पता नहीं बिहार में कांग्रेस का क्या हाल है

चंपारण डायरी-2 अरविंद मोहन कलकत्ता जानेवाली रेलगाड़ी में हूं. राजकुमार शुक्ल का पत्र आया था कि उसे मेरे पहले कार्यक्रम की सूचना समय से नहीं मिली थी. देहात होने से पत्र देर से मिला था, सो इस बार उसने बेतिया शहर के किसी परिचित का पता दिया था. देखें वहां आता है या नहीं. उसकी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 6, 2017 6:07 AM
चंपारण डायरी-2
अरविंद मोहन
कलकत्ता जानेवाली रेलगाड़ी में हूं. राजकुमार शुक्ल का पत्र आया था कि उसे मेरे पहले कार्यक्रम की सूचना समय से नहीं मिली थी. देहात होने से पत्र देर से मिला था, सो इस बार उसने बेतिया शहर के किसी परिचित का पता दिया था. देखें वहां आता है या नहीं.
उसकी बेचैनी और लगन देख कर ही मैं चंपारण जाना चाहता हूं. वैसे उसकी बेचैनी के साथ ही किसी जमनानंद नामक व्यक्ति समेत कई लोगों का आग्रह भरे पत्र मेरे पास ही आ चुके हैं और इनसे साफ लगता है कि वहां बहुत मुश्किल है और किसानों के लिए कुछ करने की जरूरत है. चंपारण उसी तिरहुत और मिथिला का हिस्सा है, जहां राजा जनक और सीता माता हुई थीं. नील की खेती और व्यापार करनेवालों ने इस पवित्र भूमि का क्या हाल बना रखा है.
और कांग्रेस भी सिर्फ प्रस्ताव पास करने तथा जलसे करने वाली संस्था बन गयी है. उसने चार महीने पहले चंपारण पर प्रस्ताव पास करके अपनी जबाबदेही से हाथ झाड़ ही लिया है. इस कार्यकारिणी की कार्यसूची में यह मसला नहीं है. ऐसा कैसे चलेगा. और मैंने अगर वहां जाना स्वीकार भी किया है तो मैं कितना कुछ कर पाऊंगा, ईश्वर ही जानता है.
मुझे न स्थानीय बोली आती है, न इलाके का ज्ञान है. पता नहीं वहां और बिहार में कांग्रेस का क्या हाल है. मुझे स्थानीय कार्यकर्त्ता मिलेंगे भी या नहीं. पर मेरा मानना है कि स्थानीय लोगों के सहयोग से ही काम होना चाहिए. शायद शुक्ल जी के परिचय का दायरा ठीक-ठाक हो.
(जारी)

Next Article

Exit mobile version