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चांद को धरती का आठवां महादेश बनाने में जुटी कई कंपनियां
खूबसूरती के प्रतीक चांद को दुनिया का आठवां महादेश बनाने की तैयारी की जा रही है. इस अभियान में बड़े देशों की कई कंपनियां जुटी हैं. वह चांद पर पानी से लेकर हीलियम तक तलाशने का काम शुरू करने वाली हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद पर मौजूद हीलियम को धरती पर लाने में […]
खूबसूरती के प्रतीक चांद को दुनिया का आठवां महादेश बनाने की तैयारी की जा रही है. इस अभियान में बड़े देशों की कई कंपनियां जुटी हैं. वह चांद पर पानी से लेकर हीलियम तक तलाशने का काम शुरू करने वाली हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद पर मौजूद हीलियम को धरती पर लाने में सफलता मिलती है तो विश्व में आनेवाले एक हजार साल तक की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा.
सिद्धार्थ भदौरिया
आज धरती पर तेजी से खत्म हो रहे प्राकृतिक संसाधनों को देखते हुए कुछ लोग इसकी तलाश के लिए धरती से बाहर की ओर रुख करने की योजना बना रहे हैं. ऐसा ही प्रयास करने वाली एक कंपनी है मून एक्सप्रेस़ यह अमेरिकी कंपनी चांद पर खुदाई का काम शुरू करने वाली है. ताकि वहां पर मौजूद संसाधनों का उपयोग पृथ्वी पर किया जा सके़ मून एक्सप्रेस के मालिक रिचर्ड का कहना है कि चांद पृथ्वी के आठवें महादेश की तरह है. अभी पूरी तरह से इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है़ मैं और मेरे जैसे कुछ साहसी लोग उन शुरुआती अग्रदूतों की तरह हैं जो पूरी तरह से एक नयी दुनिया की तलाश में चांद पर जा रहे हैं.
चांद पर मौजूद ध्यानाकर्षण वाले संसाधनों में प्लेटिनम और हीलियम – 3 है. कुछ लोगों का मानना है कि चांद पर पानी का भंडार भी है. इसके अलावा इरेडियम व पैलेडियम को लेकर भी लोग आशान्वित हैं. इन धातुओं में एक विशेष गुण होता है, जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने के लिए काफी उपयोगी होता है.
ऐसे तत्व पृथ्वी पर काफी कम मात्रा में उपलब्ध हैं. लेकिन, ऐसा हो सकता है कि चांद पर यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो.रिचर्ड को उम्मीद है कि बहुत जल्द चांद पर बहुमूल्य संसाधनों की मौजूदगी के बारे में सबको खबर होगी. यह अलग बात है वहां मिलने वाला कौन सा संसाधन सबसे अधिक उपयोगी होगा, यह भविष्य बतायेगा. मून एक्सप्रेस अकेली ऐसी कंपनी नहीं है, जिसने चांद पर मौजूद संसाधनों का व्यावसायिक इस्तेमाल करने का मन बनाया है. इस दौड़ में विश्व के कई देश और वहां की निजी कंपनियां शामिल हैं.
जापान की कंपनी पानी की तलाश करेगी
जापान की एक कंपनी आइस्पेस चांद पर पानी की तलाश शुरू करने वाली है. पिछले दिसंबर में आइस्पेस ने जापान नेशनल स्पेस एजेंसी के साथ चांद पर माइनिंग, ट्रांसपोर्ट और चांद के संसाधनों के उपयोग को लेकर एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया है. शुरुआती चरण में 2018 से 2023 के बीच यह कंपनी चांद का पूर्वेक्षण करेगी. इसके तहत चांद पर खोजी रोबोट उतारे जायेंगे, जो वहां की सतह पर पानी की तलाश करेंगे. कंपनी का चांद पर व्यावसायिक काम 2024 में शुरू होगा. मून एक्सप्रेस के रिचर्ड एक बात को लेकर दावा करते हैं कि सूर्य के चारों ओर एक घेरे के रूप में मौजूद क्षुद्रग्रह पर बर्फ के रूप में पानी मौजूद है़ इन क्षुद्र ग्रहों से अंतरिक्ष में पानी की जरूरत पूरी की जा सकती है.
अमेरिका की दो कंपनियां प्लेनेटरी रिसोर्सेस और डीप स्पेस इंडस्ट्री क्षुद्रग्रह पर खुदाई के काम को लेकर योजना बना रही है. डीप स्पेस के चेयरमैन रिक टिमलिसन कहते हैं कि उनकी कंपनी की योजना 2020 तक पहले किसी क्षुद्रग्रह पर एक पूर्वेक्षण रोबोट उतारने का है.
यह क्षुद्रग्रह पर संभावित जल संसाधनों का अध्ययन व खोज करेगा. इसके बाद वहां से एक टुकड़ा लेकर आयेगा. इस टुकड़े को सौर शक्ति से उसका वाष्पीकरण कर पानी के रूप में परिवर्तित किया जायेगा. क्योंकि क्षुद्रग्रहों से पानी का दोहन करना काफी आसान है. अगर सब कुछ योजना के मुताबिक होता है तो 21वीं सदी के मध्य तक संसाधनों का बड़ी मात्रा में उत्पादन संभव हो सकेगा. प्लेनेटरी रिसोर्स कंपनी की योजना भी जल की खोज पर की केंद्रित है. इसके सीइओ क्रिस लेविकी कहते हैं कि सौर ऊर्जा से क्षुद्रग्रह की सतह को गर्म कर वहां से पानी उत्सर्जित किया जा सकता है.
चीन की रुचि हीलियम-3 खोजने में
जापान के अलावा चीन भी चांद को उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है. खासकर चीन की रुचि चांद पर मौजूद हीलियम 3 में है. हीलियम 3 का उपयोग ऊर्जा स्रोत के रूप में आसानी से किया जा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य से जारी होने वाले आइसोटॉप सौर हवाओं में तैरते हुए पृथ्वी की ओर जरूर आते हैं, लेकिन यहां के वायुमंडल के कारण यह सतह तक नहीं पहुंच पाते हैं. वहीं इसे चांद पर पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होती है. इसलिए चांद की सतह पर यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है. हीलियम 3 को यहां आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है.
यह एक नन रेडियोएक्टिव एजेंट है. यह कोई भी खतरनाक तत्व उत्सर्जित नहीं करता है. चीन के वैज्ञानिक सलाहकार प्रो ओयांग जियुन का मानना हैं कि अगर चांद पर मौजूद हीलियम 3 का इस्तेमाल ऊर्जा के रूप में किया जाये, तो पृथ्वी पर 10000 साल तक की ऊर्जा की जरूरत पूरी हो सकती है. चांद पर हीलियम 3 की खुदाई की वकालत हैरिसन स्मिथ ने भी की है. हैरिसन एक भूविज्ञानी हैं और नासा के अपोलो 17 मिशन के दौरान चांद पर जा चुके हैं. उन्होंने इस बात का जिक्र 2006 में लिखी अपनी किताब ‘रिटर्न टू द मून’ में किया है. वह कहते हैं कि हीलियम 3 का ऊर्जा में रूपांतरण संलयन प्रौद्योगिकी से संभव है़ इसे शोधकर्ता लंबे समय से टालते आये हैं.
अंतरिक्ष में बनेंगी कॉलोनियां
पानी के अलावा प्लेनेटरी रिसोर्स और डीप स्पेस अंतरिक्ष में भवन निर्माण सामग्री ले जाने की भी योजना बना रहे हैं. इससे अंतरिक्ष में तैरने वाली संरचना का निर्माण किया जा सकेगा. इसे पृथ्वी से लांच करने की आवश्यकता नहीं होगी. अंतरिक्ष में विशालकाय संरचनाओं का निर्माण ठीक उसी प्रकार से किया जा सकेगा, जैसा कि साइंस फिक्शन फिल्मों में देखने को मिलता है.
इस निर्माण में चांद व क्षुद्रग्रह से मिलने वाले धातु और पानी की सहायता ली जायेगी. साथ ही थ्रीडी प्रींटिंग जैसे तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा. इन तकनीकों का इस्तेमाल आजतक पृथ्वी पर इस पैमाने पर नहीं हो सका है. इसी तरह एलेन मुस्क और जेफ बिजोस जैसे बिजनेस टैकुन भी अंतिरक्ष में व मंगल पर कॉलोनी बनाने की योजना पर विचार कर रहे हैं. इसके लिए अंतरिक्ष में माइनिंग की वकालत की है. इसी माइनिंग से कॉलोनी निर्माण में पानी, ईंधन व कच्चे माल की आपूर्ति होगी.
50 से ज्यादा वेंचर्स ने किये भारी निवेश
अंतरिक्ष से जुड़ी इन सभी योजनाओं पर काफी खर्च आयेगा. स्पेस वेंचर्स को लेकर 2015 में करीब 1.8 बिलियन डॉलर निवेश किया गया. करीब 50 से ज्यादा वेंचर्स ने अंतरिक्ष से जुड़े सौदों के लिए निवेश कर दिया है. एक छोटे से यूरोपीय देश लग्जमबर्ग ने भी इन मामलों में 25 मिलियन यूरो प्लेनेटरी रिसोर्स के साथ मिलकर प्रोस्पेक्टर एक्स के लिए निवेश किया है.
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