स्टार्टअप वर्क कल्चर : मॉडर्न वर्क कल्चर के जरिये कैसे क्रांतिकारी बदलाव ला रहे स्टार्टअप्स

मौजूदा दौर दुनियाभर में रोज नये-नये कॉन्सेप्ट और तरीकों पर आधारित स्टार्टअप्स गठित हो रहे हैं और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. खासकर युवा इस ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. युवाओं की बदलती जीवनशैली के अनुरूप स्टार्टअप्स की कार्य संस्कृति भी बदल रही है. कह सकते हैं कि युवा और स्टार्टअप्स के एक-दूसरे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 24, 2017 5:33 AM
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मौजूदा दौर दुनियाभर में रोज नये-नये कॉन्सेप्ट और तरीकों पर आधारित स्टार्टअप्स गठित हो रहे हैं और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. खासकर युवा इस ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. युवाओं की बदलती जीवनशैली के अनुरूप स्टार्टअप्स की कार्य संस्कृति भी बदल रही है.
कह सकते हैं कि युवा और स्टार्टअप्स के एक-दूसरे के पूरक होते जाने के दौर में यह सब कुछ हो रहा है. कार्यस्थल के स्वरूप और उसकी अवधारणा के संदर्भ में किस तरह सोच में आ रहा है बदलाव और इससे संबंधित अन्य पहलुओं पर चर्चा कर रहा है आज का स्टार्टअप आलेख …
ज्यादातर शहरी लोगों के रोजमर्रा की जिंदगी में ऑफिस शब्द का व्यापक अर्थ है. हालांकि, ऑफिस के बारे में लोगाें की अवधारणा पिछले लंबे अरसे से कुछ इस तरह की रही है- एक ऐसा निष्प्राण और घन के समान कक्ष या स्थान, जहां काम के बोझ से लदे पुरुष और महिलाएं बेहद कष्टप्रद और पेशेवर माहौल में काम कर रहे हों. वाकई में, जब अभिभावक सुबह में अपना ऑफिस बैग लेकर घर से निकलते हैं, तो आप सब में से कुछ लोग उस समय पढ़ते रहते होंगे और संभवत: इस बात की कल्पना करते होंगे कि आपके अभिभावक आपकी सोच के मुताबिक ऑफिस में काम करने के लिए घर से जा रहे हैं.
अब हम सोचते हैं कि मौजूदा समय में दुनिया में ‘ऑफिस’ शब्द का क्या अर्थ है. आज की दुनिया में प्रत्येक मोड़ पर आपको उत्साह से भरे हुए स्टार्टअप्स उभरते हुए मिल जायेंगे.
पता नहीं क्यों, जिस तरह की छवि हमारे भीतर उकेर दी गयी है या जिसने हमें मंत्रमुग्ध कर रखा है, वह हमारे आसपास की चीजों से कोई बहुत ज्यादा भिन्न नहीं है. लेकिन, मौजूदा दौर के स्टार्टअप्स के ऑफिस माहौल को यदि आप देखेंगे, तो वहां आरामदेह और रंगीन कमरों में लोग कैजुअल और अारामदायक कपड़ों में अपने लैपटॉप लेकर बीन बैग्स पर बैठ कर काम कर रहे होते हैं.
यह अंतर बेहद साफ और स्पष्ट है. इसलिए, क्या हम कह सकते हैं कि नये युग के इन स्टार्टअप्स के उभार का कारण हम जिस तरीके से कार्यस्थलों और कार्य संस्कृति को देखते हैं, उसमें हमें बदलाव लाना चाहिए? बिलकुल, यदि हम इसका उत्तर जबर्दस्त रूप से ‘हां’ में देते हैं, तो इसका अर्थ होगा कि आप कुछ हद तक उससे सहमत होंगे.
बदलती कार्य संस्कृति
आइये इसका विश्लेषण करते हैं. किसी भी तरह का बदलाव क्यों होता है? बिलकुल, बदलाव एक प्रकार से समय, संस्कृति, प्रतिमानों या मानदंडों और उन सभी चीजों के बीते दौर का नतीजा है, जिसके तहत नये और मौजूदा पीढ़ी के लोग अपेक्षाकृत पूर्व की चीजों के मुकाबले नयी चीजों को प्राथमिकता देते हैं व उन्हें अपनाते हैं और उसका समर्थन करते हैं.
हमारी पीढ़ी का नया स्टार्टअप कल्चर इन सबसे अलग नहीं है. यह नये जमाने के प्रोफेशनल्स की नयी मान्यताओं, उम्मीदों और मनोबल से पैदा हुआ है.
स्थापित कार्य संस्कृति के खिलाफ एक क्रांति के रूप में इतना ही नहीं, बल्कि बतौर स्वाभाविक विकासपरक उत्त्थान- जो कार्य के प्रति आगे की ओर ले जाता है, इसे तत्कालीन पीढ़ी द्वारा गढ़ा जाता है. और यही उनकी नीयती बन जाती है, जिसके पीछे वे भागते हैं.
मिलेनियल्स या जेन वाइ
इस मसले पर बात करते समय, आइये हम थोड़ा प्रकाश इस जेनरेशन पर भी डालते हैं, जिसे आजकल सामान्य तौर पर ‘मिलेनियल्स’ यानी सहस्त्राब्दि या ‘जेन वाइ’ के रूप में समझा जाता है. इस जेनरेशन के प्रत्येक व्यक्ति ज्यादातर बेहद आशावादी किस्म के होते हैं और इसी सोच के तहत वे अपने लक्ष्यों काे निर्धारित करते हैं. ऐसे में उनके आसपास की चीजें उसी के मुताबिक प्रभावी तरीके से काम करती हैं. ऐसे में वे किसी मसले पर समझौता करने के बजाय उसे पूर्णता में हल करने का प्रयास करते हैं और पूर्व की स्थापित चीजों को तोड़ते हुए नया गढ़ने की कोशिश करते हैं.
खुशनुमा माहौल कायम करने में कामयाबी
सुकून से रहने और कुछ हद तक अपने कार्यस्थल को दोस्ताना माहौल में ढालने के अपने कॉन्सेप्ट के प्रति उनका स्पष्ट रुझान होता है, जिसमें ड्रेस कोड्स जैसी चीजों के साथ बहुत ज्यादा नियम नहीं होते. इसके अलावा, वहां कार्य के समय मनोरंजन आदि की सुविधाएं मौजूद होने के कारण माहौल बेहद खुशनुमा बना रहता है. यह अवधारणा है कि वे वास्तविक दुनिया में इसे महसूस करने में सफल हुए हैं और वह भी बेहद सफलतापूर्वक तरीके से.
सुख-सुविधाओं का त्याग
लेकिन, यदि स्पष्ट रूप से कहा जाये, तो चीजें हमेशा पहले से वैसी होती हैं, जैसा कि वे दिखाई देती हैं. यदि आदर्श स्टार्टअप ड्रीम महसूस होता है, तो यह कहा जा सकता है कि इसमें व्यापक तादाद में मजबूती है, साहस है और सबसे महत्वपूर्ण यह कि ऐसा करने में जोखिम भी है. इस बात का जिक्र करने की जरूरत नहीं कि इसके लिए व्यक्तिगत समय, नींद, आराम और विविध सुख-सुविधाओं का कितना त्याग करना होता है. इस संदर्भ में कम-से-कम, आज की जेनरेशन की जिस तरह से लाइफ स्टाइल बनती जा रही है, वह स्टार्टअप कल्चर से इतर नहीं है.
स्टार्टअप ड्रीम्स
तब, शायद स्टार्टअप ड्रीम्स कुछ हद तक उनके लिए जीने का उसी तरह का तरीका तैयार कर रहा है. दुनिया की तेजी से बदलती जरूरतों के बीच खुद को ढालने का प्रयास करते हुए, ऐसे हालातों के बीच कुछ लोग खुद को धीरे-धीरे खत्म होते हुए देखते हैं, जबकि अन्य कई ऐसे हैं, जो खत्म हो जाते हैं और भुला दिये जाते हैं. निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि भले ही स्टार्टअप कल्चर वास्तव में इन चीजों को अपने साथ लेकर आया है, लेकिन साथ ही यह अपने साथ नये तरह के काम के तरीके लेकर आया है, जिससे दुनिया अचंभित है, जिनमें से बहुत से हमारे आसपास भी दिख सकते हैं.
(इंक42 डॉट कॉम पर प्रकाशित असिफ उपाध्ये के लेख का अनुवादित व
संपादित अंश, साभार)
प्रस्तुति – कन्हैया झा
डाटा & फैक्ट्स
भारतीय बाजार में इ-कॉमर्स के लिए चुनौतियां
– इंटरनेट की धीमी रफ्तार : इससे दूरदराज के इलाकों में लोगों को ऑनलाइन खरीदारी करने में बेहद मुश्किलें पेश आती हैं.
– कुशल कर्मियों की कमी : भारत के क्षेत्रफल और आबादी के मुकाबले आइटी प्रोफेशनल्स समेत अन्य चीजों को मैनेज करने के लिए कुशल कर्मचारियों का अभाव है.
– कमजोर बुनियादी ढांचा : ग्रामीण क्षेत्रों में शिपिंग और ट्रांसपोर्टेशन संबंधी बुनियादी ढांचा बेहद कमजोर होने के कारण इ-कॉमर्स के विस्तार में बड़ी चुनौती बन रही है.
– तकनीक का अभाव : चूंकि यहां सभी जगहों पर अद्यतन तकनीकें मुहैया नहीं हो पाती हैं, लिहाजा इनके सहारे चीजों को बेहतर तरीके से अंजाम देना कंपनियों के लिए सिरदर्द साबित होता है.
– फर्जीवाडा : देखा गया है कि इ-कॉमर्स के जरिये की जाने वाली खरीदारी में कंपनियां टैक्स बचाने के लिए फर्जीवाड़ा करती हैं. हालांकि, संबंधित प्राधिकरणों और नियामकों के प्रभावी बनाने से इस चुनौती से निपटा जा सकता है.
– डिजिटल भुगतान : भारत में खरीदारी से पहले या बाद में भी डिजिटल भुगतान कम ही होता है. कैश ऑन डिलीवरी सिस्टम ज्यादा प्रचलन में है. डिजिटल भुगताना बढ़ाना होगा़
(स्रोत : इंक42 डॉट कॉम)
कामयाबी की राह
ऐसे हासिल करें ऑफिस मीटिंग से अधिकतम नतीजे
हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी बैठकों से पूरी तरह से परिणाम प्राप्त किये जा सकें और सभी प्रतिभागियों को यह महसूस हो कि कुछ नया हासिल करने में सफलता पायी है तथा बैठक के अंत में वे आनंदित महसूस करें कि उनका समय अच्छा बीता है. बैठक को कैसे मैनेज किया जाये, ताकि उसके नतीजे से ज्यादा-से-ज्यादा अच्छे हासिल किये जा सकें, जानते हैं कुछ संबंधित टिप्स के बारे में :
– एजेंडा : बैठक का एजेंडा तय करें. बिना एजेंडा के कभी बैठक आयोजित न करें.
– चुनिंदा लोग : बैठक में केवल उन्हीं लोगों को बुलायें, जो संबंधित समस्या के समाधान में योगदान दे सकते हैं.
– एजेंडा के अनुरूप तैयारी : लोगों को एजेंडा के अनुसार पूरी तैयारी करके बैठक में आना चाहिए, अन्यथा आप अपना समय तो खराब करेंगे ही, दूसराें का वक्त भी बर्बाद होगा.
– सटीक समय पर शुरुआत : हमेशा बैठक की शुरुआत बेहद सटीक समय के साथ करें. यदि बैठक का समय आपने 4:30 बजे से निर्धारित किया है, तो उसे आप ऐसे भी लिख सकते हैं कि मीटिंग का समय 4:27 बजे रहेगा. इस बात का ध्यान रहे कि जो व्यक्ति बैठक आयोजित करता है, उसे स्वयं सटीक समय से पहले पहुंच जाना चाहिए, ताकि विलंब से आनेवालों को यह जता सके कि वे देरी से आये हैं.
– नोटिंग : लैपटॉप का इस्तेमाल केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए, जो लैपटॉप पर सीधे मीटिंग के मिनट्स की नोटिंग कर रहे हों यानी महत्वपूर्ण चीजों को नोट करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
– प्रोजेक्टर सिस्टम : कई बार प्रतिभागियों को मीटिंग या प्रोजेक्ट में चर्चा की गयी सूचनाओं को साझा करने के लिए लैपटॉप का इस्तेमाल करना होता है, जो सभी देखनेवालों के लिए प्रोजेक्टर सिस्टम के एक हिस्से का काम करता है.
– पिछली बैठक के मिनट्स या सारांश पर चर्चा : यदि बैठक किसी बड़े मुद्दे पर चल रही है, जो पिछले कुछ समय से जारी है, तो पिछली बैठक के मिनट्स या सारांश को भी पढ़ना चाहिए. साथ ही यह भी चर्चा होनी चाहिए कि उस पर अब तक क्या कार्रवाई हुई या हो रही है, उसके बाद ही आगे बढ़ना चाहिए. इससे मकसद को हासिल करने में सुविधा होती है़
– बैठक खत्म होने का निर्धारित हो समय : बैठकों को जितना संभव हो सके 15 से 10 मिनट या फिर कई मामलों में 5 मिनट में ही खत्म कर देना चाहिए. एजेंडा के साथ यह सूचना भी होनी चाहिए कि बैठक को कितनी देर में खत्म कर दिया जायेगा. इसलिए बैठक के खत्म होने का समय सभी को पता होना चाहिए.
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