साधारण परिवार में जन्मे एम विश्वेश्वरैया जब मात्र 12 वर्ष के थे, तो उनके पिता का निधन हो गया. कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की और फिर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ली. आजादी के पहले और ठीक बाद जब देश में आधारभूत परियोजनाओं की नींव रखी जा रही थी, इसमें उन्होंने अहम भूमिका निभायी. आज भारत इंजीनियरिंग के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है, उसकी नींव डालने वाले इंजीनियर विश्वेश्वरैया ही थे.
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दक्षिण भारत के मैसूर को एक विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है. तब कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं. इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है. उन्होंने नयी ब्लॉक प्रणाली का आविष्कार किया, जिसके अंतर्गत स्टील के दरवाजे बनाये गये, जो बांध के पानी के बहाव को रोकने में मदद करते थे.
एक बार विश्वेश्वरैया रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे. उस समय देश में अंग्रेजी हुकूमत थी. उस रेलगाड़ी में ज्यादातर अंग्रेज सवार थे. उसी के एक डिब्बे में विश्वेश्वरैया भी गंभीर मुद्रा में बैठे थे. वहां बैठे देख अंग्रेज उन्हें मूर्ख और अनपढ़ समझ कर उनका मजाक उड़ा रहे थे, पर वे किसी पर ध्यान नहीं दे रहे थे, लेकिन अचानक विश्वेश्वरैया ने उठ कर गाड़ी की जंजीर खींच दी. तेज रफ्तार दौड़ती ट्रेन कुछ ही पलों में रुक गयी. सभी यात्री चेन खींचने की वजह से उन्हें भला-बुरा कहने लगे. थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और सवाल किया कि जंजीर किसने खींची.
विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया- मैंने. वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि मेरा अंदाजा है कि यहां से कुछ दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है. गार्ड ने पूछा- आपको कैसे पता चला? वे बोले – गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आया है और आवाज से मुझे खतरे का आभास हो रहा है. गार्ड उन्हें लेकर जब कुछ दूर पहुंचा तो देख कर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए थे और सारे नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े थे. इससे पता चलता है कि वे तकनीक को जीने लगे थे.
विश्वेश्वरैया एक बार अपने गांव मुदेनाहल्ली के प्राइमरी स्कूल में छात्रों से मिलने गये. उन्होंने वहां के शिक्षक को बच्चों के बीच मिठाई बांटने के लिए 10 रुपये दिये, तो शिक्षक ने बच्चों को संबोधित करने का आग्रह किया. उनके पास समय कम था, इसलिए उन्होंने छात्रों से बात की और वहां से लौट गये, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी स्पीच तैयार की और फिर से स्कूल गये. वहां पहुंच कर पहले की तरह उन्होंने शिक्षक को 10 रुपये मिठाई के लिए दिये और फिर अच्छे से अपना भाषण दिया.
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कृष्णराज सागर बांध बनाना विश्वेश्वरैया के असाधारण कार्यों में से एक था. इसकी योजना वर्ष 1909 में बनायी गयी थी और वर्ष 1932 में यह पूरा हुआ.
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विश्वेश्वरैया ने ‘भारत का पुनर्निर्माण’ (1920), ‘भारत के लिए नियोजित अर्थ व्यवस्था’ (1934) नामक पुस्तकें लिखीं और भारत के आर्थिक विकास का भी मार्गदर्शन किया.
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उनके द्वारा किये गये उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया. उन्हें ब्रिटिश नाइटहुड अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था.
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इंजीनियरिंग शब्द लैटिन शब्द इंजेनियम से निकला है. इसका अर्थ है स्वाभाविक निपुणता.