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शिक्षक भर्ती घोटाला : कब और कैसे शुरु हुआ मामला, अब तक हुई है कितनी गिरफ्तारियां

शिक्षक मामले में केन्द्रीय एजेंसियों की जांच अब भी जारी है. कई गिरफ्तारियां हो चुकी है कई बाकी है. अदालत से लेकर सीबीआइ तक हर कोई शिक्षक भर्ती मामले के मास्टरमाइंड की तलाश में जुटा हुआ है.

पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती मामला काफी लंबे समय से चला आ रहा है. इडी और सीबीआइ की ओर से कार्रवाई जारी है. इसके बावजूद शिक्षक भर्ती मामले के मास्टरमाइंड को गिरफ्तार कर पाना केन्द्रीय एजेंसियों के लिये बहुत बड़ी चुनौती बन गई है. इडी सूत्रों की मानें तो शिक्षक भर्ती मामले में करोड़ों रुपये की धांधली की गई है. कई हजार अभ्यार्थी परीक्षा में उर्त्तीण होने के बावजूद आज भी नौकरी के इंतजार में है तो वहीं कई ऐसे लोग है जिन्हें बिना परीक्षा दिये ही उन्हें नौकरी मिल गई है. बंगाल में शिक्षक भर्ती मामला धीरे-धीरे पेचिदा होते जा रहा है. कई बड़े मंत्रियों का नाम शिक्षक भर्ती मामले से जुड़ता जा रहा है. केन्द्रीय एजेंसियां शिक्षक भर्ती मामले की कड़ियों को जोड़ने में लगी हुई है.

इस कदर हुआ शिक्षक भर्ती मामले का खुलासा

राज्य के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में हुई नियुक्तियों में हुए करोड़ों का घोटाला बिचौलियों के जरिये होने की बात सामने आयी थी, जो अवैध तरीके से नौकरी प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को घोटाले के मास्टरमाइंड को जोड़ने वाली कड़ी बने. इस बात उल्लेख घोटाले में धनशोधन पहलू की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (इडी) की चार्जशीट में है. असल में सोमेन नंदी बनाम पश्चिम बंगाल सरकार के एक मामले में 8 जून, 2022 को कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश के बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) ने राज्य के सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में सहायक शिक्षकों के चयन में कथित अनियमितता के आरोप में उत्तर 24 परगना के एक चंदन मंडल उर्फ रंजन (बिचौलिए की भूमिका निभाने का आरोपी) और पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के कुछ पदाधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिसके बाद 24 जून को मामले की जांच में जुटी. इडी ने बैंकशाल कोर्ट स्थित स्पेशल पीएमएलए कोर्ट में दाखिल किये गये अपने 172 पन्नों के आरोप पत्र में प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के पदाधिकारियों के साथ चंदन मंडल की सांठगांठ के बारे में बताया, जिसके तहत प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की अवैध नियुक्ति के लिए काफी रुपये लिये गये थे.

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मिले थे कई गवाह

जांच के तहत इडी के अधिकारियों ने पीड़ितों की एक वर्ग से भी पूछताछ की थी, जिनमें समर कुमार हालदार ने इडी को बताया था कि उसने एक अभ्यर्थी को प्राथमिक शिक्षक की नौकरी के दिलाने के लिए सात लाख रुपये का भुगतान चंदन‌ को किया. इधर, मछली कारोबारी सुजय विश्वास ने अबानी मंडल की नौकरी के लिए सात लाख रुपये की व्यवस्था करायी थी. हालांकि, हर कोई नौकरी पाने में सफल नहीं हुआ. मालदा के बल्लभपुर प्राइमरी स्कूल में सहायक शिक्षिका शेफाली मंडल को पार्थ चटर्जी के एक कथित करीबी शंकर सिंह ने धोखा दिया था. उसने अपनी जुड़वां बेटियों में से एक की नौकरी के लिए आठ लाख रुपये दिये, जिसके बावजूद नौकरी नहीं मिल सकी. एक छोटे व्यवसायी जयंत विश्वास ने इडी को बताया था कि उनकी पत्नी पापिया मुखर्जी को चंदन मंडल के माध्यम से करीब 7.5 लाख के बदले प्राथमिक शिक्षक की नौकरी मिली थी. पपिया मुखर्जी वर्तमान में नादिया के राघवपुर कनवर्टेड जूनियर बेसिक प्राइमरी स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं. आरोप यह है कि बिचौलिए ही अवैध नियुक्तियों के लिए रुपये का स्थानांतरण करने का काम भी करते थे.

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शिक्षक पात्रता परीक्षा में कैसे हुई धांधली

इडी की चार्जशीट में कहा गया था कि अपात्र उम्मीदवारों को नौकरी दी गयी. शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीइटी), 2014 का आयोजन 11 अक्तूबर, 2015 को हुआ था. सफल‌ अभ्यर्थियों की पहली मेरिट लिस्ट बदल कर दूसरी जारी की गयी और दूसरी मेरिट लिस्ट में अवैध रूप से और मनमाने ढंग से अपात्र उम्मीदवारों को भ्रष्ट तरीकों से नियुक्तियां दीं गयी. प्राथमिक स्कूलों में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्ति पाने के लिए अपात्र उम्मीदवारों की लिस्ट भी इडी के पास थी. इडी के अनुसार, टीइटी, 2014 की प्राथमिक चयन प्रक्रिया में प्रश्न पत्र और इसकी मूल्यांकन प्रक्रिया को संदिग्ध रूप से किया गया था, क्योंकि पात्र उम्मीदवारों को लिस्ट से बाहर करने के लिए ओएमआर शीट मे बदलाव किया गया.

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ओएमआर शीट में किया गया था बदलाव

कुछ असफल या टीइटी के अपात्र उम्मीदवारों को प्राथमिक स्कूलों में सहायक शिक्षकों के रूप में नियुक्तियां दे दी गयीं. यह आलम भी रहा कि कई ऐसे अपात्र उम्मीदवारों को नियुक्तियां मिलीं, जिन्होंने बहुविकल्पीय प्रश्नों का उत्तर नहीं ही दिया था और केवल अपने बारे में जानकारी लिखकर कॉपी को रिक्त छोड़ दिया था. एक अतिरिक्त पैनल संदिग्ध तरीके से बनाया गया था और कई व्यक्ति जिन्होंने टीइटी -2014 पास नहीं किया था, उन्हें इस पैनल में शामिल किया गया था. तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग के जरिये शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए पांच सदस्यीय समिति बनायी थी, जिसे बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट ने अवैध करार दिया था.

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स्कूलों में हुई नियुक्तियों में अब तक गिरफ्तार

पार्थ चटर्जी : स्कूलों में हुई अवैध नियुक्तियों के मामले में 23 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने गिरफ्तार किया है. पार्थ चटर्जी 20 मई, 2014 से 10 मई, 2021 तक राज्य के शिक्षा मंत्री रहे हैं. इसके बाद 10 मई, 2021 से इस साल 28, जुलाई तक वह उद्योग मंत्री रहे. इडी ने उन्हें इस घोटाले में धोखाधड़ी, अवैध तरीके से हुई नियुक्तियों के घोटाले में प्रमुख आरोपियों में से एक बताया है.

अर्पिता मुखर्जी : अर्पिता, जो कि पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की काफी करीबी बतायी जाती हैं, उन्हें भी इडी ने ही गिरफ्तार किया है. उनकी गिरफ्तारी 22 जुलाई को हुई. उनके आवास से करीब 49.8 करोड़ रुपये की राशि और करोड़ों के गहने बरामद हुए थे. उनपर पीएमएलए के तहत मामला दर्ज किया गया है. उनपर आरोप है कि वह घोटाले से प्राप्त रुपये की लाभार्थी रही हैं व उनकी शेल कंपनियों के ज़र्रे घोटाले की रकम दूसरी जगह स्थानांतरित की गयी.

शांति प्रसाद सिन्हा : वर्ष 2011 से 2014 तक वेस्ट बंगाल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन के सचिव रहे हैं. इसके बाद 2016 से 2021 तक वह स्कूल सेवा आयोग के चेयरमैन रहे हैं. 2019 से 21 तक सिन्हा एसएससी नियुक्ति सलाहकार समिति के संयोजक रहे हैं. उन्हें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) ने आठ अगस्त को गिरफ्तार किया है. उनकी भूमिका कक्षा नौवीं और दसवीं के लिए अवैध तरीके से सहायक शिक्षकों की हुई नियुक्तियों में होने के आरोप हैं. साथ ही राज्य के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में ग्रुप सी के पदों पर हुई अवैध नियुक्तियों में भी इनकी भूमिका रही है. इनपर भी धोखाधड़ी और प्रिवेंशन ऑफ क्रप्शन एक्ट, 2018 के तहत मामला दर्ज किया गया है.

अशोक कुमार साहा : सीबीआइ ने आठ अगस्त को इन्हें गिरफ्तार किया था. वह एसएससी के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं. इन पर भी राज्य के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में ग्रुप सी के पदों पर अवैध नियुक्ति के घोटाले में शामिल होने का आरोप है. इन पर धोखाधड़ी और प्रिवेंशन प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 2018 के तहत मामला दर्ज किया गया है.

कल्याणमय गांगुली : वेस्ट बंगाल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं. उनका कार्यकाल 2012 से जून 2022 तक रहा. उन्हें सीबीआइ ने 15 सितंबर को गिरफ्तार किया. इन पर राज्य के सरकारी स्कूलों में ग्रुप सी के पदों पर अवैध नियुक्तियों के घोटाले में शामिल होने का आरोप है. इनके खिलाफ भी धोखाधड़ी और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट, 2018 के तहत मामला दर्ज किया गया है.

सुबीरेश भट्टाचार्य : नार्थ बंगाल यूनिवर्सिटी के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं. साथ ही 2014 से 2018 तक वह एसएससी के चेयरमैन रह चुके हैं. कक्षा नौवीं व दसवीं के लिए सहायक शिक्षकों की अवैध नियुक्तियों के घोटाले में उनकी भूमिका होने के आरोप लगे हैं. उन्हें सीबीआइ ने 19 सितंबर को गिरफ्तार किया था.

माणिक भट्टाचार्य : प्राथमिक शिक्षा परिषद के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा विधायक हैं उन्हें इडी ने 10 अक्तूबर को गिरफ्तार किया है. उन पर राज्य के प्राथमिक स्कूलों में अवैध नियुक्तियों के घोटाले में प्रमुख आरोपियों में से एक माना जा रहा है. उनपर आरोप‌ कि है टीइटी, 2014 में अवैध‌ तरीके मेरिट लिस्ट में असफल अभ्यर्थियों को‌ उनके जरिये नियुक्ति हुई.

प्रसन्न राय : पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी का रिश्तेदार प्रदीप पर घोटाले में बिचौलिए की भूमिका अदा‌ करने का आरोप‌ है. उसे सीबीआइ ने सितंबर में गिरफ्तार किया. उसपर शेल‌ कंपनियों के जरिये घोटाले से प्राप्त कालाधन‌ सफेद करने का भी आरोप है.

प्रदीप सिंह : सीबीआइ ने इन्हें 2022 सितंबर में गिरफ्तार किया. यह प्रसन्न‌ का कर्मचारी है, जिसपर घूस देने वाले‌ अभ्यर्थियों की सूची बनाने और रकम एक से दूसरे स्थान पर‌ पहुंचाने का आरोप है.

सुजाॅयकृष्ण भद्र :  31 मई 2023 में इडी ने व्यवसायी और तृणमूल कांग्रेस नेता अभिषेक बनर्जी के करीबी सुजॉय कृष्ण भद्र को 12 घंटे की लंबी पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया था. सुजॉय कृष्ण भद्र ‘कालीघाटेर काकू’ के नाम से लोकप्रिय हैं.

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फर्जी कंपनियों के जरिये रुपयों का हेरफेर

इडी को मिले सभी सबूत पार्थ चटर्जी और‌ माणिक की ओर इशारा करते हैं. घोटाले से प्राप्त रुपयों का हेरफेर निजी कंपनियों व‌ शेल कंपनियों के जरिये‌ हुए. चार्जशीट में दावा किया गया था कि पार्थ चटर्जी ने 2014 और 2021 के बीच शिक्षा मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी स्कूलों में नौकरी के बदले में अपात्र उम्मीदवारों द्वारा भुगतान की गयी रिश्वत को लूटने के लिए कई शेल कंपनियों का गठन किया, जिसमें कहा गया है कि बेरोजगार और गरीब लोगों को शेल कंपनियों का निदेशक बनाया गया था. गहन जांच के बाद इडी ने अपनी चार्जशीट पार्थ और अर्पिता मुखर्जी और उनकी छह कंपनियों – एचे एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, अनंत टेक्सफैब प्राइवेट लिमिटेड, सिम्बायोसिस मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड, सेंट्री इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड, व्यूमोर हाइराइज प्राइवेट लिमिटेड और एपीए यूटिलिटी सर्विसेज भी जिक्र किया है.

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इडी ने अर्पिता मुखर्जी की करोड़ों की संपत्ति की थी कुर्क

इडी ने अर्पिता मुखर्जी की एचे एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड और सेंट्री प्राइवेट लिमिटेड, एपीए यूटिलिटी सर्विसेज, सिम्बायोसिस मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड और कोलकाता के हरिदेवपुर, पूर्वी जादवपुर, दक्षिण 24 परगना के सोनारपुर और बीरभूम जिले के बोलपुर में कई अन्य व्यक्तियों के नाम पर 40 अचल संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क किया है. अभी तक करीब 103.10 करोड़ रुपये संपत्ति कुर्क की गयी है. जांच के अनुसार, चटर्जी और उनके सहयोगी सिम्बायोसिस मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड, अनंत टेक्सफैब प्राइवेट लिमिटेड, व्यूमोर हाइराइज प्राइवेट लिमिटेड और जमीरा सनशाइन्स लिमिटेड को आय के स्रोत को छिपाने के मामले में आरोपी बनाया गया है.

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शांतिनिकेतन में अर्पिता और पार्थ के नाम से था  फार्महाउस

जांच में यह भी पता चला कि शांतिनिकेतन के बोलपुर में अर्पिता मुखर्जी और पार्थ चटर्जी के नाम से एक फार्महाउस खरीदा गया था. यह संपत्ति जो चटर्जी और मुखर्जी के संयुक्त नाम पर है, को पीएमएलए, 2002 की धारा 5(1) के तहत कुर्क किया गया. बोटैनिक्स एग्रोटेक लिमिटेड एक और कंपनी थी, जिसमें कल्याणमय गांगुली उनके दामाद और अन्य करीबी रिश्तेदार निदेशक थे. इडी की चार्जशीट के अनुसार पार्थ चटर्जी ने यह कहकर सही तथ्यों को छिपाने की कोशिश की कि उनका इन संपत्तियों से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने अर्पिता मुखर्जी, मेसर्स एच्छय एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड और मैसर्स सेंट्री इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड को कोई भुगतान नहीं किया. चटर्जी ने कथित तौर पर इडी के उन सवालों को टाल दिया था, जिसमें कंपनियों के स्वामित्व, भूमि डीड और संपत्तियों की संयुक्त होल्डिंग के बारे में जानकारी मांगी गयी थी.

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पार्थ और माणिक का चैट बनी थी अहम कड़ी

स्कूलों में हुई नियुक्तियों के घोटाले में तृणमूल विधायक माणिक भट्टाचार्य की संलिप्तता‌ होने के भी आरोप थे, जो राज्य प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष थे और जिन्हें बाद में पद से हटा दिया गया था. पार्थ चटर्जी के जब्त किये गये मोबाइल फोन की जांच में व्हाट्सएप चैट का पता चला है,‌ जिसमें चटर्जी को माणिक भट्टाचार्य के खिलाफ पैसे की अवैध मांग और निजी बीएड कॉलेजों और छात्रों से धन की वसूली के बारे में शिकायत मिली थी. चैट में लिखा गया था कि “दादा, माणिक भट्टाचार्य हर संभव तरीके से पैसे ले रहे हैं. उन्होंने कोविड के दौरान प्रत्येक प्राइवेट बीएड कॉलेज से 500 रूपये प्रति छात्र लिया. वह भी तब, जब कॉलेज बंद थे. छात्र भुगतान नहीं कर सके. इसलिए, कई कॉलेजों ने खुद भुगतान किया. उसने दोबारा 500 रुपयों की मांग की.”

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शिक्षक भर्ती मामले में जांच अभी भी है जारी 

शिक्षक मामले में केन्द्रीय एजेंसियों की जांच अब भी जारी है. कई गिरफ्तारियां हो चुकी है कई बाकी है. अदालत से लेकर सीबीआइ तक हर कोई शिक्षक भर्ती मामले के मास्टरमाइंड की तलाश में जुटा हुआ है. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ जारी है. अब भी कई पहलूओं का सामने आना बाकी है.

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