स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं आधुनिक स्वास्थ्य तकनीक
दुनियाभर के स्वास्थ्य वैज्ञानिक इनसान को पूरी तरह से सेहतमंद और दीर्घजीवी बनाने में जुटे हुए हैं. आधुनिक तकनीकों के जरिये अनेक लाइलाज बीमारियों का इलाज तलाशा जा रहा है. स्पाइनल कोर्ड रीजेनरेशन यानी रीढ़ की हड्डी को दोबारा पैदा करने से लेकर जीनोम एडिटिंग व मानवीय अंगों की 3डी प्रिंटिंग हासिल करने की दिशा […]
दुनियाभर के स्वास्थ्य वैज्ञानिक इनसान को पूरी तरह से सेहतमंद और दीर्घजीवी बनाने में जुटे हुए हैं. आधुनिक तकनीकों के जरिये अनेक लाइलाज बीमारियों का इलाज तलाशा जा रहा है. स्पाइनल कोर्ड रीजेनरेशन यानी रीढ़ की हड्डी को दोबारा पैदा करने से लेकर जीनोम एडिटिंग व मानवीय अंगों की 3डी प्रिंटिंग हासिल करने की दिशा में आरंभिक कामयाबी मिली है.
वह दिन दूर नहीं, जब आधुनिक विज्ञान की मदद से अनेक समुदायों में लोगों की जीवन प्रत्याशा 100 वर्ष तक पहुंच सकती है. हाल ही में ‘मैकेंजी’ ने इस संदर्भ में ‘लिविंग लोंगर एंड हेल्दीयर लाइव्स’ नाम से प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह उम्मीद जतायी गयी है कि पिछले एक दशक से वैज्ञानिक जिन कार्यों पर जुटे थे, उनमें हासिल हो रही कामयाबी के बूते स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं. आज के मेडिकल हेल्थ पेज में कुछ उन्नत स्वास्थ्य तकनीकों के बारे में चर्चा कर रहे हैं, जिनके जरिये भविष्य में बड़ी सफलता प्राप्त की जा सकती है …
रीजेनरेटिव मेडिसिन
इसे पुनरुत्पाद या पुनर्योजी चिकित्सा भी कह सकते हैं. डायबिटीज और हार्ट की बीमारियों से लेकर स्पाइनल कोर्ड इंज्यूरी तक यानी अनेक किस्म की बीमारियों के इलाज के संदर्भ में रीजेनरेटिव मेडिसिन एक प्रकार से गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं. रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि आगामी एक-दो दशकों में जटिल डीजेनरेटिव बीमारियों से निपटने के लिए रीजेनरेटिव मेडिसिन थिरेपीज कारगर साबित हो सकती है, जिसमें पार्किंसन और अलजाइमर जैसी बीमारियां भी शामिल हैं. हाल के वर्षों में, 50 से भी ज्यादा रीजेनरेटिव मेडिसिन संबंधी प्रोडक्ट्स का क्लिनीक्स में इस्तेमाल किया जा रहा है.
उदाहरण के तौर पर, दुनियाभर में 10 लाख से ज्यादा कैंसर के मरीजों को बोन-मैरो ट्रांसप्लांट जैसी दिक्कतों से जूझना पड़ता है, जिसमें ऐसे सक्षम स्टेम सेल होते हैं, जो इनसान के समूचे ब्लड सिस्टम को दोबारा से गढ़ते हैं. इसके अलावा, आग में जलने की दशा में मरीजों को बचाने के लिए उनके घावों को तेजी से ठीक करने के लिए स्किन स्टेम सेल्स का भी इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही, बड़े घावों के सक्षम और तेज इलाज के लिए वैज्ञानिकों ने मरीज के खुद की कोशिकाओं के इस्तेमाल से ‘स्प्रे ऑन’ तकनीक का विकास किया है.
मौजूदा समय में दुनियाभर में स्टेम- सेल आधारित करीब 800 रीजेनरेटिव थिरेपीज पर परीक्षण जारी है. सेल रिप्लेसमेंट थिरेपी को इस रीजेनरेटिव मेडिसिन का प्रमुख तत्व माना जा रहा है.
बायो इलेक्ट्रॉनिक्स
बायोइलेक्ट्रॉनिक्स एक तरह से मेडिसिन का सबसे उभरता हुआ युग समझा जा रहा है, जिसमें शरीर की व्यापक क्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन के लिए छोटे व इंप्लांट करने लायक उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. मौजूदा समय में रूमेटॉयड आर्थराइटिस और इनफ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज के इलाज के लिए विद्युतीय प्रवाह के असर से इंप्लांट करने लायक उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इन उपकरणों के विकास से इस दिशा में एक बडी उम्मीद कायम हुई है कि आर्थराइटिस, अस्थमा, हाइपरटेंशन व डायबिटीज जैसी बीमारियों का इलाज किया जा सकेगा.
कैंसर के इलाज के लिए एडवांस्ड इम्यूनोथेरेपीज
इम्यूनोथिरेपी एक ऐसा ट्रीटमेंट है, जिसमें कैंसर के खिलाफ लड़ने के लिए शरीर के भीतर प्राकृतिक रूप से क्षमता पैदा की जाती है. इसमें शरीर द्वारा स्वयं या लैबोरेटरी में तैयार की गयी कोशिकाओं या पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है. ह्यूमैन टी सेल्स के उपयोग से इम्यून सिस्टम को दुरुस्त किया जाता है, जो कैंसर के इलाज के तरीके में एक बड़ा बदलाव ला सकता है. खास कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने और उन्हें नष्ट करने के लिए नयी तकनीकों के जरिये मरीज के अपने ही टी सेल्स को जेनेटिकली इंजीनियर किया जा सकता है और इससे एक नयी उपलब्धि हासिल की जा सकती है.
सर्जिकल उपकरणों में 3डी प्रिंटिंग
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अब 3डी प्रिंटिंग के इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है. अमेरिका की संबंधित एजेंसी एफडीए ने 3डी प्रिंटिंग से बनाये गये मेडिकल उपकरणों को वर्ष 2015 में मंजूरी दे दी है, जिन्हें सर्जरी के लिए मरीज के भीतर इंप्लांट किया जा सकता है. उम्मीद की जा रही है कि प्रोस्थेटिक व इंप्लांट योग्य उपकरणों समेत सर्जिकल प्रक्रिया में शामिल एक-तिहाई से अधिक उपकरण वर्ष 2019 तक 3डी प्रिंटिंग से जुडे होंगे. इसके अलावा, फेफड़ों, हार्ट और किडनी जैसे अंगों के काम करना बंद कर देने की दशा में उसे दोबारा से संचालन योग्य बनाने के लिए 3डी प्रिंटिंग आधारित तकनीकों का विकास किया जायेगा.
बायो-प्रिंटेड किडनी टिश्यू और लिवर टिश्यू बनाने की तैयारी
बायो-मैटीरियल और सिंथेटिक बायोलॉजी का मतलब है, जीवन को अपने अनुकूल ढालना. विज्ञान ने डीएनए में बदलाव करके बीमारियों के इलाज के नये रास्ते खोल दिये हैं. इसे जीनोम एडिटिंग भी कह सकते हैं. कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज शरीर खुद कर सके, इसे जीन थिरैपी कहते हैं. अमेरिका के सैन डियागो में स्थित बायो 3डी प्रिंटिंग फर्म ‘ऑर्ग नोवो’ ने विगत वर्षों बायो-प्रिंटेड किडनी टिश्यू काे बनाने में सफलता पायी है. इसके पहले यह कंपनी लिवर टिश्यू तैयार कर चुकी है. इसका मतलब है कि जल्द ही यह कंपनी प्रिंटर की मदद से किडनी और लिवर तैयार कर सकेगी. यह लिवर अभी इनसान के शरीर में लगाया नहीं जा सकेगा. अभी इसका इस्तेमाल विविध दवाओं को विकसित करने के लिए किया जायेगा, लेकिन इतना तय है कि इनसान ने लिवर टिश्यूज का इस्तेमाल करके एक पूरा लिवर बनाने में सफलता हासिल कर ली है.
जीनोम एडिटिंग
जीनोम एडिटिंग एक कोशिका या जीव के डीएनए में विशिष्ट परिवर्तन करने का एक तरीका है. निर्दिष्ट सिक्वेंस के तहत एक एंजाइम डीएनए को काटता है, और जब कोशिकाओं द्वारा इसकी मरम्मत की जाती है, तो इसमें आया बदलाव या संपादन ही सिक्वेंस पैदा करता है. सीआरआइएसपीआर के तौर पर हाल ही में विकसित की गयी तकनीक में यह क्षमता पायी गयी है कि उसके द्वारा महज एक ट्रीटमेंट कोर्स के जरिये इनसान के शरीर में संबंधित जीन्स के स्थायी संपादन से अनेक बीमारियों का इलाज किया जा सकता है.
वर्ष 1990 से 2003 के बीच एचजीपी ने एक प्रोजेक्ट के तहत करीब 25,000 जीनोम की पहचान कर जीन क्रांति की शुरुआत की. वैज्ञानिकों ने दावा किया कि उन्होंने सभी जीन का पता लगा लिया है. इसके बाद ही जीन पर आधारित अन्य शोधों पर काम शुरू हुआ. इसके बाद ही सबसे अधिक जटिल मानव मस्तिष्क पर भी काम शुरू हो सका. विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में तकनीक और मेडिकल इंडस्ट्री में अगर किसी बड़े बदलाव के आसार हैं, तो वो सिर्फ जीनोम क्रांति की वजह से है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
उच्च रूप से एडवांस्ड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम आधारित वाट्सन सुपरकंप्यूटर्स के माध्यम से मेडिकल दस्तावेजों के लाखों पन्नों व मरीजों के रिकॉर्ड, दशकों पुराने इलाज के तरीकों व उनके इतिहास समेत इलाज के तरीकों व विकल्पों को महज कुछ सेकेंड में दर्ज किया जा सकता है. आज ऐसे अनेक स्टार्टअप गठित हो चुके हैं, जो हेल्थकेयर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एप्लीकेशन आधारित कार्यों में जुटे हैं. बड़ी तकनीकी कंपनियाें ने इस संबंध में व्यापक निवेश भी किया है.
डिजिटल सहायक तकनीकें
डिजिटल सहायक तकनीकों में ऐसे व्यापक डिवाइस और इक्विपमेंट शामिल हैं, जो लोगों को किसी तरह की इंज्यूरी होने पर उससे उबारने में मददगार साबित होते हैं. इसके तहत सेंसोरी, फिजिकल और कॉग्निटिव इंपेयरमेंट्स को स्वतंत्र रूप से प्रोत्साहित किया जाता है.
कुछ खास एडवांस उपकरण
– स्मार्ट वाकिंग स्टिक्स : यह एक स्मार्ट स्टिक्स यानी छड़ी है. पैदल चलते समय यदि आप कहीं गिरने लगें, तो यह आपको सचेत करता है.
– इंटरनेट से कनेक्टेड हियरिंग ऐड : श्रवणबाधित लोगों के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले इस उपकरण को आइफोन के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है.
– स्मार्ट ग्लासेज : आंखों के कमजोर होने पर ये कारगर साबित हो सकते हैं.
– इडीम सॉक्स : त्वचा शोथ या सूजन की दशा में पैरों में ये जुराब पहनने से ये उसे पहचान लेते हैं और पहनने वाले को इस बारे में सचेत करते हैं.
– स्मार्ट बेड्स : ये खास बिस्तर सोते समय इनसान के शरीर को विविध तरीके से स्वाभाविक रूप से समायोजित रखते हैं, ताकि लोगों की आदतों को सुधारा जा सके. यह खर्राटा लेने की आदत पर लगाम लगाता है और पैरों को भी गर्म रखता है.