सरकारों ने शिक्षा को गौण बना दिया है
निराशाजनक : परिणामों ने शिक्षा व्यवस्था को एक सतह पर ला दिया है परीक्षा परिणामों के खराब होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि बिहार और झारखंड में टीचर ट्रेनिंग की बहुत ही अनदेखी की गयी है. बच्चों में शिक्षा की गुणवत्ता एक तरह से टीचर ट्रेनिंग पर ही निर्भर करती है. अच्छे टीचर […]
निराशाजनक : परिणामों ने शिक्षा व्यवस्था को एक सतह पर ला दिया है
परीक्षा परिणामों के खराब होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि बिहार और झारखंड में टीचर ट्रेनिंग की बहुत ही अनदेखी की गयी है. बच्चों में शिक्षा की गुणवत्ता एक तरह से टीचर ट्रेनिंग पर ही निर्भर करती है. अच्छे टीचर होंगे, तो बच्चे अच्छी पढ़ाई करेंगे और परिणाम भी अच्छे आयेंगे.
अंबरीश राय,
राष्ट्रीय संयोजक, राइट टू एजुकेशन फोरम
बिहार और झारखंड बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण रहे हैं. इन परिणामों ने शिक्षा व्यवस्था को एक सतह पर ला दिया है. पहले से ही हम लोग यह कहते रहे हैं कि अगर सेकेंडरी एजुकेशन को मजबूत करना है, तो प्री प्राइमरी, प्राइमरी और अपर प्राइमरी यानी छोटे बच्चों की शिक्षा और स्कूली शिक्षा को बुनियादी रूप से मजबूत किये जाने की जरूरत है. अगर यह बुनियाद मजबूत नहीं होगी, ताे आगे भी ऐसे ही परिणाम आने की संभावना बनी रहेगी और बच्चे नकल की तरफ भागेंगे. सात साल हो गये हैं, लेकिन बिहार और झारखंड में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीइ) लागू करने की सिर्फ बात ही होती रही है.
आज भी अध्यापकों की भारी कमी है. अगर बिहार-झारखंड के सारे स्कूल आरटीइ कानून को पालन करनेवाले बना दिये गये होते, मसलन इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्रशिक्षित अध्यापक, अध्यापक-छात्र अनुपात आदि को सही-सही लागू करने के लिहाज से आरटीइ कानून का पालन हुआ होता, और अगर वे बच्चे आज जब सेकेंडरी एजुकेशन में आये होते, तो शायद परीक्षा परिणाम कुछ और ही होता.
लेकिन, आरटीइ कानून के सारे प्रावधानों को राज्य सरकारों ने तकरीबन नजरअंदाज कर दिया. सिर्फ कहीं कोई शौचालय बना दिया और पीठ ठोकने लगे कि बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली. मेरी राय में कानून के सारे प्रावधानों को एक साथ लागू करने की जरूरत है, ताकि एक अच्छा स्कूल हम बना सकें. बिहार में पांच प्रतिशत स्कूल तो आज भी सिंगल टीचर स्कूल हैं. वहीं झारखंड में जितने भी पारा-टीचर्स हैं, उन्हें ट्रेंड किये जाने की जरूरत है.
हालिया आये परीक्षा परिणामों के खराब होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि बिहार और झारखंड में टीचर ट्रेनिंग की बहुत ही अनदेखी की गयी है. बच्चों में शिक्षा की गुणवत्ता एक तरह से टीचर ट्रेनिंग पर ही निर्भर करती है. अच्छे टीचर होंगे, तो बच्चे अच्छी पढ़ाई करेंगे और परिणाम भी अच्छे आयेंगे. वहीं दूसरी तरफ अध्यापक और छात्रों का अनुपात भी बहुत खराब है. इससे अध्यापकों पर बोझ पड़ता है, जिसका सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है.
हाल के वर्षों में जिस तरह से नकल को बढ़ावा मिला है, उससे बच्चों के पास डिग्रियां तो आ जायेंगी, लेकिन इस तरह से हम साक्षर बेरोजगार की फौज ही पैदा करेंगे. इसलिए स्कूली एजुकेशन पर आज सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, जिसके लिए बजट का मैकेनिज्म सुधारना होगा. सरकार बातें तो बहुत करती है, लेकिन शिक्षा के लिए बजट में उचित प्रावधान नहीं करती है- केंद्र सरकार भी और राज्य सरकारें भी. अरसा पहले यह माना गया था कि राज्य जब अपने बजट बनायेंगे, ताे उसमें अपने कुल खर्चे का 25 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय करेंगे, लेकिन यह आज तक नहीं हुआ. दिल्ली को छोड़ कर आज किसी भी राज्य में शिक्षा पर 25 प्रतिशत खर्च नहीं हो रहा है, बाकी सारे राज्य सिर्फ 15-16 प्रतिशत खर्च में ही झूल रहे हैं.
बिहार और झारखंड में ज्यादातर बच्चों की निर्भरता सरकारी स्कूलों पर ही है और वहां करीब 90 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. ऐसे में अगर सरकारी स्कूलों को मजबूत नहीं बनाया जायेगा, तो वहां की शिक्षा पर बुरा असर पड़ेगा. अगर सरकार इस बात को प्राथमिकता में नहीं रखेगी, तो सरकार ऐसे बच्चों को पैदा करेगी, जिनके पास डिग्री तो होगी, लेकिन काैशलपूर्ण शिक्षा नहीं होगी जो रोजगार दे सके. यह हमारे लिए बहुत ही चिंता का विषय है.
यह बहुत बड़ी विडंबना है कि देश में एक कैबिनेट सचिव ढाई लाख रुपये के वेतन वाला चाहिए और एक शिक्षक छह हजार रुपये के वेतन वाला चाहिए. जिस शिक्षक को देश का नागरिक तैयार करना है, उसके साथ बहुत बुरा हो रहा है. उसको पढ़ाने के साथ दुनियाभर के कामों में लगा दिया जाता है.
एक तो पहले ही शिक्षकों की संख्या कम है, वहीं उन्हें दूसरे-दूसरे काम करने पड़ते हैं. ऐसे में भला हम बेहतर परीक्षा परिणाम की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? सरकारों ने शिक्षकों का मनोबल गिरा दिया है और उनके दिमाग से शिक्षा को गौण कर दिया है. जिस तरह से सरकारों ने शिक्षकों को टेकेन फॉर ग्रांटेड ले लिया है, उसने शिक्षा की गंभीरता को ही खत्म कर दिया है. इसी का नतीजा है कि आज विकास और राजनीति के एजेंडे में शिक्षा गौण हो गयी है.