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सामाजिक चेतना से बढ़ेगी आत्मनिर्भरता

आत्मनिर्भरता अपने-आप में एक पूरा दर्शन है. आत्मनिर्भरता का अर्थ यह नहीं है कि हम दुनिया की मुख्यधारा से कट जायें, बल्कि इसका अर्थ है कि जब हम आत्मनिर्भर बनेंगे, तभी दूसरे देशों की मदद कर सकेंगे.

राम बहादुर राय, वरिष्ठ पत्रकार

आ त्मनिर्भरता एक विचार है और विचार से कार्यक्रम निकलते हैं. इन कार्यक्रमों को ध्यान में रखते हुए सरकार नीति बनाती है. आजादी से 1990 तक के दौर में हमने स्वदेशी तथा स्वावलंबन के विचार पर गौर नहीं किया. राजनीतिक रूप से स्वदेशी की गूंज हमें सबसे पहले 1991 में डॉ मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत बजट में सुनायी पड़ी. इस बजट के तहत जिन नीतियों को प्रस्तुत किया गया, उसमें स्वदेशी की बात भी उठी.

उस दौरान स्वदेशी की गूंज देश में उठने लगी थी. साल 1991 में मुंबई में आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने स्वदेशी को लेकर एक बड़ा बयान दिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने कहा था विचारधारा से परे जाकर भी मैं देशहित को सर्वोपरि मानते हुए बालासाहेब के स्वदेशी अभियान को पूर्ण समर्थन देता हूं. भारत में साल 1991 से लेकर 1995 तक एक स्वदेशी अभियान चला.

जब 1996 तथा 1998 में, केंद्र में भाजपा की सरकार आयी, तो स्वदेशी को लेकर जो भी अभियान चल रहे थे, उन सभी ने वाजपेयी सरकार के सामने मौन साध लिया. इस तरह से स्वदेशी का एक बड़ा आंदोलन धराशायी हो गया. आजादी से पहले भी कई बार देश में स्वदेशी अभियान चलाये गये. साल 1905 से लेकर 1908 के बीच स्वदेशी को लेकर बड़ा आंदोलन चला था, लेकिन वह भी लंबे समय तक टिक नहीं सका. साल 1920 के दौरान तथा उसके बाद गांधीजी ने भी जिस तरह के रचनात्मक कार्य देश की जनता को सौंपे, उनमें स्वदेशी का भाव निहित था.

हालांकि, गांधीजी के कार्यक्रमों में स्वदेशी जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जा रहा था, परंतु उनके आंदोलनों में आत्मनिर्भरता एवं स्वावलंबन पर जोर दिया गया था. खादी के उपयोग तथा ग्राम स्वराज को बढ़ावा देने की पहल इसके उपयुक्त उदहारण हैं. लेकिन,1947 में कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद इन सभी कार्यक्रमों को भुला दिया. गांधीजी के सहयोगी रहे जेसी कुमारप्पा ने भी ग्राम आंदोलनों को लेकर बहुत अथक प्रयास किये थे, लेकिन बाद में कांग्रेस सरकार की अनदेखी के कारण वे भी हताश होकर बैठ गये.

वर्तमान कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भरता की पहल की है. अभी आत्मनिर्भरता की दिशा में सरकार स्वयं पहल कर रही है, जिससे जनता में भी चेतना जागृत हो रही है. संभावना है कि आगे चलकर यह चेतना सामाजिक स्तर पर एक बड़े आंदोलन का रूप धारण कर सकती है. आत्मनिर्भरता अपने-आप में एक पूरा दर्शन है और प्रधानमंत्री मोदी ने उसे परिभाषित करने की कोशिश की है. आत्मनिर्भरता का अर्थ यह नहीं है कि हम दुनिया की मुख्यधारा से कट जायें, बल्कि इसका अर्थ है कि जब हम आत्मनिर्भर बनेंगे, तभी दूसरे देशों की मदद कर सकेंगे.

वर्तमान में भारत मुख्य रूप से एक आयातक देश है. हम अन्य देशों पर अधिक निर्भर हैं, चाहे वह रक्षा क्षेत्र हो अथवा कच्चे तेल का. आत्मनिर्भरता का मुख्य उद्देश्य देश में आयात को कम करना है. कुछ दिनों पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगायी है. केंद्र में भाजपा सरकार के छह साल के कार्यकाल में पहली बार आत्मनिर्भरता की पहल पर बात की गयी है.

आत्मनिर्भरता की पहल को बढ़ावा देने का मुख्य कारण चीन है. चीन का भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा दखल है और इसमें हमारे देश के कुछ उद्योगपतियों का भी साथ शामिल है. चीन का परोक्ष रूप से हमारी बैंकों, शेयर जैसी तमाम जगहों पर काफी हस्तक्षेप है. इसलिए सरकार चीन के भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ते हस्तक्षेप को कम करने के लिए भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा दे रही है. इस अभियान को आगे ले जाने के लिए हमें बेहतर कौशल के साथ-साथ बहुत सावधानी की भी जरूरत है.

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