वासंतिक नवरात्र तीसरा दिन : चन्द्रघंटा दुर्गा का ध्यान
अण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपार्भटीयुता । प्रसादं तनुतां महां चण्डखण्डेति विश्रुता ।। जो पक्षिप्रवर गरूड़ पर आरूढ़ होती हैं, उग्र कोप और रौद्रता से युक्त रहती हैं तथा चंद्रघण्टा नाम से विख्यात हैं , वे दुर्गा देवी मेरे लिए कृपा का विस्तार करें. नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना-3 देवी दुर्गा ने कहा- तुम अपने नवरात्र व्रत […]
अण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपार्भटीयुता ।
प्रसादं तनुतां महां चण्डखण्डेति विश्रुता ।।
जो पक्षिप्रवर गरूड़ पर आरूढ़ होती हैं, उग्र कोप और रौद्रता से युक्त रहती हैं तथा चंद्रघण्टा नाम से विख्यात हैं , वे दुर्गा देवी मेरे लिए कृपा का विस्तार करें.
नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना-3
देवी दुर्गा ने कहा- तुम अपने नवरात्र व्रत के एक दिन के फल को अर्फण कर दो, तो तेरा पति निरोग हो जायेगा. ब्राह्मणी द्वारा व्रत-फल संकल्प करते ही उसका पति सुंदर शरीर वाला हो गया. तदनन्तर उस ब्राह्मणी ने अपने वृद्ध पिता का पूर्व वृतांत सुना कर बार-बार स्तुति करने लगी.
देवी ने कहा-तुझे उद्दालक नाम के एक अत्यंत तेजस्वी, जितेन्द्रिय तथा धनवान पुत्र की प्राप्ति होगी, जिससे तुम्हारे सभी कष्टों का निवारण होगा. देवी ने उस ब्राह्मणी से कहा कि नवरात्र में व्रत रख कर मेरी पूजा करने के पश्चात अर्घ्यदान अवश्य करना चाहिए.
बिजौरे के पुष्प से रूप की प्राप्ति, दाख से कार्य की सिद्धि, केले से आभूषण की प्राप्ति, जायफल से कीर्ति एवं आंवले से सुख-समृद्धि की उपलब्धि होती है. अर्घ्यदान के उपरांत हवन करना चाहिए. हवन की सामग्री में घी, शक्कर, शहद, गेहूं, बिल्व, नारियल, तिल, यव, अंगुर और कदम्ब लेना चाहिए. गेहूं के साथ हवन करने से धन और पत्तों से तेज की प्राप्ति होती है. आंवले द्वारा हवन करने से कीर्ति की वृद्धि एवं केले द्वारा हवन करने से पुत्र संतान की प्राप्ति होती है.
कमल के पुष्प से राजकीय सम्मान तथा घी, शक्कर, शहद, नारियल, यव और तिल की समिधा से हवन करने पर अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है. हवन के पश्चात ब्राह्मण को प्रणाम कर दक्षिणा प्रदान करना चाहिए. ब्राप्मणी को इस प्रकार नवरात्र व्रत की कथा और उसका विधान सुना कर देवी अंत्यर्धान हो गयी.
(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा