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बिहार के रास्ते बंगाल में परिवर्तन का दावा फेल, AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी की खामोशी का मतलब क्या है?

Bengal Elections 2021: बिहार चुनाव में सीमांचल की 40 सीटों पर जीत दर्ज करने के इरादे से उतरे असदुद्दीन ओवैसी ने चुनावी प्रचार में एलान किया था कि बिहार में बदलाव होगा. बिहार में उनकी पार्टी नया इतिहास रचेगी और बीजेपी को केंद्र से बेदखल करने की स्क्रिप्ट लिखी जाएगी. बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटें जीती थी. आज बंगाल में असदुद्दीन ओवैसी खामोश हैं.

Bengal Elections 2021: बिहार और बंगाल की सीमाएं आपस में जुड़ी हैं. सीमाओं के जुड़े होने का मतलब है कि आना-जाना आसान है. इसी आने-जाने की आसानी को एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने राजनीतिक हथियार बनाया था. बिहार चुनाव में सीमांचल की 40 सीटों पर जीत दर्ज करने के इरादे से उतरे असदुद्दीन ओवैसी ने चुनावी प्रचार में एलान किया था कि बिहार में बदलाव होगा. बिहार में उनकी पार्टी नया इतिहास रचेगी और बीजेपी को केंद्र से बेदखल करने की स्क्रिप्ट लिखी जाएगी. बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटें जीती थी. आज बंगाल में असदुद्दीन ओवैसी खामोश हैं.

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फ्लॉप स्क्रिप्ट पर ओवैसी को चुप होना पड़ा…

बिहार में असदुद्दीन ओवैसी कहते थे यहां से परिवर्तन का पहिया घूमते हुए बंगाल पहुंचेगा और बंगाल चुनाव के नतीजों से केंद्र की मोदी सरकार पर 2024 में बड़ा असर होगा. बंगाल चुनाव की बात करें तो पहले फेज की वोटिंग 27 मार्च को है. टीएमसी, बीजेपी, लेफ्ट-कांग्रेस एलायंस ने चुनाव प्रचार में ताकत झोंक दी है. प्रभात खबर कोलकाता के वरिष्ठ स्थानीय संपादक कौशल किशोर त्रिवेदी के मुताबिक बीते कुछ महीनों में ओवैसी ने दो बार बंगाल की यात्रा की. दावा किया कि टीएमसी के वोटबैंक में उनकी पार्टी सेंधमारी में सक्षम है. बंगाल चुनाव में प्रचार चरम पर है. एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी पश्चिम बंगाल के चुनाव में खामोश हैं. बंगाल के संग्राम में असदुद्दीन ओवैसी कहीं भी नहीं हैं.

मुस्लिम मतदाताओं की असदुद्दीन ओवैसी से दूरी

पश्चिम बंगाल में करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोटर्स पर नजर गड़ाए असदुद्दीन ओवैसी कई मौकों पर टीएमसी से लेकर बीजेपी और कांग्रेस के लिए बड़े डैमेज की बात करते दिखे हैं. लेकिन, पश्चिम बंगाल में एआईएमआईएम में अहम भूमिका निभाने वाले जमीरुल हसन का ओवैसी से अलगाव हो गया. उनकी पार्टी के कई लीडर दूर होते चले गए. दूसरी तरफ जमीरुल हसन पश्चिम बंगाल में इंडियन नेशनल लीग को खड़ा करने में जुटे हुए हैं. 1994 तक मुस्लिम लीग के साथ चलने वाली इंडियन नेशनल लीग पश्चिम बंगाल में खुद का वजूद तलाश रही है. वहीं, फुरफुरा शरीफ के कद्दावर नेता पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ ओवैसी की दोस्ती से भी पार्टी के कई नेता नाराज चल रहे हैं.

अब्बास का लेफ्ट-कांग्रेस से प्रेम, ओवैसी खामोश

पश्चिम बंगाल में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की आईएसएफ (इंडियन सेकुलर फ्रंट) का लेफ्ट और कांग्रेस से गठबंधन है. असदुद्दीन ओवैसी की अब्बास सिद्दीकी से दोस्ती और सिद्दीकी की आईएसएफ की लेफ्ट-कांग्रेस से गठबंधन के चलते विवाद बढ़ गया है. इस हालात में इंडियन नेशनल लीग की स्थापना हो रही है. माना जाता है कि इंडियन नेशनल लीग चुनाव में सीएम ममता बनर्जी की टीएमसी को समर्थन देगी. सियासी जानकारों के मुताबिक बंगाल में ओवैसी की गैरमौजूदगी में सीधा फायदा टीएमसी को होगा.

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बंगाल चुनाव में हैदराबाद का कनेक्शन ‘गायब’

दरअसल, पश्चिम बंगाल के मुस्लिमों की बड़ी तादाद बांग्ला बोलती है. ममता बनर्जी का मुस्लिम प्रेम भी किसी से छिपा नहीं है. अगर ओवैसी और उनकी पार्टी को देखें तो बंगाल चुनाव में हैदराबाद से आकर मुस्लिम मतदाताओं को प्रभावित करना असदुद्दीन ओवैसी के लिए आसान नहीं है. बंगाल चुनाव के पहले असदुद्दीन ओवैसी और पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की बातचीत की खबरें भी सामने आई थी. ऐन मौके पर अब्बास सिद्दीकी ने पाला बदला और असदुद्दीन ओवैसी को चुनाव में खामोश होना पड़ा है.

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