कोलकाता : विधानसभा चुनाव में जिन क्षेत्रों को तृणमूल कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है, उनमें चौरंगी विधानसभा क्षेत्र भी है. यह सीट पारंपरिक तौर पर कांग्रेस का गढ़ रही है. तृणमूल कांग्रेस के गठन के बाद से यहां तृणमूल के उम्मीदवार ही जीतते आ रहे हैं.
हालांकि सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस बार तृणमूल के गढ़ में भाजपा सेंध लगा पायेगी, क्योंकि 2014 के उपचुनाव में भाजपा 25.12 फीसदी मतों के साथ भाजपा दूसरे स्थान पर रही थी. भाजपा उम्मीदवार रितेश तिवारी ने पार्टी का वोट 20.8 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था. उन्हें 25.12 फीसदी वोट मिले थे.
वर्ष 1951 में जब यह फोर्ट विधानसभा क्षेत्र में आता था, तब पहली बार कांग्रेस के उम्मीदवार नरेंद्रनाथ सेन ने जीत हासिल की थी. वर्ष 1957 में कांग्रेस की मैत्रेयी बोस ने जीत हासिल की. उसी वर्ष जब यह चौरंगी विधानसभा क्षेत्र के तहत आया, तो भी कांग्रेस उम्मीदवार विजय सिंह नाहर ने जीत हासिल की.
वर्ष 1962 में डॉ विधान चंद्र राय, जो प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और वर्ष 1967 में सिद्धार्थ शंकर राय ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी. सिद्धार्थ शंकर राय 1969 में भी यहीं से जीते. सिद्धार्थ शंकर राय भी बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे. वह बंगाल में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री थे.
बीच में, वर्ष 1977 में जनता दल के टिकट पर संदीप दास ने इस सीट से जीत हासिल की थी. इसके अलावा वर्ष 1993 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अनिल चटर्जी ने उपचुनाव में जीत हासिल की. वर्ष 1996 में कांग्रेस के टिकट पर तथा वर्ष 2001 में तृणमूल के टिकट पर सुब्रत मुखर्जी को यहां से जीत मिली.
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वर्ष 2014 के उपचुनाव तथा वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में नयना बंद्योपाध्याय को तृणमूल कांग्रेस ने इस सीट से अपना उम्मीदवार बनाया और सुदीप बंद्योपाध्याय की पत्नी ने यहां से सभी दलों के उम्मीदवारों को धूल चटा दी. नयना लगातार दो बार यहां से विधायक चुनी गयी हैं और तीसरी बार फिर से मैदान में हैं.
Posted By : Mithilesh Jha