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नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल : आर्थिक के साथ सामाजिक विकास पर भी काम
युवाओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए रोजगार के अवसरों को बढ़ाना ही होगा राजीव कुमार सीनियर फेलो, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च केंद्र में मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं और इस दौरान सुधार की दिशा में सक्रिय कदम का क्रियान्वयन हुआ है और कई सुधार प्रक्रिया को शुरू करने की पहल […]
युवाओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए रोजगार के अवसरों को बढ़ाना ही होगा
राजीव कुमार
सीनियर फेलो, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च
केंद्र में मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं और इस दौरान सुधार की दिशा में सक्रिय कदम का क्रियान्वयन हुआ है और कई सुधार प्रक्रिया को शुरू करने की पहल की जा रही है. सरकार द्वारा पिछले तीन साल में उठाये गये कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव निश्चित तौर पर मजबूत हुई है और इसके कारण आर्थिक विकास की सतत गति को हासिल करने में मदद मिली है. सरकार समग्र आर्थिक विकास की नीतियों पर काम कर रही है और इससे समाज के सभी वर्गों को आर्थिक विकास का लाभ मिलने की संभावना पहले से बेहतर हुई है.
यह सही है कि अभी यह काम चल रहा है और लक्ष्य को हासिल करने में समय लगेगा, लेकिन इससे उम्मीद पैदा हुई है और भविष्य में सरकार के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम दिखेंगे और आनेवाले समय में विकास की गति तेज होगी और रोजगार के अवसरों में व्यापक पैमाने पर वृद्धि होगी. देश में युवाओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए रोजगार के अवसरों को बढ़ाना बेहद जरूरी है.
पिछले तीन साल में खराब गवर्नेंस की विरासत को दूर करने के अथक प्रयास किये गये हैं. हर स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण माहौल नकारात्मक हो गया था, लेकिन गवर्नेंस पर प्राथमिकता और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में क्षमता का विकास कर रोजगार के अवसर बढ़ाने के उपाय किये जा रहे हैं.
जब केंद्र में नयी सरकार बनी, तब घरेलू और वैश्विक हालात के कारण निवेश का माहौल बेहतर नहीं था. केंद्र सरकार के प्रयासों से निवेश का माहौल बेहतर हुआ. वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कम कीमतों का फायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को हुआ, लेकिन अंतरराष्ट्रीय व्यापार में आयी गिरावट के कारण भारत के व्यापार में कमी आयी. इसके कारण भारत का आयात लगातार दाे साल कम हुआ और इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा.
हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक मांग में कमी और नोटबंदी के कारण घरेलू बाजार में आयी मंदी का बखूबी सामना किया. साल 2016-17 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग 65 बिलियन डॉलर रहा अौर यह अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है. विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार में भरोसा बढ़ने का कारण रहा, सरकार के आर्थिक सुधार के लिए उठाये गये कदम. इसमें जीएसटी कानून, बैंकरप्सी कानून, बेनामी संपत्ति कानून और व्यापार का माहौल बनाने के उपाय शामिल हैं. मोदी सरकार ने गवर्नेंस की खामियों को दूर करने व भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की दिशा में कठोर कदम उठाये हैं. इ-गवर्नेंस के ढांचे काे मजबूत किया गया है.
जन धन, आधार और मोबाइल के प्रयोग से सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिली है और सरकारी सब्सिडी का लाभ लाभार्थियों को मिल रहा है. महंगाई पर रोक लगाने के लिए रिजर्व बैंक को अधिक अधिकार देने आैर मौद्रिक नीति के लिए स्वतंत्र कमिटी के गठन से निवेश के अवसर बढ़े हैं.
पिछले तीन साल में सामाजिक क्षेत्र के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर की याेजनाओं के बेहतर अमल के लिए कई कदम उठाये गये हैं. सामाजिक विकास के साथ आर्थिक विकास के एजेंडे को आगे बढ़ा कर समग्र विकास के लक्ष्य को हासिल करने में मोदी सरकार ने अच्छा काम किया है. लेकिन सरकार को घरेलू निवेश बढ़ाने के लिए अभी और कदम उठाने की जरूरत है और साथ ही बैंकों के बढ़े एनपीए को कम करना बड़ी चुनौती है.
किसानों की आमदनी दोगुना करने पर जोर
भारत में खेती सेक्टर में आर्थिक रूप से बढ़ोतरी की दर अन्य सेक्टर के मुकाबले बेहद कम रही है. लिहाजा देश के बड़े हिस्से में किसानों का खेती से मोहभंग हो रहा है. ऐसे में केंद्र की मौजूदा सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने का फैसला लिया और उसे अमल में लाया जा रहा है. केंद्र सरकार वर्ष 2021 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने के संकल्प से काम कर रही है. पिछले तीन वर्षों के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र में सुधार और किसान कल्याण योजनाओं की सफलता के कारण कृषि क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
वर्ष 2016-2017 में खाद्यान्न उत्पादन का नया रिकॉर्ड कायम हुआ और कृषि व संबंधित क्षेत्रों की वृद्धि दर करीब 4.4 फीसदी रही है.
खाद्यान्न का यह उत्पादन पिछले पांच वर्षों के औसत उत्पादन से भी 6.37 फीसदी ज्यादा है.
अब तक राष्ट्रीय कृषि बाजार से 417 मंडियां जुड़ चुकी हैं.
दूध का उत्पादन वर्ष 2011-14 के दौरान 398.01 मिलियन टन हुआ था, जो कि 2014-17 के दौरान बढ़ कर 465.5 मिलियन टन हो गया है. तीन वर्षों के उत्पादन विकास की वृद्धि दर 16.9 फीसदी रही है.
वर्ष 2011-14 तक 223 किसान उत्पादक संगठन बने, जबकि 2014-17 तक 383 बनाये गये.राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के अंतर्गत केवल खरीफ सीजन में 2011-14 के तीन साल में छह करोड़ किसानों ने बीमा कराया, जिसमें से 77 लाख गैर-ऋणी किसान थे. जबकि 2014-17 के बीच तीन वर्ष में केवल खरीफ सीजन में नौ करोड़ 47 लाख किसानों ने बीमा कराया, जिसमें से दो करोड़ 61 लाख गैर-ऋणी किसान है.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के आकर्षण के कारण खरीफ फसल में गैर-ऋणी किसानों की संख्या में 238.96 फीसदी की वृद्धि हुई है और इसी तीन वर्ष में इसके पूर्व के तीन वर्षों की तुलना में रबी फसलों में भी गैर-ऋणी किसानों की संख्या में 128.50 फीसदी की वृद्धि हुई है.
कृषि में सरकारी निवेश बढ़ाना होगा
कृषि क्षेत्र के विकास दर में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट का रुख रहा
अवनींद्र नाथ ठाकुर
असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली विवि
मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गये हैं और इस दौरान देश की सर्वाधिक जनसंख्या को जीविका का साधन प्रदान करनेवाले कृषि क्षेत्र में इस सरकार की उपलब्धियों की विवेचना वांछनीय है. पिछले दो सालो में सरकार की ओर से कृषि क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण लक्ष्य रखे गये, जिसमें किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करना, कृषि क्षेत्र के विकास दर को चार प्रतिशत से अधिक पहुंचाना एवं कृषि को अधिक से अधिक बाजारोन्मुखी एवं आधुनिक बनाना इत्यादि शामिल है. हालांकि, जहां तक इन लक्ष्यों की प्राप्ति का सवाल है, पिछले तीन वर्षों में सरकार की ओर से चुप्पी ही बनी रही. इस चुप्पी का मुख्य कारण पिछले तीन वर्षों में इस क्षेत्र के विकास दर में भारी गिरावट मानी जा सकती है.
2013-14 में जहां कृषि एवं संबंधित क्षेत्र का विकास दर चार प्रतिशत से ऊपर था, वहीं 2014-15 में नयी सरकार के गठन के बाद ऋणात्मक स्तर (-0.2 %) तक पहुंच गया. 2015-16 में भी विकास दर में कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ और यह लगभग एक प्रतिशत के वार्षिक दर तक ही पहुंच पायी, जो निर्धारित लक्ष्य से काफी कम था. हलांकि, 2016-17 के वित्तीय वर्ष में माॅनसून के प्रभावी रहने के कारण सरकार चार प्रतिशत के विकास दर को पाने का दावा कर रही है.
बहरहाल, अगर बीते वर्ष में चार प्रतिशत के अग्रिम आकलन को मान भी लें, तो भी वर्तमान सरकार में पिछले तीन वर्षों का औसत विकास दर 1.7 प्रतिशत ही रहता है. जो न सिर्फ निर्धारित लक्ष्य से बहुत कम है, बल्कि पिछली सरकार की तुलना में यह विकास दर आधे से भी काफी कम है.
इस परिप्रेक्ष्य में सिर्फ माॅनसून को कृषि के विकास दर का निर्धारक मानना तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि कृषि की उत्पादकता पर मौसम की विसंगतियों के असर से मुक्ति भी कृषि के विकास का एक महवपूर्ण आयाम माना जाता है.
इससे पहले की मोदी सरकार की कृषि नीति की समीक्षा की जाये, यह जानना जरूरी है कि आखिर भारत में कृषि क्षेत्र किस किस तरह की समस्याओं से ग्रसित है. आर्थिक उदारवाद के इस दौर में कृषि एवं किसानों की उपेक्षा सर्वविदित है. कृषि को बाजारोन्मुखी बनाने की चाह में जहां एक ओर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र में दी जानेवाली सब्सिडी, सरकारी निवेश एवं संस्थागत ऋणों में लागातार सापेक्ष कमी आयी है, वहीं वैश्वीकरण के प्रभाव में कृषि उत्पाद के मूल्यों में अस्थिरता भी पिछले कुछ वर्षों में सामने आयी है. इसके परिणामस्वरूप डीजल, खाद इत्यादि के मूल्यों में भी पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि दर्ज की गयी है.
अब सवाल यह उठता है कि किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए देश में किस तरह की कृषि नीतियों की जरूरत है और कहां तक मोदी सरकार की नीतियां इसके लिए प्रतिबद्ध हैं. पहली आवश्यकता कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश में बड़े पैमाने पर वृद्धि मानी जा सकती है.
इससे ग्रामीण क्षेत्र में आधारभूत संरचना का विकास होगा और लागत में कुछ कमी की जा सकती है. कृषि की उत्पादकता में वृद्धि भी बेहतर निवेश से ही संभव है. इसके अलावा देश के किसानों को कृषि उत्पाद के मूल्यों में वैश्विक स्तर पर हो रहे उतार-चढ़ाव से बचाना भी महत्वपूर्ण है.
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