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वासंतिक नवरात्र पांचवां दिन: स्कन्दमाता दुर्गा का ध्यान
सिंहासनगता नित्यं पद्मांचितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।। जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वे यशस्विनी दुर्गादेवी स्कन्दमाता सदा कल्याणदायिनी हों सुशील नामक वैश्व ने कहा, हे ब्राह्मण, धन के अभाव से मेरी पुत्री का विवाह का समय बीता जा रहा है. इसलिए मैं और […]
सिंहासनगता नित्यं पद्मांचितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वे यशस्विनी दुर्गादेवी स्कन्दमाता सदा कल्याणदायिनी हों सुशील नामक वैश्व ने कहा, हे ब्राह्मण, धन के अभाव से मेरी पुत्री का विवाह का समय बीता जा रहा है. इसलिए मैं और भी चिंताग्रस्त हूं.
आप तो सर्वज्ञ हैं, इसलिए मुझे कोई ऐसा तप, दान, व्रत, मंत्र और जप बतावें, जिससे मैं अपने आश्रितजनों का भरण-पोषण करने में समर्थ हो जाऊं.
बस मुझे उतना ही धन मिल जाये, जिससे मैं अपने परिवार का भरण-पोषण करने में समर्थ हो जाऊं. ।बस मुझे उतना ही धन मिल जाये, जिससे मैं अपने परिवार का भरण-पोषण और अपनी कन्या का विवाह कर सकूं. इससे अधिक धन की मैं कामना नहीं करता. हे ब्राह्मण देवता, आपकी कृपा से मेरा परिवार निःसंदेह सुखी हो सकता है, इसलिए आप अपने ज्ञानबल से भलीभांति विचार करके वह उपाय बताइए.
इस प्रकार उसके द्वारा पूछे जाने पर उस ब्राह्मण ने प्रसन्नतापूर्वक उससे कहा- हे वैश्यवर्य, अब तुम पवित्र नवरात्र व्रत का अनुष्ठान करो. इसमें तुम भगवती की पूजा, हवन, ब्राह्मण भोजन, श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ, उनके बीज मंत्र का जप, होम आदि यथाशक्ति संपन्न करो.
इससे तुम्हारा मनोरथ अवश्य सिद्ध होगा. नवरात्र नामक इस पवित्र व्रत और सुखदायक व्रत से बढ़ कर इस पृथ्वीतल पर अन्य कोई भी व्रत नहीं है. यह नवरात्र व्रत सर्वदा ज्ञान और मोक्ष देनेवाला, सुख और संतान की वृद्धि करनेवाला और शत्रुओं का पूर्ण रूप से नाश करनेवाला है.
क्योंकि राज्य से च्युत तथा सीता के वियोग से अत्यंत दुःखित श्रीराम ने किष्किन्धा पर्वत पर इस नवरात्र व्रत को किया था. सीता की विरहाग्नि से अत्यधिक सन्तप्त होकर श्रीराम ने उस समय नवरात्र के विधान से भगवती जगदंबा की विधिपूर्वक भक्ति श्रद्धा से पूजा की थी.
(क्रमशः) प्रस्तुतिः डॉ एन के बेरा
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