Bengal Election Women Connection: बंगाल विधानसभा चुनाव में आठ चरणों में वोटिंग के बाद 2 मई को रिजल्ट निकलने वाला है. पहले चरण की वोटिंग 27 मार्च को है. इसको देखते हुए सभी पार्टियां प्रत्याशियों के नामों का एलान कर रही है. गुरुवार को बीजेपी ने 5वें से 8वें चरण के लिए 148 प्रत्याशियों के नामों का एलान किया. इसमें 19 महिलाएं शामिल हैं. जबकि, टीएमसी की 291 प्रत्याशियों में से 50 महिला कैंडिडेट हैं. बड़ा सवाल यह है कि आखिर बंगाल में महिलाओं के आसरे सभी पार्टियां क्या हासिल करना चाह रही हैं? इसका जवाब बंगाल की आधी आबादी के हाथों में छिपी सत्ता की चाबी में है. कहने का मतलब है कि बीजेपी ने बंगाल चुनाव में ‘सोनार बांग्ला’ बनाने का नारा जरूर दिया है. हकीकत में अरसे से बंगाल की महिलाएं वोट से ‘सोनार बांग्ला’ गढ़ रही हैं.
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देशभर में बंगाल की महिलाएं अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध हैं. इस बार भी बंगाल चुनाव में महिलाओं को ‘गेमचेंजर’ माना जा रहा है. बंगाल के सियासी गणित को समझने वालों के मुताबिक बंगाल चुनाव में महिला वोटबैंक पर सभी की नजर है. चुनाव आयोग के आंकड़ों को देखें तो इस बार राज्य में करीब 7.18 करोड़ मतदाता वोट डालने वाले हैं. इसमें महिलाओं की संख्या 3.15 करोड़ (49 प्रतिशत) है. इस हिसाब से देखें तो पश्चिम बंगाल में महिला और पुरुष मतदाताओं के बीच महज दो फीसदी का अंतर है. अगर महिलाओं ने एकमुश्त किसी पार्टी को समर्थन दिया तो उस पार्टी को पॉलिटिकल माइलेज मिलना तय है. यही कारण है कि सारी पार्टियां महिला वोटबैंक पर ध्यान लगा रही है.
पश्चिम बंगाल में महिलाओं की संख्या को देखें तो यह पुरुषों के मुकाबले 961 (प्रति हजार) हो चुकी है. यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है. यही कारण है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 45 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 42 सीटों पर 17 महिलाओं (41 फीसदी) को टिकट दिया था. इस बार भी बंगाल चुनाव में टीएमसी ने 51 महिलाओं को टिकट दिया है. जबकि, बीजेपी समेत दूसरी पार्टियां भी उसी तर्ज पर चल रही हैं. 2006 में 82 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 81 फीसदी महिलाएं वोट डालने निकली थीं. 2011 में जब दीदी की पहली सरकार बनी थी तो वोट डालने वाले 84 फीसदी पुरुषों के मुकाबले महिला वोटर्स की संख्या 85 फीसदी थी. इसी तरह का चुनावी समीकरण 2016 में भी नजर आया था. उस चुनाव में 82 फीसदी पुरुष और 83 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले थे.
विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो बंगाल की महिलाएं पॉलिटिकली एजुकेटेड हैं. आरएन मुखर्जी रोड की सलोनी का कहना है उनके राजनीति से जुड़े फैसले में किसी पुरुष का दखल नहीं है. अपना वोट देने के लिए वो पूरी तरह स्वतंत्र हैं. कुछ ऐसा ही गायत्री मजूमदार का कहना है. गायत्री के मुताबिक 2 मई को असली विजेता का पता चलेगा. जहां तक महिलाओं को टिकट देने की बात है तो वो हमारी राजनीति में बढ़ती दखल का नतीजा है. शुभ्रा गांगुली की मानें तो बंगाल में महिलाएं ज्यादा जागरूक हैं. पेशे से बैंकिंग प्रोफेशनल शुभ्रा गांगुली भी महिलाओं को टिकट देना राजनीतिक दलों की मजूबरी मानती हैं. उनका कहना है कि भले ही मजबूरी हो, महिलाओं को टिकट देना हमारी मजबूती को दर्शाता है.
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प्रभात खबर कोलकाता की वरिष्ठ पत्रकार भारती जैनानी के मुताबिक बंगाल की सीएम और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी खुद महिला हैं. टीएमसी की सांसद काकोली घोष दस्तीदार, स्वास्थ्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य, मंत्री शशि पांजा, एक्ट्रेस और लीडर शताब्दी रॉय, डोला सेन, नैना बंधोपाध्याय, स्मिता बख्शी, महुआ मोइत्रा, नुसरत जहां, मिमी चक्रवर्ती जैसी कई महिला नेताओं को देशभर में पहचाना जाता है. बीजेपी की लॉकेट चटर्जी, देवाश्री चौधरी, रूपा गांगुली, वैशाली डालमिया, कांग्रेस की दीपादास मुंशी भी महिलाओं की ताकत बताने के लिए काफी हैं. आंकड़ों में देखें तो साल 2016 में 48 फीसदी महिला वोटरों ने टीएमसी को वोट दिया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बंगाल में महिलाओं के वोटिंग का प्रतिशत 82 रहा था. यही कारण है कि सभी पार्टियों को मातृ शक्ति पर भरोसा है.