डोनाल्ड ट्रंप के 100 दिन
इस महीने की 29 तारीख को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पदभार संभालने के सौ दिन पूरे हो जायेंगे. वर्ष 1945 से हो रहे गाॅलअप के सर्वेक्षण पर नजर डालें, तो यह पहली बार हुआ है, जब राष्ट्रपति की लोकप्रियता का ग्राफ (37%) से उनकी अलोकप्रियता का ग्राफ (करीब 60%) अधिक है. नीतिगत अनिश्चितता की […]
इस महीने की 29 तारीख को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पदभार संभालने के सौ दिन पूरे हो जायेंगे. वर्ष 1945 से हो रहे गाॅलअप के सर्वेक्षण पर नजर डालें, तो यह पहली बार हुआ है, जब राष्ट्रपति की लोकप्रियता का ग्राफ (37%) से उनकी अलोकप्रियता का ग्राफ (करीब 60%) अधिक है. नीतिगत अनिश्चितता की आशंका के बीच ये 100 दिन गुजर रहे हैं और यह अनुमान लगा पाना अब भी मुश्किल है कब ट्रंप क्या कह दें या कर दें. अब तक के उनके कामकाज के महत्वपूर्ण पहलुओं के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
पिछले दिनों एक सभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिकी इतिहास में उनसे पहले किसी भी प्रशासन ने अपने आरंभिक 100 दिनों में उनसे अधिक उपलब्धियां हासिल नहीं की हैं. अपने बड़बोलेपन के लिए प्रसिद्ध ट्रंप शायद यह भूल रहे थे कि विभिन्न सर्वेक्षणों में उनकी स्वीकार्यता लगातार घट रही है.
यह भी उल्लेखनीय है कि चुनाव में उन्हें महज 46.1 फीसदी मत मिले थे, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन को 48.2 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे. गाॅलअप सर्वेक्षण ने जहां अभी उनकी स्वीकार्यता का स्तर 37 फीसदी बताया है, वहीं प्यू रिसर्च के सर्वे के अनुसार 63 फीसदी अमेरिकी मानते हैं कि वे बेहद जल्दबाजी में फैसले लेते हैं तथा 45 फीसदी का मानना है कि ट्रंप की नीतियों के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की स्थिति कमजोर हुई है. ट्रंप से पहले सबसे कम स्वीकार्यता दर राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की रही थी, पर उनका आंकड़ा इनसे 15 फीसदी बेहतर था.
हर राष्ट्रपति का व्यक्तित्व और काम करने का तरीका भिन्न होता है. कई पर्यवेक्षक यह भी कहते हैं कि 100 दिन का समय किसी प्रशासन के बारे में ठोस आकलन करने के लिए बहुत कम होता है तथा इस अवधि के बाद किये गये निर्णय भी उसे सफल या असफल साबित कर सकते हैं. बहरहाल, राष्ट्रपति ट्रंप के शुरुआती दिनों के बारे में कुछ तथ्यों को देखते हैं. द वाशिंग्टन पोस्ट के मुताबिक, ट्रंप ने अब तक 28 विधेयकों पर हस्ताक्षर किया है जो 1949 के बाद से सबसे अधिक है. वर्ष 1933 में राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने रिकॉर्ड 76 विधेयकों को मंजूरी दी थी. इन कानूनों में ज्यादातर बहुत महत्वपूर्ण निर्णय नहीं हैं या फिर रूटीन आदेश हैं.
कानूनों के अलावा ट्रंप ने 24 एक्जेक्यूटिव आदेशों, 22 प्रेसिडेंशियल मेमोरैंडम और 20 प्रोक्लेमैशन को जारी किया है. पूवर्वर्ती राष्ट्रपतियों के साथ तुलनात्मक अध्ययन के बाद कई जानकारों की राय है कि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नील गोर्सुच की नियुक्ति महत्वपूर्ण निर्णय है जिसका नीतिगत निर्णयों पर असर ट्रंप के पद से हटने के कई सालों बाद तक रहेगा. सीरिया में मिसाइलें दागने और अफगानिस्तान में इसलामिक स्टेट के बंकरों पर भयानक बमबारी जैसी सैन्य कार्रवाईयां जॉर्ज बुश और बराक ओमाबा भी अपने पहले सौ दिनों में कर चुके हैं. बुश ने नो-फ्लाइ जोन बनाने के लिए इराकी राडारों को तहस-नहस किया था, जबकि ओबामा ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या दुगुनी करने की घोषणा की थी.
ट्रंप का ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप व्यापारिक समझौते से हटना एक बड़ा निर्णय है. इसी तरह जॉर्ज बुश ने वैश्विक तापमान रोकने से संबंधित क्योटो प्रोटोकॉल से अमेरिका को हटा लिया था. तीन साल से मिस्र के जेल में बंद अमेरिकी समाजसेवी अया हिजाजी की रिहाई को ट्रंप प्रशासन की बड़ी सफलता माना जा रहा है. इसकी तुलना 1981 में रोनाल्ड रीगन के कार्यभार संभालने के कुछ ही घंटों बाद ईरान में अमेरिकी बंधकों की रिहाई से की जा सकती है. सस्ती स्वास्थ्य सेवा कानून, जिसे आम तौर पर ओबामा केयर की संज्ञा दी जाती है, को हटाना ट्रंप का बड़ा चुनावी वादा था. लेकिन यह कोशिश बिना अंतिम मतदान के ही कांग्रेस में रोक दी गयी.
कुछ प्रशासनिक बहालियों की गति भी बहुत धीमी है. ट्रंप विस्तृत बजट प्रस्ताव भी नहीं पेश कर सके हैं, जो उनके पूर्ववर्ती अमूमन अब तक कर देते थे. प्रवासियों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध का फैसला व्यापक चर्चा का विषय बना था और इसे चुनावी वादे को पूरा करने की दिशा में खास कदम बताया गया था.
पर, अभी इस पर अदालती रोक है. ट्रंप ने यह फैसला दो बार किया और दोनों बार अदालत ने इसे रोक दिया. यह बहुत दिलचस्प है कि ट्रंप कांग्रेस के दोनों सदनों में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत होने के बावजूद अपने फैसलों को अमली जामा पहनाने में सफल होते दिखायी नहीं दे रहे हैं.
राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप इस वास्तविकता का सामना कर रहे हैं कि वे क्या-क्या कर सकते हैं तथा उन्हें अपने फैसलों को लागू कराने में किन अड़चनों का सामना करना पड़ता है. चुनाव अभियान में वादे करना आसान है, पर प्रशासन में सहमति बनाना और कांग्रेस के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल है.
प्रकाश कुमार रे
बेहद निराशाजनक प्रदर्शन
पुष्परंजन
इयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
किसी भी शासन के सौ दिन को ‘हनीमून पीरियड’ कहा जाता है. लेकिन जो ‘हनीमून पीरियड’ में भी हाहाकारी फैसले लेता रहे, उसे अशांत प्रकृतिवाला व्यक्तित्व समझा जाना चाहिए. मैक्सिको-अमेरिका सीमा पर दीवार खड़ी करने का फैसला हो, या पूर्वी अफगानिस्तान में ‘मातृ-बम’ गिराने का मामला, ट्रंप ने अपनी धमक सौ दिन में दिखा दी है. वाशिंगटन-स्थित गॉलअप संस्था दशकों से सर्वे, शोध और शासकों के काम का आकलन करती आ रही है. इसने ‘पब्लिक अप्रूवल’ को पैमाना माना है, जिससे राष्ट्रपति के कामकाज की समीक्षा की जाती है.
गॉलअप ने पांच अमरिकी शासन प्रमुखों को ‘पब्लिक अप्रूवल’ के दायरे में रखा है. शुरूआत अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से की है, जिनके सौ दिन के काम के बारे में अमेरिकी जनता ने 51 प्रतिशत रेटिंग को बढ़ाकर 68 फीसदी कर दिया था. रीगन की छवि में 17 प्वाइंट के इजाफे के पीछे उन पर हुआ जानलेवा हमला भी था, जिससे जनता की सहानुभूति उनके प्रति बढ़ गयी थी. जार्ज बुश की रेटिंग सौ दिन में 51 से बढ़कर 56 फीसदी पर पहुंच गयी थी. राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की रेटिंग सौ दिन में 58 से घटकर 55 पर आ गयी. जूनियर बुश ने सत्ता संभालने के सौ दिन में अपनी रेटिंग 57 फीसदी से 62 प्रतिशत पर लाने में सफलता प्राप्त की थी.
बराक ओबामा के सौ दिन को भी अमेरिकी जनता ने बहुत उत्साहवर्द्वक नहीं माना था और उनके शासन की रेटिंग 68 से तीन प्वाइंट गिरकर 65 हो गयी थी. अब देखें डोनाल्ड ट्रंप की रेटिंग. गॉलअप के अनुसार, ‘जब ट्रंप ने शपथ लिया था, तब उनकी रेटिंग थी 45.5 प्रतिशत. सौ दिन में यह नीचे गिरकर 41.7 प्रतिशत पर पहुंच गयी है. निष्कर्ष यह है कि ट्रंप का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है.
अमेरिका चाहे कर्ज में डूब जाये, ट्रंप प्रशासन द्वारा कारपोरेट टैक्स को 35 से 15 प्रतिशत तक लाने का जो काम हो रहा है, उससे उसकी प्राथमिकता समझ में आती है. अप्रैल में सीरिया पर अमेरिकी टॉमहाक से हमले, और उस हमले के बारे में ट्रंप प्रशासन द्वारा यह बयान कि वहां पर रासायनिक हथियारों का जखीरा है, अमेरिकी आक्रामकता का संकेत देता है.
सीरिया से पलायन कर इसलामिक स्टेट के जो लड़ाके अफगानिस्तान का रूख कर रहे हैं, वह भारत के वास्ते चिंता का विषय है. यह ईरान के लिए भी खतरनाक है. इस समय जो देश सबसे अधिक सकते में है, वह पाकिस्तान है. उसके लिए अमेरिका को साधना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.
चीन को उत्तरकोरिया के विरूद्ध रुख करने का जो दबाव ट्रंप प्रशासन बना चुका है, उसे लेकर जापान और दक्षिण कोरिया आनंद ले रहे हैं. चीन और उत्तर कोरिया के संबंध मछली मारने और नाव जब्त किये जाने के मसले पर कुछ वर्षों से ठीक नहीं चल रहे हैं. चीन ने 2018 तक उत्तर कोरिया से कोयले के आयात पर पाबंदी आयद कर रखी है. इस साल चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उत्तर कोरियाई शासक किम योंग उन से मिलने से मना कर दिया था.
एशिया-प्रशांत रणनीति में भारत कहां खड़ा है, अमेरिका के नये प्रशासन ने स्पष्ट नहीं किया है. रैक्स टिलरसन के विदेश सचिव बनने के बाद 15 फरवरी को फोन पर सुषमा स्वराज ने बात की. मीडिया को यही बताया गया कि आतंकवाद के विरूद्ध सहयोग केंद्रीय विषय था. चार मार्च को भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर टिलरसन से मिले, तब प्रमुख मुद्दा एच-वन बी वीजा था. इस हफ्ते अमेरिका के रक्षा सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल एचआर मैकमास्टर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले, और रणनीतिक सहयोग पर बात की. मगर, किस तरह का सहयोग होना है, और दक्षिण एशिया में ट्रंप क्या चाह रहे हैं- यह शायद सिर्फ मोदी जी को ही पता होगा!
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की कारोबारी उपलब्धियां
अब तक के किसी भी राष्ट्रपति के मुकाबले अपने कार्यकाल के शुरुआती तीन महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मसले पर डोनाल्ड ट्रंप ज्यादा सुर्खियों में रहे हैं. सत्ता में आने के तीन दिन बाद ही उन्होंने 12 देशों के संगठन ट्रांस-पेसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) समझौते से अमेरिका को हटा लिया था. अमेरिका की ओर से 100 दिनों के दौरान यह पहली और एकमात्र व्यापारिक कार्रवाई की गयी है. इस बीच अमेरिका के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ भी कोई खास आर्थिक नीति नहीं बन पायी है. कनाडा, मैक्सिको और अमेरिका के बीच समझौते पर भी ट्रंप की बार-बार आलोचना हुई है. मैक्सिको के साथ कारोबारी रवैये पर वे बेहद कठोर रहे हैं. अमेरिका की क्षमताओं से भयभीत मैक्सिको अब ब्राजील और अर्जेंटिना से मक्का खरीदेगा. अमेरिका मैक्सिको को 2.6 अरब डॉलर मूल्य का मक्का निर्यात करता है, और यदि मैक्सिको ने इतने मूल्य का मक्का किसी दूसरे देश से खरीदने का फैसला लिया, तो इससे अमेरिका के किसानों को नुकसान हो सकता है.
इस दौरान नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (नाफ्टा) में भी कुछ सुधारों के लिए ठोस पहल की पृष्ठभूमि तैयार की गयी है. आनेवाले समय में यह प्रभावी हो सकता है.
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ ट्रंप की वार्ता ने दोनों देशों के बीच एक नये दौर की शुरुआत की है. अमेरिका के उप-राष्ट्रपति माइक पेंस और जापान के उप-प्रधानमंत्री तारो असो के बीच हुई फॉलो-अप मीटिंग से कुछ ऐसे सूचक सामने आये, जिससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय प्रक्रियाओं को आगे बढाया जा सकेगा. इसके ऐतिहासिक नतीजे आने की उम्मीद जतायी गयी है.
ट्रंप आैर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 100 दिनों की एक खास प्रक्रिया पर सहमति जतायी, जिसके तहत खास तौर पर मुश्किल व्यापारिक संबंधों पर दोनों देश ध्यान देंगे. हालांकि, इन घोषणाओं को व्यापारिक समझौतों में तब्दील होने में कितना समय लगेगा और उसके नतीजे क्या होंगे, इसे जानने के लिए अभी इंतजार करना होगा.