रामबहादुर राय को पढ़ें : सबका साथ सबका विकास की दिशा में बढ़ रही सरकार
रामबहादुर राय वरिष्ठ पत्रकार साल 2014 के चुनावों से पहले जब नरेंद्र मोदी के पक्ष में हवा चल रही थी, तब बहुत से बड़े पत्रकार ये मानते थे कि मोदी सरकार बनाने जा रहे हैं, लेकिन ये नहीं मानते थे कि वे देश संभाल सकेंगे. उनका तर्क था कि गुजरात एक छोटा राज्य है, उसे […]
रामबहादुर राय
वरिष्ठ पत्रकार
साल 2014 के चुनावों से पहले जब नरेंद्र मोदी के पक्ष में हवा चल रही थी, तब बहुत से बड़े पत्रकार ये मानते थे कि मोदी सरकार बनाने जा रहे हैं, लेकिन ये नहीं मानते थे कि वे देश संभाल सकेंगे. उनका तर्क था कि गुजरात एक छोटा राज्य है, उसे चलाना एक बात है और भारत महादेश को चलाना दूसरी बात है. अब वही बड़े पत्रकार यह कहने लगे हैं कि उनकी आशंका निराधार थी.
नरेंद्र मोदी बिना बदले हुए उन्होंने तीन साल एक सफल सरकार चलायी है और यूपीए सरकार के आखिरी दिनों में बनी हुई असमंजस की स्थिति समाप्त हो गयी. मोदी सरकार की ठोस उपलब्धि यही है कि लोगों को यह भरोसा हुआ कि एक बड़े फैसले लेने की ताकत इस सरकार में है और सरकार ने या नरेंद्र मोदी ने राजनीति की कार्यसंस्कृति को बदला है. मसलन, योजना आयोग को नीती आयोग में बदलना सिर्फ नाम का बदलना नहीं है, बल्कि उसके काम का भी बदलना है. नीती आयोग बना कर एक सहकारी संघात्मक व्यवस्था देना नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी देन है.
नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के विरोध में यह बात शुरू से कही जा रही है कि सरकार पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों के विरोध में है. इसी आधार पर लोगों को जगह-जगह भड़काया जा रहा है और यह शुरू से किया जा रहा है.
इन बातों को लेकर कुछ छात्र संगठनों ने विश्वविद्यालय परिसरों में आवाज उठायी और आंदोलन तक किये. मेरा मानना है कि कोई भी छात्र आंदोलन स्वत:स्फूर्त अगर पैदा होता है, तो वह फैलता जाता और देशव्यापी हो सकता है. लेकिन, हालिया छात्र आंदोलनों को किसी न किसी पार्टी का समर्थन प्राप्त रहा है, इसलिए इसकी परिणति सफल नहीं मानी जा सकती. यहां मैं यह कहना चाहता हूं कि सामाजिक या जातिगत भेदभाव के जो आरोप सरकार पर लगते रहे हैं, वे दरअसल एक खास वर्ग का मोदी सरकार पर आरोप है और उसका अपना नजरिया है. जहां तक मेरी जानकारी है, सरकार ने अपने किसी काम से समाज में भेदभाव नहीं बरता है.
हां, अगर सरकार ने कभी ऐसा किया है, तो उसके लिए उसे दोषी ठहराया जा सकता है. लेकिन, कुछ लोगों द्वारा एक तात्कालिक आरोप लगा करके कुछ लोगों की भावनाएं भड़कायी जायें, तो उसका दोष सरकार पर नहीं मढ़ा जा सकता. समाज में भेदभावपूर्ण वाली घटनाएं तो हो रही हैं और इन घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.
लेकिन, वे घटनाएं मोदी सरकार के उकसावे पर हो रही हैं या सरकार की गलत नीतियों के चलते हो रही हैं, अगर इसकी विवेचना करें तो आप पायेंगे कि केंद्र की सरकार ने, खासकर नरेंद्र मोदी ने, अपने खिलाफ सारी बातों का जवाब अपने व्यवहार से दिया है और यह साबित किया है कि वे सारे आरोप गलत हैं. इसलिए यह कहना कि सरकार सामाजिक भेदभाव या सांस्कृति विकृतियों के लिए दोषी है, यह उचित नहीं होगा.
मोदी की सामाजिक समरसता की नीति को ऐसे समझते हैं. नरेंद्र मोदी आरएसएस की पृष्ठभूमि से रहे हैं. आरएसएस में एक वर्ग है, जो बाबा साहेब आंबेडकर को लेकर कई तरह के सवाल खड़े करता है. लेकिन, नरेंद्र मोदी ने अपने कामकाज से और अपने व्यवहार से बाबा साहेब आंबेडकर की जो प्रतिष्ठा की है, वह पिछले सत्तर सालों में पहली बार हुआ है.
चाहे आंबेडकर के संस्थान बनाने के लिए बजट पास करना हो, या उनकी पुण्यस्थली पर या उनके निर्वाण स्थल पर जाने से लेकर अन्य कई नीतियों में बाबा साहेब के लिए जो नरेंद्र मोदी ने किये हैं, वह किसी और प्रधानमंत्री ने नहीं किया. दूसरी महत्वपूर्ण बात, भाजपा के नेता अक्सर मुसलिम तुष्टिकरण की बात करते रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने तो कभी ऐसी बात की ही नहीं. बल्कि यह संदेश दिया कि हर सर्वसाधारण मुसलमान उसी तरह के नागरिक अधिकारों का हकदार है, जैसा कि दूसरे वर्ग के लोग हैं. लेकिन, उसमें सांप्रदायिकता फैलाने या आतंकवाद की कारगुजारियों में लिप्त रहनेवाले लोगों के िखलाफ सरकार सख्त कार्रवाई कर रही है, ताकि समाज का लोकतांत्रिक ढांचा मजबूत बना रहे है.
बीते तीन सालों में नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपनी ओर से सामाजिक समरसता की हरसंभव कोशिश की है. जाहिर है, जिस समाज में सामाजिक समरसता बनेगी और बढ़ेगी, वही समाज और देश विकास कर सकता है.
और इसीलिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने ‘सबका साथ और सबका विकास’ का नारा दिया और अब वह उसी दिशा में बढ़ रही है. जो बड़ी उम्मीदें नरेंद्र मोदी से रही हैं, उन पर यह तो नहीं कहा जा सकता कि वे सारी उम्मीदें पूरी हो गयी हैं, लेकिन यह कह सकते हैं कि एक लोकतंत्र में सरकार के काम करने की पद्धति हम सबको भरोसा दिलाती है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)