपने पिता के साथ मां दुर्गा की पूजा में प्रतिदिन भाग लेने लगी.
एक दिन वह अपनी सहेलियों के साथ खेल में लगी रहने कारण पूजा में सम्मिलित नहीं हुई, जिससे उसके पिता ने क्षुब्ध होकर बहुत डांटा फटकारा और कहा कि मैं तेरा विवाह किसी कुष्ठी और निर्धन व्यक्ति के साथ कर दूंगा. पिता की बात से विचलित न होकर उस कन्या ने निर्भयता पूर्वक उत्तर दिया, पिताजी, जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उसे फल भी वैसा ही मिलता है. अतः अपने भाग्य और कर्म में मेरा दृढ़ विश्वास है.
दूसरा दिन
ब्रह्मचारिणी दुर्गा का ध्यान
दधाना करपद्माभ्याम् अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतुमयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।
जो दोनों कर कमलों में अक्षमाला और कमण्डल धारण करती हैं, वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी मुझ पर प्रसन्न हों.
नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना-2
पुत्री का प्रत्युत्तर सुन कर उसका पिता अत्यन्त कुपित हुआ और उसने अपने निश्चय के अनुसार पुत्री का विवाह कुष्ठी और निर्धन मनुष्य के साथ कर दिया. उसकी कन्या ने कोई प्रतिवाद न किया और प्रसन्नतापूर्वक अपने पति के साथ वन में चली गयी और वन में जाकर बहुत कष्ट के साथ जीवन यापन प्रारंभ किया.
उसके पूर्व जन्म के संचित पुण्य के प्रभाव से उस पर देवी दुर्गा प्रसन्न होकर उस वन में प्रकट हो गयी और उससे बोलीं-हे ब्राह्मणी, मैं तेरे ऊपर प्रसन्न हूं, तू मुझसे इच्छित वरदान मांग ले.
देवी की बात सुन कर उस ब्राह्मणी ने कहा- यदि आप मुझ असहाय पर प्रसन्न हैं, तो मुझे अपना परिचय देने की कृपा करें. देवी ने कहा-मैं ही आदिशक्ति ब्रह्माणी, सरस्वती और दुर्गा नाम से संसार में विख्यात हूं. मैं अपने भक्तों पर सदैव कृपा दृष्टि रखती हूं. देवी ने कहा- तू पूर्वजन्म में निषाद की पत्नी थी और अत्यंत पतिव्रता थी. एक दिन तेरे निषाद पति ने चोरी की.
फलस्वरूप तुम दोनों दंपतियों को कैद कर कारागार में डाल दिया गया. वहां पर तुम दोनों को भोजन भी नहीं दिया जाता था. उस समय मेरे व्रत का नवरात्र काल चल रहा था. इस प्रकार अनजाने में ही तुम्हारा नवरात्र व्रत पूर्ण हो गया. उसी व्रत के प्रभाव से मैं तुम पर अत्यधिक प्रसन्न हूं. देवी की बात सुन कर ब्राह्मणी बोली-हे भगवती दुर्गे. मैं आपको बारम्बार प्रणाम करती हूं. आप मेरे पति को कुष्ठ रोग से मुक्त कर दें.
(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा

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