जिंदगी के जोखिम को समझने में सक्षम फिटनेस ट्रैकर्स!

आम तौर पर लोग शरीर के भीतर पनप रही बीमारी के लक्षणों को नहीं समझ पाते हैं. बीमारी के संकेतों को यदि समय रहते पहचान लिया जाये, तो उससे न केवल इलाज आसान हो जाता है, बल्कि बीमारी को जड़ से खत्म भी किया जा सकता है. हार्ट-रेट में उतार-चढ़ाव से बीमारियों के जोखिम को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 13, 2017 1:33 AM
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आम तौर पर लोग शरीर के भीतर पनप रही बीमारी के लक्षणों को नहीं समझ पाते हैं. बीमारी के संकेतों को यदि समय रहते पहचान लिया जाये, तो उससे न केवल इलाज आसान हो जाता है, बल्कि बीमारी को जड़ से खत्म भी किया जा सकता है. हार्ट-रेट में उतार-चढ़ाव से बीमारियों के जोखिम को भांपना आसान हो जाता है़ ऐसे में फिटनेस ट्रैकर एक महत्वपूर्ण संकेतक की भूमिका निभा सकता है़ दरअसल, फिटनेस ट्रैकर कलाई में बांधी जाने वाली डिवाइस है, जो हमारे फिटनेस की निगरानी करने के साथ-साथ बीमारियों के जोखिम के प्रति हमें आगाह करती है़ आज के मेडिकल हेल्थ में जानते हैं इसी तकनीक से जुड़े विविध पहलुओं के बारे में

मौजूदा तकनीकी युग में ‘फिटबिट’ नामक शरीर में धारण करनेवाले मेडिकल उपकरणों की मदद से समय रहते ऐसी बीमारियों के बारे में जानने में सहायता मिल रही है, जो भविष्य में बडा जोखिम पैदा कर सकते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में अमेरिका के कनेक्टिकट में एक महिला की जिंदगी को बचाने में फिटबिट की बडी भूमिका सामने आयी है.

पैट्रिसिया लाउडर नामक इस महिला ने अपने हाथ पर फिटबिट लगा रखा था. उन्होंने महसूस किया कि उनके फिटबिट पर हार्ट-रेट रीडिंग तेजी से बढता जा रहा है और वह प्रति मिनट 140 तक पहुंच गया है. अस्पताल में भरती के बाद जांच में पाया गया कि उनके फेफड़े में ब्लड क्लॉट्स या पुल्मोनरी इंबोलिज्म की बीमारी हो गयी है. डॉक्टर ने उन्हें एंटी-क्लॉटिंग दवाएं दीं, जिससे इस बीमारी से निजात पायी जा सके. यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट के न्यूज वेबसाइट ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट टुडे’ से लाउडर ने बताया, ‘यदि मेरी कलाई पर फिटबिट नहीं बंधा होता, तो मुझे कभी यह नहीं

पता चल पाता कि मेरे हृदय की धडकन खतरनाक रूप से बढ गयी है. और मैं अपनी कहानी बताने के लिए शायद आज जीवित नहीं होती.’

विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि हार्ट रेट मॉनीटर्स समेत कुछ फिटनेस ट्रैकर्स ऐसे डिवाइस हैं, जो हमें स्वास्थ्य संबंधी ऐसी समस्याओं से सक्षम रूप से एलर्ट कर सकता है, जो हृदय की धड़कनों में बदलाव आने का बडा कारण होता है.

वॉशिंगटन डी सी में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के कार्डियोलॉजिस्ट और मेडिसिन के प्रोफेसर डॉक्टर एलेन टेलर ने एक साक्षात्कार के दौरान ‘लाइव साइंस’ से कहा था, ‘हार्ट रेट सामान्य तौर पर वह संकेत है, जो हमें बताता है कि आपका शरीर कितना तनाव झेल रहा है.’ टेलर कहते हैं, ‘फीवर की तरह हार्ट रेट भी विविध शारीरिक दशाओं का लक्षण हो सकता है. इसलिए भले ही अपनेआप में यह रोगनिदान का तरीका नहीं है, लेकिन कुछ निर्धारित दशाओं में यदि मरीज के शरीर में हार्ट रेट की दर तेज पायी जाती है, तो यह उसके लिए एक चेतावनी है कि सेहत में कहीं-न-कहीं कुछ गड़बड़ी है.’

मेयो क्लिनीक के विशेषज्ञों का कहना है कि हार्ट बीट में आयी अनियमितता या तेजी प्यूल्मोनरी इंबोलिज्म का लक्षण है. क्लॉट्स द्वारा पैदा हुए ब्लॉकेज से निपटने के लिए हार्ट का सुचारु तरीके से काम करना जरूरी होता है, और इससे धमनियों के जरिये रक्त को पंप किया जाता है, जिससे फेफड़ों के भीतर ब्लड प्रेशर बढ सकता है.

कई चीजें ट्रैक करता है फिटनेस ट्रैकर

कुछ खास दशाओं में फिटनेस ट्रैकर आट्राइल फाइब्रिलेशन, एनीमिया और ओवरएक्टिव थॉयराइड जैसी बीमारियों की पहचान कर सकता है. इन सभी दशाओं में हार्ट रेट सामान्य से ज्यादा हो जाता है. मेयो क्लिनीक के मुताबिक, हृदय के धड़कने की सामान्य दर 60 से 100 तक प्रति मिनट माना जाता है.

एप्पल वॉच से बची जान

सितंबर, 2015 में अमेरिका में एक इनसान की जान इसलिए बच गयी, क्योंकि उसने एप्पल की फिटनेस ट्रैकर पहन रखी थी. दरअसल, हाथ में पहना हुआ उसका डिवाइस दर्शा रहा था कि उसके हृदय के धड़कने की गति प्रति मिनट 145 तक पहुंच गयी है. बाद में व्यापक परीक्षण के पश्चात यह पता चला कि उसे ‘हैब्डोमाइलिसिस’ हो गया है, जो ऐसी अवस्था है, जिसमें मांसपेशियों से एक प्रोटीन रिलीज होता है, जो किडनी और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाता है.

न्यू जर्सी के डॉक्टरों ने पिछले वर्ष फिटबिट के आंकडों से यह पता लगाया था कि हृदय की धड़कनाें में आयी तेजी की आशंका से अस्पताल आये मरीज का इलाज कैसे किया जाये.

हालांकि, फिटबिट जैसे फिटनेस ट्रैकर्स को फिलहाल मेडिकल डिवाइस के तौर पर मंजूरी नहीं मिली है, लिहाजा कार्डियोवैस्कुलर दशाओं के इलाज के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

कितने सटीक हैं हार्ट रेट मॉनीटर करनेवाले फिटनेस ट्रैकर

हार्ट रेट की निगरानी करनेवाले फिटनेस ट्रैकर इन दिनों बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं, लेकिन हमारे लिए यह जानना भी जरूरी है कि वास्तविक में ये कितने सटीक हैं? ‘लाइव साइंस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक नये अध्ययन में यह दर्शाया गया है कि इन हार्ट रेट मॉनीटर्स से हासिल नतीजे कई बार सटीक नहीं पाये गये हैं.

पिछले वर्ष एक अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि सामान्य रूप से फिटनेस ट्रैकर के तौर पर कलाई में पहने जाने वाली हार्ट-रेट मॉनीटर्स चेस्ट स्ट्रैप मॉनीटर्स की तरह पूरी तरह से सटीक नहीं होते हैं. इस शोध अध्ययन के लेखक और क्लीवलैंड क्लिनीक के कार्डियक सर्जन डॉक्टर मार्क गिलिनोव का कहना है, ‘इस नतीजे का अर्थ यह नहीं कि आपको फिटनेस ट्रैकर नहीं धारण करना चाहिए.

लेकिन, यदि आप पहले से किसी ऐसी बीमारी की चपेट में हैं, जिसमें आपके लिए नियमित हार्ट रेट को मापना जरूरी है, तो फिर आप फिटनेस ट्रैकर की बजाय चेस्ट स्ट्रैप मॉनीटर्स का इस्तेमाल करें.’ गिलिनोव कहते हैं, ‘यदि आप अपने हार्ट रेट के बारे में सेहत या ट्रेनिंग के संदर्भ में समग्रता से जानना चाहते हैं, तो फिर आपके लिए इलेक्ट्रॉड युक्त चेस्ट स्ट्रैप श्रेष्ठ हो सकता है.

जो लोग कलाई पर धारण करनेवाली हार्ट-रेट मॉनीटर का इस्तेमाल करते हैं, वे इस तथ्य को जानते हैं कि उसकी रीडिंग हमेशा सही नहीं होती है.’ लिहाजा गिलिनोव यह सलाह देते हैं कि यदि हार्ट-रेट की रीडिंग बहुत ज्यादा या बहुत कम प्रतीत हो रही हाे, तो ज्यादा पैनिक होने की जरूरत नहीं है. हो सकता है कि वह पूरी तरह से सही नहीं हो. ऐसी दशा में आपको कुछ देर इंतजार करना चाहिए और फिर से रीडिंग की जांच करना चाहिए.

कैसे मापी गयी विश्वसनीयता

इन फिटनेस ट्रैकर्स की विश्वसनीयता को मापने के लिए 50 सेहतमंद वयस्कों को शामिल किया गया. प्रत्येक को एक ही समय में दोनों हाथों की कलाई में अलग-अलग प्रकार के ट्रैकर्स बांधे गये. इसके बाद ट्रेडमिल पर विभिन्न स्पीड में उन्हें एक्सरसाइज करने को कहा गया. प्रतिभागियों ने कुछ अन्य कंपनियों के ट्रैकर्स भी बांध रखे थे. इस दौरान इलेक्ट्रॉड के इस्तेमाल से उनके स्टैंडर्ड इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम का परीक्षण भी किया गया, जो हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी की भी निगरानी करता है. इस परीक्षण में एप्पल वॉच और मियो फ्यूज के नतीजे बेहतर रहे थे.

क्या है इस डिवाइस की तकनीक

पारंपरिक रूप से कॉमर्शियल हार्ट-रेट मॉनिटर्स के तौर पर चेस्ट स्ट्रैप का इस्तेमाल किया जाता रहा है, जिसके तहत इलेक्ट्रॉड के माध्यम से हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को मापा जाता है. लेकिन, हाल के वर्षों में अनेक फिटनेस ट्रैकर कंपनियों ने उसमें हार्ट-रेट मॉनीटर्स को भी शामिल किया है. ये कलाई पर बांधनेवाले डिवाइस हैं, जिसमें ऑप्टिक सेंसर्स का इस्तेमाल किया जाता है. पल्स यानी धड़कन मापने के लिए ये सेंसर्स त्वचा के नीचे प्रवाहित होनेवाले रक्त से निकलने वाली लाइट का इस्तेमाल करते हैं.

रक्त शिराओं में प्रवाहित होनेवाले रक्त की चमक से उसके धनत्व में आनेवाले बदलाव को मापा जाता है, जिसका संबंध हमारे हार्ट बीट से जुडा है. हालांकि, इस विधि से हार्ट रेट को मापना कई बार चुनौतीपूर्ण हो सकता है. खासकर जब लोग काफी देर तक सक्रिय रहते हैं, तो इन्हें मापने में मांसपेशियां कुछ हद तक शामिल हो जाती हैं, जिससे सटीक नतीजे सामने नहीं आते हैं. यद्यपि कंपनियों ने इसके लिए एलगोरिदम को विकसित किया है, जो लोगों के मूवमेंट से पैदा होने वाले शोर को खत्म कर सकता है. दरअसल, कलाई पर बांधे जानेवाले इन हार्ट-रेट मॉनीटर्स को सक्षम तरीके से काम करने देने के लिए ये शोर बड़ी समस्या पैदा करते हैं.

हालांकि, चेस्ट स्ट्रैप हार्ट-रेट मॉनीटर्स की एकुरेसी को अब तक अनेक अध्ययनों के दौरान जांचा-परखा चुका है और इस बारे में भरोसा जताया जा चुका है, लेकिन कलाई पर बांधी जानेवाली मॉनीटरिंग डिवाइस के बारे में अब तक ज्यादा अध्ययन नहीं किया गया है.

गिलिनोव और उनके सहयोगियों द्वारा किये गये नये अध्ययन में पाया गया है कि कलाई पर बांधनेवाले डिवाइसों में से निम्न चार में हार्ट-रेट मॉनीटर्स काम करता है :

– एप्पल वॉच.

– द फिटबिट चार्ज एचआर.

– द मियो फ्यूज.

– द बेसिस पीक.

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