कब छोड़ेंगे इकट्ठा करने की आदत ?

जग्गी वासुदेव मिमांशु : एक बौद्ध लामा ने मुझसे कहा था कि हम लोगों को पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका है, लेकिन कुछ अपवित्रता और इच्छाओं के चलते यह भूल गये हैं कि हम भी बुद्ध की तरह हैं. मैं एक किताबी योगी रहा हूं आैर पूरी तरह से भ्रमित हूं. मुझे वाकई इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 27, 2017 6:17 AM
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जग्गी वासुदेव
मिमांशु : एक बौद्ध लामा ने मुझसे कहा था कि हम लोगों को पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका है, लेकिन कुछ अपवित्रता और इच्छाओं के चलते यह भूल गये हैं कि हम भी बुद्ध की तरह हैं. मैं एक किताबी योगी रहा हूं आैर पूरी तरह से भ्रमित हूं. मुझे वाकई इस बात का डर है कि अगर अगले पल मेरी मौत होती है, तो मैंने जो ज्ञान या विचार अर्जित किया हुआ है, उसकी गहन अनुभूति हुए बिना ही मैं मर जाऊंगा. सद्गुरु, मुझसे गलती कहां हो रही है, और मैं आगे कैसे बढ़ूं?
सद्गुरु : संभवत: लामा के कहने का मतलब था कि जिस भी चीज की जरूरत है, वह सब आपके भीतर है, बस आपको थोड़ी गंदगी हटानी होगी. इस मामले में वह अपनी जगह बिल्कुल ठीक थे. लेकिन जब आपको पता नहीं हो कि क्या गंदगी है और क्या नहीं, तो यह अपने आप में एक समस्या है. यह शरीर, मन, कपड़े जो आप पहनते हैं, काम जो आप करते हैं, वो चीजें जिन्हें आप दूसरे लोगों से ग्रहण करते हैं, वो चीजें जिन्हें आप दूसरे लोगों से ग्रहण करते हैं, इन सबके अलावा आपके मन के कई रूप है- आप यह नहीं जानते कि इन सब में आप कौन हैं और आप कौन नहीं हैं.
लामा ने जो कहा, आपको उसमें से एक बात समझनी चाहिए कि यह प्राणी जीवन का एक पूर्ण अंश है. यह जीवन का एक टुकड़ा भर नहीं है, बल्कि पूरा जीवन है. फिर यह अधूरा और अपर्याप्त क्यों लगता है? उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि जीवन की पूरी गहराई और उसके सारे आयाम आपके अनुभवों में नहीं आये हैं. इसलिए आपको ‘आप जो है’ और ‘आप जो नही है’- सिर्फ इसमें अंतर करना है. यह अंतर करना आपको किसी किताब को पढ़ कर नहीं आयेगा. यह अंतर समझने के लिए आपको उस किताब को पढ़ना हाेगा, जो आप खुद हैं.
जब आप अस्तित्व की इस किताब को पढ़ कर समझेंगे तभी आप जान पायेंगे कि आप क्या हैं और क्या नहीं हैं. यही ज्ञान सच्चा होगा. अगर आप हजारों किताबों में इसके बारे में पढ़ें, अगर आप आत्मज्ञान के बारे में ढेर सारी चीजें पढ़ लें तो आप पंडित, प्रोफेसर या लामा हो सकते हैं. लेकिन आप खुद को जान नहीं पायेंगे.
यह विचार कि ज्ञान को इकट्ठा किया जा सकता है, तब तक सही है जब तक ज्ञान किसी और के बारे में हो, लेकिन जब बात खुद की हो, तो आप ज्ञान को संचित नहीं कर सकते. इकट्ठा करने की यह प्रवृत्ति काफी पहले से चली आ रही है. शुरुआत में मानव समाज शिकारी हुआ करता था. उन्होंने जानवरों का शिकार किया, उनका मांस खाया, लेकिन उतना ही काफी नहीं था, उन्होंने उन जानवरों की हड्डियां इकट्ठी कीं, उन्हें अपने गले में लटकाया या उनका कुछ और इस्तेमाल किया. उन्हें कुछ-न-कुछ एकत्र करना था.
इकट्ठी करने की वह सहज सी प्रवृत्ति बढ़ते-बढ़ते यहां तक आ गयी कि लोगों ने धन का पहाड़ बना लिया, फिर भी वे इकट्ठा करते जा रहे हैं. लोग अब लाखों व करोड़ों की बात नहीं कर रहे, वे अब अरबों की बात कर रहे हैं. हर रोज इस तरह के आंकड़े अखबारों के पहले पन्ने पर दिखते हैं. आपका इकट्ठा करने का यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा. आप हजारों किताब क्या, हजारों सौर मंडल इकट्ठा कर लीजिए, आपका इकट्ठा करने का यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा. आप जितना इकट्ठा करते हैं, उतना ही आप समझ नहीं पाते कि आप कौन हैं और आपके साथ क्या हो रहा है.
तो कल सुबह, लेकिन कल के लिए भी क्यों छोड़ा जाये, मैं चाहता हूं कि आप अभी बैठ जाएं और जो आप नहीं है, उस हर चीज को एक तरफ उठा कर रख दें. उस शरीर से लेकर हर चीज, जो आपने यहीं इकट्ठी की है. तो आप अपनी सजगता में हर उस चीज को अपने से दूर करने की कोशिश कीजिए. आप देखेंगे कि ज्ञान इकट्ठा करने भर से आपको वह नहीं मिला है, जो आप जानना चाहते थे.
जिन लोगों ने ज्ञान इकट्ठा किया है, उन्हें लगता है कि वे धन-दौलत जमा करने वालों से बेहतर है, लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसा सिर्फ उनका मानना है. वास्तव में वे उनसे बेहतर नहीं है. दरअसल, वे उनसे भी बुरी हालत में है. जिस इनसान ने धन-दौलत इकट्ठी कर रखी है, वह कम-से-कम यह तो जानता है कि यह खो सकती है. लेकिन जिसने ज्ञान इकट्ठा किया है, उसे तो इस बात का भी एहसास नहीं है कि यह खो सकता है. आपको उसे श्मशान भूमि तक ले जाना होगा. कम-से-कम पैसे जमा करने वाला यह जानता है कि यह उससे लिया या छीना जा सकता है. पैसे के साथ एक अच्छी बात है कि हमेशा कोई-न-कोई इसे लेने की कोशिश में लगा रहता है. जबकि ज्ञान आपसे कोई भी नहीं ले सकता, बशर्ते आप अपना दिमाग और शरीर न खो दें.
तो ज्ञान इकट्ठा करना, पैसा और दौलत जमा करने से ज्यादा खतरनाक है. वास्तव में यह इनसान की प्रगति में ज्यादा नुकसान पहुंचाता हैं. मैं लोगों को कहता हूं कि अगर आप आध्यात्मिक रास्ते पर आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आप आध्यात्मिकता के बारे में कुछ भी न पढ़ें. अगर पढ़ना आपके लिए जरूरी है ही तो कुछ साहित्य, भूगोल या कुछ और पढ़िए. आप आध्यात्मिक चीजें मत पढ़िए.
इनसान के भीतर दो पहलू काम करते हैं. एक है भौतिक व दूसरा है अभौतिक पहलू. भौतिक हमेशा यह देखता है कैसे आश्रय मिले, कैसे अपनी सुरक्षा की जाये, खुद को बचा कर रखा जाये. जो पहलू भौतिक नहीं है, उसको बचाये रखने की कोई चिंता नहीं है, क्योंकि उसे कोई खतरा नहीं है. उसे आश्रय की भी कोई जरूरत नहीं है.
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