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मुश्किल हो रही स्टार्टअप इंडिया की राह नये उद्यमों की फंडिंग में गिरावट

भारत में स्टार्टअप की राह दिन-ब-दिन मुश्किल होती जा रही है. हालांकि, सरकार की व्यापक पहल के चलते वर्ष 2015 में स्टार्टअप की ओर निवेशक तेजी से आकर्षित हुए और टेक स्टार्टअप्स को बड़ी संख्या में निवेशक भी मिले, लेकिन उसके बाद से इस ओर निवेशकों का आकर्षण धीरे-धीरे कम होता गया. ‘वीसीसीएज’ ने वर्ष […]

भारत में स्टार्टअप की राह दिन-ब-दिन मुश्किल होती जा रही है. हालांकि, सरकार की व्यापक पहल के चलते वर्ष 2015 में स्टार्टअप की ओर निवेशक तेजी से आकर्षित हुए और टेक स्टार्टअप्स को बड़ी संख्या में निवेशक भी मिले, लेकिन उसके बाद से इस ओर निवेशकों का आकर्षण धीरे-धीरे कम होता गया. ‘वीसीसीएज’ ने वर्ष 2017 की पहली तिमाही में स्टार्टअप की दशा-दिशा पर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसका विश्लेषण कर रहा है आज का यह विशेष पेज.
जैसे-जैसे भारतीय स्टार्टअप सेक्टर परिपक्व होता जा रहा है, उद्यमियों को निवेशकों की तलाश करने में दिक्कतें आ रही हैं. हाल ही में जारी फाइनेंशियल रिसर्च प्लेटफॉर्म ‘वीसीसीएज’ की स्टार्टअप डील रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017 की पहली तिमाही के दौरान स्टार्टअप डील्स में पिछले वर्ष की इस अवधि के मुकाबले 47.45 फीसदी की कमी आयी है.
जनवरी से मार्च, 2017 की तिमाही में 120 डील्स हुए, जो यह दर्शाता है कि आरंभिक एंजेल और सीड इनवेस्टमेंट का वॉल्यूम करीब आधा हो चुका है. पिछले वर्ष इसी अवधि में 245 डील्स हुए थे. साथ ही पिछले एक वर्ष के समयांतराल में सीड फंडिंग के जरिये ग्राहकों के आधार में विस्तार और कारोबार के विकास के संदर्भ में होनेवाले डील वैल्यू में भी करीब 65 फीसदी कमी आयी है.
निवेशकों ने चुने परिपक्व स्टार्टअप्स
इस रिपोर्ट में एक नयी चीज देखने में यह आयी है कि बाद के स्टेज पर फंडिंग करने के लिए निवेशकों ने ज्यादा परिपक्व स्टार्टअप्स को चुना है. वर्ष 2017 की पहली तिमाही में सीरीज बी डील्स की संख्या में करीब 16 फीसदी कमी के बावजूद पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले इसकी फंडिंग वैल्यू 22 फीसदी ज्यादा रही है. वीसीसीएज के बिजनेस हेड गौरव रॉय के हवाले से ‘क्वार्ज इंडिया’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सीड व सीरीज बी फंडिंग में हुई बढोतरी का ट्रेंड यह दर्शाता है कि आरंभिक और मध्यवर्ती स्तर पर किये जानेवाले निवेश के प्रति निवेशक ज्यादा सचेत हैं. टेक्नोलॉजी सेक्टर इस दौरान निवेशकों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय रहा. इसके बाद उन्होंने फाइनेंस, फूड, ट्रैवल, हेल्थ व रीयल एस्टेट में निवेश किया है.
बाजार में फंडिंग की कमी
फंडिंग की कमी का मुख्य कारण बाजार के ओवरसैचुरेटेड यानी अति संतृप्त हो जाने से संबंधित है. वर्ष 2015 में फंड की उगाही सबसे ज्यादा हुई थी. साथ ही विलय और अधिग्रहण के मामले भी ज्यादा हुए थे. हालांकि, रिपोर्ट यह दर्शाती है कि स्टार्टअप स्पेस में विलय व अधिग्रहण के डील्स में तिमाही-दर-तिमाही 75 फीसदी तक की तेजी आयी है. ये डील्स भी फंडिंग का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं.
बेंगलुरु रहा सबसे आगे
इस वर्ष की तिमाही के दौरान बेंगलुरु प्राइम स्टार्टअप शहर रहा, जहां देशभर में हुए डील्स में से 24 फीसदी को अंजाम दिया गया. भारत की आइटी राजधानी कही जाने वाली इस सिटी में 96 मिलियन डॉलर का कुल डील वैल्यू दर्ज किया गया.
दूसरे स्थान पर दिल्ली एनसीआर
दिल्ली एनसीआर यानी नेशनल कैपिटल रीजन में 38 डील्स के तहत 44 मिलियन डॉलर की फंडिंग हासिल हुई इस अवधि के दौरान. इसके बाद तीसरे नंबर पर मुंबई और चाैथे व पांचवें नंबर पर क्रमश: चेन्नई व हैदराबाद रहे.
भारतीय स्टार्टअप सेक्टर में फंडिंग का ट्रेंड
बीते तिमाही के नतीजे दर्शाते हैं कि इस संबंध में मौजूदा ट्रेंड बरकरार हैं. भारत में स्टार्टअप सेक्टर में होने वाली फंडिंग में लगातार गिरावट आ रही है. इससे बडे स्टार्टअप्स का नुकसान बढ़ गया अौर उनका मूल्यांकन तेजी से घट गया.
7.6 अरब डॉलर की फंडिंग हुई थी भारत में स्टार्टअप सेक्टर में वर्ष 2015 में.
3.8 अरब डॉलर की फंडिंग ही हो पायी भारतीय स्टार्टअप्स में वर्ष 2016 के दौरान.
2,281 स्टार्टअप शुरू हुए भारत में जून, 2014 के बाद से अगले दो वर्ष की अवधि के दौरान.
997 स्टार्टअप बंद हो गये जून, 2014 के बाद से अगले दो वर्ष की अवधि के दौरान.
– पिछले वर्ष औसत भारतीय स्टार्टअप को पहले राउंड की फंडिंग हासिल करने से पहले छह से ज्यादा निवेशकों को इसके लिए एप्रोच करना पड़ा था.
सेक्टर के अनुसार स्टार्टअप में किये गये डील्स
डील वैल्यू डील्स की संख्या
फिनटेक 18.5 11
ट्रैवल टेक 11.3 4
फूड टेक 11.1 8
रीयल एस्टेट टेक 10 2
हेल्थ टेक 8.43 10
नोट : डील वैल्यू मिलियन डॉलर में.
(स्रोत : वीसीसीएज स्टार्टअप डील रिपोर्ट, पहली तिमाही, 2017)
कामयाबी की राह
कर्मचारियों के दीर्घकालिक हितों पर जोर देने से बढ़ता है मनोबल
दुनियाभर में कंपनियों के संबंधित अधिकारी आसानी से यह नहीं समझ पाते कि कम-से-कम खर्च में कर्मचारियों को कैसे प्रोत्साहित किया जा सके. अनेक कंपनियां वित्तीय पुरस्कार देने का तरीका चुनती हैं. वेतन बढोतरी व बोनस को प्राथमिकता दी जाती है. ज्यादातर अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि वित्तीय पुरस्कारों से जो ऊर्जा हासिल होती है, उससे मुख्य तौर पर अल्प-कालिक प्रोत्साहन मिलता है, जो कई बार दीर्घावधि में नुकसानदेह भी साबित होते हैं. कठिन दौर में संगठनों को अपने प्रतिभाशाली लोगों को प्रोत्साहन के जरिये अपने यहां टिकाये रखने में चुनौती का सामना करना होता है.
ऑनरशिप मेंटेलिटी : ऐसे में कर्मचारियों के दिमाग में ऑनरशिप मेंटेलिटी यानी मालिकाना मानसिकता के अर्थबोध को पैदा करते हुए उन्हें व्यापक रूप से प्रोत्साहित किया जा सकता है.
यदि मैनेजमेंट इसे हासिल करने में सफल रहा, तो कर्मचारी स्वयं अपना काम बेहतर तरीके से करने में सक्षम हो जायेंगे. उनके लिए किसी प्रकार के पर्यवेक्षण की जरूरत नहीं होगी. उनके लिए वे सभी चीजें करना मुमकिन हो जायेंगी, जिससे कंपनी की उत्पादकता और आखिरकार मुनाफा बढाया जा सकेगा.
अधिकार के साथ जिम्मेवारी भी : कर्मचारियों को अधिकार देने के साथ जिम्मेवारी भी सौंपें.
ऐसा होने पर वे गंभीरता से अपनी जिम्मेवारियों को अंजाम देंगे. अपने निर्धारित दायरे के भीतर वे एक नेता की भांति व्यवहार करेंगे. उनके लिए नयी चुनौती प्रस्तुत करें और कठिन लक्ष्य निर्धारित करें, ताकि उच्च स्तर की क्षमता प्रदर्शित हो सके. आज अधिकांश कंपनियां ‘रिकॉग्निशन’ के बजाय ‘रिवार्ड’ यानी ‘पहचान’ के बजाय ‘पुरस्कार’ की महत्ता को महसूस कर रही हैं.
कर्मचारियों पर जतायें भरोसा : बेहतर कार्य करनेवाले कर्मचारी को किसी प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने का मौका देते हैं, तो यह उसे दिये जानेवाले कैश बोनस, मूल वेतन में बढोतरी जैसे वित्तीय प्रोत्साहकों के बजाय ज्यादा प्रभावी प्रोत्साहक की भूमिका निभायेंगे. इससे सभी कर्मचारियों के बीच यह मैसेज जायेगा कि मैनेजमेंट ने उसकी कीमत, कार्य-कुशलता और योगदान को समझा है.
इससे कर्मचारियों को मैनेजमेंट के प्रति इस बात का भरोसा पैदा होगा कि वे उनकी बेहतरी, कैरियर में सुधार और समग्र विकास का ख्याल रखते हैं.
स्टार्टअप क्लास
अच्छे और प्रेरक वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करते हुए की जा सकती है कमाई
ऋचा आनंद
बिजनेस रिसर्च व एजुकेशन की जानकार
– छोटे-छोटे पांच-सात मिनट के प्रेरक वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करते हुए कैसे कमाई की जा सकती है? डिजिटल दौर में प्रेरक किताबों से आगे बढ़ते हुए क्या इन चीजों की वीडियो बनाते हुए पेशेवर अंदाज दिया जा सकता है? चुनौतियां व अवसर बतायें. – शंभुनाथ मिश्र, रक्सौल
यूट्यूब वीडियो साझा करने का सबसे लोकप्रिय ऑनलाइन प्लेटफार्म है. आप इसके जरिये अपने मौलिक वीडियो साझा करके पैसे कमा सकते हैं. रोजमर्रा के तनावों के कारण लोगों का रुझान प्रेरक ज्ञान की तरफ बढ़ रहा है. इस क्षेत्र में ऑनलाइन वीडियो किताबों के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय साबित हो सकते हैं. इस अवसर का लाभ उठाने के लिए आप ऐसे शुरुआत कर सकते हैं :
(क) एक अच्छे कैमरे की मदद से आप अपना एक मौलिक और अच्छी क्वालिटी का वीडियो बनायें और इसे अपने यूट्यूब या जीमेल आइडी से यूट्यूब पर अपलोड करें.
(ख) आपका उद्देश्य अपने वीडियो के लिए ज्यादा-से-ज्यादा दर्शक जुटाना है, जिसके लिए आप सोशल मीडिया के जरिये इसे प्रमोट कर सकते हैं. इसके अलावा सर्च इंजन परिणाम में ऊपर दिखने के लिए उपयुक्त कीवर्ड और टैग का इस्तेमाल करें.
(ग) सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इससे आमदनी कैसे की जाये. यह आप गूगल एडसेंस के जरिये कर सकते हैं. आप यूट्यूब पार्टनर प्रोग्राम को ज्वाइन कर लें और अपने सभी वीडियो में गूगल एड्स मोनेटाइजेशन को सक्रिय कर लें. अब आपके वीडियो के दर्शकों के अनुपात में आपको आमदनी होगी. गूगल एडसेंस से अपने बैंक खाता को जोड़ लेने से आपकी आय स्वतः हर महीने आपके खाते में चली जायेगी. इससे जुड़ी चुनौतियां इस प्रकार हैं :
(क) ध्यान रखें कि वीडियो कंटेंट से कोई कॉपीराइट उल्लंघन न हो और न ही यह अशिष्ट या भड़काऊ हो.
(ख) यूट्यूब एक निःशुल्क चैनल है. इसलिए इसके माध्यम से कोई भी आसानी से इस व्यवसाय से जुड़ सकता है, जिस कारण इसमें प्रतिस्पर्धा भी ज्यादा है.
(ग) किसी भी अन्य ऑनलाइन माध्यम की तरह अपने यूट्यूब चैनल पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना और उनकी दिलचस्पी बनाये रखना, दोनों ही बड़ी चुनौती हो सकती है. इसके अलावा यूट्यूब स्वयं भी आपको हर कदम पर दिशा-निर्देश देता रहता है. अामदनी शुरू होने के लिए थोड़ा धैर्य बनाये रखें.
अनेक तकनीकों से किया जा सकता है एयर प्यूरीफायर का निर्माण
– दिल्ली में स्कूलों की हवा को स्वच्छ बनाये रखने का दिशा-निर्देश दिया गया है. आनेवाले समय में इसका दायरा बढ़ सकता है. सामान्य लोग भी घरों में अब एयर प्यूरिफायर लगा सकते हैं. कम लागत में इसे कैसे बनाया जा सकता है?
– सुधांशु शेखर, रांची
विकसित देशों के मुकाबले भारत में एयर प्यूरीफायर मार्केट अभी शुरुआती दौर में है. पिछले कुछ सालों में इसमें अभूतपूर्व विकास हुआ है और आगे भी होने की संभावना है. इसलिए इसमें अभी काफी तकनीकी बदलाव भी अपेक्षित हैं. फिलहाल इसका टारगेट मार्केट मुख्यतः व्यावसायिक संस्थाएं हैं, लेकिन भविष्य में निजी उपयोग में भी वृद्धि हो सकती है. चूंकि आपका सवाल इसके उत्पादन को लेकर है, इसलिए अभी एयर प्यूरीफायर में इस्तेमाल की जा रही तकनीकें इस प्रकार हैं :
(क) मैकेनिकल फिल्टर : इसमें प्यूरीफायर हवा को तीव्र गति से खींचता है और एक मोटे फिल्टर से हवा को पास करता है. इस फिल्टर में छेद इतनी छोटी होती हैं कि छोटे-से-छोटे कण को भी हवा से अलग कर देती हैं. इस तरह के फिल्टर में हेपा फिल्टर ज्यादा प्रचलित और कारगर है.
(ख) इलेक्ट्रोस्टैटिक फिल्टर : इसमें प्यूरीफायर के अंदर डस्ट को इलेक्ट्रिकल चार्ज के जरिये हवा से अलग किया जाता है. चार्ज हुए डस्ट कण एक कलेक्शन प्लेट में जमा हो जाते हैं. इनके रख-रखाव की लागत कम है.
(ग) ओजोन जेनेरेटर : इस तरह के प्यूरीफायर में ओजोन का उत्पादन करके हवा को स्वच्छ किया जाता है.इनके अलावा और कई तकनीकें भी सामने आ रही हैं, जिन पर अभी और प्रयोग हो सकता है. इनमें से एक प्यूरीफायर पानी को फिल्टर के रूप में इस्तेमाल करता है, जिसमें अलग से कोई फिल्टर नहीं होता. इस कारण इसके उत्पाद का खर्च कम होगा और इसका रख-रखाव भी आसान होगा.
असंगठित क्षेत्र में फर्नीचर कारोबार में छोटे उद्यमियों के लिए संभावना
– फर्नीचर बनाने का कारोबार शुरू करने के लिए विदेशों से लकड़ी व प्लाई आदि खरीदने के सरकारी नियम क्या हैं? इस उद्यम के बारे में कुछ संक्षिप्त जानकारी दें.
– सुनील पाठक, बेतिया
हमारे देश में फर्नीचर का बाजार काफी बड़ा है और अधिकतर यह असंगठित क्षेत्र में है. उस लिहाज से छोटे उद्यमियों के लिए इसमें काफी संभावनाएं हैं. फर्नीचर के लिए टीक, पार्टिकल वुड, रबर वुड जैसी लकड़ियों का आयात होता है. इनके आयात के लिए सरकार की तरफ से स्पष्ट प्रावधान हैं :
(क) आपके पास अपना एक इंपोर्ट-एक्सपोर्ट कोड (आइइसी) होना चाहिए. यह आप डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) से प्राप्त कर सकते हैं.
(ख) उत्पाद के अनुसार लकड़ी के किस्म का चयन कर लें और उसके अनुसार निर्यातक देश के प्रावधानों का भी अध्ययन कर लें.
(ग) लकड़ी के आयात के लिए फाइटो-सैनिटरी सर्टिफिकेट की जरूरत होती है. प्लांट और क्वारंटाइन विभाग में भी पंजीकरण करना जरूरी होता है.
(घ) भारतीय कस्टम्स द्वारा मंजूर सारे आयात नियमों को भी समझने और अनुसरण करने की जरूरत है. इससे आपको लकड़ी के किस्म और उपयोगिता के आधार पर लगने वाली आयात कर की भी जानकारी मिलेगी. आपको एक सक्षम कस्टम्स ब्रोकर की सेवाएं लेनी होंगी, जो कि आयात की सारी प्रक्रिया समझने और पूरी करने में आपकी मदद करेगा.

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