कोलकाता : पश्चिम बंगाल में चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है. सभी पार्टियां अपनी-अपनी बिसात बिछाने में जुट गयी हैं. बिहार के बहुचर्चित नेता लालू प्रसाद यादव के लाल और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी यादव बंगाल में पार्टी की जड़ें मजबूत करना चाहते हैं. चुनाव में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं. इसलिए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ना चाहते हैं.
तेजस्वी यादव ने कई बार अपने दूतों को बंगाल भेजा. उनके दूतों अब्दुल बारी सिद्दीकी और श्याम रजक ने बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी दल कांग्रेस एवं लेफ्ट गठबंधन के साथ बातचीत की. वामदलों ने अपने हिस्से की सीट देकर भी राजद को अपने साथ रखने की पहल की. लेकिन, ज्यादा सीटों या ज्यादा सुरक्षित सीटों की चाहत में राजद तृणमूल के साथ भी मोलभाव करने में जुटा है.
यही वजह है कि जिस दिन बंगाल की सत्ता को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ कांग्रेस और वामदलों ने फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ मिलकर कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड मैदान में लाखों लोगों की जनसभा की, उस दिन राजद नेता एवं बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बंद कमरे में बैठक करने चले गये थे. हालांकि, उनकी ममता बनर्जी के साथ बातचीत हुई कि नहीं, यह स्पष्ट नहीं है.
उधर, वामदलों ने कहा था कि राजद नेता तेजस्वी यादव ब्रिगेड की रैली में शामिल हो सकते हैं. आज आगर वह रैली में नहीं पहुंचते हैं, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि वामदल अब तक पार्टी को जितनी तवज्जो देते रहे हैं, आगे नहीं देंगे. दूसरी तरफ ममता बनर्जी किसी दूसरी राज्य की पार्टी को सीट देने के मूड में कतई नहीं हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बंगाल विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने की बात की, तो ममता बनर्जी ने उन्हें काफी खरी-खोटी सुनायी थी. इसलिए कहा जा रहा है कि यदि ममता ने राजद के तेजस्वी यादव को भी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता हेमंत की तरह खरी-खोटी सुना दी, तो राजद का हाल हैदराबाद की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी जैसी हो जायेगी.
बिहार चुनाव 2020 में शानदार प्रदर्शन से उत्साहित असदुद्दीन ओवैसी ने बंगाल में चुनाव लड़ने की घोषणा की. एक दिन वह अचानक से बंगाल आये और फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के हाथों में अपनी पार्टी की बागडोर सौंप दी. पीरजादा की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी और उन्होंने अपना एक अलग फ्रंट बना लिया. नाम रखा – इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF).
पीरजादा की पार्टी आइएसएफ अब वामदल और कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा बन चुका है. रविवार (28 फरवरी) को ब्रिगेड परेड ग्राउंड में गठबंधन की रैली से पहले ही पीरजादा की पार्टी ने सियालदह से धर्मतल्ला तक रैली निकालकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया था. अब ओवैसी अपनी जमीन तलाशने में जुटे हैं. उधर, एआइएमआइएम के वे नेता, जिन्होंने पार्टी को मजबूत किया था, अब ओवैसी से नाराज चल रहे हैं.
Posted By : Mithilesh Jha