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कश्मीरी प्रतिभा को दिशा दे रहे तीन बिहारी

!!विवेकानंद सिंह!! आज तक आपने शायद ही किसी को ऐसा कहते सुना होगा कि ‘चलो रेगिस्तान में फूल खिलाते हैं’. वैसे भी जब फूल खिलाने के लिए अपने पास मिट्टी पर्याप्त हो, तो भला कोई रेगिस्तान क्यों जाना चाहेगा? लेकिन, दुनिया बदलने का जज्बा रखनेवालों का इरादा कुछ ऐसा ही होता है. बिहारके तीन अलग-अलग […]

!!विवेकानंद सिंह!!
आज तक आपने शायद ही किसी को ऐसा कहते सुना होगा कि ‘चलो रेगिस्तान में फूल खिलाते हैं’. वैसे भी जब फूल खिलाने के लिए अपने पास मिट्टी पर्याप्त हो, तो भला कोई रेगिस्तान क्यों जाना चाहेगा? लेकिन, दुनिया बदलने का जज्बा रखनेवालों का इरादा कुछ ऐसा ही होता है. बिहारके तीन अलग-अलग शहरों के तीन युवा दोस्तों की कहानी कुछ ऐसी ही है.
पिछले कुछ वर्षों में बिहार-झारखंड के कई शहर कोचिंग के बड़े हब बन कर उभरे हैं. ऐसे में अगर कोई बिहारी कोचिंग खोलने के लिए बिहार को छोड़ कर किसी अन्य जगह को चुनता है, तो एक पल के लिए आपके दिमाग में वह बात अटकती है. उसमें भी जगह अगर तनावग्रस्त कश्मीर हो, तो इसके पीछे की वजह जानने की आपकी जिज्ञासा और भी बढ़ जाती है. दरअसल, पटना के इंबिसात अहमद, दरभंगा के सलमान शाहिद और मुजफ्फरपुर के सैफी करीम, कश्मीर के रहनेवाले मुबीन मसूदी के साथ मिल श्रीनगर में ‘राइज’ नाम से इंजीनियरिंग की एक कोचिंग क्लासेज चला रहे हैं.
ये चारों खुद भी इंजीनियर हैं. हालांकि, इंबिसात ने हमसे कहा कि उनका मकसद इन कश्मीरी प्रतिभाओं को सिर्फ इंजीनियर बनाना नहीं, बल्कि उन्हें देश-दुनिया की हर बड़ी परीक्षा को क्रैक करने के लिए तैयार करना है.इंबिसात और सलमान आइआइटी, खड़गपुर के बैचमेट हैं, वहीं, सैफी ने दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है. इस वर्ष इनकी कोचिंग के 41 छात्रों ने आइआइटी-जेइइ की एडवांस परीक्षा के लिए क्वालिफाइ किया है.
इन लोगों ने मिल कर राइज नाम से एक एप भी बनाया है, जिसके जरिये डिजिटली भी क्वेश्चन को एक्सेस किया जा सकता है. इसके लिए इन्हें डीइएफ द्वारा आयोजित वर्ष 2016-17 का मंथन अवार्ड भी मिला है.
अभयानंद से मिली कोचिंग देने की प्रेरणा : इंबिसात और सलमान की दोस्ती पटना स्थित, रहमानी-30 से ही शुरू हुई, यह कोचिंग बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद के मार्गदर्शन में चलती है.वहीं से पढ़ कर दोनों ने आइआइटी क्वालिफाइ किया. उनके मुताबिक, उन्हें कोचिंग देने की प्रेरणा पूर्व डीजीपी अभयानंद से मिली. इंबिसात कहते हैं कि जॉब से मिलनेवाली मोटी सैलरी उनकी जिंदगी तो बदल सकती थी, लेकिन शिक्षक बन कर समाज में एक साथ व्यापक बदलाव लाया जा सकता है. इस तरह पढ़ाई के दौरान से ही इन लोगों ने जरुरतमंद छात्रों को पढ़ाना शुरू कर दिया था.
नक्सल प्रभावित इलाकों में भी दी कोचिंग
आइआइटी, खड़गपुर में पढ़ाई के दौरान भी इंबिसात, सलमान और इनके कुछ दोस्त छुट्टियों में बिहार के नक्सल प्रभावित जिले औरंगाबाद, कैमूर आदि में जाकर 10वीं से 12वीं तक के छात्रों को फ्री में कोचिंग देते थे. इस दौरान इन्होंने महसूस किया कि उन बच्चों के सपनों पर जैसे किसी ने ब्रेक लगा दिया हो. लगभग महीने भर कोचिंग देने के बाद इन्होंने पाया कि इन छात्रों को अगर सही मार्गदर्शन मिले, तो वे हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं. इसी तरह ये तीनों छुट्टियों में कश्मीर घूमने गये हुए थे. इन्होंने वहां भी देखा कि कश्मीरी किशोरों व युवाओं में प्रतिभा होते हुए भी वे मार्गदर्शन के अभाव में मुख्यधारा में शामिल होने से वंचित रह जाते हैं. फिर उन्हें आसानी से गुमराह किया जा सकता है. कश्मीर के उन किशोरों की स्थिति भी इन्हें बिहार के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चों-सी ही लगी. इसी दौरान इन्होंने तय किया कि पढ़ाई पूरी करके वे कश्मीर में कोचिंग शुरू करेंगे.
फैमिलीवालों का मिल रहा है साथ
बैंक मैनेजर के पद से रिटायर हो चुके इंबिसात के पिता मो एहतेशाम अहमद पहले तो बेटे के इस फैसले से थोड़े डरे थे, क्योंकि कश्मीर में जाकर पढ़ाने का बेटे का फैसला उन्हें पसंद नहीं था. यही स्थिति सैफी के बिजनेसमैन पिता सरफराज करीम की भी थी, लेकिन जब लोगों से इनके काम को तारीफ मिलने लगी, तो वे भी खुश हो गये. मूल रूप से दरभंगा के रहनेवाले सलमान के पिता प्रोफेसर शाहिद जामिया मिलिया इस्लामिया, विश्वविद्यालय में गणित पढ़ाते हैं. वे दिल्ली में ही रहते हैं. सलमान बताते हैं कि उनके पिता ने उनके हर फैसले में हमेशा साथ दिया. यह भी एक वजह रही कि ये लोग कश्मीर में कोचिंग शुरू कर पाये.
कश्मीर के लोगों का मिल रहा सपोर्ट
इन लोगों ने जब वर्ष 2012 में कोचिंग की शुरुआत की तो सिर्फ चार छात्रों ने नामांकन लिया, लेकिन चारों को मिली सफलता के बाद हर वर्ष छात्रों की संख्या बढ़ती चली गयी. पिछले वर्ष भी इनके चार छात्रों ने आइआइटी व 30 छात्रों ने एनआइटी के लिए क्वालिफाइ किया था. पिछले दिनों इनकी कोचिंग में पढ़नेवाले छात्र शेख मुअज्जिन को अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के प्रिंसटन कॉलेज में एडमिशन लेने का मौका मिला है. इंबिसात और सलमान बताते हैं कि इन सफलताओं ने उनके लिए भी आशा की एक किरण का काम किया है. कश्मीर के लोग भी इनको पूरा सपोर्ट कर रहे हैं.
सुबह पांच बजे खुल जाती थी कोचिंग
कश्मीर के हालात के सवाल पर उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष जब चार महीने के लिए कश्मीर में कर्फ्यू का माहौल था, तब भी इनके यहां छात्र पढ़ने आते थे. चूंकि कर्फ्यू आठ बजे से लागू होता था, इसलिए वे पांच बजे से आठ बजे तक छात्रों को कोचिंग देते थे. इनकम के सवाल पर इंबिसात बताते हैं, ‘अगर पैसा कमाना हमारा मकसद होता, तो हमें कश्मीर आकर कोचिंग शुरू करने की कोई जरूरत नहीं थी. हां, बेसिक सैलरी के बराबर कमाई हो जाती है, जिससे हमलोग अपना जीवनयापन आराम से कर लेते हैं.’

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