वन बेल्ट वन रोड : अर्थतंत्र को बदल देने की चीनी मंशा

चीन ने पिछले दिनों ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल पर चर्चा के लिए 60 से अधिक देशों को आमंत्रित किया था, जिनमें अमेरिका, रूस, तुर्की आदि भी शामिल हैं. यह चीनी आर्थिक और विदेश नीति का जोरदार दावं माना जा रहा है. जानकार इसे आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी पहल के रूप में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 17, 2017 5:59 AM
चीन ने पिछले दिनों ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल पर चर्चा के लिए 60 से अधिक देशों को आमंत्रित किया था, जिनमें अमेरिका, रूस, तुर्की आदि भी शामिल हैं. यह चीनी आर्थिक और विदेश नीति का जोरदार दावं माना जा रहा है.
जानकार इसे आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी पहल के रूप में देख रहे हैं. हालांकि, भारत को भी इसमें बुलाया गया था, पर इसका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों, कानूनों, पारदर्शिता और संप्रभुता को किनारे रख कर उठाये जानेवाले ऐसे कदम वैश्विक हितों के विरुद्ध हैं. भारत ने परियोजनाओं को पूरा करने की गारंटी, देशों पर कर्ज का बोझ बढ़ने और पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को भी रेखांकित किया है. इस मुद्दे के विभिन्न आयामों पर आधारित आज के इन-डेप्थ की प्रस्तुति…
– जेन पर्लेज एवं यूफान हुआंग
वरिष्ठ पत्रकार
ला ओस के जंगलों से भरे पहाड़ों में चीनी इंजीनियर सैकड़ों सुरंगे और पुल बनाने के काम में जुटे हैं. वे छह बिलियन डॉलर की 260 मील लंबी रेल परियोजना पर लगे हैं जिसके जरिये आठ एशियाई देशों को जोड़ा जाना है. चीनी धन से पाकिस्तान में बिजली संयंत्र बन रहे हैं, जो प्रस्तावित 46 बिलियन डॉलर के निवेश का हिस्सा हैं. चीन के नीति-नियंता यूरोप में बुडापेस्ट से बेलग्रेड तक पटरियां बिछाने की प्रक्रिया में हैं जिनसे चीनी वस्तुओं की आपूर्ति उस महादेश में होगी. इसके लिए यूनान में चीन के स्वामित्ववाले बंदरगाह का इस्तेमाल होना है.
अशिया, अफ्रीका और यूरोप में इस तरह की सैकड़ों परियोजनाओं पर काम चल रहा है जो चीन के महत्वाकांक्षी आर्थिक एवं भू-राजनीतिक एजेंडा का मुख्य आधार हैं. देश की कंस्ट्रक्शन कंपनियों के लिए नये बाजार बनाने और राज्य के नेतृत्व में होनेवाले इसके विकास मॉडल को दुनिया में निर्यातित करने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग लगातार संबंध बना रहे हैं और समझौते कर रहे हैं. वे गहरे आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते बनाने के लिए प्रयासरत हैं.
‘वन बेल्ट, वन रोड’ के नाम से की जा रही यह पहल अपने आकार और उद्देश्य में इतनी व्यापक है कि आधुनिक इतिहास में ऐसा कोई और उदाहरण नहीं है. इसके तहत 60 से अधिक देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए एक ट्रिलियन डॉलर के निवेश का वादा है. चीन के इस नये वैश्विक प्रभाव का उत्सव मनाने के लिए बीते दिनों राष्ट्रपति जिनपिंग ने दर्जनों राजनेताओं और प्रतिनिधियों को बीजिंग में आमंत्रित किया था.
यह चीन की शर्तों पर होनेवाला वैश्विक वाणिज्य है. जिनपिंग चीन के धन और औद्योगिक ज्ञान का इस्तेमाल कर नये तरह का वैश्वीकरण रचना चाह रहे हैं, जहां पश्चिमी वर्चस्ववाले बुढ़ाते संस्थाओं के नियम-कायदों की भूमिका नहीं होगी. उनका उद्देश्य वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को बदलाव कर देशों और कंपनियों को चीन के आभामंडल में लाना है.
बुनियादी तौर पर यह पहल चीनी हितों को साधती है. आर्थिक वृद्धि के साथ चीन अपनी जरूरत से अधिक इस्पात, सीमेंट और मशीनों का उत्पादन कर रहा है. इस कारण जिनपिंग बाकी दुनिया, खासकर विकासशील देशों, की ओर देख रहे हैं, ताकि उनकी अर्थव्यवस्था गतिशील रहे.
इस पहल के लिए समर्पित समूह इंटरनेशनल कोऑपरेशन सेंटर ऑफ द नेशनल डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म कमीशन के महानिदेशक साव वेनलियन का कहना है कि ‘राष्ट्रपति जिनपिंग मानते हैं कि यह एक दीर्घकालिक योजना है, जिसमें मौजूदा और भावी पीढ़ियां शामिल होकर चीनी और वैश्विक आर्थिक वृद्धि को तेज करेंगी. यह नये वैश्वीकरण 2.0 के नेतृत्व की योजना है.’
राष्ट्रपति जिनपिंग अमेरिका के द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पुनर्निर्माण के लिए बने मार्शल प्लान के अधिक साहसी स्वरूप को लेकर अग्रसर हैं. तब, अमेरिका ने यूरोप के सहयोगी देशों को सुरक्षित करने के लिए भारी मदद दी थी. चीन सैकड़ों बिलियन डॉलर का सरकार-समर्थित कर्ज बांट रहा है, ताकि दुनियाभर में उसके नये दोस्त बन सकें. इस बार सैन्य जिम्मेवारियों की जरूरत के बिना यह सब हो रहा है.
चीनी राष्ट्रपति की योजना राष्ट्रपति ट्रंप और उनके ‘अमेरिका फर्स्ट’ मंत्र के बिल्कुल विपरीत है. ट्रंप प्रशासन ने ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप से हाथ खींच लिया है, जो कि अमेरिका के नेतृत्व में बना एक व्यापारिक समझौता था, जिसकी स्थापना चीन के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए की गयी थी. जनवरी में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में राष्ट्रपति जिनपिंग ने कहा था कि ‘संरक्षणवाद के रास्ते पर चलने का मतलब है खुद को एक अंधेरे कमेरे में बंद कर लेना.’
कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रमुख के रूप में जिनपिंग चीन की छवि में रचे वैश्विक नेतृत्व को आगे ले जाने की जुगत लगा रहे हैं और उनका जोर आर्थिक क्षमता और सरकारी हस्तक्षेप पर है. और चीन सभी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को ‘वन बेल्ट, वन रोड’ की बड़ी छतरी के तहत बिना धन की कटौती किये ला रहा है.
चीन की गति इतनी तेज है कि वह इस यात्रा में अल्पकालिक गलतियां करने के लिए भी तैयार है, क्योंकि वह इन्हें दीर्घकालिक फायदे के रूप में देखता है. यहां तक कि पाकिस्तान और केन्या जैसे भ्रष्टाचार से त्रस्त देशों में वित्तीय परियोजनाओं को मदद देने में उसे कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि ये उसे सैन्य और कूटनीतिक कारणों से उचित लग रहे हैं.
अमेरिका और उसके बड़े यूरोपीय और एशियाई सहयोगी देश इस चीनी पहल को लेकर सुरक्षात्मक रवैया अपनाये हुए हैं, क्योंकि वे चीन के रणनीतिक उद्देश्यों को लेकर आशंकित हैं. कुछ ने इसमें शामिल होने से सीधे मना कर दिया है, जिनमें ऑस्ट्रेलिया भी है. भले ही उसके इलाके में यह योजना कार्यान्वित होनेवाली है, भारत भी चिंतित है, क्योंकि चीन द्वारा बनायी जानेवाली सड़कें पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर के विवादित क्षेत्रों से होकर गुजरेंगी.
लेकिन किसी भी राजनेता, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर्ता-धर्ता या अंतरराष्ट्रीय बैंकर के लिए यह असंभव है कि वह वैश्विक व्यापार में बदलाव के चीनी प्रयासों को नजरअंदाज कर सके.
(द न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित लेख का अंश. साभार)
क्या है ओबीओआर के मायने
‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) एशियाई, अफ्रीकी, और यूरोपीय देशों के साथ चीन को जोड़नेवाला चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. दरअसल, चीन अपनी इस पहल से सड़क के साथ-साथ जलमार्गों से भी विभिन्न देशों के साथ संपर्क और समझौतों को साधना चाहता है.
यह प्रोजेक्ट चीन के घरेलू विकास के लिए अहम तो है ही, साथ ही चीन इससे अपनी आर्थिक कूटनीति को भी अंजाम देना चाहता है. ‘वन बेल्ट’ और ‘वन रोड’ के तहत चीन ‘सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट’ और ‘मेरीटाइम सिल्क रोड’ पर काम कर रहा है. इस संपर्क के जरिये चीन मुख्य रूप से पांच बिंदुओं पर केंद्रित कर रहा हैं- नीतिगत साझेदारी, ढांचागत निर्माण (रेलवे और हाइवे), निर्बाध व्यापार, वित्तीय समेकन और व्यक्ति-दर-व्यक्ति संपर्क को बढ़ावा.
भारत का विरोध क्यों?
भारत द्वारा चीन की इस आर्थिक नीतिगत पहल के विरोध की बड़ी वजह ‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ (सीपीइसी) है. पाक-अधिकृत कश्मीर से गुजरनेवाला सीपीइसी ओबीओआर का ही हिस्सा है. हाल ही में विदेश मामलों के मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा था कि ‘हम सब संपर्क को बढ़ावा देना चाहते हैं, चूंकि, सीपीइसी ओबीआइआर का हिस्सा है और यह भारतीय क्षेत्र से होकर गुजर रहा है, यह हमारे लिए चिंता का विषय है.’ भारत ने संप्रभुता का हवाला देते हुए सीपीइसी के पाक-अधिकृत कश्मीर से गुजरने पर आपत्ति जतायी है. भारत के विरोध के बावजूद दक्षिण एशियाई देशों ने बेल्ट एंड रोड फोरम में शामिल होना स्वीकार किया.
क्या है बेल्ट एंड रोड फोरम ?
ओबीओआर मुद्दे पर उच्च स्तरीय वार्ता हेतु बीजिंग में दो दिवसीय बेल्ट एंड रोड फोरम (बीआरएफ) का आयोजन किया गया. इसमें 29 देशों के प्रमुख और कई देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए. हालांकि, भारत ने आपत्ति जताते हुए इस फोरम का बहिष्कार कर दिया.
चीन की चार बड़ी अंतरराष्ट्रीय परियोजनाएं-
ब्रिटेन- परमाणु संयंत्र
हिंक्ले प्वाॅइंट सी परमाणु ऊर्जा संयंत्र के प्रस्तावित 23.7 बिलियन के बजट में चीन एक-तिहाई हिस्सा निवेशित कर रहा है. एक बड़ी पश्चिमी अर्थव्यवस्था में बन रहे इस संयंत्र को बेल्ट-रोड योजना में रखा गया है.
अफ्रीका- रेल
चीन ने अफ्रीका के पहले बहुराष्ट्रीय इलेक्ट्रिक रेलवे के चार बिलियन डॉलर के खर्च का अधिकांश वहन किया है. इसे इसी साल चालू किया है और यह दिजिबौती से अदीसअबाबा तक 466 मील लंबी है. चीनी कंपनियों ने इसका सिस्टम डिजाइन किया है और ट्रेनों की आपूर्ति की है. चीनी इंजीनियरों की देख-रेख में इस लाइन को छह सालों में पूरा किया गया है.
पाकिस्तान-बंदरगाह
अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह और चीन से जोड़ने के लिए रेल और सड़क बनाने का काम चल रहा है, जिससे यूरोप की दूरी काफी कम हो जायेगी. यह बंदरगाह 46 बिलियन डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का हिस्सा है.
लाओस- रेल
उतरी लाओस से देश की राजधानी तक 260 मील लंबे इस रेल परियोजना पर चीन छह बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है. इसका साठ फीसदी हिस्सा पहाड़ों को काट कर बनाया जाना है.
नेपाल के फोरम में शामिल होने के मायने
नेपाल और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंध काफी मजबूत हैं, लेकिन इसमें चीन के दाखिल होने से भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है. चीनी विदेशी नीति के विशेषज्ञों ने दावा किया था कि फोरम में नेपाल के शामिल होने से भारत पर दबाव बढ़ेगा, अन्यथा भारत क्षेत्र में अलग-थलग पड़ जायेगा. चीन इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपररी इंटरनेशनल रिलेशन के निदेशक हू शिशेंग का मानना है कि भारत के पड़ोसियों के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने से क्षेत्र में भारत की स्थिति कमजोर होगी. इससे भारत की रचनात्मकता कमजोर पड़ेगी.
घरेलू राजनीति का नतीजा है भारत की प्रतिक्रियाः ग्लोबल टाइम्स
भारत आशा करता है कि वह द्विपक्षीय संबंधों को अधिक सक्रियता से आकार दे सकता है, और वह चीन से अपेक्षा करता है कि वह भारत के हितों पर विशेष ध्यान दे. लेकिन, देशों के आपसी रिश्ते इस तरीके से नहीं बनते हैं. बेल्ट एंड रोड पहल पर भारत की प्रतिक्रिया कुछ उसकी घरेलू राजनीति के लिए और कुछ चीन पर दबाव बनाने के लिए है.
लेकिन भारत की बीजिंग फोरम में अनुपस्थिति से कोई असर नहीं पड़ा और बाद में जब दुनिया में इस पर प्रगति होगी, तब बच-खुचा असर भी समाप्त हो जायेगा. अगर भारत को खुद को बड़ी ताकत मानता है, तो उसे चीन के साथ मतभेदों के साथ तालमेल बैठाना चाहिए और उन्हें प्रबंधित करने की कोशिश करनी चाहिए. यह लगभग नामुमकिन है कि दो बड़े देश हर बात पर सहमत हो जायें. इसे चीन और अमेरिका के मतभेदों से साबित किया जा सकता है.
लेकिन, दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को ठीक रखा है. इससे भारत सीख ले सकता है. दो देशों के बुनियादी हितों के आधार पर ही दोस्ताना रिश्ते कायम होते हैं. चीन और भारत के बीच के खास खींचतान को गंभीर भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का संकेत नहीं माना जाना चाहिए.(ग्लोबल टाइम्स चीनी सरकार द्वारा संचालित समाचार-पत्र है. यह अंश उसके संपादकीय से लिया गया है.)
ओबीओआर कांफ्रेंस में किसने क्या कहा?
गरीबी, सामाजिक अराजकता, देशीय एवं क्षेत्रीय विकास में कमी अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद व उग्रवाद के साथ-साथ पलायन की वजह बनते हैं. वैश्विक आर्थिक स्थिरता के बल पर ही हम ऐसी तमाम चुनौतियों से निपट सकते हैं.
ब्लादिमीर पुतिन, राष्ट्रपति, रूस
यह हमारी साझी जिम्मेवारी है कि विश्व अर्थव्यवस्था दुनिया के लोगों के लिए हितैषी बने.
अंतानियो गुटारेस, संयुक्त राष्ट्र महासचिव शांति और विकास दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. ‘वन बेल्ट, वन रोड’ से स्पष्ट है कि भू-अर्थव्यवस्था भू-राजनीति से श्रेष्ठ साबित हो रही है और गुरुत्वीय केंद्र
अब विरोध से समझौतों में बदल रहा है.हम इसे आतंकवाद और चरमपंथ से निबटने के रास्ते के तौर पर देख रहे हैं.
नवाज शरीफ, प्रधानमंत्री, पाकिस्तान.
मैं जानता हूं कि अमेरिका उन देशों में शामिल रहा है, जो ‘बेल्ट एंड रोड’ को लेकर आशंकित हैं. लेकिन, यह स्पष्ट है कि चीन ‘बेल्ट एंड रोड’ इनीशिएटिव में जितना बाहरी साझेदारी के लिए खोलेगा, उतनी ही इसकी दुनिया और अमेरिकी
फर्मों व आपूर्तिकर्ताओं के बीच स्वीकार्यता बढ़ेगी.
हेनरी पॉलसन, पूर्व ट्रेजरी सेक्रेटरी, यूएस

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