वासंतिक नवरात्र चौथा दिन : कूष्माण्डा दुर्गा का ध्यान

सुरा सम्पूर्ण कलशं राप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु में।। रूधिर से परिप्लुत एवं सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों करकमलों में धारण करनेवाली कूष्माण्डा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों. नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना-4 श्रीमद्देवीभागवत के तृतीय स्कन्ध के सत्ताइसवें अध्याय में यह कथा इस प्रकार से है—पूर्वकाल में कौशल नामक देश में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 31, 2017 5:41 AM
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सुरा सम्पूर्ण कलशं राप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा
शुभदास्तु में।।
रूधिर से परिप्लुत एवं सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों करकमलों में धारण करनेवाली कूष्माण्डा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों.
नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना-4
श्रीमद्देवीभागवत के तृतीय स्कन्ध के सत्ताइसवें अध्याय में यह कथा इस प्रकार से है—पूर्वकाल में कौशल नामक देश में दीन, धनहीन, दुःखी व विशाल कुटुम्बवाला एक वैश्व रहता था.उसकी बहुत सी संतानें थीं, जो धनाभाव के कारण भूख से पीड़ित रहा करती थी.सायंकाल में उसके लड़कों को खाने के लिए कुछ मिल जाता था और वह भी कुछ खा लेता था.
इस प्रकार वह वैश्य भूखा रहते हुए सदैव दूसरों का काम करके परिवार का पालन-पोषण कर रहा था. वह सर्वदा धर्मपरायण, शांत, सदाचारी, क्रोध न करनेवाला, धैर्यवान, अभिमानरहित और इर्ष्याहीन था. प्रतिदिन देवताओं, पितरों और अतिथियों की पूजा करके वह अपने परिवारजनों के भोजन कर लेने के के उपरांत ही स्वयं भोजन करता था.
इस प्रकार कुछ समय बीतने पर उपरोक्त गुणों से युक्त सुशील नाम से ख्यातिप्राप्त उस वैश्व ने दरिद्रता और भूख की पीड़ा से अत्यंत व्याकुल होकर एक शांत स्वभाव वाले ब्राह्मण से पूछा—हे ब्राह्मण देवता, आप मुझ पर कृपा करके बताइए कि मेरी दरिद्रता का नाश पूर्ण रूप से कैसे हो सकती है?
मुझे धन की अभिलाषा तो नहीं है, किंतु मैं आपसे कोई ऐसा उपाय पूछ रहा हूं, जिससे कि मैं अपने कुटुंब का भरण-पोषण पूर्ण रूप से कर सकूं. मैंने अपने रोते हुए बालक को घर से निकाल दिया और वह चला गया. इस कारणवश मेरा हृदय शोकाग्नि में जल रहा है. धन के अभाव में मैं क्या करूं? मेरी पुत्री विवाह के योग्य हो चुकी है, किंतु मेरे पास उसका विवाह करने योग्य धन नहीं है, अब मैं क्या करूं? मेरी पुत्री का कन्यादान के समय भी बीता जा रहा है.
(क्रमशः) प्रस्तुतिः-डॉ एन के बेरा
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