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रेटिना का एडवांस इलाज : रोबोट करेगा आंखों की नाजुक सर्जरी

आंख के भीतर रेटिना बेहद नाजुक हिस्सा होता है. कई बार रेटिना के आसपास गैर-जरूरी झिल्ली बन जाने से इनसान की आंखों की दृष्टि कम होने लगती है. यह हिस्सा अत्यंत बारीक होता है और इसमें किसी तरह की गड़बड़ी पैदा होने पर मैनुअल सर्जरी के जरिये उसे हटाना बड़ी चुनौती होती है. ऐसे में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 11, 2017 6:53 AM
आंख के भीतर रेटिना बेहद नाजुक हिस्सा होता है. कई बार रेटिना के आसपास गैर-जरूरी झिल्ली बन जाने से इनसान की आंखों की दृष्टि कम होने लगती है. यह हिस्सा अत्यंत बारीक होता है और इसमें किसी तरह की गड़बड़ी पैदा होने पर मैनुअल सर्जरी के जरिये उसे हटाना बड़ी चुनौती होती है. ऐसे में मेडिकल वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गयी रोबोटिक सर्जरी तकनीक एक नयी उम्मीद लेकर आयी है, जो रेटिना की सर्जरी को बेहद बारीकी से अंजाम देने में सक्षम हो सकती है. क्या है रेटिना की यह समस्या और रोबोटिक सर्जरी के जरिये कैसे किया जा सकता है इसका इलाज समेत इससे संबंधित विविध पहलुओं को बता रहा है आज का मेडिकल हेल्थ पेज …
आंख की सर्जरी करनेवाले विशेषज्ञों ने इनसान की आंख के भीतर सर्जरी के लिए पहली बार रोबोट का इस्तेमाल किया है. इससे रेटिना की अनावश्यक झिल्ली को निकालने के लिए बेहद नाजुक सर्जरी काे अंजाम देने की प्रक्रिया को विकसित किया है. रेटिना में हुए ऐसे अनावश्यक ग्रोथ इनसान की दृष्टि को विकृत करते हैं, और यदि इनकी जांच नहीं की जाती है या फिर इनकी अनदेखी करने पर आंखों पर इसका असर पड़ सकता है और इनसान की दृष्टि भी जा सकती है.
मौजूदा समय में, डॉक्टर बिना रोबोट की मदद के ही ऐसी सामान्य सर्जरी को अंजाम देते हैं. लेकिन, रेटिना की नाजुक प्रकृति को, और जहां ये संचालित होती हैं, वहां इनके खुलने में संकुचन को देखते हुए, यहां तक कि अपेक्षाकृत अधिक कुशल सर्जन इसे ज्यादा गहनता से काट सकते हैं, ताकि आंख में उससे होनेवाले किसी तरह के साइड इफेक्ट को कम-से-कम किया जा सके.
हाल ही में शोधकर्ताओं ने इस संबंध में न्यू रोबोटिक सर्जरी का एक छोटा सा परीक्षण किया है, जिसमें इन चीजों को दर्शाया गया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सर्जरी इतनी नाजुक है कि सर्जन के हाथ के जरिये इसे अंजाम देते वक्त रक्त का स्पंदन होने से ‘कट लगाने’ की सटीकता प्रभावित हो सकती है.
झिल्ली हटाने की सर्जरी
‘लाइव साइंस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूनाइटेड किंगडम के एक अस्पताल में इसका परीक्षण किया गया है. इन सर्जनों ने 12 मरीजों पर किये इस परीक्षण के माध्यम से यह दर्शाया है कि रोबोट की मदद से मेंब्रेन-रीमूवल यानी झिल्ली को हटाने की सर्जरी को कैसे अंजाम दिया जा सकता है. इनमें से छह मरीजों पर पारंपरिक प्रक्रिया ही अपनायी गयी है, जबकि छह मरीजों पर नयी रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. इस परीक्षण में यह पाया गया कि जिन छह मरीजों पर नयी रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया, उनमें उल्लेखनीय रूप से रक्त का स्राव बहुत ही कम हुआ और साथ ही इससे रेटिना को भी बहुत ही कम नुकसान हुआ.
इस शोध अध्ययन के प्रमुख और यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में ऑफ्थेल्मोलॉजी के प्रोफेसर डॉक्टर इ मैकलेरेन का कहना है कि भविष्य में आंख की सर्जरी को ज्यादा एडवांस बनाने के लिए यह नया दृष्टिकोण मुहैया करा सकता है. मैकलेरेन ने इसी सप्ताह बाल्टीमोर में आयोजित किये गये एसोसिएशन फॉर रिसर्च इन विजन एंड ऑफ्थेल्मोलॉजी की सालाना बैठक में परीक्षण के इन नतीजों को प्रस्तुत किया है.
मैकलेरेन के सहयोगी और ऑफ्थेल्मोलॉजी के विशेषज्ञ व नीदरलैंड में रोबोट का डिजाइन करने में मददगार रहे डॉक्टर मर्क डी स्मेट का कहना है, ‘यह एक नयी और पावरफुल तकनीक का आरंभिक स्टेज है. बेहद नाजुक सर्जरी के दौरान हमने इसकी सुरक्षा को प्रदर्शित किया है. इस सिस्टम के तहत 10 माइक्रोन के उच्च स्तर तक सुरक्षा दर्शायी जा सकती है.’
क्या है असल समस्या?
रेटिना पर मेंब्रेन ग्रोथ यानी झिल्ली के विस्तार का नतीजा एपिरेटिनल मेंब्रेन की दशा कहलाता है, जो दृष्टिबाधा का एक सामान्य कारण है. रेटिना आंख के पीछे एक पतली लेयर होती है, जो प्रकाश तरंगों को नर्व इंपल्स में तब्दील करती है, जिसे दिमाग एक तसवीर के रूप में विश्लेषित करता है.
आंखों में ट्रॉमा या डायबिटीज जैसी दशाओं के कारण इपिरेटिनल मेंब्रेन सृजित हो सकता है, लेकिन ज्यादातर यह आंखों में डाले जानेवाले तैलीय पदार्थ सरीखे वाइट्रस में स्वाभाविक बदलाव के कारणों से संबंधित होता है. उम्र बढने के साथ धीरे-धीरे वाइट्रस में संकुचन पैदा होने लगता है और रेटिना की सतह से दूर खींचती जाती है, जिससे कई बार आंसू निकलने लगते हैं.
झिल्ली अनिवार्य रूप से रेटिना पर एक निशान है. यह एक फिल्म की तरह कार्य कर सकता है, स्पष्ट दृष्टि को अस्पष्ट कर सकता है, या यह रेटिना के आकार को विकृत कर सकता है. झिल्ली रेटिना के केंद्र के निकट धब्बे पर बन सकता है, जो इमेज को तेजी से रेखांकित करता है, जो किसी चीज को देखने या पढ़ने के लिए एक भरोसेमंद प्रक्रिया है. जब यहां झिल्ली निर्मित होती है, तो इनसान की केंद्रीय दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है और वह विरूपित हो जाती है.
झिल्ली को हटा कर किया जाता है इसमें सुधार
इस संदर्भ में मैकलेरेन का कहना है कि झिल्ली को हटाते हुए इनसान की दृष्टि में सुधार किया जा सकता है, लेकिन यह सर्जरी बेहद जटिल है. झिल्ली की मोटाई मात्र लगभग 10 माइक्रोन होती है.
यह इनसान के बाल की चौड़ाई का लगभग दसवां हिस्सा होता है और रेटिना को बिना कोई नुकसान पहुंचाये इसे बेहद सावधानी से हटाना होता है. डॉक्टर मैकलेरेन का कहना है कि यह काम अपनेआप में बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि मरीज के हार्टबीट से उसके शरीर के सक्रिय रहने के कारणों से कई बार वहां अस्थिरता पैदा हो जाती है, जिससे इस कार्य में बाधा पैदा होती है.
नीदरलैंड में यूनिवर्सिटी ऑफ इंडहोवेन में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डी स्मेट और मार्टिन स्टेनबक ने वर्ष 2011 में रोबोटिक सिस्टम के मौजूदा कार्यकारी मॉडल को तैयार किया था. इस सिस्टम की उपयोगिता को वर्ष 2015 में उन्होंने सुअरों पर प्रदर्शित किया था, जिनकी आंखें इनसान की आंखों की तरह समझी जाती है. डॉक्टर मैकलेरेन ने सितंबर, 2016 में एक 70 वर्षीय वृद्ध पर ऑक्सफोर्ड में इसका प्रयोग किया. इस सर्जरी की कामयाबी के बाद उन्होंने अपने अध्ययन में अन्य 11 लोगों को भीशामिल किया.
मैकलेरेन कहते हैं, ‘रोबोटिक टेक्नोलॉजी बेहद रोमांचक है और इसमें रेटिना संबंधी विविध विकृतियों को सुरक्षित तरीके से सर्जरी करने की क्षमता मौजूद है.’
क्या है रेटिना और इसकी बीमारी
इनसान की आंख के पिछले पर्दे को रेटिना कहते हैं. इसमें कुछ कोशिकाएं होती हैं, जिन तक प्रकाश पहुंचता है और उसी प्रकाश का विश्लेषण करके यह नजर आने वाली चीज की पहचान करती हैं यानी देखने में सक्षम होती हैं. इनसान की आंख की ज्यादातर बीमारी रेटिना में खराबी की वजह से ही होती हैं. रेटिना में खराबी से उसमें प्रकाश का विश्लेषण करने की क्षमता नष्ट या कम हो जाती है. अभी तो इस तरह की बीमारियों का कोई ठोस इलाज नहीं है और एक बार अगर नजर चली जाती है, तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से होगी रेटिना में
विकृति की पहचान
शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक ऐसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को विकसित किया है, जो आंखों में पैदा होनेवाली किसी प्रकार की विकृतियों (खासकर रेटिना में) की पहचान करने में सक्षम हो सकता है. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि भविष्य में यह शोध बेहद कामयाब होगा और मरीजों में आंखों की बीमारियों के जोखिम को समय रहते पहचाना जा सकेगा. ‘सीआरएन डॉट कॉम डॉट एयू’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दो वर्षों से जारी इस शोध में आंखों में पैदा होने वाली अनेक प्रकार की विकृतियों को ऑटोमेटिक तरीके से पहचानने पर फोकस किया गया है और रेटिना समेत आंख के अनेक हिस्सों में संबंधित लक्षणों को
जानने में कुछ हद तक कामयाबी मिली है. यह तकनीक दायें
और बायें आंख की इमेज के फर्क को पहचान सकती है.
इस तकनीक का परीक्षण करने के लिए 88,000 रेटिना इमेज स्कैन किया गया और इसके लिए इमेज एनालिटिक्स टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया. इस शोध में यह दर्शाया गया कि संबंधित आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के जरिये ऑप्टिक कप-टू-डिस्क अनुपात के सांख्यिकीय प्रदर्शन के आधार पर ग्लूकोमा के प्रमुख लक्षणों को निर्धारित किया जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, यह पहचान करीब 95 फीसदी तक
सटीक पायी गयी थी.

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