कोलकाता (नवीन कुमार राय) : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को जिस ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड ग्राउंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विशाल जनसभा को संबोधित करने वाले हैं, उसका इतिहास 200 साल से भी अधिक पुराना है. विश्व के कई बड़े नेताओं ने इस मैदान में जनसभाएं की हैं. कभी ज्योति बसु और अटल बिहारी वाजपेयी ने इस मैदान में हाथ मिलाया था.
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही सबकी निगाहें ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर टिक गयी हैं. संयुक्त मोर्चा (कांग्रेस-वामदल-आइएसएफ गठबंधन) ने 28 फरवरी को लाखों लोगों की भीड़ जुटाकर अपना शक्ति प्रदर्शन किया था. अब बंगाल की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही भाजपा ने भी भीड़ लाकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है.
भाजपा के सबसे बड़े नेता और मेगा प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैदान में उतारकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है. ब्रिगेड में रैली करना अपने आप में राजनीतिक पार्टी की शक्ति का एहसास कराता है. यहां लाख-दो लाख की भीड़ का कोई मायने नहीं होता. 5 लाख से कम भीड़ हो, तो मैदान खाली-खाली नजर आता है. बहरहाल, राज्य में कई बार परिवर्तन का गवाह बने ब्रिगेड परेड ग्राउंड के इतिहास के बारे में जानना जरूरी है.
कोलकाता में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में राजनीतिक रैलियों का रणनीतिक और सांकेतिक महत्व है. ऐतिहासिक विक्टोरिया मेमोरियल और राष्ट्रीय म्यूजियम के सामने स्थित यह कोलकाता का सबसे बड़ा खुला मैदान है. इस ग्राउंड का अपना विशिष्ट इतिहास है. इस मैदान से भारत और विश्व की राजनीति के कई ऐतिहासिक और यादगार लम्हे जुड़े हुए हैं.
कभी बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं माकपा के राज्य के सबसे बड़े नेता ज्योति बसु ने यहां भाजपा के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी से हाथ मिलाया था. कभी इसी मैदान पर बांग्लादेश के प्रथम प्रधानमंत्री मुजीब-उर-रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को अलग राष्ट्र बनाने में मदद करने के लिए भारत सरकार की तारीफ की थी.
इस ऐतिहासिक मैदान का इतिहास 200 साल से भी ज्यादा पुराना है. ब्रिगेड परेड ग्राउंड का इतिहास 18वीं सदी से शुरू होता है. इतिहासकारों का मानना है कि इसे प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने बनवाया था. इसका निर्माण भारतीय सेना के पूर्वी कमान के मुख्यालय (फोर्ट विलियम) के मैदान के रूप में हुआ था.
अपेक्षाकृत बड़ा होने के कारण राजनीतिक दलों के लिए यहां भीड़ जुटाना हमेशा से ही बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है. ब्रिगेड परेड ग्राउंड में पहली राजनीतिक जनसभा वर्ष 1919 में हुई. चित्तरंजनदास समेत अनेक क्रांतिकारियों ने जनसभा में हिस्सा लिया था. इसके बाद वर्ष 1955 में सोवियत के प्रीमियर निकोलाई बुल्गानिन और सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सचिव निकिता ख्रुश्चेव के सम्मान में इसी ग्राउंड में बहुत बड़े समारोह का आयोजन हुआ था.
Also Read: ब्रिगेड में कुछ तो होगा…, बॉलीवुड एक्टर मिथुन चक्रवर्ती के इस बयान के क्या हैं मायने
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस समारोह में हिस्सा लिया था. दुनिया ने वर्ष 1972 में भी ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक इतिहास बनते देखा. यह वही साल था, जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश को आजाद कराया और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौजूदगी में बांग्लादेश के प्रथम प्रधानमंत्री मुजीब-उर-रहमान के सम्मान में समारोह का आयोजन किया गया. बंग बंधु ने भारत की भूमिका की तारीफ की.
क्यूबा के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो ने भी इस ग्राउंड पर आये थे. यह ग्राउंड भारत में विपक्षी एकता का मंच भी रहा है. नब्बे के दशक में ज्योति बसु ने क्षेत्रीय दलों के साथ इसी ग्राउंड पर विपक्षी एकता का प्रदर्शन किया था. तब ज्योति बसु के साथ अटल बिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फर्नांडीस भी मंच पर थे.
Also Read: पीएम मोदी की रैली में अजब-गजब रंग: ब्रिगेड मैदान में ‘जय श्री राम’ की गूंज, ‘भाईपो’ पर भी निशाना
संयोग से वर्ष 2019 में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में ममता बनर्जी की राजनीतिक पारी का भी एक चक्र पूरा हो रहा है. वर्ष 1992 में ममता बनर्जी ने बतौर यूथ कांग्रेस नेता यहीं पर माकपा के विरुद्ध राजनीतिक संग्राम का बिगुल फूंका था. बाद में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और अंततः वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल से वाम मोर्चा को सत्ता से बेदखल कर राज्य की सत्ता पर काबिज हुईं.
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने भी इसी ग्राउंड से जनसभा को संबोधित किया था. एक बार फिर इतिहास के आइने में ब्रिगेड की अहमियत बढ़ गयी है, क्योंकि पश्चिम बंगाल के चुनाव पर पूरे देश की निगाहें हैं. ऐसे में ब्रिगेड की सभा से संयुक्त मोर्चा को संजीवनी मिली है, तो भाजपा समर्थक प्रधानमंत्री की सभा में शामिल होकर अभी से जीत का जश्न मनाते नजर आ रहे हैं.
Posted By : Mithilesh Jha