बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम होंगी हेल्थकेयर तकनीकें
देशभर में सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य क्षेत्रों में बीमारियों के मुकम्मल इलाज पर भरपूर जोर दिया जा रहा है. इसके बावजूद मरीजों की दुश्वारियां कम नहीं हो रही हैं. हालांकि, प्राइवेट सेक्टर में इलाज कराने वाले लोगों को आधुनिक सुविधाएं मिल जाती हैं, जिससे उन्हें ज्यादा िदक्कत नहीं होती है, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेेत्र का […]
देशभर में सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य क्षेत्रों में बीमारियों के मुकम्मल इलाज पर भरपूर जोर दिया जा रहा है. इसके बावजूद मरीजों की दुश्वारियां कम नहीं हो रही हैं. हालांकि, प्राइवेट सेक्टर में इलाज कराने वाले लोगों को आधुनिक सुविधाएं मिल जाती हैं, जिससे उन्हें ज्यादा िदक्कत नहीं होती है, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेेत्र का बुनियादी ढांचा ज्यादा विकसित नहीं हो पाने से सामान्य मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल पाता है. इस दिशा में नयी तकनीकें कुछ जरूर उम्मीद की किरण लेकर आयी हैं, जिससे इन मुसीबतों को कम किया जा सकता है और किया भी जा रहा है. कैसे हो रहा है यह सब, जानते हैं आज के मेडिकल हेल्थ आलेख में …
सभी तक समुचित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के मकसद से भारत सरकार ने हाल ही में ‘नयी राष्ट्रीय हेल्थ पॉलिसी’ जारी की है. देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचा मुहैया कराने के संदर्भ में एडवांसमेंट की जरूरत है. हालिया जारी की गयी ‘केपीएमजी हेल्थकेयर रिपोर्ट’ में भारत को दी गयी खराब रैंकिंग यह दर्शाती है कि इस सेक्टर में पारदर्शिता का बेहद अभाव है. दरअसल, ये एडवांसमेंट तकनीकी दक्षताओं के व्यापक इस्तेमाल पर टिके होते हैं, जो किसी प्रकार की भौगोलिक सीमाओं से परे होते हैं. लेकिन भारत जैसे विशाल देश में इस संबंध में बड़ी चुनौती यह है कि यहां करीब 80 फीसदी मेडिकल प्रोफेशनल्स ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हैं, जो इस राह में एक बड़ी बाधा हैं.
सिस्टम पर बढ़ता बोझ
इसके अलावा, व्यापक तादाद में बढ़ रही रोगियों की संख्या और बुढ़ापे की ओर अग्रसर होती आबादी से मौजूदा मेडिकल सिस्टम पर बोझ बढ़ता जा रहा है, जो सेहत की देखभाल से जुड़े मसलों को निपटाने में विलंब का बड़ा कारण हैं. मरीजों और मेडिकल हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स के बीच इस अभूतपूर्व विभाजन के अस्तित्व ने तकनीक के इस्तेमाल से इस क्षेत्र में बढ़ती हुई मांग को पूरा करने में मदद की है. उदाहरण के तौर पर, मेडिकल केयरगिविंग एरिना यानी स्वास्थ्य देखभाल के दायरे में नर्सिंग एक प्रमुख क्षेत्र है.
हालांकि, इस तथ्य की प्रचुरता से अनदेखी की गयी है, और इसके बावजूद यह काफी मांग पैदा करता है, भले ही इसकी आपूर्ति कम है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किये गये एक अध्ययन के तहत ‘द हेल्थ वर्कफोर्स इन इंडिया’ शीर्षक से जून, 2016 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि भारत में प्रत्येक एक लाख आबादी पर नर्सों या मिडवाइफ्स की संख्या महज 61 है. इस पर विडंबना यह कि इसके तेजी से परिणाम देने के प्रति लोगों की उम्मीदें और बढ़ती जा रही हैं. लोग चाहते हैं कि उन्हें ‘कहीं भी’ और ‘कभी भी’ स्वास्थ्य सेवाएं हासिल होनी चाहिए. मौजूदा समय में हम एक अत्यंत ही व्यक्तिगत रूप से सिकुड़ती हुई दुनिया में जी रहे हैं, जहां मरीज अपने लिए एक समुचित इलाज की सुविधा को सुनिश्चित करना चाहता है.
इनोवेटिव टेक्नोलॉजी आधारित देखभाल सुविधा
इसलिए इनोवेटिव टेक्नोलॉजी आधारित देखभाल की व्यवस्था इतनी चुस्त है कि बेहतर पेशेंट केयर व मेडिकल कर्मचारियों का इस्तेमाल सक्षम तरीके से करते हुए यह स्वास्थ्य सेवाओं में श्रेष्ठ बदलाव ला सकता है. नेक्स्ट जेनरेशन टेक्नोलॉजी की ताकत का भरपूर इस्तेमाल करने से एक ऐसा मॉडल तैयार किया जा सकता है, जिससे नर्सिंग एलोकेशन प्रक्रिया को आसान बनाने में सुविधा होगी. इससे मरीजों को उनकी जरूरत के मुताबिक उनके घरों तक आसानी से संबंधित सुविधाएं मुहैया करायी जा सकती हैं. स्टाफ शिड्यूलिंग को 70 फीसदी तक कम करते हुए हॉस्पीटल और ट्रीटमेंट सेंटर प्राथमिकता के आधार पर उन मरीजों तक मदद पहुंचा सकते हैं, जिन्हें सबसे पहले इसकी जरूरत है.
एक क्लिक पर मरीज की सेहत की जानकारी
सिंगल इंटरफेस के इस्तेमाल से हेल्थ प्रोफेशनल्स महज एक क्लिक पर मरीज की सेहत के बारे में समग्रता से जान पाते हैं. चूंकि हेल्थकेयर सेक्टर में बहुत से आंकड़े कागज आधारित हैं, जिस कारण हेल्थ प्रोफेशनल्स को उच्च संख्या में आंकड़ों को फिल्टर करने के अलावा उन्हें मरीजों के हितों के अनुरूप संग्रह और उनका विश्लेषण भी करना होता है. आंकड़ों को हासिल करते हुए ‘इनोवेटिव केयर सोलुशंस’ के इस्तेमाल से लागत घटाने और क्षमता के विस्तार को सक्षम तरीके से अंजाम दिया जा सकता है, क्योंकि इस तरीके में मानवीय त्रुटि की गुंजाइश कम रहती है और इलाज में भी देरी होने की आशंका कम रहती है.
कार्यक्षमता में हुई 20 फीसदी तक बढ़ोतरी
फिलहाल नर्सिंग समुदाय इस सेक्टर के जोखिम से जुड़े तथ्यों को कम करने के लिए एक मजबूत रणनीति को लागू करने के तरीकों की तलाश कर रहा है. नर्सों को पार्ट-टाइम के रूप में काम करने की मंजूरी देते हुए उन्हें कुछ अतिरिक्त कमाई का जरिया मुहैया कराया जा रहा है. इससे उन पर से दबाव कम होगा और मरीज-आधारित प्रैक्टिस को प्रभावी तरीके से प्रोत्साहित किया जा सकता है.
रीयल-टाइम आंकड़े एकत्रित करते हुए इस क्षेत्र में इनोवेटिव समाधान मुहैया कराया जा सकता है, जिससे संबंधित कर्मचारियों की कार्यक्षमता को सकारात्मक रूप से 20 फीसदी तक बढाया जा सकता है, जिससे मरीजों को मुुहैया करायी जानेवाली स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा में निश्चित तौर पर इजाफा होगा.
(हेल्थ इकोनोमिक टाइम्स में प्रकाशित इंटेलनेट ग्लोबल सर्विसेज के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर भूपिंदर सिंह की रिपोर्ट का अनुवादित व संपादित अंश, साभार)
टेलीमेडिसिन और वेब-आधारित डायग्नोस्टिक सेवाओं से व्यापक बदलाव
इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स, एमहेल्थ, टेलीमेडिसिन और वेब-आधारित डायग्नोस्टिक सेवाओं जैसे सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी आधारित उपकरणों के इस्तेमाल से यह साबित हो रहा है कि हेल्थकेयर के क्षेत्र में ये चीजें बड़ा बदलाव लाने में सक्षम हो सकती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की बढ़ती संख्या और उनकी जरूरतों में हो रही वृद्धि को देखते हुए आधुनिक हेल्थकेयर के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सिस्टम का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल में लाये.
फैकल्टी ऑफ हेल्थ एंड बायोलॉजिकल साइंसेज, सिंबायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थकेयर विशेषज्ञ राजीव येरावडेकर के हवाले से ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में हेल्थ प्रोडक्ट और सर्विस मुहैया करानेवाली 150 से ज्यादा कंपनियों की सक्रियता से हेल्थकेयर आइटी में तेजी से ग्रोथ देखने में आ रहा है. पुणे ऐसी कंपनियों का हब बन चुका है, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस हालात को बदलने में अहम भूमिका निभायी है.
हेल्थकेयर एप्स में उभार, सूचना की पहुंच व उपलब्धता से यह आसान बन चुका है व इससे हालात बेहतर होने की उम्मीद जगी है.
येरावडेकर का कहना है, ‘यह समूचा उद्योग मरीज-संचालित है. पेशेंट मैनेजमेंट सोलुशन, क्लिनीकल व सपोर्टिव डिपार्टमेंट्स के लिए हॉस्पीटल इन्फॉर्मेशन सिस्टम सरीखी सेवाओं समेत प्रशासकीय सेवाओं को इसमें शामिल किया गया है. हेल्थकेयर प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स व क्लाउड कंप्यूटिंग सोलुशंस में तेजी से ग्रोथ दिख रहा है.
मरीज की उन्नत तरीके से देखभाल
आइटी को अपनाये जाने से हासिल होने वाली खासियतों से हॉस्पीटल के खर्चों में कमी आ रही है और साथ ही कुछ समय बाद यह मरीजों के लिए भी लाभदायक साबित होता है. इसके अलावा, यह फर्जीवाड़ा कम करने के साथ बेहतर केयर कॉर्डिनेशन, रिकॉर्ड्स की आसान पहुंच, मरीज की उन्नत तरीके से देखभाल और वेलनेस के लिए यह मददगार साबित होगा.
सिंबायोसिस सेंटर ऑफ हेल्थकेयर द्वारा इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स एप्लीकेशन के प्रभावी इस्तेमाल के लिए 30,000 छात्रों व कर्मचारियों के संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें हॉस्पीटलाइजेशन के दौरान बिना किसी त्रुटि और देरी के सक्षम डाटा मैनेजमेंट व सूचना प्रसार के नतीजे हासिल किये गये हैं. निजी अस्पतालों के अलावा सार्वजनिक हेल्थकेयर सिस्टम के लिए मरीजों की देखभाल में हेल्थकेयर आइटी को अपनाना शुरू कर दिया गया है.
सूचना प्रौद्योगिकी से जोड़ने के लिए डाॅक्टरों को विशेष प्रशिक्षण
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पुणे चैप्टर के इ-कम्युनिकेशन सेल के चेयरमैन व पीडियाट्रिशियन और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट राजीव जोशी के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकारी स्वास्थ्य विभागों में कार्यरत कुछ वरिष्ठ अधिकारी अपने इ-मेल बहुत कम ही चेक करते हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य में ज्यादातर लोग रिपोर्टिंग मैकेनिज्म के तहत हार्ड कॉपी यानी पेपर आधारित रिकॉर्ड ही फाइल में रखते हैं. इ-मेल या एक्सेल शीट पर बनायी गयी रिपोर्ट को कम ही पढ़ा जाता है, जो इस दिशा में एक बाधा है.जोशी का मानना है कि हेल्थकेयर में इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी का बहुत ही कम इस्तेमाल होता है.
बीमारियों के बारे में समग्रता से पता लगाने के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली जैसी चीजों के इस्तेमाल से बहुत से लोग अनभिज्ञ हैं. आज जरूरत इस बात की है कि डॉक्टर्स को इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी जाये, खासकर आंकड़ों के एकत्रिकरण व उनके विश्लेषण के संबंध में, ताकि किसी प्रकार की बीमारी होने की आशंका को समय रहते भांप लिया जा सके. इससे कई बार संक्रमण को फैलने से बचाया जा सकता है.