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हार्ट के मरीजों की जान बचाने में सक्षम होगी वायरलेस हार्ट पंप बैटरी
मेडिकल वैज्ञानिकाें ने एक ऐसे उपकरण का विकास किया है, जिसके माध्यम से वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस (वीएडी) जैसे हार्ट पंप की जरूरत खत्म हो सकती है. इन उपकरणों को संचालित करने के लिए इसे शरीर में इंस्टॉल करना होता है और केबल के जरिये इसके पंप व बैटरी को जोड़ना होता है. ऐसे में उन […]
मेडिकल वैज्ञानिकाें ने एक ऐसे उपकरण का विकास किया है, जिसके माध्यम से वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस (वीएडी) जैसे हार्ट पंप की जरूरत खत्म हो सकती है. इन उपकरणों को संचालित करने के लिए इसे शरीर में इंस्टॉल करना होता है और केबल के जरिये इसके पंप व बैटरी को जोड़ना होता है.
ऐसे में उन मरीजों के लिए यह एक अच्छी खबर हो सकती है, जिन्हें अपने शरीर में उपरोक्त उपकरण धारण करना पड़ता है और हमेशा अपने साथ पंप और बैटरी को बोझ ढोने के साथ इससे जुड़े जोखिम के साथ जीना पड़ता है. इस नये विकसित किये गये उपरकण से यह उम्मीद जतायी गयी है कि ऐसे मरीजों को अब यह सब नहीं झेलना होगा. क्या है यह नया उपकरण और हार्ट के मरीजों के लिए कैसे यह जोखिम कम करने में होगा सक्षम समेत इसकी तकनीक को रेखांकित कर रहा है आज का मेडिकल हेल्थ पेज …
वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस की खासियत
यह एक ऐसी डिवाइस है, जिसका इस्तेमाल गंभीर हार्ट अटैक के बाद किया जाता है. इसे हार्ट ट्रांसप्लांट से पहले एक वैकल्पिक आर्टिफिशियल हार्ट के तौर पर भी इस्तेमाल में लाया जाता है. हालांकि, भारत में अभी इसका प्रयोग बहुत ही कम होता है, लेकिन अमेरिका में इसे वर्षों तक के लिए मरीजों के शरीर में लगाया जाता है.
ऐसे काम करती है डिवाइस
इस डिवाइस को क्षतिग्रस्त हो चुके हार्ट के साथ लगा कर हार्ट की आर्टरीज के साथ जोड़ा जाता है. इस डिवाइस में एक बैटरी भी होती है, जो इसे पंप करती रहती है. ऐसा होने पर आर्टरीज के माध्यम से शरीर को पहुंचने वाला रक्त लगातार पहुंचता रहता है और दिल की जगह पर वीएडी काम करता है.
ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे वायरलेस सिस्टम का विकास किया है, जो वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस (वीएडी) को पावर मुहैया करायेगा. साथ ही, इस प्रक्रिया के तहत संक्रमण का जोखिम भी कम किया जा सकेगा. वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस सरीखे उपकरण हृदय में कार्डियक सर्कुलेशन की सहायता करनेवाले इलेक्ट्रोमैकेनिकल डिवाइस होते हैं, जिनका इस्तेमाल आंशिक या पूर्ण रूप से फेल हो चुके हार्ट को बदलने में किया जाता है.
आमतौर पर, इसका इस्तेमाल उस समय किया जाता है, जब कोई मरीज हार्ट ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहा हो या हाल ही में उसकी हार्ट सर्जरी हुई हो.
इस बात में कोई शंका नहीं कि भले ही ये उपकरण जीवनदायी साबित हुए हों, लेकिन इसके बावजूद अब तक इनका भरपूर उपयोग नहीं किया गया है. ‘साइंस एलर्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के पावर इंजीनियर महिंदा विलाथगमुवा का कहना है, ‘अमेरिकी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ का अनुमान है कि वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस सरीखे उपकरण के जरिये तत्काल तौर पर एक लाख से ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य लाभ हो सकेगा. हालांकि, वीएडी के मुकाबले इन उपकरणों से जोखिम कम है, लिहाजा ज्यादातर लोगों को हार्ट संबंधी बीमारियों का असर कम होगा. चूंकि, मौजूदा उपकरणों को शरीर से जोड़ने के लिए उनमें केबल फिट करना होता था, जिस कारण शरीर में कहीं-न-कहीं पर छेद करना पड़ता था, जिससे अक्सर संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है.’
संक्रमण के जोखिम से बचाव
महिंदा विलाथगमुवा का कहना है, ‘संक्रमण से अनेक लोगों की मौत हो जाती है, क्योंकि वीएडी के साथ बड़ी समस्या यह है कि उन्हें केबल के जरिये ऊर्जा मुहैया करायी जाती है. इसके लिए बाहरी बैटरी से त्वचा के जरिये केबल को शरीर के भीतर प्रविष्ट कराना होता है. मरीज को एक उपकरण के जरिये इस बैटरी को अपने शरीर के साथ ही रखना होता है, जो एक तरह से बोझिल और कष्टदायी प्रक्रिया है.’
विलाथगमुवा कहते हैं, ‘संक्रमण अक्सर उस बिंदु पर शुरू होता है, जहां केबल शरीर में प्रवेश करती है और वीएडी उपयोग की सबसे महत्वपूर्ण जटिलताओं में से एक है.’
इनसान का शरीर ऐसा है कि उसका बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीवों से बच पाना आसान नहीं होता, लेकिन हमारी त्वचा उन्हें बाहर रखने में बेहतर भूमिका निभाती है. यहां तक कि हमारे शरीर के मुंह और नाक जैसे खुले हिस्सों के जरिये भी अवांछित बैक्टीरिया को भीतर प्रविष्ट होने से रोकता है.
हालांकि, त्वचा में किसी कारण हुए छोटे से छेद को समय रहते निर्धारित तरीके से नहीं भरने की दशा में आसपास के पर्यावरण में घात लगाये बैक्टीरिया उसके जरिये शरीर में घुसने को तत्पर रहते हैं और सामान्य दशा के मुकाबले ज्यादा आसानी से शरीर में घुस जाते हैं.
वायरलेस पावर ट्रांसफर सिस्टम
जोखिम को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने एक वायरलेस पावर ट्रांसफर सिस्टम का आविष्कार किया है, जो इस कार्य के लिए शरीर में स्थायी केबल की जरूरत को सीमित करेगा.
इस नये उपकरण की उपयोगिता के बारे में उम्मीद जताते हुए विलाथगमुवा ने कहा है कि जिस सिस्टम का विकास किया जा रहा है, उसमें बेहद हलके वजन का कॉपर कॉयल होगा, जिसे शरीर में हार्ट पंप के लिए वीएडी सरीखे उपकरणों को पावर मुहैया कराने के लिए इस्तेमाल में लाया जायेगा.
शरीर के बाहर आपको एक ट्रांसमीटर और बैटरी की जरूरत होगी, जिसे आप जैकेट के भीतर धारण कर सकते हैं. इसमें केबल की जरूरत नहीं होगी और कॉयल रिसीवर के जरिये यह संचालित होगा.
इस शोधकार्य में मुख्य भूमिका निभानेवाले और क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञ प्रसाद जयाथुरथंगे का कहना है, ‘हम जिस सिस्टम को विकसित कर रहे हैं, उससे केबल की जरूरत पूरी तरह से खत्म हो जायेगी. अब तक किये गये परीक्षण में यह कॉमर्सियल हार्ट पंप को ऊर्जा मुहैया कराने के अपने कार्य में 94 फीसदी तक कार्यसक्षम पाया गया है. और इसकी बड़ी खासियत यह रही कि किसी भी परीक्षण में त्वचा में छेद करने की जरूरत नहीं हुई.’
प्रसाद जयाथुरथंगे कहते हैं, ‘फिलहाल हम प्रयोगशाला में इसका ज्यादा-से-ज्यादा परीक्षण कर रहे हैं और डायनामिक ऑपरेटिंग की दशाओं के तहत इसे उन्नत तरीके से विकसित करना चाहते हैं.’
हालांकि, इस उपकरण का परीक्षण आरंभिक अवस्था में है, लेकिन विशेषज्ञों ने उम्मीद जतायी है कि भविष्य में यह बड़ा बदलाव लाने में सक्षम होगा.
सामान्य ब्लड टेस्ट से ब्रेस्ट कैंसर का लगाया जा सकेगा अनुमान
एक सामान्य ब्लड टेस्ट से यह प्रदर्शित किया गया है कि ब्रेस्ट कैंसर के लिए जिम्मेवार गांठ का पता लगाते हुए अनेक प्रकार के कैंसर का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है. मूल रूप से ‘द ब्रिटिश जर्नल ऑफ मेडिकल प्रैक्टिस’ में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट के हवाले से ‘साइंस एलर्ट’ में बताया गया है कि इस परीक्षण को इस लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि कैंसर का अनुमान लगाने के लिए पिछले 30 वर्षों में यह बेहद कारगर साबित होगा.
दरअसल, प्लेटलेट्स (सूक्ष्म आकार की कोशिकाएं, जो घाव को भरने में मदद करती हैं) की अत्यधिक संख्या कैंसर के सभी प्रकार के प्रारूपों के जोखिम को बढ़ाने से जुड़ा होता है.
वैज्ञानिक अब डॉक्टरों से यह आग्रह कर रहे हैं कि यह थ्रोंबोसाइटोसिस की तरह है- जो एक ऐसी अवस्था है, जिस दौरान शरीर में अधिक संख्या में प्लेटलेट्स यानी थ्रोंबोसाइट्स पैदा होते हैं, जो ब्लड क्लोटिंग यानी रक्त का थक्का जमाने में अहम भूमिका निभाते हैं. और उन मरीजों के लिए यह डिटेक्शन मैथॉड कारगर साबित हो सकता है, जिनमें अब तक ये लक्षण दिख रहे हैं.
इस शोध दल में शामिल रहे सदस्य और यूनाइटेड किंगडम में यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के विली हैमिल्टन का कहना है, ‘पाये गये तथ्य यह दर्शाते हैं कि थ्रोंबोसाइटोसिस का कैंसर से मजबूत संबंध है. खासकर पुरुषों में, जिनमें महिलाओं के मुकाबले ब्रेस्ट में गांठ के रूप में कैंसर बहुत कम होते हैं.
अब यह महत्वपूर्ण है कि हम थ्रोंबोसाइटोसिस की कैंसर की समग्र जांच करें. इससे प्रत्येक वर्ष हजारों लोगों की जान बचायी जा सकेगी.’ देखा गया है कि 40 वर्ष की उम्र के बाद करीब दो फीसदी लोग थ्रोंबोसाइटोसिस की चपेट में आ जाते हैं, और इसका संबंध कैंसर से भी रहा है. इस नये शोध ने जो दर्शाया है, वह यह कि सभी उम्र व लिंग के लोगों के बीच यह मजबूती से संबद्ध होता है, और शरीर के सभी हिस्सों में कैंसर के साथ भी ऐसा है.
शोधकर्ताओं ने यूनाइटेड किंगडम में थ्रोंबोसाइटोसिस यानी उच्च प्लेटलेट काउंट वाले 31,261 मरीजों और 7,969 सामान्य प्लेटलेट काउंट वाले मरीजों के रिकॉर्ड की जांच की.
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