Loading election data...

खुद पहचान पायेंगे स्किन कैंसर!

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी इनोवेशन के जरिये दुनियाभर में हेल्थ और फिटनेस से जुडे समाधानों में तेजी आ रही है. नयी तकनीकों के जरिये बीमारियों के जोखिम को उसके आरंभिक उभार के दौरान जानने में कामयाबी मिल रही है. खासकर त्वचा कैंसर के उभरते जोखिम को समय रहते जानने में शोधकर्ताओं को सफलता मिली है. साथ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 29, 2017 7:30 AM
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
तकनीकी इनोवेशन के जरिये दुनियाभर में हेल्थ और फिटनेस से जुडे समाधानों में तेजी आ रही है. नयी तकनीकों के जरिये बीमारियों के जोखिम को उसके आरंभिक उभार के दौरान जानने में कामयाबी मिल रही है. खासकर त्वचा कैंसर के उभरते जोखिम को समय रहते जानने में शोधकर्ताओं को सफलता मिली है. साथ ही ऐसी तकनीकें आ रही हैं, जिनके जरिये एक आम आदमी स्वयं भी भविष्य में उसे होनेवाली गंभीर बीमारियों के संकेतों को समझ सकता है.
हालांकि, शोधकर्ताओं का प्रयास है कि वे इस प्रक्रिया को इतना आसान बना दें, ताकि प्रत्येक व्यक्ति खुद इन संकेतों को आसानी से समझ में आ जाये. इसके लिए वे इस तकनीक को स्मार्टफोन से जोड़ने में जुटे हुए हैं. दूसरी ओर, जीवित शरीर से बाहर निलकने के बाद इनसान के अंगों को सही-सलामत रख पाने की बड़ी तकनीकी चुनौती से निबटने में वैज्ञानिकों को कुछ हद तक सफलता हाथ लगी है. आज के मेडिकल हेल्थ में जानते हैं आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से कैसे इस सेक्टर का बदल रहा है स्वरूप और इनसान के शरीर के अंगों में चिप के जरिये किस तरह की हासिल हो रही है नयी समझ, जो इलाज के तरीकों को बना सकती है आसान ….
आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के जरिये उद्योग-धंधों और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर समेत अन्य कार्यों की दक्षता बढायी जा रही है. ऐसे में वैज्ञानिकों ने मेडिकल साइंस के क्षेत्र में भी इसका प्रयोग किया और आरंभिक तौर पर कामयाबी भी पायी है. दरअसल, एक नये आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस सिस्टम के जरिये स्किन कैंसर के लक्षणों को समझा गया है. ‘साइंस एलर्ट’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं का कहना है कि तलाशी गयी आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के जरिये डॉक्टर आसानी से मरीजों में स्किन कैंसर का पता लगा सकते हैं. हालांकि, अब वे इससे एक कदम और आगे बढते हुए इसे इतना आसान बनाना चाहते हैं, ताकि स्मार्टफोन के जरिये कोई भी इनसान स्वयं इसकी जांच कर सके.
मालूम हो कि दुनियाभर के कैंसर विशेषज्ञ इस तथ्य से सहमत हैं कि आरंभिक अवस्स्था में इस बीमारी की जानकारी मिलने की दशा में इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
कम खर्च में खुद जान सकेंगे गंभीर बीमारियों के बारे में
शोधकर्ताओं ने उम्मीद जतायी है कि एक बार कुछ हद तक रिफाइंड होने के बाद यह सिस्टम आसान हो जायेगा, जिससे ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को कम-से-कम खर्च में स्वयं अपनी गंभीर बीमारियों का पता लगाने का मौका मिल सकता है. इसकी एक बडी खासियत यह भी होगी कि उभर रहे संकेतों या लक्षणों के निहितार्थों को समझने के लिए लोगों को डॉक्टर से मिलने की अनिवार्यता भी खत्म हो जायेगी.
अलगोरिदम की होगी अहम भूमिका
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने डीप लर्निंग सिस्टम के जरिये इसे समझा है. उनकी इस कामयाबी में अलगोरिदम ने अहम भूमिका निभायी है, जिसे उभरते हुए संकेतों पर अप्लाइ करते हुए स्किन कैंसर सैंपल्स का मौजूदा डाटाबेस हासिल किया गया है. इस शोध टीम के एक सदस्य आंद्रे एस्टीवा का कहना है, ‘हमने एक बेहद ताकतवर मशीन बनायी है, जो अलगोरिदम की मदद से डाटा को समझता है.’ एस्टीवा कहते हैं कि यह तकनीक अपनेआप में इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्याेंकि यह कंप्यूटर कोड में कुछ लिखने के बजाय हमें स्पष्ट रूप से नतीजों के बारे में बताने में सक्षम होगा.
दो हजार से ज्यादा बीमारियों को शामिल किया गया प्रयोग के लिए
इस सिस्टम को ज्यादा स्मार्ट बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने त्वचा के विभिन्न नुकसानों को कवर करते हुए 1,29,450 क्लोज-अप इमेज का इस्तेमाल किया और इस प्रयोग के दौरान 2,000 से ज्यादा विभिन्न बीमारियों को शामिल किया गया. इससे व्यापक पैमाने पर डाटाबेस हासिल हो पाया, जिससे बहुत-सी चीजें समझने को मिली. शोधकर्ताओं ने इसे समझने के लिए गूगल द्वारा विकसित किये गये अलगोरिदम का इस्तेमाल किया. इससे त्वचा के विविध धब्बों के बीच के फर्क और उनके संभावित नुकसानों को समझा जा सकेगा.
बरकरार रहेगी डॉक्टरों की भूमिका
शोधकर्ताओं ने इस नये डिवाइस को 21 क्वालिफाइड डर्माटोलॉजिस्ट्स यानी त्वचा रोग विशेषज्ञों को इस प्रयोग करने के लिए दिया था. इन डर्माटोलाॅजिस्ट्स ने त्वचा के नुकसान के 376 इमेज दर्शाये थे और उन्हें इसका विश्लेषण करने के लिए कहा. हालांकि, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये यह समझ भले ही आसान हो जायेगी, लेकिन इस तकनीक को इस तरह से नहीं डिजाइन किया गया है, ताकि यह डॉक्टर की जगह ले सके. इसे केवल इस तरीके से डिजाइन किया गया है, ताकि बिना किसी विशेषज्ञ की मदद के कोई इनसान आसानी से पहले दो चरण के स्क्रीनिंग स्टेज को खुुद अपना सकेगा.
ह्यूमैन बायोलॉजी की नयी समझ होगी ऑर्गन-ऑन-चिप से
हॉ लीवुड की स्पेशल इफेक्ट फिल्मों के इतर आपको बायोलॉजी लैब में इनसान के तैरते हुए अंग नहीं दिख सकते हैं. जीवित शरीर से बाहर निलकने के बाद इनसान के अंगों को सही-सलामत रख पाना बड़ी तकनीकी चुनौती होती है और विकसित किये गये अंग इतने कीमती होते हैं कि परीक्षणों के दौरान उन्हें ट्रांसप्लांट के लिए इस्तेमाल में लाना बेहद मुश्किल होता है.
लेकिन, अनेक महत्वपूर्ण बायोलॉजिकल अध्ययनों और दवाओं के व्यावहारिक परीक्षण के लिए इनका इस्तेमाल उपयोगी साबित हो सकता है.
माइक्रोचिप के जरिये समझा जायेगा इनसान के अंगों के कार्यकलापों के बारे में‘अमेरिकन साइंटिफिक’ के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने एक नयी तकनीक विकसित की है, जिसके जरिये माइक्रोचिप में इनसान के अंगों के कार्यकलापों के बारे में समझा जा सकता है.
विस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डोनाल्ड इंगबर ने पिछले दिनों अपनी तरह के अनूठे और पहले ऑर्गन-ऑन-ए-चिप को विकसित किया है. इसे व्यावहारिक रूप से काम में लाने योग्य बनाने के लिए इस संस्थान ने अनेक शोधकर्ताओं और उद्योगों, यहां तक कि अमेरिकी डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी डीएआरपीए से भी सहयोग के लिए साझेदारी की है. अब तक अनेक समूहों ने लंग, लिवर, किडनी, हार्ट, बोन मैरो और कॉर्निया जैसे अंगों के बेहद छोटे प्रारूप में मॉडल दर्शाने में कामयाबी हासिल की है, जिसे अन्य समूह भी अपनायेंगे.
दवाओं के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभायेंगे ऑर्गन माइक्रोचिप्स
प्रत्येक ऑर्गन-ऑन-ए-चिप तकरीबन यूएसबी मेमोरी स्टिक के आकार का है. इसे फ्लेक्सिबल और ट्रांसल्यूसेंट पॉलिमर से बनाया गया है. एक मिलीमीटर से भी कम व्यास का प्रत्येक माइक्रोफ्लूडिक ट्यूब्स और संबंधित अंग से हासिल किये गये इनसानी कोशिकाओं के जरिये इस चिप को संचालित किया जाता है.
परीक्षण की जा रही दवाओं का नतीजा जानने के लिए जब न्यूट्रिएंट्स, ब्लड और टेस्ट-कंपाउंड को ट्यूब के जरिये पंप किया जाता है, तो लिविंग ऑर्गन की कोशिकाओं में कुछ हद तक सक्रियता देखी गयी. शोधकर्ताओं ने उम्मीद जतायी है कि ऑर्गन माइक्रोचिप्स भविष्य में नयी दवाओं के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभायेंगे. मिलिट्री और बायोडिफेंस शोधकर्ताओं ने भी इसकी क्षमता को कारगर बताया है और भरोसा जताया है कि विविध तरीकों से यह लोगों की जिंदगी बचाने में योगदान दे सकता है.

Next Article

Exit mobile version