शनि के चंद्रमा पर पानी की संभावनाओं से जगी अंतरिक्ष में जीवन की उम्मीद!

स्पेस साइंस अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाएं तलाशने के क्रम में वैज्ञानिकों के हाथ एक बड़ी कामयाबी लगी है. अनेक साक्ष्यों के आधार पर ‘नासा’ के वैज्ञानिकों ने उम्मीद जतायी है कि शनि ग्रह के चंद्रमा ‘एनसेलडस’ पर जीवन मुमकिन है. धरती से इतर ग्रह पर जीवन का संकेत देने वाली इस नयी खोज ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 18, 2017 6:32 AM
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स्पेस साइंस
अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाएं तलाशने के क्रम में वैज्ञानिकों के हाथ एक बड़ी कामयाबी लगी है. अनेक साक्ष्यों के आधार पर ‘नासा’ के वैज्ञानिकों ने उम्मीद जतायी है कि शनि ग्रह के चंद्रमा ‘एनसेलडस’ पर जीवन मुमकिन है. धरती से इतर ग्रह पर जीवन का संकेत देने वाली इस नयी खोज ने अंतरिक्ष विज्ञानियों व शोधार्थियों के लिए इस दिशा में एक नयी उम्मीद जगायी है.
वहीं दूसरी ओर, करीब 40 वर्ष पहले अंतरिक्ष में भेजे गये वॉयेजर श्रेणी के दो अंतरिक्षयान कई वर्ष पूर्व सौरमंडल के दायरे से बाहर निकल चुके हैं. ये अंतरिक्षयान 20 खरब किलोमीटर से ज्यादा दूर जा चुके हैं, लेकिन इनसे मिल रहे संकेत पृथ्वी से इतर ग्रह पर जीवन की उम्मीद को बरकरार रखे हैं़ वैज्ञानिकों को मिली इस आरंभिक कामयाबी और संबंधित जानकारियों को रेखांकित करता आज का साइंस टेक्नोलॉजी पेज
कन्हैया झा
धरती से इतर ग्रहाें पर जीवन की तलाश में वैज्ञानिक पिछले कई दशकों से जुटे हैं. हालांकि, कई बार इस संबंध में दावे भी किये गये हैं और उन पर अनेक तरह की बहस भी हुई है.
लेकिन, हाल ही में अमेरिका के प्रसिद्ध अंतरिक्ष संगठन ‘नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ यानी नासा ने पहली बार पुष्टि की है कि पृथ्वी के ही सोलर सिस्टम में शनि ग्रह के चंद्रमा ‘एनसेलडस’ पर जीवन मुमकिन हो सकता है. ‘नासा’ द्वारा की गयी यह अपनी तरह की पहली पुष्टि है. शनि ग्रह के संदर्भ में किये गये नासा के जांच अभियान में बर्फ से ढके एनसेलडस पर एक दरार के भीतर पानी जैसी चीज होने की संभावना जतायी गयी. व्यापक जांच से यह पता चला है कि उसमें 98 फीसदी तक पानी ही है. शेष दो फीसदी में हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन व ऑर्गेनिक चीजें पायी गयी हैं. ये सभी तत्व वहां जीवन होने के संकेत हो सकते हैं.
शनि ग्रह के कम-से-कम 62 चंद्रमा हैं. इनमें से एनसेलेडस छठा सबसे बड़ा चंद्रमा है. नासा के साइंस मिशन डायरेक्टोरेट के सहायक प्रशासक थॉमस जर्बुचेन का कहना है कि हम एक स्थान की पहचान करने के करीब हैं, जहां जीवन योग्य वातावरण के लिए कुछ जरूरी तत्व हो सकते हैं.
कैसिनी मिशन के वैज्ञानिकों ने एेलान किया है कि एनसेलेडस पर एक तरह की रासायनिक ऊर्जा मौजूद हो सकती है, जो जीवन के अस्तित्व के लिए सहायक हो सकती है. एनसेलेडस की बर्फीली सतह से हाइड्रोथर्मल गतिविधि के चलते हाइड्रोजन गैस मुक्त होती है, जो जीवन के योग्य रासायनिक ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम है. ऐसे में यह प्रतीत होता है कि वहां पर्याप्त हाइड्रोजन की मौजूदगी से सूक्ष्मजीव का अस्तित्व हो सकता है.
नासा की जेट प्रोपल्शन लैब के वैज्ञानिक लिंडा स्पाइल्कर का कहना है कि शनि ग्रह के चंद्रमा पर जीवन के अनुकूल रासायनिक ऊर्जा की मौजूदगी की पुष्टि पृथ्वी से परे जीवन की खोज की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.
सैन एंटोनिया के हंटर वेट ऑफ द साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एनसेलडस पर पाये गये पानी की जांच की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां पाया गया आणविक हाइड्रोजन केक पर बर्फ जमने की तरह है. इस संस्थान की आेर से जारी एक औपचारिक वक्तव्य में कहा गया है, ‘आप ऊर्जा का वह स्रोत देख सकते हैं, जिन्हें सूक्ष्म जीव इस्तेमाल करते हैं. हमने केवल फासफोरस और सल्फर को वहां नहीं देखा है, और ऐसा संभवत: इसलिए हुआ होगा, क्योंकि वे काफी छोटी मात्राओं में थे. हमें इस दिशा में अभी और प्रयास करना होगा और व्यापक परीक्षणों के जरिये जीवन के संकेतों की तलाश करनी होगी.’
कैसिनी ने खोजा पानी
नासा के वैज्ञानिकों ने प्राप्त आंकड़ों के आधार पर उम्मीद जतायी है कि बैक्टीरिया जैसा सामान्य जीवन एनसेलडस के जलीय स्रोत की सतह पर मुमकिन हो सकता है. उन्होंने कहा कि यदि वहां कुछ ठोस सबूत मिले, तो वे जीवन की खोज को लेकर और उत्साहित हो सकते हैं.
इस नयी जानकारी को हासिल करने में कैसिनी स्पेसक्राफ्ट का योगदान है. स्पेसक्राफ्ट अपने 20 वर्षीय मिशन के आखिरी दौर में है, जिसे शनि के व्यापक परीक्षण के लिए भेजा गया था.
यह स्पेसक्राफ्ट शनि के चंद्रमा के कुछ अविश्वसनीय फोटोग्राफ्स भी भेजने में समर्थ हुआ है, और शायद यह उन चंद्रमाओं में हो सकता है, जिनकी व्यापक पडताल होने पर कुछ अचंभित करनेवाली जानकारियां सामने आ सकती हैं.
नासा वैज्ञानिक लिंडा स्पिलकर ने कहा, ‘हालांकि जीवन के लिए जरूरी लगभग सभी चीजें यहां मौजूद हैं, लेकिन फिलहाल हमें एनसेलडस पर जीवों के होने के स्पष्ट सबूत नहीं मिले हैं.’ उन्होंने कहा, ‘शनि के एक चंद्रमा पर जीवन के होने के लिए केमिकल एनर्जी की पुष्टि होना दूसरी दुनिया की हमारी खोज में एक बड़ा मील का पत्थर है.’ एनसेलडस का आकार काफी छोटा है. यह धरती के चंद्रमा के महज 15 प्रतिशत जितना बड़ा है.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में फिजिक्स के प्रोफेसर एंड्रयू कोट्स कहते हैं, ‘हमारे ही सोलर सिस्टम में पृथ्वी के बाहर जिन ग्रहों पर जीवन होने की संभावना है, उनमें मंगल और यूरोपा के बाद अब एनसेलडस भी शामिल हो गया है.’
क्या है मिशन कैसिनी
नासा के अंतरिक्षयान कैसिनी ने शनि मिशन की शुरुआत के बाद इस वलयदार ग्रह के वातावरण की अनेक तसवीरें पिछले कई माह से भेजी हैं. इन तसवीरों में शनि के उत्तरी गोलार्ध के ऊपर से लिये गये दृश्य दिखाये गये हैं.
कैसिनी मिशन ने शनि ग्रह को मौलिक रूप से समझने के प्रति वैज्ञानिकों के नजरिये में पूरी तरह से क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है. इस तथ्य के संबंध में नयी समझ कायम करने के लिए यह जिम्मेवार है कि अंतरिक्ष की पड़ताल में यह पाया गया है कि अन्य ग्रहाें के मुकाबले ‘टाइटन’ पर धरती की तरह का मिलता-जुलता पर्यावरण हो सकता है. नासा ने यह अनुमान लगाया है कि टाइटन की सतह पर नमकीन समुद्र है, जो हमारी धरती पर मौजूद डेड सी की भांति हो सकता है.
यह भी अनुमान लगाया गया है कि टाइटन का समुद्र बर्फ की सतहों के बीच में दबे हो सकते हैं या फिर इस चंद्रमा के किनारे तक भी मौजूद हो सकते हैं. शनि के एनसेलडस के संदर्भ में नासा ने यह अनुमान लगाया है कि वहां करीब 10 किलोमीटर के दायरे में एक क्षेत्रीय रिजर्वोयर यानी जलाशय अस्तित्व में है. इस चंद्रमा के दक्षिण छोर पर यह बर्फ की गहन परत के 30 से 40 किमी भीतर है. कैसिनी द्वारा भेजी गयी इस जानकारी से समुद्र की दुनिया से संबंधित अनेक नयी परतों को समझने में मदद मिलेगी.
1997 में भेजा गया था कैसिनी
वर्ष 1997 में कैसिनी को प्रक्षेपित किया गया था. वर्ष 2004 में यह अपने निर्धारित लक्ष्य के करीब पहुंचने के बाद से ही यह शनि ग्रह और उसके छल्लों व उपग्रहों का अध्ययन कर रहा है. कैसिनी के मिशन के रिंग-ग्रेजिंग ऑर्बिट्स नामक नये चरण की शुरुआत पिछले वर्ष ही हो चुकी थी.
अनजान तक संदेश पहुंचाने में कामयाब हो सकता है
वॉयेजर
ब्रह्मांड की बारीकियों को समझने के लिए वर्ष 1977 में वॉयेजर श्रेणी के दो अंतरिक्षयानों का प्रक्षेपण किया गया, जो आज भी निरंतर आगे बढ़ रहे हैं और समय-समय पर नयी सूचनाएं मुहैया करा रहे हैं. हालांकि, इन यानों को व्यापक मकसद से भेजा गया है, लेकिन पृथ्वी से इतर ग्रहों पर जीवन की तलाश में भी ये अपना योगदान दे सकते हैं. अपनी 40 वर्षों की निरंतर यात्रा के क्रम में अमेरिकी अंतरिक्ष यान ‘वॉयेजर-1’ आज से करीब तीन वर्ष पहले ही हमारे सौरमंडल के दायरे से बाहर निकल चुका है. ऐसा पहली बार हुआ है कि इनसान द्वारा बनायी गयी कोई मशीन सौरमंडल से बाहर गहरे अंतरिक्ष में पहुंच चुकी है, लेकिन धरती से उसका संपर्क अब भी बना हुआ है. यह अंतरिक्ष यान धरती से करीब 20.60 अरब किलोमीटर दूर पहुंच कर भी सिगनल भेजने में सक्षम है.
अनंत की यात्रा पर वॉयेजर
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह अंतरिक्ष यान एक मिनट में करीब 2,000 किलोमीटर की दूरी तय कर रहा है. वॉयेजर-1 अब अनंत की यात्रा पर है. यह यान अब इतना दूर जा चुका है कि वहां से पृथ्वी तक रेडियो सिगनल आने में करीब 17 घंटे लग रहे हैं. इस अंतरिक्ष यान वॉयेजर-1 को पांच सितंबर, 1977 को हमारे सौरमंडल में मौजूद दूरस्थ ग्रहों की खोज के लिए भेजा गया था. वॉयेजर ने बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्चून का अध्ययन 1989 में ही पूरा कर लिया था.
लेकिन इस अंतरिक्षयान की यात्रा इसके बाद भी जारी रही. वॉयेजर अभियान के प्रमुख वैज्ञानिक प्रोफेसर एड स्टोन के मुताबिक, ‘मौजूदा समय में यह यान सौर सागर और तारों के बीच यात्रा कर रहा है. यह वाकई में एक मील का पत्थर है. तकरीबन 40 वर्ष पहले प्रोजेक्ट के शुरुआती दौर में माना जा रहा था कि यह यान एक दिन गहरे अंतरिक्ष में पहुंचेगा. फिलहाल यह अंतरिक्ष यान डीप स्पेस नेटवर्क (डीएसएन) प्रणाली के तहत वैज्ञानिक सूचनाएं भेज रहा है. इस घटना को विज्ञान और इतिहास के दृष्टिकोण से एक बड़ी और ऐतिहासिक घटना माना जा रहा है.
वॉयेजर यानों से जुड़े तथ्य
लांचिंग
फ्लोरिडा के केप केनेवरल से टाइटन सेंटोर रॉकेट के माध्यम से वॉयेजर-1 को पांच सितंबर, 1977 को अंतरिक्ष में भेजा गया था. फ्लोरिडा के केप केनेवरल से टाइटन सेंटोर रॉकेट के माध्यम से ही वोयेजर-2 को 20 अगस्त, 1977 को अंतरिक्ष में भेजा गया था.
ग्रहों की यात्रा
दोनों ही वॉयेजर हमारी सौर प्रणाली में मौजूद जूपिटर, शनि, यूरेनस और नेपचून समेत उनके 48 चांदों को पार कर चुके हैं. ये इन ग्रहों के चुंबकीय क्षेत्र से आगे निकल चुके हैं. सबसे दूरीवाले अंतरिक्ष यान ये दोनों वॉयेजर अंतरिक्ष यान दुनिया के ऐसे तीसरे और चौथे यान हो जायेंगे, जो हमारी सौर प्रणाली में सभी ग्रहों की सीमा से बाहर निकलने में सक्षम होंगे. इससे पहले, पायनियर 10 और 11 सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के दायरे से आगे तो गये, लेकिन 17 फरवरी, 1998 को वॉयेजर-1 ने पायनियर 10 को पीछे छोड़ दिया और अंतरिक्ष में मानव निर्मित किसी भी प्रकार के यान के सर्वाधिक दूर होने का रिकॉर्ड कायम किया.
गोल्डेन रिकॉर्ड
दोनों ही वॉयेजर अंतरिक्ष यानों में एक फोनोग्राफ रिकॉर्ड में संदेश का रिकॉर्ड किया गया है, जिसमें12 इंच की सोने की पट्टी और तांबे की डिस्क लगी हुई है. इसमें पृथ्वी की कई चुनिंदा संस्कृतियों और भाषाओं की आवाजें और तसवीरें रिकार्ड की हुई हैं. इसका मकसद यह है कि किसी ग्रह पर यदि जीव होंगे और वे इसे अपने कब्जे में लेंगे, तो शायद इस पूरे यान की जांच करें और इस गोल्डेन रिकॉर्ड को समझने की कोशिश करें. वैज्ञानिकों ने इसे बडी उम्मीद से भेजा है. इस पूरे अभियान को अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय के सदस्यों के सहयोग से नासा ने अंजाम दिया था.
मौजूदा स्थिति
वॉयेजर-2 धरती से तकरीबन 17 अरब किलोमीटर दूर है, जबकि वॉयेजर-1 धरती से तकरीबन 20.6 अरब किलोमीटर दूर है.
वॉयेजर की गति
वॉयेजर-1 के सौर प्रणाली से दूर जाने की गति लगभग 3.6 एयू वार्षिक है, जबकि वॉयेजर-2 के सौर प्रणाली से दूर जाने की गति लगभग 3.3 एयू वार्षिक रूप से है. एक एयू (एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट) तकरीबन 14,95,97,871 किलोमीटर होता है.
कैसे मिलती है वॉयेजर को ऊर्जा
वॉयेजर प्लूटोनियम से चलनेवाला अंतरिक्ष यान है. प्लूटोनियम रिएक्टर से इसके 20 वॉट के ट्रांसमीटरों को ऊर्जा मिलती है. वॉयेजर-1 फिलहाल 45 किलोमीटर प्रति सेंकेड की स्पीड से गतिमान है. इस स्पीड से सूर्य जैसे किसी और तारे तक पहुंचने में 40,000 वर्ष लग सकते हैं.
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