भारत में टर्नबुल : एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के बढ़ते आयाम

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों की मौजूदा स्थिति का जायजा लेने के साथ आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. अमेरिका के रवैये और चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर भी यह वार्ता बहुत अर्थपूर्ण है. सामुद्रिक सुरक्षा बेहतर करने, आतंकवाद और अपराध […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 12, 2017 5:57 AM
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ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों की मौजूदा स्थिति का जायजा लेने के साथ आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. अमेरिका के रवैये और चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर भी यह वार्ता बहुत अर्थपूर्ण है. सामुद्रिक सुरक्षा बेहतर करने, आतंकवाद और अपराध से निपटने जैसे मुद्दों पर सहयोग बढ़ने से इस इलाके में स्थिरता और विकास को काफी मदद मिल सकेगी. दोनों देशों के आपसी संबंधों और इसके अंतरराष्ट्रीय पहलुओं पर चर्चा के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
विभिन्न मुद्दों पर बनी भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच सहमति
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अौर भारत दौरे पर आये ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की मौजूदगी में 10 अप्रैल, 2017 को दोनों देशों के बीच छह समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गये. दोनों देश अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद व अपराध से निपटने, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा, पर्यावरण व जलवायु समेत अनेक मुद्दों पर परस्पर सहयोग के लिए सहमत हुए.
इंडो-पैसिफिक साझेदारी
– भारत और ऑस्ट्रेलिया ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की शांति और समृद्धि पर बल देते हुए कानून, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखने की प्रतिबद्धता जतायी.
– दोनों देश नौकरियों के सृजन व निवेश और जीवन स्तर को ऊपर उठाने पर भी सहमत हुए.
– दोनों प्रधानमंत्रियों ने व्यक्ति-दर-व्यक्ति संपर्क को बढ़ावा देने, खास कर भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के जरिये द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने पर जोर देने की बात कही है.
– इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा को देखते हुए दोनों देशों ने 1982 यूनाइटेड नेशंस कंवेंशन ऑन द लॉ आॅफ द सी (यूएनसीएलओएस) पर आधारित मेरीटाइम लीगल ऑर्डर का सम्मान करने पर भी जोर दिया. साथ ही इस क्षेत्र में नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता को महत्व देने पर भी जोर दिया.
सामरिक मामले
– दोनों देशों के बीच रक्षा व सुरक्षा सहभागिता को मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता दोहरायी गयी.
– दोनों देशों के बीच 2015 में बंगाल की खाड़ी में हुए द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास (ऑसइंडेक्स मेरीटाइम एक्सरसाइज) को 2018 के पूर्वार्ध में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में दोहराने पर भी दोनों प्रधानमंत्रियों ने सहमति जतायी.
– 2016 में दोनों देशों के बीच होनेवाले विशेष बलों के द्विपक्षीय अभ्यास को इस वर्ष फिर से कराने पर भी सहमति बनी.
– आतंकवाद, आतंकी समूहों और आतंकी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई और इनका समर्थन करनेवालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने पर भी दोनों देशों ने सहमति जतायी.
– अफगानिस्तान में शांति व स्थिरता स्थापित करने, उसकी सुरक्षा व अखंडता को बनाये रखने के लिए समर्थन देने पर भी दोनों देशों ने बल दिया.
ऊर्जा, संसाधन व पर्यावरण
– विविध प्रकार के ऊर्जा संसधानों की वृद्धि के लिए परस्पर सहयोग पर दोनों देश राजी हुए.ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेशनल सोलर अलायंस में शामिल होने की घोषणा भी की.
– भारत के विद्युत उत्पादन को सहायता देने के लिए ऑस्ट्रेलिया से यूरेनियम के वाणिज्यिक निर्यात के बहुत जल्द शुरू करने की बात भी हुई.
अनुसंधान और विज्ञान
– ऑस्ट्रेलिया इंडिया स्ट्रेटजिक रिसर्च फंड (एआइएसआरएफ) में 500 करोड़ रुपये देने की प्रतिबद्धता जतायी गयी.
– कॉमर्शियल एप्लीकेशन के लिए इनोवेटिव उत्पादों के विकास के लिए उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग पर सहमति बनी.
– जल प्रबंधन की चुनौतियों से निपटने के लिए दोनों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को विस्तार देने पर भी बल दिया गया.
अन्य
– दोनों देशों के बीच खुली, वैश्विक व्यापार व्यवस्था बनाने पर भी सहमति बनी, ताकि समृद्धि और विकास की सहभागिता हो सके.
– क्षेत्रीय और बहुपक्षीय संस्थाओं के बीच सहयोग को मजबूत बनाने और क्षेत्रीय वास्तुकला को मजबूती प्रदान करने पर दोनों देश सहमत हुए.
– वैश्विक शांति व सुरक्षा के लिए भारत, ऑस्ट्रेलिया व जापान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता को लेकर भी सहमित बनी.
– दोनों प्रधानमंत्रियों ने सुरक्षा परिषद को लेकर संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में बदलाव पर भी जोर दिया.
– द्विपक्षीय परमाणु सहयोग को जारी रखने पर भी दोनों देशों ने प्रतिबद्धता दोहरायी.
– जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को लागू करने को लेकर दोनों देशों ने प्रतिबद्धता दोहरायी.
द्विपक्षीय संबंध
19.4 अरब डॉलर रहा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच वस्तु एवं सेवाओं का व्यापार वर्ष 2015-16 के दौरान.
11.6 अरब डॉलर का भारतीय निवेश हुआ ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 2015 के अंत तक, जबकि भारत में ऑस्ट्रेलिया का निवेश 10.6 अरब डॉलर रहा.
– भारत ऑस्ट्रेलिया को मुख्य रूप से रिफाइंड पेट्रोलियम, शिक्षा सेवाओं, व्यापार सेवाओं, दवाओं, मोती और जेवरात आदि वस्तुओं का निर्यात करता है.
– ऑस्ट्रेलिया से भारत मुख्य रूप से कोयला, शिक्षा से संबंधित पर्यटन, सब्जियों और सोने का आयात करता है.
– दोनों देशों के बीच पारंपरिक क्षेत्रों कृषि, शिक्षा, कौशल और तकनीकी साझेदारी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में व्यापाक भागदारी है.
– भारत और ऑस्ट्रेलिया रीजनल कॉम्प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीइपी) समझौते में शामिल हैं.
– मुक्त व्यापार क्षेत्र के तहत 10 आसियान देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, कोरिया रिपब्लिक और न्यूजीलैंड को शामिल करने का प्रस्ताव है.
– भारत ऑस्ट्रेलिया में मुख्य रूप से ऊर्जा एवं संसाधन उद्योग, उन्नत विनिर्माण, सेवाओं और तकनीकी क्षमताओं में निवेश का इच्छुक है.
– लगभग 60,000 भारतीय ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रहे हैं 2016 के आंकड़ों के अनुसार, जो 2015 के मुकाबले 12.4 प्रतिशत अधिक है. ऑस्ट्रेलियाइ व्यापार के नजरिये से शिक्षा दूसरा सबसे अहम क्षेत्र है.
– विज्ञान, नवोन्मेष, स्वास्थ्य, जल संसाधन और खेल आदि क्षेत्रों में दोनों देशों की बीच ज्ञान आधारित परस्पर सहयोग बढ़ रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ऑस्ट्रेलिया इंडिया स्ट्रेटजिक रिसर्च फंड (एआइएसआरएफ) है.
– भारत आनेवाले ऑस्ट्रेलियाई पर्यटकों की संख्या गत तीन वर्षों में औसतन 10 प्रतिशत की दर से बढ़ी है.
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया मेंटर्नबुल की यात्रा
प्रधानमंत्री टर्नबुल के भारत दौरे पर उनके देश की मीडिया की नजर लगातार बनी हुई है. आम तौर पर यह कहा जा रहा है कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से फंसे मुक्त व्यापार समझौते पर प्रगति नहीं हो पायी, परंतु टर्नबुल प्रधानमंत्री मोदी से अच्छा समीकरण बना पाने में सफल रहे हैं.
टीवी चैनल स्काइ न्यूज ने ऑस्ट्रेलियाई नेता के उस बयान को प्रमुखता से प्रसारित किया जिसमें उन्होंने कहा था कि समय और हितों की अनुकूलता के अनुसार समझौते किये जाते हैं. अखबार द ऑस्ट्रेलियन ने लिखा है कि प्रधानमंत्री ने भारत के साथ कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एग्रीमेंट से जुड़ी उम्मीदों को यह कह नरम कर दिया कि इसके लिए अभी मौका नहीं है क्योंकि भारत अपने किसानों को कृषि-उत्पादों के आयात से संरक्षण देता है. इस पत्र ने यह भी रेखांकित किया है कि देश में परियोजनाओं के लिए अस्थायी तौर पर विदेशी कामगारों के आने-जाने पर भारत के प्रस्ताव को ऑस्ट्रेलिया भी रोक रहा है. मुक्त व्यापार के मोरचे पर आगे बढ़ने के मोदी के इरादे की टर्नबुल द्वारा की गयी प्रशंसा पर ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की वेबसाइट पर लिखा गया है कि भारतीय संरक्षणवाद के पूर्ववर्ती आलोचना के रवैये से टर्नबुल में बदलाव आया है.
सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने कहा है कि टर्नबुल के बयान उनके पहले प्रधानमंत्री रहे टोनी अबॉट की तीव्रता को अवास्तविक करार देते हैं. अखबार ने उम्मीद जतायी है कि अपेक्षाकृत नरम बयानबाजी के बीच ऑस्ट्रेलिया के भारत के ऊर्जा बाजार में अधिक दखल से कोयला, यूरेनियम, प्राकृतिक गैस और स्वच्छ ऊर्जा तकनीक के क्षेत्रों में निर्यात की संभावनाएं बढ़ी हैं. ऑस्ट्रेलियन फाइनेंसियल रिव्यू की वेबसाइट ने लिखा है कि टर्नबुल ने अपने दौरे का इस्तेमाल नजदीकी सुरक्षा सहयोग बेहतर करने तथा भारतीय छात्रों के लिए ऑस्ट्रेलिया को सबसे पसंदीदा लक्ष्य बनाने की दिशा में किया है. रिव्यू ने भी मुक्त व्यापार के मुद्दे पर ठोस फैसला नहीं लिये जाने पर निराशा व्यक्त किया है. ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में दोनों प्रधानमंत्रियों की दिल्ली मेट्रो में की गयी यात्रा को भी खूब तरजीह मिली है.
संधियां और समझौते
भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों कई क्षेत्रों में व्यापक स्तर सहयोग के लिए सहमत हैं- इसमें प्रमुख हैं- असैन्य परमाणु समझौता, हवाई सेवा, सिविल स्पेस साइंस, टेक्नोलॉजी, शिक्षा, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ परस्पर सहयोग, रक्षा सहयोग, इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी, कौशल प्रशिक्षण सहयोग, सामाजिक सुरक्षा, छात्रों की सुरक्षा और कल्याण, दोषियों का हस्तांतरण, कला एवं संस्कृति, जल प्रबंधन, खेल और पर्यटन आदि.
भारत-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय संबंध और ट्रंप प्रशासन
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच गहरे आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक संबंध हैं. आलोचक यहां तक कह देते हैं कि ऑस्ट्रेलिया इस क्षेत्र में अमेरिका का नायब है. लेकिन ट्रंप प्रशासन की संरक्षणवादी नीतियों के चलते ऐसी आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि ऑस्ट्रेलिया ऐसे ही संबंध स्थापित करने के लिए चीन की ओर देख सकता है, जो कि उसका सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. ऐसी स्थिति में ऑस्ट्रेलिया के साथ उत्तरोत्तर मजबूत होता कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ता प्रभावित हो सकता है. जानकारों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन भारत को ऑस्ट्रेलियाई यूरेनियम की आपूर्ति को बाधित कर सकता है. साथ ही, तीनों देशों के बहुपक्षीय वार्ताओं को भी रोका जा सकता है या महत्वहीन बनाया जा सकता है. हाल में ट्रंप और टर्नबुल के बीच फोन पर हुई तीखी बातचीत वैश्विक चर्चा का विषय बनी थी.
वर्ष 2004 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश और भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच हुए ‘नेक्स्ट स्टेप्स इन स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप’ समझौते के बाद अमेरिका ने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड पर भारत के प्रति कड़ा रुख बदलने के लिए दबाव डाला था. एशिया में चीन के बढ़ते उभार की प्रतिक्रिया में भारत को महत्वपूर्ण कड़ी मानते हुए यह रणनीति अपनायी गयी थी.
मार्च, 2006 में हॉवर्ड ने भारत के साथ छह द्विपक्षीय समझौते किये जिनमें रक्षा क्षेत्र में सहयोग भी शामिल था. हालांकि ऑस्ट्रेलिया के वर्तमान प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वार्ता के बाद ठोस समझौते हुए हैं जो द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को लेकर भरोसा बहाल करने के लिए पर्याप्त हैं. पर यह भी ध्यान में रखना होगा कि ऑस्ट्रेलिया का व्यापारिक समुदाय अमेरिका-केंद्रित विदेश, रक्षा और व्यापारिक नीतियों से अलग हटने के लिए दबाव भी बना रहा है. ट्रंप प्रशासन के रवैये ने उन्हें इस कोशिश को तेज करने का आधार भी मुहैया कराया है.
राष्ट्रपति ट्रंप के ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) समझौते तथा ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड-अमेरिका रक्षा गंठबंधन को खत्म करने के इरादे से भी ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुंच सकता है.
अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच 2007 से शुरू हुए अनौपचारिक सुरक्षा वार्ता पर भी ग्रहण लग सकता है जिसके असर से भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के उच्च-स्तरीय त्रिपक्षीय वार्ता भी अछूता नहीं रह सकता है. बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि बदलती अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में भारत और ऑस्ट्रेलिया अपने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को क्या दिशा देते हैं. प्रधानमंत्रियों की बातचीत से बनी सकारात्मक उम्मीदें इसी पर निर्भर करेगीं.
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