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वासंतिक नवरात्र आठवां दिन : महागौरी दुर्गा का ध्यान

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शूचिः । महागौरी शुभं दद्दान्महादेव प्रमोददा ।। जो श्वेत वृषभ पर आरुढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें. नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना-8 नवरात्र के व्रत एवं मां दुर्गा की उपासना में […]

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शूचिः ।

महागौरी शुभं दद्दान्महादेव प्रमोददा ।।

जो श्वेत वृषभ पर आरुढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें.

नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना-8

नवरात्र के व्रत एवं मां दुर्गा की उपासना में देवी माहात्म्य, श्रीश्रीचंडी (बांग्ला में) अर्थात श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष महत्व है. श्रीदुर्गा सप्तशती के बारहवें अध्याय में देवी ने स्वयं कहा, मेरे माहात्म्य को पाठ करनेवाले या सुननेवाले मनुष्यों के शत्रु स्वयं नष्ट हो जाते हैं, उन्हें कल्याण की प्राप्ति होती है तथा उनका कुल आनंदित रहता है.

इससे सब विघ्न व भयंकर ग्रह-पीड़ाएं समाप्त हो जाती है. श्रीदुर्गासप्तशती मार्कण्डेयपुराण का एक अंश है. इसमें सात सौ मंत्र हैं, जो तेरह अध्यायों में विभक्त हैं, जिनकी श्लोक संख्या 535 है. 57 उवाच, 42 अर्धश्लोक और पांचवें अध्याय के 66 अवदानों को एक-एक मंत्र मान कर मंत्र संख्या 700 मानी गयी है. प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक में इसकी अक्षर संख्या 9531 दी गयी है. श्रीअविनाश चन्द्र मुखोपाध्याय ने इसमें पाठभेद और मंत्रभेद का बांग्ला लिपि में जो संस्करण प्रकाशित किया है, उसमें 313 पाठभेदों का उल्लेख है. साथ ही 33 श्लोक का भी पाठ टिप्पणी के रूप में जगह-जगह पर उदृत किया है, जो अब सप्तशती से निकाल दिया गया है. इसी प्रकार दुर्गाभक्तितरंगिणी में सप्तशती की मंत्रगणना चार प्रणालियों में उल्लेखनीय है. 1. कात्यायनीतंत्र, 2. गौड़पादीयभाष्य , 3. नागोजीभट्ट, 4. गोविन्द. तरंगिनीं में मंत्रगणना की जो सूची दी गयी है, उससे मालूम होता है कि 108 मंत्रों में भेद है. एक सूची में यदि एक श्लोक मंत्र माना गया है तो दूसरी में यह श्लोक मंत्र नहीं माना गया है. इन पाठभेदों और मंत्रभेदों के रहते हुए भी आज सप्तशती से मां दुर्गा का जो वर्णन मिलता है, वह इस प्रकार है- सृष्टि की आदि में देवी ही थीं- सैकेषा परा शक्तिः. इसी पराशक्ति भगवती से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा संपूर्ण स्थावर-जंगमात्मक सृष्टि उत्पन्न हुई. संसार में जो कुछ है, इसी में संनिविष्ट है. भुवनेश्वरी, प्रत्यंगिरा, सीता, सावित्री, सरस्वती, ब्रह्मानंदकला आदि अनेक नाम इसी पराशक्ति के हैं. देवी ने स्वयं कहा है- सर्व खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्। अर्थात यह समस्त जगत मैं ही हूं, मेरे सिवा अन्य कोई अविनाशी वस्तु नहीं है.

ये महाशक्ति दुर्गा ही सर्वकारणरूप प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सृजन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तारके समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती हैं. ये ही आदि के तीन जोड़े उत्पन्न करनेवाली महालक्ष्मी हैं. इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं.

(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा

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